संजय कुमार सिंह
ईवीएम पर अगर “इस बार लंदन से सवाल उठाया गया” और एक भारतीय हैकर ने यह सनसनीखेज आरोप लगाया कि “2014 के लोकसभा चुनाव भाजपा के पक्ष में हैक किए गए थे” और “मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में हाल में हुए चुनाव में ईवीएम हैक नहीं किए जा सके” (इसलिए कांग्रेस जीत गई) और दिल्ली का विधानसभा चुनाव भी “हैक नहीं किया जा सका था” तो आप उसके और आरोप या बातें सुनना चाहेंगे या कहेंगे कि सबूत दिखाओ? इसपर अगर वह कहे कि उसने अमेरिका में राजनीतिक शरण ली है और दस्तावेज दिखा सकता है तो आप कान बंद कर लेगें या उसकी आगे की बात सुनेंगें। आइए, आज देंखें कि ऐसे आरोपों को हमारे अखबारों ने कैसे देखा है। ऊपर इनवर्टेड कॉमा में जो लिखा है वह दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर छपी खबर के शीर्षक का अंश है।
वैसे जागरण की खबर, “हर चुनाव से पहले ईवीएम पर यूं तो राजनीतिक दलों की ओर से सवाल उठते रहे हैं। अब लंदन में एक भारतीय हैकर ने न सिर्फ यह आरोप लगाया है बल्कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी खुद ले लिया है – से शुरू होती है। आगे खबर है, उसने दावा किया है कि उसकी टीम ने इन राज्यों में कांग्रेस को बचा लिया। अमेरिका में राजनीतिक शरण लिए हुए भारतीय हैकर सैयद शुजा ने लंदन में चल रही हैकथॉन में यह दावा किया है।” मुझे लगता है इस खबर में कुछ तथ्यात्मक गलतियां हैं। जैसे उसने श्रेय नहीं लिया, उसने बताया कि चुनाव कब हैक किए गए थे और कब नहीं। संभवतः वह भी पूछने पर। लंदन में हैकाथॉन नहीं था, प्रेस कांफ्रेंस थी जिसे वह टीवी पर, वीडियो कॉल के जरिए संबोधित कर रहा था। फिर भी, तथ्य गंभीर थे तो अखबार ने इसे अपनी टिप्पणी के साथ ही सही, पहले पन्ने पर छापा तो।
वैसे मामला इतना ही नहीं है, आरोप लगाने वाले ने कहा कि चार दिन पहले उस पर हैदराबाद में हमला हुआ, उसके कई साथी मारे जा चुके हैं और इसलिए वह प्रेस कांफ्रेंस में नहीं पहुंच सका। उसने सिर्फ ईवीएम हैकिंग की बात नहीं की। आरोप लगाया कि ईवीएम हैकिंग के बारे में केंद्रीय मंत्री गोपी नाथ मुंडे को पता था इसलिए उनकी हत्या की गई (उनका निधन सड़क दुर्घटना में हुआ था)। यही नहीं, पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी इसीलिए हुई तो आप सबूत मांगेंगे कि हत्या की जांच की जरूरत समझेंगे। खासकर तब जब एक केंद्रीय मंत्री की मौत हुई है और जिस सड़क दुर्घटना में मौत बताई जा रही वैसे में अमूमन किसी की मौत नहीं होती है। आप ‘बूसी-बसिया'( गौरी लंकेश ने यह विशेषण इस्तेमाल किया था पीएम मोदी के लिए। कन्नड़ भाषा के इन शब्दों का अर्थ है- जब भी मुँह खोले, झूठ बोले।) पर भरोसा करेंगे या पाठक को निर्णय करने देंगे? मेरे ख्याल से निर्णय पाठकों पर ही छोड़ना चाहिए।
इसीलिए, नवभारत टाइम्स ने इस खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, “रहस्यमय हैकर के दावों से सनसनी, जेटली बोले ‘बकवास’।” अखबार ने दो शीर्षक लगाए हैं, “2014 में ईवीएम की हैकिंग से बीजेपी के जीतने का दावा” और “महाराष्ट्र, गुजरात,यूपी चुनावों में भी ईवीएम का खेल” बताया। दूसरे उपशीर्षक से लगता है कि ‘श्रेय’ लेने का दैनिक जागरण का दावा गलत है। अखबार में सिंगल कॉलम की एक और खबर हैं जिसका शीर्षक है,”कांग्रेस पर बरसी बीजेपी, ईसी बोला – ईवीएम सेफ”। इसमें लिखा है, मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, “हार सामने देख कांग्रेस हैकिंग का हॉरर शो दिखा रही है”। पर अखबार ने यह नहीं बताया कि भाजपा के दो नेता ईवीएम पर किताब लिख चुके हैं। खबर के साथ इतिहास बताने का रिवाज नहीं है पर आज अखबार ने अपना नजरिया भी बताया है। इसलिए कहा जा सकता है कि उसमें उसे यह भी बताना चाहिए था।
