आजाद समाज पार्टी (ASP) महज एक राजनीतिक पार्टी नहीं है. यह एक आंदोलन है जो प्रत्येक व्यक्ति, खासकर दलितों, आदिवासियों, हाशिये पर पड़े हुए समुदायों और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों पर दोबारा दावा करने के लिए शुरू किया गया है. इसकी जड़ें भीमराव आंबेडकर और कांशीराम की राजनीतिक दृष्टि “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” में काफी दृढ़ता से निहित हैं. वे कांशीरामजी ही थे जिन्होंने बाबासाहब के आदर्शां को जनता के बीच व्यापक स्तर पर फैलाया और लोकतंत्र के नाम पर एक बैनर तले करोड़ों लोगों को एकजुट किया.
एएसपी का गठन ऐसे समय में हुआ है जब हमारे देश का संविधान खतरे में है, लोकतंत्र पर संकट है और बड़ी संख्या में भारत के लोगों की नागरिकता को जोखिम है. दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों को मिले आरक्षण के अधिकार पर सवाल उठाये जा रहे हैं औरअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला जा रहा है.
सरकार की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था सुस्त है, नौजवान सड़कों पर हैं, बेरोजगारी अपने उच्चतम स्तर पर है, कीमतें आसमान छू रही हैं, भ्रष्टाचार पसरा हुआ है और बिना किसी दंड के भय से उत्पीड़न जारी है. सत्ताधारी भाजपा के पास देश के लिए कोई रचनात्मक एजेंडा नहीं है, इनका एकमात्र एजेंडा किसी भी तरह से चुनाव जीतकर बहुजनों को गुलाम बनाना है. इस घृणित एजेंडे को पूरा करने के लिए हिंदू-मुस्लिम के विभाजन पर खेल रही है, विद्वेष फैला रही है और हिंसा का सहारा ले रही है. दिल्ली में हुए दंगों का मकसद देश के भीतर विभाजन करना ही था.
संकट के इस क्षण में, आजाद समाज पार्टी बाबासाहेब अम्बेडकर की शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है. हमारा मानना है कि भारतीय संविधान हमें इस राजनीतिक विनाश से बचाएगा. हम यह भी मानते हैं कि संवैधानिक माध्यमों, शांतिपूर्ण विरोध और जन एकजुटता के जरिये हम अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकते हैं.
उत्पीड़ितों को यदि दोबारा गुलामी की ओर धकेला गया, तो वे एक लंबे संघर्ष के लिए खुद को तैयार करेंगे और देश भर की सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे. इस पार्टी के गठन का यही उद्देश्य है. जब गरीबों और कमज़ोरों के पास अपनी आवाज़ उठाने की ताकत नहीं थी, तब कांशीरामजी ने उन्हें दिखाया था कि अपने अधिकारों के लिए आंदोलन दरअसल आत्मसम्मान की जंग है. उन्होंने दिखाया था कि इस जंग के अगुवावे होंगे जो प्रत्येक व्यक्ति के समानता के अधिकार के साथ प्रतिष्ठा को भी जोड़कर देखते हैं.
कांशीरामजी ने हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया था. उनका सपना अभी अधूरा है। हमारा उद्देश्य उस सपने को पूरा करना है तथा उत्पीड़ितों व बहुजनों को सत्ता दिलवाना है. इस नए राजनीतिक संगठन का प्राथमिक उद्देश्य और एजेंडा यह सुनिश्चित करना है कि संविधान को उसकी मूल भावना के साथ लागू किया जाए- उसके प्रत्येक अनुच्छेद और हर आयाम के साथ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसी राजनीतिक इकाइंयां बहुजन हितों के लिए लड़ती रही हैं लेकिन मिशन अब भी अधूरा है.
