देश भर में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या अब तक कुल 9 है लेकिन छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एल्मागुड़ा के करीब शनिवार दोपहर को माओवादियों के साथ मुठभेड़ में मारे गये पुलिसवालों की संख्या 17 है। इन मौतों पर कहीं चर्चा नहीं है। विडम्बना है कि इन 17 में से 16 लाशें आदिवासियों की हैं और सभी छत्तीसगढ़ के रहने वाले निचले दरजे के पुलिसकर्मी हैं।
शुरुआती रिपोर्टों में बताया गया था कि इस मुठभेड़ में 15 सिपाही घायल हुए थे और दो बुरी तरह ज़ख्मी थे, जिन्हें एयरलिफ्ट कर के शनिवार की शाम इलाज के लिए रायपुर ले जाया गया था। इन्हीं में एसटीएफ के पांच और डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के 12 जवान यानी कुल 17 लापता बताये गये थे।
रविवार को सर्च आँपरेशन में इन्हीं 17 जवानों की लाशें बरामद की गयी हैं। मीडियाविजिल को प्राप्त एक्सक्लूसिव तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं।
मीडियाविजिल के स्थानीय प्रतिनिधि के मुताबिक सुकमा के बुरकापाल और चिंतागुफा में तैनात पुलिसवालों और कोबरा की एक टीम इलाके में गुप्तचर सूचना के आधार एक बड़ा आपरेशन करने गयी थी।
इसी बीच शनिवार की दोपहर माओवादियों ने इन्हें चारों तरफ से घेर लिया और हमला कर दिया जिसमें 17 जवान मारे गये।
रिजर्व गार्ड के मारे गये 12 सिपाहियों में सभी स्थानीय आदिवासी हैं। एसटीएफ के पांच मृत जवानों में चार आदिवासी बताये जाते हैं।
बस्तर के आइजी सुंदरराज ने रिपोर्टरों को बताया कि करीब 600 जवानों की टीम इलाके में आपरेशन के लिए गयी थी। दूसरी ओर करीब 250 माओवादी थे। मुठभेड़ करीब तीन घंटा चली।
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक पुलिसबलों को खुफिया सूचना मिली थी कि इलाके में सीपीआइ (माओवादी) की एक अहम बैठक होने जा रही थी। इसके बाद टीम को कॉम्बिंग आपरेशन पर भेजा गया था। वापसी के दौरान हमला हुआ।
अप्रैल 2017 में इसी घटनास्थल के करीब सबसे ख़तरनाक मुठभेड़ सामने आयी थी जिसमें सीआरपीएफ के 25 जवान मारे गये थे। उसके बाद से यह सबसे बड़ी मुठभेड़ है।
यह मुठभेड़ इस मामले में भी अलग है क्योंकि इसमें मारे जाने वाले एक को छोड़ कर सभी जवान स्थानीय आदिवासी हैं। दूसरी ओर मारे गये माओवादियों की अब तक आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन आशंका है कि उधर भी आदिवासियों ही मारे गये होंगे।
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में जून 2012 में सुरक्षा बल के जवानों ने छह नाबालिग सहित 17 लोगों को नक्सली बता कर एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था। पिछले साल दिसंबर में सामने आयी एक न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि जून 2012 में हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में मारे गये सभी लोग निर्दोष आदिवासी थे, नक्सली नहीं थे।
छत्तीसगढ़ ‘मुठभेड़’ जांच रिपोर्ट: माओवादी नहीं थे आदिवासी, फ़र्जी थी मुठभेड़!
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस वीके अग्रवाल की अध्यक्षता वाली कमिशन ने राज्य सरकार को तीन महीने पहले अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें सात साल बाद इस मुठभेड़ की हकीकत सामने आयी थी।
एक सदस्यीय ज्यूडिशियल कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक गांव वालों की ओर से गोली नहीं चलायी गयी थी, ना ही ऐसा कोई भी सबूत मिला है जिससे मृतकों को माओवादी कहा जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक गांव वालों को काफी करीब से गोली मारी गयी और उनके साथ मारपीट हुई। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि सुरक्षा बलों ने हड़बड़ाहट में गोली चलायी होगी। इनमें से हिरासत में लिए एक ग्रामीण को अगली सुबह गोली मारकर हत्या की गयी, जबकि मुठभेड़ कई घंटे तक रात में ही होती रही थी।
सात साल पहले नक्सली बताकर 17 आदिवासियों को मारा गया। अब बीते शनिवार 17 जवान मारे गये हैं, लेकिन वे आदिवासी निकले हैं। विडम्बना यह है कि मौत इधर हो या उधर, कुल मिलाकर दोनों तरफ आदिवासी ही मारे जा रहे हैं।
सभी तस्वीरें बस्तर से संदीप काच्छ ने भेजी हैं