महाराष्ट्र में ‘बीफ बैन’ मामले की सुनवाई से अलग हुईं SC जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा

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जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​ने सोमवार 1 जुलाई को महाराष्ट्र बीफ बैन मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग करते हुए कहा कि उन्होंने पहले इस मामले में एक पक्षकार का बतौर वकील प्रतिनिधित्व किया था. अब इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा गया है ताकि नई बेंच का गठन किया जा सके.

बाम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य के बाहर हुए वध का मांस रखने पर आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती. जस्टिस मल्होत्रा इस मामले में बतौर वकील शामिल हो चुकी हैं. इसलिए, उन्होंने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया.

दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह महाराष्ट्र से 30 लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जिन्होंने बीफ पर प्रतिबंध हटाने की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में कहा गया है कि 16 साल से बड़ी उम्र के बैल किसान के किसी काम के नहीं हैं. ऐसे में किसान उन्हें बेचकर पैसा भी कमा सकते हैं. इस पाबंदी से लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं, इसलिए राज्य में 16 साल से ऊपर के बैलों की स्‍लॉटरिंग की इजाजत दी जाए. याचिका में कहा गया है कि इस मुद्दे पर राजनीति की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ ‘अखिल भारत कृषि गोसेवक संघ’ द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में 33 याचिकाएं दाखिल हुईं.

वहीं महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बॉम्बे हाईकोर्ट के 6 मई 2016 के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें महाराष्ट्र एनिमल प्रिजरवेशन (अमेंडमेंट) एक्ट 1995 के सेक्शन 5D को रद्द कर दिया गया था.

महाराष्ट्र सरकार ने पुलिस को गाय का मांस रखने के शक के चलते किसी भी व्यक्ति को रोकने और तलाशी लेने का अधिकार दिया गया था. इसके साथ ही पुलिस को इस मामले में किसी के घर में घुसकर तलाशी करने का अधिकार भी दिया गया था. हालांकि राज्य में वर्ष 1976 से ही गाय स्लाटरिंग (गौकशी) पर रोक है.

राज्य सरकार द्वारा महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम लागू कर गायों के अलावा बैलों और सांडों के वध पर प्रतिबंध को बॉम्बे हाई कोर्ट ने कायम रखा था. हालांकि, हाई कोर्ट ने अधिनियम की संबद्ध धाराओं को रद्द करते हुए कहा था कि महज गोमांस रखना ही आपराधिक कार्रवाई को आमंत्रित नहीं कर सकता.
राज्य के बाहर मारे गए पशुओं का मांस रखने पर आपराधिक कार्रवाई नहीं किए जाने संबंधी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली और अन्य याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.


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