अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) से जुड़े देश के 300 से अधिक संगठनों ने कल 27 मई को किसान बचाओ, देश बचाओ दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया है। इस दिन देश के किसान और उनके संगठन पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर मुआवजा और कर्जमाफी की मांग उठाएंगें। साथ ही गांव, गरीबों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को राहत और सामाजिक सुरक्षा देने के मांग करेंगे।
इन संगठनों ने ग्रामीणों से अपील की है कि केंद्र की मोदी सरकार की कृषि व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें और फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए अपने-अपने घरों, खेतों या मनरेगा स्थलों से या गांव की गलियों में कतार बनाकर अपने संगठन के झंडे-बैनरों के साथ अपनी मांगों के पोस्टर लहरायें और आधे घंटे नारेबाजी करें।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक व पूर्व सांसद वीएम सिंह ने इस कार्यक्रम को लेकर फेसबुक लाइव के जरिये कहा कि ‘किसान नहीं रहेगा तो देश नहीं रहेगा’ है। उन्होंने सभी संगठनों से अपील की है कि वो ‘किसान बचाओ, देश बचाओ’ आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी करें।
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इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में भी किसानों और दलित-आदिवासियों से जुड़े 25 से ज्यादा संगठन एकजुट होकर आंदोलित हैं। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, किसानी प्रतिष्ठा मंच, भारत जन आंदोलन, छग प्रगतिशील किसान संगठन, राजनांदगांव जिला किसान संघ, क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छग आदिवासी कल्याण संस्थान, छग किसान-मजदूर महासंघ, किसान संघर्ष समिति कुरूद, दलित-आदिवासी मंच, छग किसान महासभा, छग आदिवासी महासभा, छग प्रदेश किसान सभा, किसान जन जागरण मंच, किसान-मजदूर संघर्ष समिति, किसान संघ कांकेर, जनजाति अधिकार मंच, आंचलिक किसान संगठन, जन मुक्ति मोर्चा और छत्तीसगढ़ कृषक खंड आदि संगठन शामिल हैं।
ग्रामीणों को अपनी सुविधानुसार विरोध प्रदर्शन का समय तय करने के लिए कहा गया है। आयोजकों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में इन सभी संगठनों के साथ आने से प्रदेश के 15 से ज्यादा जिलों में ये विरोध प्रदर्शन आयोजित होंगे। किसानों के इस देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों को ट्रेड यूनियन संगठन सीटू ने भी समर्थन देने और एकजुटता कार्यवाही करने की घोषणा की है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने बताया कि इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कृषि कार्यों को मनरेगा से जोड़ने और प्रवासी मजदूरों सहित सभी ग्रामीणों को काम देने; रबी फसलों, वनोपजों, सब्जियों, फलों और दूध को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने और समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत का डेढ़ गुना देने; सभी ग्रामीण परिवारों को छह माह तक 10000 रुपये मासिक आर्थिक सहायता देने; सभी जरूरतमंदों को छह माह तक प्रति व्यक्ति 10 किलो अनाज मुफ्त देने, राशन दुकानों के जरिये सभी आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुएं सस्ती दरों पर प्रदान करने और राशन वितरण में धांधली बंद करने की मांग की जाएगी। शहरों में फंसे ग्रामीण मजदूरों को उनसे यात्रा व्यय वसूले बिना सुरक्षित ढंग से उनके गांवों में पहुंचाने और बिना सरकारी मदद पहुंच चुके प्रवासी मजदूरों को 5000 रुपये प्रवास भत्ता राहत के रूप में देने की भी मांग की जाएगी।
