अख़बारनामा: ‘अर्बन नक्सल’ पर पीएम के झूठ की पोल खोलता टेलीग्राफ़ और लल्लू अख़बार

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संजय कुमार सिंह


आज के द टेलीग्राफ में चार कॉलम की लीड खबर का शीर्षक हिन्दी में लिखूं तो यह होगा, “प्रधानमंत्री ने ‘शहरी माओवादियों’ के एयरकंडीशन जीवन का खुलासा किया”। अगर आप कल के भाषणों से वाकिफ हों तो इस शीर्षक से समझ जाएंगे कि दूसरे अखबारों में इस खबर का शीर्षक क्या होगा। आदर्श पत्रकारिता के जमाने में इस बात पर जोर रहता था कि खबर में घटनाओं-सूचनाओं पर टीका टिप्पणी न की जाए। उसे जस का तस परोस दिया जाए और निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया जाए। आजकल अक्सर यही हो रहा है कि अखबारों में सिर्फ सूचनाएं होती हैं उनका विश्लेषण नहीं के बराबर या अक्सर लीपने-पोतने वाला होता है। दूसरी ओर, निर्णय टेलीविजन चैनलों पर सुना दिए जाते हैं। लेकिन समस्या तब होती है जब प्रधानमंत्री झूठ बोलें, गलत बोलें। क्या अखबारों का काम उसे यूं ही परोस देना है?

कोलकाता मुख्यालय वाला द टेलीग्राफ ऐसा नहीं करता है। उसमें नई दिल्ली डेटलाइन से फिरोज एल विनसेन्ट की खबर इस प्रकार है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव वाले छत्तीसगढ़ में शुक्रवार को कहा कि “शहरी माओवादी बड़े शहरों के एयरकंडीशन कमरों में रहते हैं, साफ-सुथरे दिखते हैं अपना कद दूसरे समझदार लोगों के साथ मिलकर काम करते हुए बनाते हैं; उनके बच्चे विदेश में पढ़ते हैं; वे महंगी कारों में घूमते हैं; पर वहां बैठकर रिमोट सिस्टम के जरिए आदिवासी बच्चों का जीवन नष्ट करने के काम करते हैं।” प्रधानमंत्री ने किसी ‘शहरी माओवादी’ या अर्बन नक्सल का नाम नहीं लिया। इसी साल कुछ समय पहले जब दो चरणों में कई एक्टिविस्ट्स गिरफ्तार किए गए थे तो गोदी मीडिया ने उन्हें अर्बन माओवादी या अर्बन नक्सलाइट कहा था। उन्हें एक जनवरी को पुणे के पास भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा शुरू होने से पहले की एक जनसभा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।

अखबार ने लिखा है, क्या सभी एयरकंडीशन जीवन जीते हैं जैसा प्रधानमंत्री ने सबों के लिए कहा है। क्या इन सबों के बच्चे विदेश में पढ़े हुए हैं? हालांकि, मोदी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उन्हें क्यों लगता है कि ऐक्टिविस्ट्स के बच्चों का विदेश में पढ़ना किसी तरह की परेशानी का कारण है। इसके बाद अखबार ने उन लोगों में से कुछ के जीवन की चर्चा की है। इसके मुताबिक 57 साल की सुधा भारद्वाज अर्थशास्त्री कृष्ण भारद्वाज की बेटी हैं और उनका जन्म अमेरिका में हुआ था। 19 साल की उम्र में उन्होने अमेरिकी नागरिकता छोड़कर भारत की नागरिकता ली है, आईआईटी, कानपुर से गणित पढ़कर 1986 में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़ गईं जिसे खान मजदूरों का समर्थन था। खान मजदूरों के लिए काम करते हुए उन्होंने कानून की पढ़ाई की और सन 2000 में प्रैक्टिस शुरू की। उनकी 21 साल की बेटी मायशा पत्राचार से पढ़ाई कर रही है और दिल्ली के पास फरीदाबाद के एक फ्लैट में रहती है।

अखबार के मुताबिक मायशा का बचपन दल्ली राजहरा स्थित खान मजदूरों के स्लम (झुग्गी झोपड़ी वालो मोहल्ले) और फिर बाद में दुर्ग के जमुल मजदूर शिविर में बीता है। उसने हिन्दी माध्यम के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की है। सुधा भारद्वाज की एक सहेली स्मिता गुप्ता के हवाले से अखबार ने लिखा है कि मायशा का स्कूल देखकर वे सब दंग थीं और किसी आवासीय अंग्रेजी स्कूल में नाम लिखाने की उनलोगों की पेशकश को सुधा भारद्वाज ने ठुकरा दिया। मायशा ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग से अंग्रेजी माध्यम में कक्षा 12 की पढ़ाई पूरी की।

इसी तरह, अखबार ने 60 साल की शोमा सेन के बारे में लिखा है कि वे नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं और जून में गिरफ्तारी के बाद उन्हें मुअत्तल कर दिया गया था। उनके पति को 2010 के एक माओवादी गतिविधि से संबंधित मामले में गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया था और वे जमानत पर रिहा हुए थे। शोमा सेन मुंबई के बांद्रा इलाके के एक संपन्न परिवार से आती हैं। उनकी 31 साल की बेटी फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से पढकर फिल्म बनाती है और पढ़ाती भी है। 2016 में वह डॉक्यूमेंट्री सिनेमा पर अध्ययन के लिए वजीफे पर पेरिस गई थी।

