महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के तानाशाहीपूर्ण फरमानों से त्रस्त विद्यार्थी और विश्वविद्यालय द्वारा छले जाने से पीड़ित छात्र आत्महत्या की तरफ बढ़ रहे हैं। विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में भ्रष्टाचार और विद्यार्थियों के साथ हो रहे अन्याय के कई मामले उजागर हो रहे हैं। इस वर्ष हुए नामांकन प्रक्रिया में विश्वविद्यालय की कारगुजारियों का भंडाफोड़ करने वाला एक नया मामला प्रकाश में आया है।
विश्वविद्यालय द्वारा मनमाने ढंग से गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के एकमात्र पीएचडी सीट को परीक्षा परिणाम जारी करने के वक्त EWS आरक्षित श्रेणी का घोषित करते हुए परिणाम जारी कर दिया।
इतना ही नहीं इस परिणाम में जिस छात्र को उत्तीर्ण घोषित किया गया उसके पास EWS आरक्षित श्रेणी का कोई प्रमाण पत्र तक नहीं होने के बाद भी प्रवेश दिया गया। विश्वविद्यालय के इस कारनामे से पूरी प्रवेश प्रक्रिया संदेह के घेरे में है और कई सवाल खड़े कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी प्रवेश परीक्षा हेतु गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के लिए एक सीट का विज्ञापन जारी होता है। विज्ञापन जारी करते समय इस सीट को किसी आरक्षित श्रेणी का नहीं रखा जाता है। एक सीट के लिए सभी श्रेणी के 18 विद्यार्थियों ने पीएचडी प्रवेश पाने हेतु आवेदन करते हैं। इन सभी की लिखित परीक्षा ली जाती है, लिखित परीक्षा के आधार पर 11 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के चयन किया जाता है। विश्वविद्यालय द्वारा जारी साक्षात्कार की सूचना में 13 जुलाई 2019 को साक्षात्कार की तिथि घोषित करते हुए यह स्पष्ट निर्देश दिया गया कि साक्षात्कार के समय EWS/OBC वैध प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा अन्यथा साक्षात्कार में सम्मिलित होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। किंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने द्वारा जारी उक्त निर्देशों को खुद ही धता-बता देता है।
जिन 11 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार दिया उन सभी में से लिखित व साक्षात्कार दोनों मिलाकर सबसे ज्यादा अंक अरविंद प्रसाद गौड़ नामक OBC श्रेणी से आने वाले छात्र को आते। उसे कुल 72.2 अंक प्राप्त हुए। नियमों के तहत अभ्यर्थी अरविंद प्रसाद गौड़ को उस एक सीट के लिए उत्तीर्ण घोषित किया जाना चाहिए था। विज्ञापन के वक्त यह सीट किस श्रेणी में है, यह स्पष्ट नहीं किया गया था और सभी श्रेणी के अभ्यर्थियों से फॉर्म स्वीकार किये गए थे। किंतु एक षड्यंत्र के तहत परिणाम जारी करने के वक्त अचानक इसे EWS श्रेणी का सीट घोषित करते हुए सुमन्त कुमार मिश्रा नामक अभ्यर्थी को उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया जिसको अरविंद से कम अंक प्राप्त हुए थे।
दिलचस्प बात यह कि साक्षात्कार के वक्त जिस अभ्यर्थी के पास EWS प्रमाण पत्र भी नहीं था उसे उस श्रेणी में सफल घोषित किया गया। विश्वविद्यालय ने 13 जुलाई को साक्षात्कार लिया था जबकि जिस EWS प्रमाण पत्र के आधार पर उक्त अभ्यर्थी को EWS श्रेणी में उत्तीर्ण किया गया वह प्रमाण पत्र 15 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश से जारी हुआ है। तो यहां सवाल उठता है कि 13 जुलाई के साक्षात्कार में 15 जुलाई 2019 को जारी प्रमाण पत्र भला कैसे पेश किया गया? और यह भी कि जब अभ्यर्थी ने साक्षात्कार के वक्त प्रमाण पत्र प्रस्तुत ही नहीं किया तो विश्वविद्यालय द्वारा उसे आरक्षित श्रेणी का लाभ कैसे दिया गया?
