न्यूयॉर्क टाइम्स (nytimes.com) में 27 मार्च को अपलोड किए गए एक आलेख में कहा गया है कि अनियंत्रित हाईपरटेंशन और डायबिटीज के शिकार लोगों के लिए कोविड-19 खतरनाक है. भारत में कोविड-19 को बुजुर्गों के लिए तो खतरा बताया गया है पर डायबिटीज और हाइपरटेंशन वालों के लिए भी खतरा है, यह नई बात है. वैसे ऐसी बीमारी के शिकार लोग जानते हैं कि उनके लिए कुछ भी खतरनाक है वे खुद ही संभल कर रहते हैं.
भारत में कोरोना की खबरें बढ़ने के साथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने और भाजपा की सरकार बनने के बाद अचानक लॉक डाउन की घोषणा कर दिए जाने के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कई दिनों से कहीं खबरों में नहीं हैं.
29 मार्च को कोलकाता के अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ने खबर छापी थी. अखबार ने लिखा था कि देश की सत्तारूढ़ व्यवस्था में दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता को अभी तक (कोरोना के संबंध में) सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के ट्वीट की तारीफ करने या राज्यों को एडवाइजरी भेजने के काम में लगाकर रखा गया है.
अखबार ने नॉर्थ ब्लॉक के अपने सूत्रों के हवाले से यह खबर दी और बताया कि लॉक डाउन के चलते गृहमंत्री दफ्तर नहीं जा रहे हैं और घर से ही काम कर रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि शाह डायबिटीज के मरीज हैं और संभव है इसीलिए सोशल डिसटेंसिंग को गंभीरता से ले रहे हों. इसके बाद भी वो खबरों में नहीं हैं और यह आम जानकारी है कि वे लिपोमा का ऑपरेशन करा चुके हैं.
देश में सरकारी स्तर पर इस महामारी से निपटने के लिए अव्वल तो काम ही बहुत कम हो रहा है और उसकी भी जानकारी कायदे से नहीं दी जा रही है. ऐसे में न्यूयॉर्क टाइम्स का यह लेख भारत से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएं देता है.
अर्थशास्त्री तथा महामारी से संबंधित अध्ययनकर्ता, रमनन लक्ष्मीनारायणन भारत, यूरोप और अमेरिका में कई संस्थाओं में अनुसंधानकर्ताओं के समूह के साथ काम करते रहे हैं. इस समय वे वाशिंगटन में सेंटर फॉर डिजीज डायनैमिक्स, इकनोमिक्स एंड पॉलिसी के निदेशक हैं और प्रिंसटन में सीनियर रिसर्च स्कॉलर हैं.
भारत की विशाल आबादी के मद्देनजर वो एक बड़े आकार के कप्यूटर मॉडल की आवश्यकता बताते हैं और कई वर्षों से इस पर काम करते रहे हैं. रमनन ने लिखा है कि भारत की स्थिति और दूसरे देशों में जो देखा गया है उसके मद्देनजर भारत में बीमारी बढ़ने पर क्या होगा यह लगातार स्पष्ट होता जा रहा है.
इस लेख के अनुसार भारत की आबादी का एक तिहाई हाइपरटेंसिव है और 10 वयस्कों में एक से ज्यादा डायबिटिक हैं. चीन से मिले अध्ययन से पता चलता है कि वहां बच्चों के संक्रमित होने की आशंका कम थी पर भारत में लाखों कुपोषित बच्चे हैं. इन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है.
सांस की बीमारी का मामला हो तो टीबी, निमोनिया, धूम्रपान और हवा की खराब गुणवत्ता का भी नुकसान होना है. कुछ लोगों को उम्मीद है कि बढ़ते तापमान से भारत को राहत मिल सकती है पर लेख के अनुसार, इस बात के कोई सबूत नहीं हैं.
भारत में जुलाई के अंत तक 30 से लेकर 50 करोड़ लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का शुरुआती अनुमान है. इनमें से ज्यादातर मामले बिना लक्षण वाले होंगे और हल्का संक्रमण होगा पर इसका दसवां हिस्सा यानी तीन से लेकर पांच करोड़ लोगों की स्थिति गंभीर होने का अनुमान है.