78 साल के वरवरा राव तेलुगू के जाने-माने साहित्यकार हैं और 70 व 80 के दशक में जेल जाते आते रहे हैं। उन्हें 2006 में भी गिरफ्तार किया गया था पर उनकी सजा अदालत ने पलट दी थी। आखिरी बार वे इस साल अगस्त में गिरफ्तार हुए थे। वे तेलुगू के प्रोफेसर रहे हैं। 52 साल के उनके दामाद हैदराबाद आधार वाले पत्रकार हैं। 52, 49 और 44 साल की इनकी तीन बेटियां हैं। सबों की पढ़ाई तेलुगू माध्यम स्कूलों में हुई है। एक और कथित शहरी नक्सल 61 साल के वरनॉन गोन्जाल्विस के बारे में अखबार ने लिखा है कि एमकॉम में टॉप करने के बाद वे एक मशहूर कंपनी में काम करते थे और फिर मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए यह नौकरी छोड़ दी। पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने ट्रेड यूनियन के लिए झुग्गी झोपड़ी क्षेत्र में काम किया। 2007 से 2013 तक विचाराधीन कैदी थे और उनपर 20 मामले थे। हालांकि, वे सभी मामलों में बरी हो गए।

उनके 24 साल के बेटे ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में इकनोमिक्स की पढ़ाई की है और अभी एक शिक्षा संस्थान के लिए नौकरी करता है। वह एक गांधी वादी है और ग्रामीण राजस्थान में काम करने वाले एक एनजीओ के लिए काम करता है। परिवार के पास संपत्ति के नाम पर मुंबई में एक बेडरूम का फ्लैट और एक दुपहिया है। अखबार में यह खबर काफी विस्तार में, तमाम सूचनाओं और नामों के साथ है। अनुवाद से बचने के लिए मैंने इसे काफी संक्षिप्त कर दिया है और सिर्फ उन्हीं तथ्यों को रखा है जो प्रधानमंत्री के खुलासों से संबंधित हैं।

आइए देखें दूसरे अखबारों ने इस खबर को कैसे छापा है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है बस्तर में मतदान से तीन दिन पहले मोदी, राहुल में आरोप-प्रत्यारोप। इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक में सिर्फ प्रधानमंत्री का आरोप है। राहुल या कांग्रेस का जवाब नहीं। फ्लैग शीषर्क है, विधानसभा चुनाव अभियान गर्माया जबकि मुख्य शीर्षक है, प्रधानमंत्री चुनाव अभियान पर कांग्रेस शहरी माओवादियों की रक्षा करती है जो एसी घरों में रहते हैं। उपशीर्षक है, अगर कोई और सत्ता में आ गया तो दाग लगा देगा। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी पहले पन्ने पर आरोप ही है, जवाब नहीं। शीर्षक का अनुवाद होगा, माओवादियों के गढ़ में प्रधानमंत्री ने अर्बन नक्सलियों, कांग्रेस को लताड़ा।

दैनिक भास्कर ने नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की खबरें आमने-सामने छाप दी हैं। मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया और राहुल ने मोदी पर। बात खत्म। नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। शीर्षक है, “पीएम मोदी का कांग्रेस पर गुरिल्ला अटैक, शहरी नक्सलियों के साथ क्यों”। इसके साथ सिंगल कॉलम में दो खबरें हैं, “नोटबंदी से बेवकूफ बनाया : राहुल” और “आरबीआई से नहीं मांगे रुपए : केंद्र”। दैनिक हिन्दुस्तान ने मोदी-राहुल को आमने सामने रखा है और एक शीर्षक है, मोदी बोल कांग्रेस शहरी माओवादियों की हमदर्द और दूसरे का, भाजपा ध्यान भटकाने को नक्सल मुद्दा उठा रही है राहुल।

नवोदय टाइम्स में भी ऐसा ही है। मुख्य शीर्षक है, छत्तीसगढ़ के चुनावी रण में उतरे मोदी-राहुल। बाकी के शीर्षक में एक है, “माओवादियों की समर्थक है कांग्रेस करती है वोटों की खेती : पीएम” और दूसरा, “मोदी नोटबंदी पर बोलेंगे तो लोग उन्हें मंच से भगा देंगे : कांग्रेस अध्यक्ष।” राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पेज पर प्रमुखता से नहीं है। अमर उजाला में आज नीचे से ऊपर तक चार कॉलम का विज्ञापन है। बाकी चार कॉलम में यह खबर चार कॉलम के फ्लैग शीर्षक, “चुनावी समर : छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में पीएम मोदी और कांकेर में राहुल गांधी ने चलाए सियासी तीर” से बॉटम है। दो कॉलम में मोदी के आरोप का शीर्षक है, “युवाओं के हाथों में बंदूक थमाने वाले शहरी नक्सलियों की हमदर्द है कांग्रेस”। इसके मुकाबले राहुल एक कॉलम में हैं। शीर्षक है, “सूटृबूट वाले दोस्तों के लिए युवा सपने मिटाए।”

दैनिक जागरण ने इस खबर को दो कॉलम में ऊपर नीचे छापा है। पहले मोदी और तब राहुल। शीर्षक है, “कांग्रेस है शहरी नक्सलियों की साथी : पीएम मोदी।” इसके साथ एक सिंगल कॉलम भी है, “आदिवासियों का मजाक उड़ाती है कांग्रेस : मोदी।” नीचे वाली खबर का शीर्षक है, “मोदी पहले भ्रष्टाचार की बात करते थे, अब नक्सलवाद की : राहुल।” जागरण में राहुल की खबर छोटी है पर यह भी बोले के तहत राहल की कुछ और बातें यहां हैं जो दूसरे अखबारों में होंगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 

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