अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) से जुड़े देश के 300 से अधिक संगठनों ने आज देश के कई हिस्सों में ‘किसान बचाओ, देश बचाओ’ दिवस मनाते हुए विरोध प्रदर्शन किये। संगठनों ने कोरोनो लॉकडाउन के चलते पैदा हुए संकट को देखते हुए पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर किसानों को मुआवजा और उनकी कर्जमाफी की मांग की। प्रदर्शन के जरिये गांव, गरीबों, और प्रवासी मजदूरों को राहत और सामाजिक सुरक्षा देने के मांग की गयी।
ये सभी संगठन कोरोना महामारी के खत्म होने तक ग्रामीण परिवारों को हर माह 10000 रुपये की नगद मदद करने, हर व्यक्ति को 10 किलो खाद्यान्न हर माह मुफ्त देने, खेती-किसानी और आजीविका को हुए नुकसान की भरपाई करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने, किसानों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज़ के जंजाल से मुक्त करने और प्रवासी मजदूरों को बिना यात्रा व्यय वसूले उनके घरों तक सुरक्षित ढंग से पहुंचाने की मांग कर रहे हैं। ये प्रदर्शन के देश के कई राज्यों में हुए।
किसान नेताओ ने केंद्र सरकार द्वारा पिछले दो दिनों में कृषि क्षेत्र के लिए घोषित पैकेज को किसानों के साथ धोखाधड़ी बताया है और कहा है कि इसका लाभ खेती-किसानी करने वालों को नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में व्यापार करने वाली कॉर्पोरेट कंपनियों को मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह पैकेज किसानों और प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी, उनकी आजीविका और लॉक डाऊन में उनको हुए नुकसान की भरपाई नहीं करती और किसानों को मा-सम्मान देने का उसका दावा केवल जुमलेबाजी है। उन्होंने प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा के बारे में झूठा हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है।
छत्तीसगढ़
छतीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के बीच खेती-किसानी और जल, जंगल, जमीन से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले 25 से अधिक संगठनों के नेतृत्व में प्रदेश के कई गांवों में किसानों, आदिवासियों और प्रवासी मजदूरों ने अपने-अपने घरों से और गांवों में एकत्रित होकर मोदी सरकार द्वारा कोरोना संकट से निपटने के तौर-तरीकों पर अपना विरोध जाहिर किया और वास्तविक राहत देने की मांग की। किसान संगठनों के अनुसार आज 15 से ज्यादा जिलों में प्रदर्शन हुए हैं और कल भी प्रदर्शन जारी रहेंगे।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने बताया कि रायपुर, महासमुंद, दुर्ग, धमतरी, गरियाबंद, बिलासपुर, कोरबा, चांपा, मरवाही, जशपुर, सरगुजा, सूरजपुर तथा शंकरगढ़ आदि जिलों में किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाने की खबरें हैं।
इन विरोध प्रदर्शनों में किसान नेता पारसनाथ साहू, तेजराम विद्रोही, अनिल शर्मा, सुखरंजन नंदी, कृष्ण कुमार, राकेश चौहान, रामलाल हरदोनी, विशाल वाकरे, चंद्रशेखर सिंह ठाकुर, हरकेश दुबे, शेखर नायक, आदि ने भी हिस्सा लिया है।
प्रदर्शन का दायरा इतना व्यापक है कि किसानों ने अपने खेतों और मनरेगा स्थलों में भी कार्य करते हुए पदर्शन किया और मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है। बहुत सी जगहों में किसानों ने भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ भी नारे लगाए हैं और धान खरीदी के बकाया पैसों और बोनस का भुगतान शीघ्र करने की भी मांग की है।
बिहार
नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की कोविड-19 महामारी व लाकडाउन के दौरान किसानों-मजदूरों को राहत देने में विफलता और इस संकट का दुरुपयोग करते हुए विभिन्न कानूनों में संशोधन लाकर किसानों का भूमि छीनने व किसानों को फसलों का समर्थन मूल्य से वंचित करने के बर्बर हमले के खिलाफ बिहार में भी बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा प्रदर्शन किये गये।
उत्तर प्रदेश
मजदूर किसान मंच की सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, मऊ आगरा, लखनऊ इकाईयों ने लाकडाउन के नियमों पालन करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री को मांग पत्र भेजा। मांग पत्र में सहकारी खेती को मजबूत करने, किसानों के सभी कर्ज माफ करने, ब्याज मुक्त कर्ज देने, सस्ती लागत सामग्री उपलब्ध कराने, पचास गुना ज्यादा दाम पर सरकारी खरीद की गारंटी, मनरेगा में सालभर काम और 6 सौ रूपया मजदूरी, प्रवासी मजदूर समेत हर मजदूर व किसान को तत्काल नकद और राशन किट देने, प्रवासी मजदूरों की निःशुल्क वापसी की गारंटी, प्राकृतिक आपदा तूफान, ओलावृष्टि आदि से प्रभावित किसानों को मुआवजा, गन्ना किसानों के बकाए का तत्काल भुगतान, वनाधिकार कानून में पट्टा देने, सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं बहाल करने और किसान विरोधी बिजली संशोधन बिल 2020 वापस लेने जैसी मांगें शामिल रहीं।
मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष व पूर्व आई जी एसआर दारापुरी और महासचिव डा. बृजबिहारी ने कहा कि मोदी सरकार अब तक की सबसे ज्यादा किसान, मजदूर विरोधी सरकार साबित हुई है। कोरोना महामारी के इस संकटकालीन समय में भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसानों और मजदूरों को अपने भीमकाय 20 लाख करोड़ के पैकेज में एक पैसा देना इस सरकार ने स्वीकार नहीं किया। उलटे कृषि के कारपोरेटाइजेशन के जरिए वित्त मंत्री ने भारतीय खेती किसानी की बर्बादी का ही रास्ता ही खोल दिया।
मजदूर किसान मंच के नेताओं ने कहा कि देश के बिजली, रक्षा, कोयला आदि सार्वजनिक उद्योगों व सम्पत्तियों को बेचने का निर्णय लिया। हद यह है कि सरकार ने इस संकट में पांच हजार रूपए हर गरीब को देने की तमाम संगठनों द्वारा उठाई जा रही न्यूनतम मांग तक को नहीं माना। मनरेगा में दिए चालीस हजार करोड़ से मौजूदा जाबकार्डधारी परिवारों को महज दो दिन ही रोजगार मिल सकता है। यहीं वजह है कि प्रदेश में आमतौर पर मनरेगा में कराएं जा रहे काम की मजदूरी बकाया है।
पंजाब
पंजाब कई जिलों में किसानों ने ऑल इंडिया किसान सभा के बैनर तले किसान और मदूर विरोधी नीतियों के विरोध में मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। किसानों ने एसडीएम और जिला कलेक्टर के जरिये प्रधानमंत्री के पास मांग पत्र भी भेजे हैं।
महाराष्ट्र
नांदेड़, प्रभानी, बीड, जालना, बुलढाणा, नागुपर और सोलापुर समेत कई जिलों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन कर अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भेजा ।