असल तथ्य तो यह है कि साक्षात्कार के दिन तक सुमन्त कुमार मिश्रा के पास EWS प्रमाण-पत्र नहीं था। उसने साक्षात्कार के ही दिन प्रवेश परीक्षा समिति के अध्यक्ष को लिखित आवेदन देकर यह स्वीकार किया था कि उसने गलती से EWS का विकल्प प्रवेश फॉर्म भरते समय चयन किया था। उसने निवेदन किया था कि उसे EWS न मानकर सामान्य श्रेणी में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान की जाए। प्रवेश समिति के अध्यक्ष प्रो. मनोज कुमार ने उसके प्रति विशेष मेहरबानी दिखाते हुए नियमों की अवहेलना करते हुए उसे साक्षात्कार में शामिल होने की इजाजत दी परन्तु अंतिम परिणाम जारी करते वक्त विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बार फिर यूटर्न लेते हुए सुमन्त को EWS श्रेणी में चयनित घोषित कर दिया।
परीक्षा परिणाम प्रकाशित होने के पश्चात 22 जुलाई को वंचित अभ्यर्थियों ने इसकी लिखित शिकायत कुलपति से किया और न्याय देने की अपील की। कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने इस संगीन मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया। पुनः 26 अगस्त को अरविंद प्रसाद गौड़ नामक अभ्यर्थी ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव से न्याय की गुहार लगाते हुए एक ज्ञापन सौंपा। अपने आवेदन में अरविंद ने यह सवाल उठाया कि जब विज्ञापन के समय यह सीट अनारक्षित थी तो परिणाम जारी करते वक्त आरक्षित कैसे हो गई? उन्होंने यह वाजिब सवाल भी उठाया कि यदि यह सीट आरक्षित श्रेणी की थी तो बाकियों से इस सीट के लिये आवेदन फॉर्म क्यों लिए गए। क्यों उनकी लिखित व साक्षात्कार परीक्षा ली गई? आखिर यह दूसरे विद्यार्थियों के समय व धन दोनों की बर्बादी क्यों की गई ।
तथ्यों के आधार पर अरविंद का यह आरोप सही जान पड़ता है कि उसे प्रवेश लेने से रोकने और सुमन्त कु. मिश्रा को प्रवेश देने के लिए ही यह पूरा जाल रचा गया। इसी विभाग के अन्य छात्र निरंजन कुमार (अन्य पिछड़े वर्ग) को भी लगातार चार साल से इसी प्रक्रिया के तहत शिकार बनाया जा रहा हैं। गांधी एवम् शांति अध्ययन में अन्य जातियों के छात्र को अनारक्षित में जाने से रोकने के लिए एकमात्र सीट होने पर भी EWS कर दिया जाता है। छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के इस काले कारनामे के खिलाफ राष्ट्रपति से इंसाफ की गुहार लगाते हुए आवेदन दिया है।
दूसरा मामला- जून में सभी विभागों की प्रवेश परीक्षाएं ठीक तरह से सम्पन्न हुईं। इस दौरान कुछ विभागों के रिजल्ट आये और कुछ के अधर में ही लटका दिये गए। जनसंचार विभाग का रिजल्ट समय पर नहीं दिया गया। इस दौरान 19 जुलाई की रात लगभग 12:30 एक नोटिस आती है कि ‘कतिपय विसंगतियों के सम्बंध में विभागाध्यक्ष की अनुशंसा को स्वीकार करते हुए जनसंचार विभाग के पी.एच.डी., एम.फिल. और एम.ए. की प्रवेश प्रक्रिया निरस्त की जाती है।’
इस नोटिस के बाद ऐसा कोई नोटिस नहीं आया जिसमें पूरे मामले को स्पष्ट किया गया हो कि किस कारण परीक्षा रद्द किया गया था जो आज तक एक रहस्य ही बना हुआ हैं। दो दिन बाद जनसंचार विभाग के लिए एक और नोटिस आता है जिसमें लिखा होता है कि एम.ए. की परीक्षा 05 अगस्त को होगी। लेकिन पी.एच.डी. और एम.फिल. से सम्बंधित कोई नोटिस नहीं दिया जाता। परिसर में रह रहे जनसंचार के विद्यार्थियों के द्वारा बार-बार लिखित शिकायत और दबाव बनाने के बाद जनसंचार विभाग के M.Phil की लिखित प्रवेश परीक्षा एक बार फिर 23 अगस्त को सुबह 10 बजे ली जाती है और बिना कापियों की जांच किए उसी दिन दोपहर 3 बजे से साक्षात्कार सभी अभ्यार्थियों का ले लिया जाता है।
यह पूरी प्रक्रिया प्रवेश परीक्षा के नियमों के विरुद्ध थी, अभी तक PhD प्रवेश बिना कारण निरस्त के बाद से ही किसी भी प्रकार के प्रवेश से सम्बंधित कोई सूचना अभी तक नहीं दी गई हैं।
