मोदी कैबिनेट ने बुधवार को नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दे दी है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इसे अगले हफ़्ते सदन में पेश किए जाने की संभावना है. इसके जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. इस बिल को लेकर विपक्षी पार्टियां और पूर्वोत्तर में कई संगठन विरोध कर रहे हैं.
Union Minister Prakash Javadekar: Citizenship Amendment Bill (CAB) has been cleared by the Cabinet. pic.twitter.com/nNwKfZAVdx
— ANI (@ANI) December 4, 2019
सदन में इसे पारित करवाने का यह सरकार का दूसरा प्रयास है. इससे पहले भी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान इसी वर्ष 8 जनवरी को यह लोकसभा में पारित हो चुका है.
लेकिन इसके बाद पूर्वोत्तर में इसका हिंसक विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया. सरकार का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यह विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया. अब संसद में इसे पेश करने से पहले ही पूर्वोत्तर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. इसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में हो रहा है.
Tripuras’s tribal political parties said the changes were merely ‘cosmetic’ and ‘eyewash’ meant to fool people and they will continue to protest the Citizenship Billhttps://t.co/nUXJHz40tJ
— The Indian Express (@IndianExpress) December 4, 2019
अमित शाह ने बताया कि ‘सीएबी’ में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.
उन्होंने बताया कि एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.
इस बिल में मुस्लिम समुदाय के लिए नागरिकता देने की बात नहीं कहीं गई है. विपक्षी पार्टियां इस बिल के विरोध में उतर आई हैं.एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने इस बिल को लेकर सरकार को घेरते हुए, उनकी मंशा पर सवाल उठाए हैं.
असुदद्दीन औवेसी ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक बिल लाने के पीछे की सरकार की मंशा है कि वह हिंदुस्तान को एक धर्म आधारित देश बना दें. इस बिल के लागू होने के बाद हिंदुस्तान और इसराइल में अब कोई फर्क नहीं रहेगा। संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता देने की कोई बात ही नहीं है.
औवेसी ने कहा कि अगर मीडिया रिपोर्ट सही है कि पूर्वोत्तर राज्यों को प्रस्तावित सीएबी कानून से छूट दी जाएगी, तो यह मौलिक अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 14 का घोर उल्लंघन होगा क्योंकि आपके पास इस देश में नागरिकता पर दो कानून नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह धर्म के आधार पर नागरिकता देगा, जो हमारे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.
Asaduddin Owaisi,AIMIM:Bringing CAB will be a dishonour to our freedom fighters because you will be reviving the two nation theory. As an Indian Muslim I rejected Jinnah's theory now you are making a law wherein unfortunately you will be reminding the nation of two nation theory. pic.twitter.com/HpGip9zFZ7
— ANI (@ANI) December 4, 2019
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने एक फिर साफ़ कहा है कि वह जाति और धर्म पर आधारित नागरिक विधेयक को राज्य में किसी भी सूरत में लागू होने नहीं देंगी.
West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee: We will not allow National Register of Citizens (NRC), it will never happen in West Bengal. You cannot implement NRC on the basis of caste and religion. (file pic) pic.twitter.com/N9H1LpyVkd
— ANI (@ANI) December 3, 2019
किरण रिजीजू ने कहा है कि अमित शाह ने उन्हें भरोसा दिया है कि पूर्वोत्तर के मूल निवासियों की चिंताओं का ध्यान रखा जायेगा.
Union Minister Kiren Rijiju on Citizenship Amendment Bill (CAB): Concerns of the indigenous people from North-Eastern region has been & will be addressed, that is the commitment given by Home Minister Amit Shah ji under the supervision of visionary Prime Minister Narendra Modi ji pic.twitter.com/GRTNaLUZNy
— ANI (@ANI) December 5, 2019
मूल रूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया था. इसके तहत अगस्त के महीने में यहां के नागरिकों का एक रजिस्टर जारी किया गया. प्रकाशित रजिस्टर में क़रीब 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था.