कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को होने वाली समस्याओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए उनके द्वारा उठाये गए क़दमों की जानकारी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए दो दिनों का समय दिया है। कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन करने की वजह से प्रवासी मजदूरों के सामने रोजगार और भोजन की समस्या खड़ी हो गयी थी। जिसकी वजह से मजदूरों ने पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए सफ़र शुरू कर दिया था। इस सफ़र में कई मजदूरों की सड़क और रेल दुर्घटना, भूख और गर्मी से मृत्यु भी हो गयी थी। कई गर्भवती महिलाओं ने सड़कों पर ही बच्चों को जन्म दिया और उसके बावजूद कुछ ही घंटों में फ़िर से सफ़र तय करना शुरू कर दिया। राज्य और केंद्र सरकार के ट्रेन और बस चलाने के बाद भी सड़कों और हाईवे पर मजदूरों का बड़ा समूह पैदल चलता दिखाई देता है। इसी को ध्यान रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल, एम.आर. शाह की बेंच ने देश भर में अलग-अलग जगहों में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के लिए स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा, “अख़बारों और तमाम मीडिया रिपोर्ट्स लगातार प्रवासी मजदूरों की अत्यंत ख़राब स्थिति दिखा रही हैं। वो साइकिल से , पैदल और तमाम अन्य साधनों से लंबे सफ़र तय कर रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के द्वारा ये भी शिकायत की जा रही है कि वो जहां से भी जा रहे हैं वहां का प्रशासन भोजन और पानी देने में असमर्थ है। आज जब वर्तमान समय में देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा है तो इस समय समाज के इस हिस्से को सरकार द्वारा सहायता की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, और अन्य यूनियन टेरिटरीज द्वारा इस मुश्किल समय में इन लोगों के लिए अत्यधिक मदद की ज़रूरत है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसको लगातार इन प्रवासी श्रमिकों की ओर से भी अपीलें प्राप्त हो रही हैं। कोर्ट ने कहा, “इन प्रवासी मजदूरों को होने वाली समस्याओं को लेकर हमें कई पत्र भी प्राप्त हुए हैं। प्रवासी मजदूरों को अभी भी तमाम समस्याएं आ रही हैं। वो सड़कों पर, रेलवे स्टेशन पर और राज्य की सीमाओं पर फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकार इन्हें तुरंत उचित भोजन, रुकने की जगह और यातायात की सुविधाएं मुहैया कराएं। हालांकि भारत सरकार और राज्य सरकारें इनकी मदद कर रही हैं लकिन अभी भी ये कदम अपर्याप्त हैं और इनमें कई खामियां हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए प्रभावी क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है।”
सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार/ यूनियन टेरिटरीज को अपना जवाब दाख़िल करने के लिए दो दिन का समय दिया है और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस मामले में कोर्ट की मदद करने को कहा है। 28 मई को इस मामले की सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नोटिस-
इसके पहले गुजरात हाईकोर्ट भी लगातार राज्य सरकार को काम में खामियों के चलते लताड़ लगा चुका है। अब देश की सुप्रीम अदालत भी हालात को लेकर हरक़त में आई है। हालांकि एक सच ये भी है कि ये संज्ञान अगर स्वतः ही लेना था, तो सुप्रीम कोर्ट इसे बहुत पहले ले सकता था।