“हमारे यहाँ इस्तीफ़ा नहीं होता” जैसी दंभ भरी घोषणाएँ आख़िरकार यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला पत्रकारों के एकजुट संघर्ष के ऐलान के सामने हवा हो गईं। महाबली मोदी को आख़िरकार अपने दरबार के प्रिय रत्न एम.जे.अकबर को विदेश राज्यमंत्री की कुर्सी से रुख़सत करना पड़ा। कल तक मानहानि के मुकदमे की तलवार भाँज रहे अकबर ने आज शाम इस्तीफ़ा दे दिया।
मोदी सरकार शायद इस मामले की गंभीरता को समझ नहीं पाई थी। इसलिए नाइजीरिया दौरे से लौटे अकबर से इस्तीफ़ा नहीं लिया गया। आक्रमण ही बचाव है के सिद्धांत के तहत 97 वकीलों की फ़ौज के साथ पत्रकार प्रिया रमानी को अदालती मानहानि का मज़ा चखाने का फ़ैसला किया गया। लेकिन प्रिया रमानी के पक्ष में 20 ऐसी पत्रकार खड़ी हो गईं जिन्होंने अकबर के साथ कभी न कभी काम किया था और सबने अदालत में यौन उत्पीड़न की दास्तानें बयान करने की इजाज़त माँगी। सुनवाई दिल्ली के पटियाला कोर्ट मे ंकल यानी 18 अक्टूबर को होनी है। ज़ाहिर है, महिला पत्रकारों का मुट्ठी तानना सरकार की मुसीबत बन गया। कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि 20 महिला पत्रकारों ने अकबर को किसी साज़िश के तहत फँसाया ताकि बीजेपी को राजनीतिक नुकसान हो।
उधर, चुनावी मौसम में यह मुद्दा गरमाना बीजेपी के लिए मुसीबत बन रहा था। काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी भी इसे मुद्दा बना रहे थे। मध्यप्रदेश की चुनावी रैली में उन्होंने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारे को बदलकर कहा कि ‘बेटी पढ़ाओ और बेटी बीजेपी नेताओं से बचाओ।’ यही नहीं, यौन उत्पीड़न का आरोप झेल रहे एनएसयूआई के अध्यक्ष फ़ीरोज़ ख़ान का इस्तीफ़ा लेकर भी काँग्रेस ने दबाव बढ़ा दिया था। आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ने इस्तीफ़ा देने की माँग को ग़लत बताया था, लेकिन ज़मीनी रिपोर्ट बता रही थीं कि यह रुख महंगा पड़ेगा। केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी ने मीटू मामलों की जाँच के लिए रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाने की माँग की थी, लेकिन मोदी कैबिनेट ने इसे ख़ारिज़ कर दिया। मंत्री समूह बनाने का फ़ैसला किया जिसका भी संकेत अच्छा नहीं गया।
आख़िरकार, अकबर को दरबार से निकलना पड़ा। ज़ाहिर है, बड़े बेआबरू होकर। प्याज़ और जूते, दोनों खाने की कहानी किसी को याद आ ही सकती है। उन्होंने कहा है कि वे अपनी लड़ाई निजी स्तर पर जारी रखेंगे। लेकिन अब उनके सिर पर सत्ता की लालबत्ती नहीं चमकेगी और सामान्य रोशनी में वे अदालत के बैरीकेड पर खड़ी उन महिलाओं से आँख मिला पाएँगे, जो उनकी ‘तेज़ ज़बान’ से ज़ख़्बमी होती रहीं, कहना मुश्किल है।
मीडिया विजिल ने सुबह ही लिखा था —
#MeToo अभियान के तहत निशाने पर आए विदेश राज्यमंत्री एम.जे.अकबर मोदी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। पीएम मोदी ने उनकी बात पर यक़ीन किया और उन्हें मंत्रिमंडल में बरक़रार रखते हुए ऐसे तमाम लोगों की आशाओं पर पानी फेर दिया जो न्यूनतम नैतिकता के तक़ाज़े के तहत इससे उलट की उम्मीद करते थे। यही नहीं, आक्रमण ही बचाव का सिद्धांत अपनाते हुए पत्रकार प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ 97 वकीलों की फ़ौज के साथ अकबर ने मानहानि का दावा भी ठोक दिया। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में कल यानी 18 अक्टूबर को मामले की सुनवाई होगी। इस बीच 20 महिला पत्रकारों ने उनके ख़िलाफ़ अदालत में बयान दर्ज कराने का ऐलान किया है।
साफ़ है, यह लड़ाई सिर्फ़ अकबर नहीं, पूरी सरकार लड़ रही है। लेकिन उसके लिए बुरी ख़बर ये है कि इस हाहाकारी अदालती दाँव से घबराने के बजाय उन सभी पत्रकारों का बहनापा मज़बूत हुआ है जिनकी शिकायत है कि अकबर ने उनका यौन शोषण किया। अब तक कुल 16 महिला पत्रकारों ने यह आरोप लगाया है कि कैसे अकबर के साथ काम करते हुए वे उनकी वहशी हरक़त और ‘तेज़ ज़बान’ का शिकार हुईं जिसकी बदबू आज भी उनके दिमाग़ को भन्ना रही है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी सौम्या लखानी और कृष्ण कौशिक की ख़बर के मुताबिक अकबर के अधीन काम कर चुकीं कम से कम 20 पत्रकारों ने अदालत में दरख़्वास्त दी है कि उन्हें इस मामले में बयान दर्ज कराने की इजाज़त दी जाए। इनमें से कुछ यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं हैं तो कुछ इसकी गवाह रही हैं। मीनू बघेल (मुंबई मिरर की चीफ़ एडिटर) मनीषा पाण्डेय, तुशिता पटेल,कनिका गहलोत, सुपर्णा शर्मा, (रेज़ीडेंट एडिटर, एशियन एज, दिल्ली), रामोला तलवार, कनीज़ा गरारी,मालविका बनर्जी, ए.टी.जयंती (संपादक, डेक्कन क्रॉनिकल), हमीदा पारकर,जोनाली बर्गोहेन,संजरी चटर्जी,, मीनाक्षी कुमार, सुजाता दत्ता सचदेवा,होइनू हैज़ल,आयशा ख़ान, कुशलरानी गुलाब,किरन मनराल, क्रिस्टीना फ़्रांसिस और रेशमा चक्रवर्ती की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि अकबर ने अपनी उन हरकतों का न संज्ञान लिया है और न ही उन्हें कोई पछतावा है जिसने तमाम महिलाओं को बरसों तक दर्द दिया है।
इनमें फ्रांसिस को छोड़कर जिन्होंने डेक्कन क्रॉनिकल में काम किया, बाक़ी सभी ने एशियन एज के दिल्ली मुंबई या हैदाराबद दफ़्तर में काम किय जब अकबर वहाँ एडिटर इन चीफ़ थे।