इस विरोध प्रदर्शन के जरिए खेती-किसानी को हुए नुकसान के लिए प्रति एकड़ 10000 रुपये मुआवजा देने; किसानों से ऋण वसूली स्थगित करने और खरीफ सीजन के लिए मुफ्त बीज, खाद और कीटनाशक देने; किसानों और ग्रामीण गरीबों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज़ से मुक्त करने; डीजल-पेट्रोल की कीमत न्यूनतम 25 रुपये घटाने; किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाकर 18000 रुपये वार्षिक करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने की मांग उठाई जा रही है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में किसान न्याय योजना के अंतर्गत बजट में प्रावधानित राशि एकमुश्त देने, सभी प्रवासी मजदूरों का कोरोना टेस्ट किये जाने और कोरेंटीन केंद्रों में उन्हें पर्याप्त पौष्टिक भोजन और बुनियादी मानवीय सुविधाएं दिए जाने की भी मांग कांग्रेस की बघेल सरकार से करेंगे।
कृषि क्षेत्र के लिए घोषित पैकेज को निराशाजनक बताते हुए किसान नेताओं ने कहा कि यह गांव के गरीबों और किसानों के साथ सीधी धोखाधड़ी है, क्योंकि इसका लाभ खेती-किसानी करने वालों को नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में व्यापार करने वाली कॉर्पोरेट कंपनियों को मिलेगा। महामारी की सबसे ज्यादा त्रासदी झेल रहे गरीब तबकों को इस समय सीधे नगद सहायता और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये पोषण आहार की जरूरत है, जिसकी कोई बात इस पैकेज में नहीं है और न ही यह पैकेज किसानों और प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी, उनकी आजीविका और लॉक डाऊन में उनको हुए नुकसान की कोई भरपाई ही करती है।
उन्होंने कहा कि जब तक कानून बनाकर फसल को सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता और किसानों को कर्जमुक्त नहीं किया जाता, खेती-किसानी की हालत नहीं सुधारी जा सकती। मनरेगा को भी कृषि कार्यों से जोड़ने की जरूरत है, तभी अपने गांवों में पहुंचे करोड़ों प्रवासी मजदूरों को काम देना संभव होगा। इसी प्रकार, गांवों के जिन मजदूरों ने अपना शरीर गलाकर इस देश के औद्योगिक विकास में अपना योगदान दिया है, आज संकट के समय उनके घरों में उन्हें सुरक्षित पहुंचाना भी केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी है, लेकिन वह इस जिम्मेदारी से भी भाग रही है और सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा भी दे रही है।
प्रवासी मजदूरों के बारे में छत्तीसगढ़ सरकार के रवैये की भी इन किसान संगठनों ने तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि पांच लाख से ज्यादा छत्तीसगढ़ी मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए है और एक लाख की भी वापसी नहीं हुई है। जिन मजदूरों के फंसे होने की पुख्ता सूचनाएं राज्य सरकार को दी गई हैं, उन्हें भी सुरक्षित वापस लाने के कोई प्रयास नहीं हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रदेश से जो प्रवासी मजदूर गुजर रहे हैं, उनके साथ भी मानवीय व्यवहार नहीं किया जा रहा है और क्वारंटाइन सेंटर बदइंतजामी के शिकार हैं, जहां मजदूरों को पौष्टिक भोजन तक उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है। अभी तक 10 मजदूर इन केंद्रों में मर चुके हैं, जिसकी जवाबदारी तक लेने से सरकार इंकार कर रही है।
नेताओं ने कहा कि इसी प्रकार, मनरेगा में बजट आबंटन बढ़ाये बिना ही प्रवासी मजदूरों को काम देने की जुमलेबाजी हो रही है। मनरेगा के कानूनों के तहत एक परिवार को लगातार 15 दिनों तक काम मिलना चाहिए, जबकि अप्रैल माह में औसतन 10 दिनों का ही काम मजदूरों को मिला है।
किसान संगठनों का मानना है कि यदि सरकार कोरोना संकट के समय भी कार्पोरेटों का 69000 करोड़ रुपये माफ कर सकती है, तो गांव के गरीबों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को भुखमरी से बचाने और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए नगद राशि राहत के रूप में देने की मांगों को भी पूरा कर सकती है। किसान नेताओं ने बताया कि इन मांगों पर ग्राम सरपंचों को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपे जाएंगे।
(संजय पराते और विजय भाई द्वारा जारी विज्ञप्ति पर आधारित)