शुक्रवार की शाम ढलते-ढलते, केंद्रीय सूचना एवम् प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा समेत भाजपा और सरकार के तमाम नाम – एक अहम काम में जुट गए थे। ये काम, कोरोना से जनता को राहत पहुंचाने से जुड़ा नहीं था, बल्कि ये सब पलटवार कर रहे थे राहुल गांधी पर..जवाब दे रहे थे, राहुल गांधी की एक ट्वीट का। दरअसल राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों का महंगाई भत्ता (DA) काटे जाने के फैसले पर एतराज जताते हुए एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट में उन्होंने लिखा था,
“लाखों करोड़ की बुलेट ट्रेन परियोजना और केंद्रीय विस्टा सौंदर्यीकरण परियोजना को निलंबित करने की बजाय कोरोना से जूझ कर जनता की सेवा कर रहे केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशन भोगियों और देश के जवानों का महंगाई भत्ता(DA)काटना सरकार का असंवेदनशील तथा अमानवीय निर्णय है।”
लाखों करोड़ की बुलेट ट्रेन परियोजना और केंद्रीय विस्टा सौंदर्यीकरण परियोजना को निलंबित करने की बजाय कोरोना से जूझ कर जनता की सेवा कर रहे केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशन भोगियों और देश के जवानों का महंगाई भत्ता(DA)काटना सरकार का असंवेदनशील तथा अमानवीय निर्णय है।https://t.co/LTGPf53VsA
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 24, 2020
राहुल गांधी के इस बयान के बाद, भारतीय जनता पार्टी और सरकार की तरफ से इसके जवाब आने शुरु हो गए। केंद्रीय मंत्री, प्रकाश जावड़ेकर ने इस सवाल और आरोप का जवाब नहीं दिया, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं को सीधे खारिज करत दिया। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा,
“कांग्रेस का ये नेतृत्व दीवालिया है, जो सरकार के हर कदम का बस विरोध करना जानता है। कांग्रेस को देश की नब्ज़ और मिज़ाज समझना चाहिए…राहुल गांधी और उनके गैंग के अलावा कोई भी सरकार का विरोध नहीं कर रहा है।”
लेकिन केवल प्रकाश जावड़ेकर ही नहीं बोले, भाजपा के सबसे ज़्यादा मुखर प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी इस पर बिल्कुल चुनावी अंदाज़ में जवाबी हमला किया। संबित पात्रा ने कहा,
“ये दुखद है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी कोरोना वायरस महामारी को राजनैतिक अवसर बनाकर, इसका लाभ उठाना चाहते हैं। उनके पास किसी भी तरह की समस्या का कोई समाधान नहीं है, लेकिन अपने बेसिरपैर के आरोपों से वे हर रोज़ नई बाधा खड़ी करने की कोशिश करते हैं। “
हालांकि इस पर पार्टी प्रवक्ता, रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी और राहुल गांधी के कथन को स्पष्ट करते हुए कहा, “कोरोना महामारी के बावजूद सरकार ने अभी तक 20,000 करोड़ की लागत वाली सेंट्रल विस्टा परियोजना या फिर 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली बुलेट ट्रेन परियोजना रोकी नहीं है। सरकार ने फिजूल के सरकारी खर्चों में कटौती भी नहीं की, जिससे 2 लाख 50 हजार करोड़ रुपये सालाना बच सकते हैं।”
लेकिन कोरोना संकट के दौरान, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष – लंबे समय तक परिदृश्य से अदृश्य रहने के बाद फिर से सामने आए हैं। राहुल केवल सरकार पर हमला ही नहीं कर रहे, जैसा कि जावड़ेकर और पात्रा का आरोप है। बल्कि उन्होंने कई अहम बातें भी कही हैं। अगर जनवरी से अब तक, लगातार बढ़ती जा रही इस वैश्विक महामारी की भी बात करें तो 12 फरवरी को राहुल गांधी का ट्वीट, अभी भी हर सप्ताह वायरल हो जाता है। इस ट्वीट में उन्होंने कोरोना वायरस को लेकर, तब चिंता जता दी थी, जब सरकार ने किसी तरह के किसी प्रोसेस को नहीं अपनाया था। यहां तक कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश को इस महामारी को लेकर चिंतित न होने की बात कही थी। उस वक़्त राहुल गांधी संभवतः अकेले राजनेता थे, जिन्होंने इस ख़तरे से साफ़ तौर पर आगाह किया था।
The Corona Virus is an extremely serious threat to our people and our economy. My sense is the government is not taking this threat seriously.