नवोदय टाइम्स ने भी इस खबर को पहले पन्ने पर बॉटम बनाया है और सबसे खास बात, “दावा : 2014 चुनाव में हुई थी धांधली” को शीर्षक में लिखा है। उप शीर्षक है, “अमेरिकी हैकर का दावा – हैकिंग के बारे में जानते थे गोपीनाथ मुंडे इसलिए हुई हत्या” भी इस प्रेस कांफ्रेंस की खास बात रही। अखबार ने इसके साथ चुनाव आयोग का बयान भी छापा है जो मुझे बेमतलब लगता है। ईवीएम गो माता नहीं है ना ईवीएम में आम मतदाताओं की आस्था का विकास किए जाने की जरूरत है। चुनाव आयोग का मुख्य काम कानूनी कार्रवाई करना भी नहीं होना चाहिए। अगर कानूनी कार्रवाई ही करनी है उन दो किताबों के खिलाफ पहले होनी चाहिए जो ईवीएम को हमेशा से संदिग्ध बनाते रहे हैं। इसके अलावा, ईवीएम में खामी नहीं होती तो सुप्रीम कोर्ट वीवीपैट लगाने को क्यों कहता? कल के खुलासे पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी संयत है। उसने कहा है कि ईवीएम से मिलान दो प्रतिशत ही क्यों, 50 प्रतिशत होना चाहिए।
नवोदय टाइम्स ने भी इस खबर को पहले पन्ने पर बॉटम बनाया है और सबसे खास बात, “दावा : 2014 चुनाव में हुई थी धांधली” को शीर्षक में लिखा है। उप शीर्षक है, “अमेरिकी हैकर का दावा – हैकिंग के बारे में जानते थे गोपीनाथ मुंडे इसलिए हुई हत्या” भी इस प्रेस कांफ्रेंस की खास बात रही। अखबार ने इसके साथ चुनाव आयोग का बयान भी छापा है जो मुझे बेमतलब लगता है। ईवीएम गो माता नहीं है ना ईवीएम में आम मतदाताओं की आस्था का विकास किए जाने की जरूरत है। चुनाव आयोग का मुख्य काम कानूनी कार्रवाई करना भी नहीं होना चाहिए। अगर कानूनी कार्रवाई ही करनी है उन दो किताबों के खिलाफ पहले होनी चाहिए जो ईवीएम को हमेशा से संदिग्ध बनाते रहे हैं। इसके अलावा, ईवीएम में खामी नहीं होती तो सुप्रीम कोर्ट वीवीपैट लगाने को क्यों कहता? कल के खुलासे पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी संयत है। उसने कहा है कि ईवीएम से मिलान दो प्रतिशत ही क्यों, 50 प्रतिशत होना चाहिए।
हिन्दुस्तान में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अखबार ने इसे जल्दी शुरू कर दिए गए, चुनावी खबरों के पन्ने, ‘महासंग्राम – 2019’ पर, “विवादास्पद दावा : 2014 चुनाव में ईवीएम हैक हुई शीर्षक” से छापा है और चुनाव आयोग के घिसे-पिटे बयान को, “आरोप खारिज : चुनाव आयोग ने कहा मशीनें पूरी तरह सुरक्षित” शीर्षक से धो दिया है। राजस्थान पत्रिका ने इसे पहले पन्ने पर दो कॉलम में छापा है। फ्लैग शीर्षक है, “ईवीएम : कथित साइबर विशेषज्ञ ने कहा हुई धांधली”। मुख्य शीर्षक है, “सनसनीखेज दावा : 2014 के चुनाव में हुई थी हैकिंग”। अमर उजाला ने इसे देश-विदेश की खबरों के अपने पन्ने पर टॉप में ईवीएम पर फिर विवाद विषय के तहत छापा है। शीर्षक है, साइबर विशेषज्ञ का दावा – 2014 के लोक सभा चुनाव में हुई थी धांधली। अखबार ने इसके साथ चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण , अन्य आरोप और कांग्रेस की प्रतिक्रिया तथा मुख्तार अब्बास नकवी का आरोप सब विस्तार से छापा है।
मैं जो अखबार देखता हूं उनमें दैनिक भास्कर ने इसे सबसे कायदे से छापा है। और इसमें यह भी बताया है कि हैकर ने यह दावा भी किया कि भाजपा के साथ कांग्रेस, सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी ने भी उससे संपर्क किया है। उसने कुल मिलाकर 12 पार्टियों के नाम गिनाए। अखबार ने गोपी नाथ मुंडे के भतीजे और एनसीपी नेता धनंजय मुंडे की प्रतिक्रिया, “शुजा का बयान हैरान करने वाला” भी छापा है और कांग्रेस की मांग, “ईवीएम को फूलप्रूफ बनाने की जरूरत” भी छापा है। खास बात यह रही कि अखबार ने एक और महत्वपूर्ण खबर, “भारत में 9 अमीरों के पास आधी आबादी के बराबर संपत्ति, शीर्ष 1% अमीरों की संपत्ति 39% बढ़ी”, भी है। अंग्रेजी अखबारों समेत कई अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अब आप देखिए आपके अखबार ने क्या बताया, क्या नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )