हम खुश हैं कि शामनाथ बघेल की हत्या के प्रकरण में छत्तीसगढ़ पुलिस ने आरोप पत्र से हमारा नाम हटाया है. हमें आशा है कि सैकड़ों निर्दोष आदिवासी और वे सभी, जो फर्जी मुकदमों में जेलों में है, उन्हें भी जल्द ही न्याय मिलेगा. हम अपने वकीलों, मित्रों और उन सभी लोगों के आभारी हैं, जिन्होंने इस मामले में हम पर विश्वास जताया, हमारा हौसला बढ़ाया और मदद की।
मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
5 नवम्बर, 2016 को तोंगपाल थाना में हमारे खिलाफ भादवि. की धारा 120 बी, 302, 450, 147, 148, 149, आर्म्स एक्ट की धारा 25 व 27, यूएपीए की धारा 23, 38(2), 39(3) के तहत एफआईआर क्र. 27/16 दर्ज किया गया था. यह मामला कथित तौर से शामनाथ बघेल की विधवा विमला बघेल की लिखित शिकायत के आधार पर कायम किया गया था. लेकिन इस शिकायत में भी हम पर सीधा दोषारोपण नहीं था – क्योंकि हत्यारों ने यह नहीं कहा था कि वे हमारी ओर से काम कर रहे हैं. केवल यह कहा कि 6 माह पहले गांव के दौरे के समय कही गई हमारी बातों को बघेल ने तवज्जो नहीं दी.
एनडीटीवी के श्री सिद्धार्थ रंजन दास द्वारा लिए एक साक्षात्कार में, जो 11 नवम्बर 2016 को प्रसारित किया गया था, कैमरे के सामने विमला बघेल कह रही है कि वह अपने पति के हत्यारों को नहीं जानती, उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा और उसने अपनी शिकायत में हम लोगों का नाम नहीं लिया है. यह एकदम असंभव है कि वह हमारा पूरा नाम और आधिकारिक पद जानती होगी और पूरी लिखित शिकायत स्पष्ट रूप से मनगढ़ंत थी.
15.11.2016 को सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता के इस बयान को रिकॉर्ड किया कि इस प्रकरण में न कोई छानबीन की जायेगी और न कोई गिरफ्तारी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस इस मामले में इन आरोपित 6 व्यक्तियों से कोई पूछताछ करना चाहती है, तो उसे इन लोगों को चार सप्ताह पूर्व नोटिस देना होगा. इस तरह सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण में हम बाहर थे.
इस दिशा-निर्देश के दो साल बाद भी छत्तीसगढ़ पुलिस ने मामले की छानबीन करने या उसे ख़त्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. तब सुप्रीम कोर्ट में नंदिनी सुंदर ने आवेदन लगाया कि एफआईआर से उनका और अन्य लोगों का नाम हटाया जाए. 27 नवम्बर, 2018 को कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से अब तक की गई कार्यवाही के बारे में पूछा. हमें ख़ुशी हैं कि इस आरोप पत्र से अंतिम रूप से हमारा नाम हटा दिया गया है.
हमारी भूमिका
12-16 मई, 2016 को हम 6 लोगों ने बस्तर का अध्ययन-दौरा किया था. इस रिपोर्ट को व्यापक रूप से वितरित किया गया था, जिसे इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली ने भी अपने 25 जून, 2016 के अंक में प्रकाशित किया था. इस रिपोर्ट में हमने स्पष्ट रूप से आदिवसियों की दुर्दशा के लिए सरकार और नक्सलियों, दोनों पर दोषारोपण किया था. हमने यह तथ्य प्रकाश में लाया था कि कुमाकोलेंग और सौतनार गांव के लोगों को माओवादी दबाव के कारण पलायन करना पड़ा है. पुलिस का यह दावा कि हमने ग्रामीणों से माओवादियों का समर्थन करने के लिए कहा था, सफ़ेद झूठ है और हमारे अभी तक के स्टैंड के खिलाफ जाता है.
ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों को एसपीओ द्वारा जलाया गया था. तत्कालीन डीआईजी एसआरपी कल्लूरी भी इस मामले में आरोपित थे, क्योंकि उन्होंने यह स्वीकार किया था कि एसएसपी दंतेवाडा के रूप में इस अभियान को उन्होंने ही निर्देशित किया था. इस मामले में सीबीआई द्वारा पुलिस और कल्लूरी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए जाने के फ़ौरन बाद ही हमारे खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की गई थी. इसके बाद इसके बाद 6 विभिन्न स्थानों में पुलिस द्वारा नंदिनी सुंदर सहित हम लोगों का पुतला जलाया गया था. कल्लूरी ने यह भी बयान दिया था कि यदि नंदिनी सुंदर बस्तर में घुसती है, तो उसे पत्थर मार-मार कर मार डाला जाएगा. इस प्रकार उन्होंने पुलिस के असंवैधानिक कृत्यों को जायज ठहराया था.ज़िम्मेदार पदों पर बैठे जिन अधिकारियों ने निर्दोष लोगों को झूठे मामलों मे फँसाया है, उनकी बारीक जाँच-पड़ताल होनी चहिए ताकि वे अपने पद का दुरुपयोग न कर सकें। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जवाब तलब करने बुलाये गए कल्लूरी जी आयोग के सामने हाज़िर भी नहीं हुए। हम यह भी कहना चाहते हैं कि विरोधी राजनीतिक विचार रखने वाले व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ राज्य की मशीनरी का इस्तेमाल करना लोकतंत्र की सेहत के लिए घातक है।
वर्ष 2005 से बस्तर में जारी मानव अधिकारों के हनन के मामलों में नंदिनी सुंदर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता हैं, जिसमें कोर्ट ने वर्ष 2011 में सलवा जुडूम के लिए किसी भी प्रकार की सहायता पर प्रतिबंध लगाया था और ताड़मेटला की आगजनी और मार्च 2011 में स्वामी अग्निवेश पर हुए हमलों की जांच के संबंध में सीबीआई को आदेश दिया था. इस बारे में कोर्ट की अवमानना और पुनः दिशा-निर्देश देने के लिए यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
नंदिनी सुंदर, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
अर्चना प्रसाद, प्रोफेसर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय
संजय पराते, राज्य सचिव, माकपा, छग
विनीत तिवारी, जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, दिल्ली
मंजू कवासी, सरपंच, गुफ़ड़ी
मंगलाराम कर्मा, नामा गांव के पूर्व-रहवासी