जनसंचार विभाग के M Phil प्रवेश परीक्षा में एक और खामी यहां देखने को मिला। 29 जून होने वाले प्रवेश परीक्षा को अभ्यार्थी अभिजीत सिंह किन्ही कारणों से प्रवेश परिक्षा में सम्मलित नहीं हो पाया था परन्तु पुन: 23 अगस्त को आयोजित परीक्षा सम्मलित हो प्रवेश परिक्षा में चयनित अभ्यार्थीयों के सूची में अपना नाम आ जाता हैं। प्रवेश परिक्षा में चयनित होने की खुशी उसके साथ ज्यादा समयतक नहीं रहती ।
28 अगस्त को एक नोटिस के माध्यम् से सूचित किया जाता है कि उसका प्रवेश पूर्व में हुई परिक्षा में सम्मलित न होने को आधार बना प्रवेश निरस्त कर एक और अन्य अभ्यार्थी इस्तेखार अहमद को प्रवेश दे दिया जाता हैं। वहीं एक मात्र OBC अभ्यार्थी राजेश कुमार यादव जो जनसंचार से स्नातक, परास्नातक के साथ विभिन्न मीडिया संस्थान में काम करने का अनुभव रखने वाले अभ्यार्थी को अयोग्य घोषित कर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता हैं क्योंकि वो एक लम्बे समय से विश्वविद्यालय में चले आ रहे संघ के कारगुजारियों को अपने साथियों के साथ मिलकर विरोध करता आया था साथही विश्वविद्यालय में हो रहे अनियमताओ को उजागर करने से लेकरसभी के समक्ष रखता आया था जो विश्वविद्यालय को नागवार लग रहा था।
तीसरे मामला-बी एड- एम एड एकीकृत नाम का फर्जी कोर्स संस्थान में चलाये जाने का हैं । इस कोर्स को चलाने के लिए UGC से मान्यता लिए बिना व दूसरे अन्य नियमों का पालन किये बिना विश्वविद्यालय स्तर पर चलाया जा रहा था। इस कोर्स के अभी तक दो बैच निकल जाने के बाद से अचानक ही इस कोर्स को बंद कर दिया जाता हैं। जिसके वजह से 80 विद्यार्थियों का भविष्य अब अधर में लटक गया हैं। क्योकि उनकी डिग्री को किसी अध्यापक पद के परिक्षा के अनुरूप योग्य मान्याता प्राप्त ही नहीं हैं।अब इनकी डिग्रियां जो इन्होंने तीन साल में मेहनत कर कमाई थी वो अब सिर्फ एक कागज के टुकड़े के सिवाय कुछ नहीं हैं।
विश्वविद्यालय के द्वारा 03 साल इन सभी विद्यार्थियों को धोखे में रखकर इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया। इस घटना से पीड़ित छात्र हरिओम सिंह अपने फेसबुक वॉल पर अपनी व्यथा को लिखकर सभी के समक्ष रखा तो शिक्षा विद्यापिठ के प्रोफेसर गोपाल कृष्ण ठाकुर छात्र को धमकाने में लग जाते है और छात्र से पोस्ट डिलीट करने के लिए दबाव बनाते हैं ऐसा न करने पर उनका कहना हैं कि तुम्हारे खिलाफ मुकदमा करके जेल की हवा खिलाने में देर नहीं लगेगी। विश्वविद्यालय के इस तानाशाही रवैये को लेकर विद्यार्थियों के बीच डरका माहौल हैं। साथ ही विधार्थियों को अपने भविष्य को लेकर चिंता घेरे हुए हैं जो कही न कही छात्रों के साथ अनहोनी की तरफ इशारा कर रही हैं।
एक अन्य घटना पर नजर डाले तो समझ आएगा कि प्रशासन समाज कार्य, जनसंचार की पीएचडी प्रवेश परीक्षा बिना कारण बताए सिर्फ इसलिए रद्द कर देता है कि इन्हें अपनी जाति और संगठन के लोग नहीं मिले। इस तरह के भेदभाव पूर्ण प्रक्रिया को लेकर छात्र विभिन्न जिम्मेदार लोगों के पास उम्मीद के साथ जा रहे है परंतु उन्हें गुमराह कर के भगा दिया जा रहा है। जिससे छात्रों में भयानक मानसिक तनाव है वह कोई भी घातक कदम उठाने को मजबूर हो गए है।
छात्रो का आरोप हैं कि इस वर्ष के नए कुलपति रजनीश शुक्ल जो कि आरएसएस और एबीवीपीसे तालुकात रखते है और लगातार विश्वविद्यालय में आरएसएस के लोगों को ही किसी ना किसी रूप में चयन करने में लगे हुए है।संघ के विचारधारा से अलग विचारधारा रखने वाले लोगों के प्रवेश पा लेने के बाद उस विभाग की प्रवेश परीक्षा को बिना किसी कारण निरस्त कर देते है या फिर असंवैधानिक रूप से अपने लोगों को किसी ना किसी रूप में प्रवेश करवाने में लगे हैं।
हिंदी विश्वविद्यालय में प्रशासन द्वारा जो कुछ भी पिछले समय से किया जा रहा है यह किसी शैक्षणिक संस्थान की अकादमिक पारदर्शिता और छात्रों के हितों केखिलाफ है। इससे विश्वविद्यालय की छवि एक तरफ तो धूमिल हो ही रही है वही यहां पढ़ने वाले छात्रों में भविष्य को लेकर विभिन्न तरह की आशंकाएं जन्म दे रही है।