इस लेख के अनुसंधान मॉडल का अनुमान है कि देश में जब यह महामारी अपने शिखर पर होगी तो कोविड-19 के गंभीर मरीजों की संख्या कम से कम एक करोड़ होगी. इनमें से ज्यादातर को अस्पताल में दाखिल कराने की आवश्यकता होगी.
दूसरी ओर भारत में एक लाख से कम आईसीयू बिस्तर हैं और इनमें से ज्यादातर सिर्फ बड़े शहरों में हैं. इटली में वेंटीलेटर की कमी के कारण चिकित्सकों के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया था कि मरीजों में किसे वेटिलेटर दिया जाए. लेख के अनुसार भारत की कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था में यह समस्या कई गुना ज्यादा होगी.
वैसे तो कोविड के मरीजों में मरने वालों का औसत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो से तीन प्रतिशत रहा है पर भारत में यह ज्यादा होगा क्योंकि उन देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर थी और भारत में बहुत खराब है.
यह लेख 27 मार्च का है और इसके अनुसार उस दिन देश में कोरोना वायरस संक्रमण के 649 मामले थे. इसमें कहा गया है कि यह बहुत कम है और ऐसा वायरस की जांच बहुत सीमित होने के कारण है. वैज्ञानिकों और दूसरों के अनुमान के अनुसार यह संख्या उस समय 21,000 के करीब होनी चाहिए थी.
लेख में कहा गया है कि महामारी मई के शुरू में शिखर पर होगी. लेकिन यह उम्मीद जताई गई है कि लॉक डाउन का पालन ठीक से हुआ तो संक्रमण की संख्या कम हो सकती है और पीड़ितों की संख्या 70 से 80 प्रतिशत कम हो सकती है. पर यह अनुपालन के स्तर पर निर्भर करेगा और इसमें भौतिक दूरी बनाए रखने का महत्व है.
लेख में अनुमान लगाया गया है कि तब भी 10 लाख लोगों को अस्पताल में दाखिल कराने तथा गंभीर देख-भाल की आवश्यकता होगी. अगर लॉक डाउन नहीं किया गया होता तो यह संख्या 50 से 60 लाख या पांच से छह मिलियन होती.
भारत में कोरोना वायरस अपने शिखर पर पहुंचे उससे पहले भारत के पास चार से छह हफ्ते हैं. यह बेहद जरूरी है कि इस समय एक विशालकाय, किफायती और आसानी से उपलब्ध टेस्टिंग संरचना तैयार की जाए. बीमारों की पहचान करने के प्रयास तेज किए जाएं. उनके संपर्कों का पता लगाया जाए और उन्हें अलग करके खतरे की तैयारी की जाए.
हाईजेनिक क्वारंटाइन सुविधा और इंटेंसिव केयर बेड की व्यवस्था सभी राज्यों की राजधानी में की जानी चाहिए. केंद्र सरकार को भी तेजी से काम करने की जरूरत है. वित्तीय और मानवीय संसाधन जुटाने हैं, कोविड-19 के उपचार की अस्थायी सुविधा बनानी है. आवश्यक उपकरण खरीदने हैं, इनमें टेस्ट किट, पीपीई, अस्पताल के बिस्तर, ऑक्सीजन फ्लो मास्क और वेंटिलेटर शामिल हैं.
इसके साथ ही काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी संक्रमण नियंत्रण और सुरक्षित परीक्षण का प्रशिक्षण दिया जाना है. अगर भारत यह सब नहीं कर पाता है तो महामारी भारी कीमत वसूलेगी.
बहुत आशंका है कि बीमारी इसी साल आखिर में फिर आएगी. भले ही इसका विस्तार कम होगा पर इस बारे में सही जानकारी तभी मिलेगी जब टेस्ट होंगे. दूसरी ओर बहुत सारे देशवासियों का प्रतिरक्षण कोरोना वायरस के मुकाबले कमजोर होगा.
लॉकडाउन से लाखों जानें बच गई हैं पर सरकार की इस निर्भीक कार्रवाई के साथ ऐसे ही प्रयास यह सुनश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि महामारी फिर से भूख और गरीबी का संकट न पैदा करे.
प्रस्तुति- संजय कुमार सिंह