मंत्रीजी का नया शिगूफ़ा- रोजगार बहुत हैं, बस लोग ही इसके काबिल नहीं

Mediavigil Desk
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मोदीजी की दूसरी पारी के 100 दिन बीतने के जश्न में केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा, “देश में रोजगार और नौकरियों की कोई कमी नहीं है बल्कि उत्तर भारतीयों में योग्यता की कमी है।”

गंगवार ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि उन्हें जिस पद के लिए भर्ती करनी है उसके लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं।

संतोष गंगवार का बयान ऐसे समय आया है जब बेरोजगारी और आर्थिक हालात को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने गंगवार के इस बयान पर पलटवार किया.

हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा कर 2014 में सत्ता पाने के बाद मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी में जहां बेरोजगारी के आंकड़ों पर रोक लगा दी और इससे जुड़े सवालों को भटका दिया, वहीं उनकी दूसरी पारी से पहले इस बात का उद्घाटन हो गया कि बीते 45 वर्षों में देश में आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट जनवरी में लीक हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% रही। यह 45 साल में सबसे ज्यादा है।

इन सबके बाद भी पीयूष गोयल सहित मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य और सरकार दावा करती रही है कि देश का युवा अब नौकरी करना नहीं चाहता बल्कि वह नौकरी देना चाहता है!

अब यह नया शिगूफा खुद रोजगार मंत्री ने छोड़ा है.

गौरतलब है कि देश में बेरोजगार युवाओं को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमला बोलती रही है. कुछ समय पहले ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऑटो क्षेत्र के संकट से घिरे होने संबंधी खबरों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि इस पर सरकार की चुप्पी सबसे ज्यादा खतरनाक है.

याद कीजिये रोजगार के सवाल पर मोदीजी ने सुधीर चौधरी से बात करते हुए क्या कहा था? ठेले पर पकौड़े बेचने वाले को मोदीजी ने सरकार द्वारा नौकरी देने के श्रेणी में शामिल बताया था. जबकि आज यदि कहीं किसी सरकारी विभाग में 200 पद के लिए विज्ञापन आता है तो लाखों युवा आवेदन भरते हैं, पर मोदीजी का नारा है- अब नामुमकिन भी मुमकिन है.

सांख्यिकी विभाग से लीक रिपोर्ट के अनुसार, देश में वर्ष 1972-73 के बाद बेरोजगारी दर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है. शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है, जो ग्रामीण इलाकों में इस दर (5.3 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है.

रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों की शिक्षित युवतियों में वर्ष 2004-05 से 2011-12 के बीच बेरोजगारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी, जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुंच गई. ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोजगारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 10.5 फीसदी तक पहुंच गई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोजगारी की दर वर्ष 2011-12 में जहां पांच फीसदी थी, वहीं वर्ष 2017-18 में यह तीनगुने से ज्यादा बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई. इसी उम्र की युवतियों में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंच गई. रोजगार के अभाव में शिक्षित बेरोजगारों में हताशा लगातार बढ़ रही है.

ऐसे में संतोष गंगवार के बयान का सीधा सा मतलब यह निकल रहा है कि नौकरी तो है लेकिन लोग ही उसके काबिल नहीं हैं.


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