दुर्भाग्य से, कांशीरामजी की मृत्यु के बाद, बसपा ने उनके सिद्धांतों के साथ समझौता कर लिया, दलित-बहुजनों की नेतृत्वकारी भूमिका को कमतर बरतते हुए सवर्ण जातियों को सत्ता के पदों तक पहुंचाया. इससे बसपा का चुनावी पतन हुआ है और बसपा के प्रति बहुजन समाज के भीतर गहरा असंतोष है. इसका नतीजा यह हुआ है कि आज मनुवादी ताकतें सत्ता में हैं. यही ताकतें आज बहुजन समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं और संविधान पर सीधा हमला कर रही हैं. बहुजन समाज के लोगों पर अत्याचार में लगातार वृद्धि हुई है. बसपा के पतन ने एक राजनीतिक शून्य पैदा कर दिया है. भीम आर्मी ने पिछले चुनावों में बसपा का समर्थन किया था लेकिन पार्टी हमारे समर्थन को चुनावी लाभ में नहीं बदल सकी. बहुजन ताकतों को एक साथ लाने के लिए हमने मायावती जी को एक पत्र भी लिखा था लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इसी वजह से हमने इस शून्य को भरने का फैसला लिया.
अब वक्त आ गया है कि संविधान विरोधी और मनुवादी ताकतों के खिलाफ एक परिवर्तन यात्रा निकाली जाए. यह देश आगे बढ़े, इसके लिए यह अहम है कि पूंजीपतियों और थैलीशाहों की राजनीति को हटाकर गरीब और बहुजन की राजनीति को उसकी जगह स्थापित किया जाए. हम उन लोगों को सत्ता में नहीं लाएंगे जिन्होंने हमें गुलामी की ओर धकेला है. बहुजन नेतृत्व और राजनीतिक सत्ता अहम चीज़ है तथा देश के विकास को सुनिश्चित करने का इकलौता साधन है सभी समुदायों की नुमाइंदगी.
कांशीराम ने दलित, आदिवासी और बहुजन वोटों को एकजुट किया था और अपने आंदोलन में जनसंख्या के आधार पर समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया. परिवर्तन यात्रा का मुख्य उद्देश्य दलित बहुजन आक्रोश को साथ लाना है जो फिलहाल बिखरा हुआ है. हम सरकारों को दिखाएंगे कि लोकतंत्र का मतलब क्या होता है और इसके जरिए सामाजिक परिवर्तन कैसे लाया जाता है.
मैं प्राथमिक स्कूल के एक शिक्षक का बेटा हूं जिसने मुझे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का महत्व सिखाया है. पिछले पांच वर्षों से हम भीम आर्मी के तौर पर विपक्ष की भूमिका निभा रहे थे. इस दौरान हमने पुलिस की लाठियों और जेल का सामना किया। इसके बावजूद हमने अपना स्वाभिमान नहीं खोया और कभी जुल्म के आगे झुके नहीं. पार्टी बनाने का मतलब भीम आर्मी से दूर जाना कतई नहीं है. भीम आर्मी उत्पीड़ितों की कड़ी मेहनत, उनके खून पसीने से चलती है.
एक पार्टी के तौर पर एएसपी, संवैधानिक नैतिकता का पालन करेगी. हमारे मार्गदर्शक सिद्धांत होंगे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व, जिसका लक्षय आज तक पूरा नहीं हो सका. मेरा मानना है कि भारत एक मजबूत राष्ट्र तभी बन सकता है जब जनता के सभी तबकों को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर दिया जाए. मेरे लिए एक राष्ट्र का मतलब उसके लोग हैं.
हम जाति, धर्म, संप्रदाय, नस्ल, जातीयता और भाषा के आधार पर कायम सभी प्रकार के अलगाव और भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करेंगे. हम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सार्वभौमिक बनाने का प्रयास करेंगे. इससे जनता के भीतर मौजूद अपार संभावनाएं खुलकर सामने आ जाएंगी. हमारी पार्टी भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र में विश्वास करती है और यह तत्व हमारे पार्टी संगठन में भी प्रतिबिंबित होगा.
अब यह हम सभी को तय करना है कि हम मनुवादी भारत चाहते हैं या बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों का प्रबुद्ध भारत. संविधान विरोधी मनुवादी सरकारों को खत्म करना ज़रूरी है। बिहार विधानसभा चुनाव से यह काम शुरू होगा।
यह लेख सबसे पहले 20 मार्च 2020 के इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। इसका अनुवाद अमन कुमार ने किया है।