क्या आपने ओबीसी एक्सपैंशनबजट का नाम सुना है ?
क्या आप जानते हैं कि ओबीसी एक्सपैंशन के नाम पर अरबों रुपये की ग्रांट विश्वविद्यालयों को दी गई ?
आमतौर पर इन सवालों का जवाब ‘न’ में मिलता है, जो स्वाभाविक है। अरबों रुपये की ग्रांट अगर का अगर ज़मीन पर कोई असर नहीं दिखे तो मतलब यही होता है कि पैसा हवा में उड़ा दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय के नाम पर घोटाला तो नहीं हो रहा है?
चलिए, पूरा मामला समझाते हैं।
आपको याद ही होगा कि तमाम जद्दोजहद के बाद उच्च शिक्षा में पिछड़े वर्गों का आरक्षण लागू किया गया था। ओबीसी की कुल तादाद 54 फीसदी मानते हुए, उसका आधा यानी 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू किया गया था। इस आरक्षण का विरोध न हो, इसलिए मौजूदा सीटों में आरक्षण न देकर, इतनी सीटें अतिरिक्त जोड़ दी गई थीं। यानी सौ में 27 फ़ीसदी सीटें आरक्षित न करके कुल सीटों को 127 कर दिया गया। यह सिर्फ छात्रों के संबंध में नहीं हुआ। शिक्षकों और कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाकर 127 कर दी गई।
इसे कहा गया ओबीसी एक्सपैंशन। बढ़ी हुई सीटों के अनुरूप व्यवस्था करने के लिए शिक्षा संस्थानों को अरबों का बजट दिया गया। लेकिन इन संस्थानों में ओबीसी की उपस्थिति और हैसियत देखकर आपको समझ नहीं आएगा कि ये अरबों रुपये गये कहाँ?
इसे दिल्ली विश्वविद्यालय के हाल से समझते हैं। राजधानी दिल्ली का यह विश्वविद्यलाय वह दाना है जिसे छूकर आप पूरी खिचड़ी का हाल जान सकते हैं।
यूजीसी ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि
दिल्ली विश्वविद्यालय को मिला OBC एक्स्पैंशन बजट – 59,102 लाख रुपए यानी 5 अरब 91 करोड़ 2 लाख रुपए मात्र।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों को मिला OBC एक्स्पैंशन बजट – 1,31,999 लाख रुपए यानी 13 अरब 19 करोड़ 99 लाख रुपए मात्र।
दिल्ली विश्वविद्यालय के NCWEB (नॉन कॉलेजिएट वीमेन्स एजूकेशन बोर्ड)नको मिला OBC एक्स्पैंशन – 736 लाख रुपए यानी 7 करोड़ 36 लाख रुपए मात्र।
यानी अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय को OBC एक्स्पैंशन में अब तक मिला है- 19 अरब 18 करोड़ 37 लाख रुपए मात्र।
अब आइए असली सवाल पर। सबसे पहले यह सवाल कीजिये कि आपके आस-पास कितने ऐसे संस्थान हैं, जहाँ OBC आरक्षण हुआ?
अब सवाल नंबर दो-संस्थानों को मिले करोड़ों-अरबों रूपए का क्या क्या हुआ ? किसे इसका लाभ मिला? किस-किस मद में पैसा खर्च किया गया।
मैं अपने दिल्ली विश्वविद्यालय से यह सवाल कर रहा हूँ। पहले तो RTI को घुमाया, लेकिन अब यूजीसी ने यह जवाब दिया है। इसमें पहले सवाल के लिए और पैसा देना होगा, ताकि वे सभी 44 पन्ने भी मिलें।
इसके बाद असल सवाल खड़ा होगा कि अगर खर्च किए गए तो उससे क्या-क्या किया गया, कितने हॉस्टल बने, कितने कमरे बने और कितने OBC को इससे लाभ मिला?
ये मामला बहुत जोख़िम भरा है, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में सब शामिल हैं। लेकिन सवाल तो करना पड़ेगा न।
बेशक पहले भी कुछ लोगों ने इस घोटाले के खिलाफ़ काम किए होंगे,को लेकर आवाज़ उठाई होगी, लेकिन इसे अब व्यवस्थित रूप देने का समय है।
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं।