संजय कुमार सिंह
पांच महीने से निलंबित अवस्था (ससपेंडेड एनिमेशन) में चल रही जम्मू कश्मीर विधानसभा को कल राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अचानक भंग कर दिया। दिन भर के घटनाक्रम से यह लगने लगा था कि भाजपा के समर्थन से सरकार चला चुकी महबूबा मुफ्ती पीडीपी-कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना सकती हैं तो 1980 के दशक में राज्य में आतंकवाद की शुरुआत के बाद पहली बार राजनीतिक राज्यपाल बनाए गए सत्यपाल मलिक ने विधानसभा ही भंग कर दी। यह विपक्ष की सरकार न बनने देने की पुरानी रणनीति ही है पर साफ-सुथरी और ईमानदार राजनीति का दावा कर सत्ता में आई पार्टी भी वही करे तो खबर कुछ अलग होनी चाहिए।
खासकर, इसलिए भी कि 21 अगस्त 2018 को बिहार से उठाकर जब जम्मू कश्मीर में बैठाया गया था तभी उम्मीद की गई थी कि वे कोई ‘बड़ा’ राजनीतिक काम करेंगे। राज्य में भाजपा के समर्थन से चल रही महबूबा मुफ्ती की सरकार 19 जून को गिर गई थी और विधानसभा भंग नहीं की गई थी। अब पुराने कांग्रेसी और भाजपाई राज्यपालों की तरह सत्यपाल मलिक ने भी लगभग वैसा ही किया है कुछ और दिलचस्प अंदाज में। असल में जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुने जा चुके सत्यपाल मलिक राज्यसभा के भी सदस्य रहे हैं और भारतीय क्रांतिदल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जनता दल के साथ लोकदल में भी रह चुके हैं। और आरएसएस से नहीं हैं। 2004 में वे भाजपा से जुड़े थे और बागपत से अजीत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े थे पर हार गए। आइए देखें ऐसे राजनीतिज्ञ के घनघोर राजनीतिक फैसले को आज के अखबारों ने कैसे छापा है।
नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर तो है लेकिन फोल्ड के नीचे तीन कॉलम में। शीर्षक है, “जम्मू कश्मीर में नई सरकार बनाने की चाहत पर हो गई बर्फबारी।” अखबार ने यह खबर पीटीआई की बताई है। इसमें सूचना तो हैं पर सामान्य और रूटीन अंदाज में। इसके साथ विधानसभा में सीटों की संख्या बताने वाला एक पॉल ग्राफिक्स है।
दैनिक जागरण में यह खबर पांच कॉलम में लीड है। शीर्षक है, “राज्यपाल ने जम्मू कश्मीर विस भंग की”.. उपशीर्षक है, “अचानक बदले सियासी घटनाक्रम में पीडीपी, नेकां, कांग्रेस गठजोड़ ने पेश किया था सरकार बनाने का दावा”। इसके साथ तीन कॉलम के एक बॉक्स में, “तेजी से बदलता चला गया सियासी घटनाक्रम”.. और किसके कितने थे विधायक यह भी बताया गया है। अखबार ने इसके साथ राज्यपाल का बयान और पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंद्र गुप्ता का कोट भी छापा है।
दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “भाजपा के विरोध में पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने मिलाया था हाथ”… मुख्य शीर्षक है, “जम्मू कश्मीर में हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद विधानसभा भंग”… अखबार ने मुख्य खबर के साथ बॉक्स में, “अपने-अपने दावे” और “छह घंटे की सियासी उठापटक” और तीन कोट भी छापे हैं जो क्रम से गुलाम नबीं आजाद, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के हैं।
राजस्थान पत्रिका में पहले पेज पर उसके अपने “पत्रिका कीनोट” आयोजन की खबर प्रमुखता से है और यह खबर फोल्ड के नीचे लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “चढ़ा सियासी पारा पहली बार बन रहा था ऐसा गठबंधन, सत्यपाल मलिक ने मिलने का समय नहीं दिया” मुख्य शीर्षक है, “कश्मीर में सरकार बनाने को जुटे महबूबा-उमर और कांग्रेस, राज्यपाल ने विस ही भंग कर दी। इसमें और सूचनाओं के साथ एक सवाल भी प्रमुखता से छापा गया है, “आगे क्या?” इस शीर्षक के साथ कहा गया है, राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। महबूबा कोर्ट जाने पर विचार कर रही हैं” ..अखबार में मुख्य खबर के साथ एक और खबर सिंगल कॉलम में प्रमुखता से है, “पहली बार सोशल मीडिया पर दवा!”
नवोदय टाइम्स में यह खबर चार कॉलम में लीड है। शीर्षक है, “जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग”… उपशीर्षक है, “पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस ने शुरू कर दी थी नई सरकार बनाने की कवायद”….अखबार ने इस खबर के साथ महबूबा मुफ्ती का ट्वीट छापा है तो भाजपा का यह बयान भी कि, “जल्द चुनाव कराना बेहतर विकल्प : भाजपा”…हालांकि, इस बारे में महबूबा ने ट्वीट में कहा है, “हम पिछले पांच महीने से कह रहे थे कि खरीद-फरोख्त रोकने के लिए विधानसभा तत्काल भंग की जाए लेकिन बहरे कानों तक यह बात नहीं पहुंची। आज तकनीक के दौर में राज्यपाल आवास की मशीन का फैक्स रिसीव न करना समझ से बाहर है”… नवोदय टाइम्स में उमर अब्दुल्ला का भी ट्वीट है, “यह केवल इत्तेफाक नहीं हो सकता कि महबूबा मुफ्ती पत्र लिखें और उसके चंद मिनट में ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश आ जाए।”
अमर उजाला में भी यह खबर लीड है और इसका शीर्षक है, “रात 8.15 : महबूबा ने पेश किया दावा …. 8.50 बजे विधानसभा भंग”… उपशीर्षक है, “जम्मू कश्मीर : नई सरकार के गठन की संभावना खत्म”… लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं शीर्षक के तहत महबूबी मुफ्ती, गुलाम नबी आजाद और उमर अबदुल्ला की फोटो और बातें हैं। “दिन भर बदलते रहे समीकरण” और “महबूबा ने ट्वीट तो सज्जाद ने व्हाट्सएप के जरिए किया दावा” आदि का विवरण तो है पर ऊपर के किसी भी अखबार में (प्रमुखता से) यह नहीं बताया गया है कि अदालत में मामला पलट सकता है और 2016 में उत्तराखंड में ऐसा हो चुका है। इससे पहले, 2005 में बिहार में भी ऐसा हुआ था। पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल बूटा सिंह के फैसले को असंवैधानिक करार दिया था। इस बार का फैसला इसीलिए महत्वपूर्ण है।
दैनिक भास्कर ने इस बारे में लिखा है और इस खबर को सात कॉलम में सबसे विस्तार तथा कायदे से छापा है। मुख्य बात फ्लैग शीर्षक में ही है जो इस प्रकार है, “जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग, 5 माह से राज्यपाल शासन था, अब सरकार बननी थी लेकिन राज्यपाल ने ही बाजी पलट दी”… इसके साथ “9 घंटे चला घटनाक्रम ,पीडीपी-कांग्रेस-एनसी साथ आने को तैयार हुई, महबूबा ने सरकार बनाने का दावा भी किया, पर सब बेकार” के दूसरे शीर्षक से घटनाक्रम का विवरण है और फिर मुख्य शीर्षक है, “महबूबा फैक्स-फोन-ईमेल से रात 8:30 तक सरकार का दावा करती रहीं, राज्यपाल ने 9 बजे विधानसभा ही भंग कर दी; अब चुनाव होंगे”… यही नहीं, इन साइड स्टोरी में बताया है कि 19 को मोदी, 20 को शाह से मिले थे राज्यपाल मलिक और अब आगे क्या होगा के तहत बताया है कि कोर्ट गए तो राज्यपाल का फैसला पलट भी सकता है।