Timely action is critical.#coronavirus https://t.co/bspz4l1tFM
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 12, 2020
यही वजह है कि उसके बाद से, जब भी कोरोना के हालात और बिगड़ते हैं, सरकार या तंत्र की किसी लापरवाही की घटना सामने आती है – सोशल मीडिया में राहुल गांधी का ये ट्वीट फिर से वायरल हो जाता है।
लेकिन क्या राहुल गांधी की चर्चा महज इस एक ट्वीट की वजह से फिर से हो रही है? क्या सिर्फ एक ट्वीट की वजह से प्रकाश जावड़ेकर और संबित पात्रा को राहुल को जवाब देने के लिए इतना हमलावर होना पड़ता है? दरअसल ये सिर्फ इतना नहीं है, हाल के दिनों में और खासकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बचाने में पार्टी और शीर्ष नेताओं के नाकाम होने के बाद – बल्कि ये कहें कि हॉर्स ट्रेडिंग के पूरे दौर से ही राहुल की सक्रियता दिखने लगी थी। प्रत्यक्ष नहीं लेकिन परोक्ष तौर पर कई पत्रकार ये जानते थे। ये अलग बात थी कि ये ख़बर नहीं बन रही थी। राहुल हाल के दिनों में ख़बर में फिर से आए, जब लगातार उनके बयानों और ट्वीट्स से ये लगने लगा कि वे फिलहाल सबसे ज़्यादा समझदारी की बात करते दिख रहे हैं। कांग्रेस के और नेताओं के मुक़ाबले राहुल, ज़्यादा समझदारी और ज़िम्मेदारी से बात करते दिखे, उनके बयानों में आम जनता और गरीब की बात – कोरोना के संकट के साथ बढ़ने लगी। ज़ाहिर है कि ये राजनीति है और ऐसी राजनीति की बुराई करने से पहले भाजपा को समझना होगा कि उसकी ताक़त ये ही राजनीति है। संकट के समय, विपक्ष के तौर पर सरकार के साथ खड़े रहते हुए, सवाल करते रहना।
और ऐसे में राहुल गांधी जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए, अरसे बाद मीडिया से रूबरू हुए तो उन्होंने सरकार पर सवाल उठाए, सलाह भी दी, लेकिन साथ ही ये भी कह दिया कि इस वक़्त वे नरेंद्र मोदी से नहीं, कोरोना से लड़ने को अपना मकसद मानते हैं। न केवल ये बेहतर राजनीति से प्रेरित बयान था, बल्कि चतुराई भरी राजनीति भी थी।
दरअसल लोकसभा चुनावों के बाद, अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के बाद से, कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और ख़ासकर वरिष्ठ नेताओं की गुटबाज़ी से क्षुब्ध होने को – राहुल के पार्टी और पद से दूरी बनाए रखने का कारण बताया जा रहा था। लेकिन पिछले कुछ दिनों में, तमाम राजनैतिक पंडित राहुल को वापसी करते देख रहे हैं। ये भी माना जा रहा है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व संभालने की वजह, पहले की ही तरह पार्टी को गुटबाज़ी से ऊपर ले जाना था और अब राहुल की पार्टी में फिर से नेतृत्व में वापसी हो सकती है। लेकिन इसको केवल किसी अंदरूनी राजनीति की तरह देखने की जगह, साथ ही साथ इस मुश्किल समय में उनके बाकियों के मुक़ाबले एक ज़्यादा समझदार, संतुलित और संवेदनशील नेता के तौर दिखाई देने को भी श्रेय देना चाहिए। कोरोना से सबसे पहले आगाह करने, डीए काटे जाने को लेकर किए गए ट्वीट या फिर पीएम नरेंद्र मोदी की जगह – कोरोना से लड़ाई के बयान के अलावा भी राहुल लगातर ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनको अंग्रेज़ी में सीज़न्ड पॉलिटिक्स कहते हैं। 23 मार्च को राहुल गांधी के वेंटिलेटर और सर्जिकल मास्क के निर्यात होते रहने पर सवाल उठाने के बाद, सरकार को हरकत में आना पड़ा।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
WHO की सलाह
1. वेंटिलेटर
2. सर्जिकल मास्क
का पर्याप्त स्टाक रखने के विपरीत भारत सरकार ने 19 मार्च तक इन सभी चीजों के निर्यात की अनुमति क्यों दीं?ये खिलवाड़ किन ताक़तों की शह पर हुआ? क्या यह आपराधिक साजिश नहीं है?#Coronavirus https://t.co/tNgkngZ936
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 23, 2020
यही नहीं राहुल गांधी के 12 अप्रैल के ट्वीट में एक बेहद अहम मुद्दा उठाया गया था, जिसमें कोरोना और लॉकडाउन के कारण, घाटे से जूझ रही भारतीय कंपनियों के विदेशी बड़े खिलाड़ियों द्वारा अधिग्रहण की आशंका जताई गई थी। मामला इस ट्वीट के साथ बढ़ा ही नहीं, इस पर बयानों और ख़बरों का दौर शुरु हुआ और सरकार को इसको लेकर पूर्व सावधानी बरतते हुए, क़ानूनी कदम उठाने पड़े।
The massive economic slowdown has weakened many Indian corporates making them attractive targets for takeovers. The Govt must not allow foreign interests to take control of any Indian corporate at this time of national crisis.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 12, 2020
इस बीच राहुल गांधी लगातार फिर से सक्रिय और मुखर दिख रहे हैं। ऐसे वक़्त में जब उनकी पार्टी ख़त्म होती दिख रही थी। वे लगातार लॉकडाउन पर भी सवाल कर रहे हैं, अर्थव्यवस्था पर भी और पीपीई किट्स से टेस्ट्स की कम संख्या तक, लगभग हर चीज़ पर। ये सवाल और कड़े सवाल सिर्फ एक राजनीति ही नहीं हैं, विपक्ष का होना और कड़े सवाल पूछना लोकतंत्र के लिए भी बेहतर संकेत है। हालांकि इस पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से तीखे बयान और कड़वे पलटवार आ रहे हैं। लेकिन दरअसल उनको भी समझना होगा कि सवाल और विरोध, सत्ता के लिए बेहतर होने का मौका है। राहुल गांधी की वापसी, नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए मौका है, ख़ुद को समीक्षा के ज़रिए और बेहतर करते जाने का। हालांकि फिलहाल, बीजेपी की ओर से लगातार दिख रही तल्खी और कई बार बौखलाई प्रतिक्रिया से लगता है कि राहुल गांधी की फिर से ‘वापसी’ बीजेपी को बरदाश्त नहीं हो रही है।