तमाम किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के आपत्ति के बावजूद भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधानों को चुनौती देने संबंधी मामले की सुनवाई में जस्टिस अरुण मिश्रा अलग नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ से जस्टिस अरुण मिश्रा अलग नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने आज ये फ़ैसला दिया. बेंच ने कहा कि जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ही भूमि अधिग्रहण क़ानून के तहत उचित मुआवजा, पारदर्शिता और संबंधित मामलों की सुनवाई जारी रखेंगे.
Breaking : SC Turns Down Plea For Recusal Of Justice Arun Mishra https://t.co/Z3LWlqjoYW
— Live Law (@LiveLawIndia) October 23, 2019
मामले से जुडे़ कुछ याचिकाकर्ताओं ने जस्टिस मिश्रा से सुनवाई में शामिल ना होने की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं का मानना है कि जस्टिस मिश्रा के संविधान बेंच में होने से मामले की सुनवाई पर असर पड़ेगा.
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरण, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट शामिल हैं. संविधान पीठ ने मामले से जुड़े पक्षों से कानूनी प्रश्न सुझाने को कहा है जिन पर अदालत फैसला सुनाएगी. यह संवैधानिक पीठ कानून में उचित मुआवजे और पारदर्शिता पर सुनवाई करेगी. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया और कहा कि मैं मामले की सुनवाई से अलग नहीं हट रहा हूं.
Supreme Court judge Justice Arun Mishra refuses to recuse himself from heading a Constitution Bench hearing the matters related to interpretation of Section 24 of the Right to Fair Compensation, Transparency in Land Acquisition and Rehabilitation and Resettlement Act 2013. pic.twitter.com/9O3VDRDCQ4
— ANI (@ANI) October 23, 2019
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान, गोपाल शंकरनारायणन, राकेश द्विवेदी द्वारा दो दिनों के लंबे तर्क के बाद अदालत ने यह आदेश दिया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एएसजी पिंकी आनंद और वरिष्ठ वकील मोहन परासरन और विवेक तन्खा के साथ याचिका का विरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या संबंधित मामलों की सुनवाई में जस्टिस अरुण मिश्रा को अलग करने के लिए याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा था.
जस्टिस मिश्रा पिछले साल फरवरी में वह फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य थे जिसने कहा था कि सरकारी एजेन्सियों द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण का मामला अदालत में लंबित होने की वजह से भू स्वामी द्वारा मुआवजे की राशि स्वीकार करने में पांच साल तक का विलंब होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता.
इससे पहले, 2014 में एक अन्य पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मुआवजा स्वीकार करने में विलंब के आधार पर भूमि अधिग्रहण रद्द किया जा सकता है.शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह मार्च को कहा था कि समान संख्या के सदस्यों वाली उसकी दो अलग-अलग पीठ के भूमि अधिग्रहण से संबंधित दो अलग-अलग फैसलों के सही होने के सवाल पर वृहद पीठ विचार करेगी.