- मध्य प्रदेश सरकार ने विस्थापितों का पक्ष लेने पर धन्यवाद.
- गुजरात से धोखा और राज्य का तथा विस्थापितों का अहित नामंजूर हो!
- पुनर्वास के सभी लाभ और पुनर्वास स्थलों पर सुविधाएँ पाने तक डटेंगे विस्थापित मूल गावों में!
- 31 जुलाई को बड़वानी में विशाल संकल्प सभा!
सरदार सरोवर में अगस्त से अक्टूबर 2019 तक यानी धीरे-धीरे नहीं तो दो-तीन महीने में पानी भरकर संपूर्ण डूब क्षेत्र के गांवों पर पानी फेरना चाहती है गुजरात और केंद्र शासन! नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कई सालों से इस संबंध में आवाज उठाते कहा है कि नर्मदा ट्रिब्यूनल के तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के ही आधार पर तमाम सरकारों ने यह मानना चाहिये कि पूरे डूब क्षेत्र में आज भी 30,000 परिवार बसे हैं. इनका पुनर्वास पूरा नहीं हुआ है तो इन्हें कौन, कैसे डूब में धकेल सकते हैं ?
आज भी पुनर्वास के कार्य तीनों राज्यों में बाकी है लेकिन सबसे बड़ी संख्या, विविध वर्ग–व्यवसाय के परिवार, दुकान, मत्स्य–व्यवसाय कई धार्मिक स्थल, छोटे- बड़े उद्योग सब कुछ निमाड़, म.प्र. में बाकी है और जैसा कि मध्य प्रदेश शासन ने भी माना है. पिछली सरकार ने 15 सालों से मध्यप्रदेश के विस्थापितों के साथ न संवाद किया न ही सारे कागजात जाहिर किये. भ्रष्टाचार जारी रहा!
मध्यप्रदेश शासन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ जी, दिग्विजय सिंह जी तथा नर्मदा घाटी विकास मंत्री सुरेंद्र सिंह बघेल जी के द्वारा जो भूमिका ली है, उसका हम स्वागत करते हैं. मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा पहली बार केंद्रीय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को पत्र लिखकर यह स्पष्ट किया है कि गुजरात का सरदार सरोवर का मुख्य बिजली घर बंद रखने से मध्य प्रदेश को मिलने वाला एकमात्र लाभ भी नहीं मिलना है.
गुजरात के सरदार सरोवर नर्मदा निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर का कहना है कि पूर्ण जलाशय स्तर तक पानी भरना, बांध की दीवार की ताकत आजमाने के लिए जरूरी है तथा जल विद्युत उत्पादन के पहले पीने के लिए पानी और सिंचाई को प्राथमिकता देना जरूरी है. यह पुर्णतः धोखाधड़ी है.
मध्य प्रदेश के 192 गांव, 1 नगर; अति उपजाऊ जमीन और संस्कृति प्रकृति की बलि चढ़ाकर 6400 करोड़ रुपए की पूंजी निवेश के बदले कोई लाभ राज्य के लिए सुनिश्चित न करने की रणनीति गुजरात की है. यह ट्रिब्यूनल के फैसले के भी खिलाफ है!
मध्यप्रदेश शासन ने यह तय करना कि बिजली की पूर्तता नहीं हो रही है और हजारों परिवारों का पुनर्वास बाकी है, सही भूमिका है. राज्य की ओर से कोई प्रतिनिधि का नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण(पुनर्वास उपदल की) की 12 जुलाई 2019 की बैठक में उपस्थित न रहना भी समर्थनीय है क्योंकि राज्य के मुख्य सचिव के 27 मई 2019 के पत्र का जवाब देने के बदले नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण गुजरात की साथ और उनके प्रस्ताव का समर्थन करते हुए मध्यप्रदेश के हितों को अनदेखा कर रही है. न.नि.प्रा. में अब सभी पदो पर मात्र एक पति-पत्नी, एम. के.सिन्हा और उनकी पत्नी विराजमान हैं ! इसलिए न.नि.प्रा. आज के रोज अपनी कानूनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकती है!
वैसे भी यह हकीकत, नर्मदा आंदोलन ने शुरू से ही अंदाजित मानकर चेतावनी दी थी लेकिन पूर्व में इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच का विवाद स्वाभाविक है! क्यों की पुनर्वास के बारे में तो असंवेदना है ही, लेकिन परियोजना से सभी राज्यों को अपेक्षित लाभ के संबंध में भी साजिश सी दिखाई दे रही है. मध्य प्रदेश राज्य शासन ने इसीलिए अपनी भूमिका पर अड़े रहने से ही राज्य का एवं विस्थापितों का हित सुरक्षित रहेगा!
इस दौरान यह भी विशेष बात ध्यान में आ रही है कि इंदौर, भोपाल के विशिष्ट पत्रकारों को पकड़कर कभी 76 तो कभी 194 गावों के अगस्त या अक्टूबर तक डूबने की धमकी या डरावनी खबर फैलाई जा रही है और मध्य प्रदेश ने गुजरात एवं प्राधिकरण के समक्ष रखी बात को नजर अंदाज किया जा रहा है. इस शेड्यूल पर निर्णय नही हुआ है! यह सब घाटी के लोगों में गांव छोड़ने की मजबूरी की भावना पैदा करने की साजिश मानी जा रही है. घाटी के लोग 34 सालों के संघर्ष के बाद भागेंगे नहीं. अपना हक लेकर रहेंगे. 31 जुलाई को होगी बड़वानी में विशाल संकल्प सभा.
जगदीश पटेल, राहुल यादव, देवराम कनेरा, कमला यादव, रणवीर तोमर, पेमा भिलाला, चेतन साल्वे, महेंद्र तोमर, लतिका राजपूत, मेधा पाटकर
प्रेस विज्ञप्ति: नर्मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा जारी