संजय कुमार सिंह
वैसे तो चुनाव नतीजों पर टिप्पणी करना जनता की कार्रवाई के बारे में जनता को ही बताना है। असल में यह अखबारों द्वारा राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर जनता को वर्षों – महीनों तक दी गई (या नहीं दी गई) सूचनाओं पर प्रतिक्रिया होती है लेकिन अखबारों में उसपर अटकल लगाने का काम भी खूब होता है। आज के अखबारों में शीर्षक देखना ही दिलचस्प है। कई शीर्षक तो ऐसे लगते हैं जैसे अपने परीक्षा परिणाम पर टिप्पणी हों।
अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, हैंड ऑन हार्टलैंड यानी हृदय क्षेत्र पर हाथ। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, कांग्रेस भाजपा को तीन पायदान नीचे ले आई। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है, राहुल के लिए अच्छी रही पहली सालगिरह। असल में राहुल गांधी पिछले साल कल ही के दिन कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे और सालगिरह की चर्चा उसी संदर्भ में है। टेलीग्राफ का शीर्षक चुनाव नतीजों पर कम देश की राजनीति पर ज्यादा है। अखबार ने, “वी हैव के फाइट नाऊ” शीर्षक के साथ खबर कम राहुल गांधी की फोटो बड़ी छापी है। इसका मतलब है, “अब हमें लड़ना है”। अगर राहुल ने ऐसा कहा है तो इसका मतलब यही है कि यह तो बिना लड़े मिला है।
दैनिक भास्कर ने आज चुनाव नतीजों की खबर को मोदी की नोटबंदी के बाद …. जनता की वोटबंदी के मुख्य शीर्षक से छापा है और तीन राज्यों में क्या हुआ, क्यों हुआ और कैसे हुआ के तहत कई मामलों का जिक्र किया है और अनुमान लगाए हैं। अमर उजाला ने चुनाव नतीजों की खबर का शीर्षक लगाया है, भाजपा का विजय रथ थमा कांग्रेस को मिली संजीवनी।
दैनिक जागरण में मुख्य खबर का शीर्षक है, कांग्रेस को फूल, भाजपा को कांटे। उपशीर्षक है, मोदी के सामने ज्यादा मजबूती से खड़े हो पाएंगे राहुल। इसके साथ पहले पन्ने पर प्रशांत मिश्र की त्वरित टिप्पणी है। शीर्षक है, भाजपा के लिए गहन समीक्षा का वक्त। सियासत विषय पर इस टिप्पणी का फ्लैग शीर्षक है, हिन्दुत्व के एजेंडे पर आगे दिखी कांग्रेस, राम मंदिर के मुद्दे पर भी कांग्रेस नेता बढ़-चढ़कर बोलते दिखे।
हिन्दुस्तान में शशि शेखर की त्वरित टिप्पणी है, राहुल गांधी के लिए खुशी का दिन पर रास्ता अभी हमवार नहीं हुआ। इसके साथ मुख्य खबर का शीर्षक है, कांग्रेस की जबरदस्त वापसी। राजस्थान पत्रिका में गुलाब कोठारी की टिप्पणी है, लो कर दिखाया। इसके साथ पहले की एक टिप्पणी का संदर्भ है, उखाड़ फेंकेगी जनता। नवोदय टाइम्स में कांग्रेस मुक्त भारत का ध्वस्त होता सपना शीर्षक से चुनाव नतीजों पर टिप्पणी है।
नवभारत टाइम्स में चुनाव की खबरें पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। और इनमें 5 सबक भी हैं जो असेम्बली चुनावों के नतीजों ने साफ बता दिए। इसके साथ यह भी बताया गया है कि इन नतीजों से 2019 के लोकसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा। एक खबर है, 2019 की लड़ाई कांटे की होगी, अब इतना तय है। इसके साथ मुख्य अखबार की लीड का शीर्षक है, राजस्थान में कांग्रेस के पायलट पर फंसा पेंच। टेलीग्राफ में लगभग ऐसा ही शीर्षक है, भाजपा का किला ढहा, कांग्रेसी मुख्यमंत्री की दौड़ शुरू।
बिना शीर्षक के अखबार और खबर
आज चुनाव परिणाम का दिन है। रिवाज रहा है शीर्षक में जीत और हार के कारण बताने का। ईमानदारी से कहूं तो उत्तर प्रदेश की जीत अगर नोटबंदी की ‘सफलता’ थी और बिहार में अंतरात्मा की आवाज पर सरकार बदल गई और बहुमत मिलने का मतलब नोटबंदी तथा जीएसटी है तो पाठकों या मतदाताओं को जीत हार का कारण बताने की जरूरत नहीं है। जो हराता है या सत्ता सौंपता है वो जानता है। ऐसे में अखबारों के शीर्षक किसके लिए?
जीतने वालों के अपने मायने होते हैं। हारने वाला जीतने की कोशिश में लग जाता है या गाय-गोबर मंदिर से हार कर छोड़ भी दे तो जनता के पास विकल्प तो हो। ऐसी हालत में इंदौर के नए अखबार प्रजातंत्र ने कल ही एलान कर दिया था कि वह इस बार चुनाव परिणाम के खबर बिना शीर्षक छापेगा और फिर भी अखबार अधूरा नहीं लगेगा। तो आज के प्रजातंत्र का पहला पन्ना देखिए। चुनाव परिणाम है लेकिन कोई शीर्षक नहीं। आप जो जानना चाहें वह है जबरदस्ती की टिप्पणी नहीं।
ऐसा ही आज का टेलीग्राफ है। सभी अखबारों में चुनाव नतीजे की खबर लीड है यहां राहुल गांधी की फोटो है और शीर्षक, “अब हमें लड़ना है”। अगर राहुल ने ऐसा कहा है तो इसका मतलब यही है कि यह तो बिना लड़े मिला है। राहुल ने कहा हो या नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे।)