तमाम अटकलबाज़ियों के बीच विदेश राज्यमंत्री एम.जे.अकबर ने इस्तीफ़ा देने से इंकार कर दिया है। उन्होंने तमाम आरोपों को बेबुनयाद और द्वेषपूर्ण बताया है। उन्होंने उलटा सवाल उठाया है कि यह तूफ़ान आम चुनाव के पहले ही क्यों उठाया गया है? क्या इसके पीछे कोई एजेंडा है? अकबर के मुताबिक यह उनकी प्रतिष्ठा को धूुमिल करने का प्रयास है जिसके ख़िलाफ उनके वकील अदालती कार्रवाई करेंगे।
नाइजीरिया के दौरे से आज सुबह स्वदेश लौटे अकबर ने हवाई अड्डे पर पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं दिया था। बस इतना कहा था कि वे अपना बयान जल्द ही जारी करेंगे। दूसरे पहर दो पेज का लिखित बयान जारी करके अकबर ने तमा्म आरोपों को सुनी-सुनाई बातें बताते हुए कहा है कि साल भर पहले पिया रामानी ने एक पत्रिका में उनके ख़िलाफ़ लिखकर इसकी शुरूआत की थी,लेकिन उन्होंने नाम नहीं लिया था क्योंकि वे जानती थीं कि सारी बातें मनगढ़ंत है। अब इस झूठ को वायरल किया जा रहा है जिसमें बिलकुल भी सच्चाई नहीं है।
बीते कुछ दिनोें में करीब 12 महिला पत्रकारों ने अकबर पर साथ काम करने के दौरान यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया जो भारत के ‘मीटू’ अभियान की सनसनी बन गया है। एम.जे.अकबर देश के जाने-माने पत्रकार हैं। उन्होंने कई अख़बारों और पत्रिकाओं में अहम ज़िम्मेदारी सम्हाली है। सिर्फ़ चालीस साल की उम्र में संपादक बन जाने का तमगा उनके पास है। वे टेलीग्राफ़ और एशियन एज के संस्थापक संपादक हैं और इंडिया टुडे समेत कई पत्रिकाओं में भी उन्होंने काम किया है। टीवी चैनलों पर भी उनके कार्यक्रम आते रहे हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं जिन्होंने उन्हें एक शानदार लेखक के रूप में स्थापित किया है।
लेकिन महिला पत्रकारों के मुताबिक उनकी पत्रकारीय क्षमता और तमाम रचनात्कमकता के पीछे एक शिकारी मर्द छिपा हुआ है जो मौका पाकर महिलाओं को दबोच लेता है। बहरहाल, ये सारे आरोप ऐसी हरकतों को लेकर हैं जो 15-20 साल पहले कथित तौर पर अकबर ने की थीं। उस समय कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने का कोई कानून नहीं था और न ही मीटू जैसा कोई अभियान। संयोग से पूरी दुनिया में आजकल मीटू अभियन चल रहा है जिसने भारत पहुँचकर अकबर को मुसीबत मे डाल दिया।
शनिवार को तमाम पत्रकारों ने संसद मार्ग पर अकबर के इस्तीफ़े की माँग को लेकर प्रदर्शन किया था। काग्रेस भी लगातार इस मुद्दे पर पीएम मोदी की चुप्पी पर सवाल उठा रही थी, वहीं बीजेपी बैकफुट पर थी। केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी के कड़े रुख ने भी पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी। लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी उनका इस्तीफ़ा लेकर किसी ‘पैंडोरा बॉक्स’ को खोलने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों के मुताबिक अगर अकबर के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती है तो फिर ऐसे बहुत से मामले सामने आ जाएँगे जिनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा।
इसलिए 12 महिला पत्रकारों को आरोपों को झूठ बताने का फ़ैसला लिया गया। आक्रमण ही बचाव है। कांग्रेस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए पीएम मोदी को निशाने पर लिया है। पार्टी ने कहा है कि प्रधानमंत्री का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारा खोखला है।
एम.जे.अकबर ने अपना बयान अंग्रेज़ी में लिखित बयान जारी किया है जिसके कुछ अंशों का हिंदी अनुवाद रवीश कुमार ने किया है। आप नीचे पढ़ सकते हैं–
न्यूज़ एजेंसी ANI से कहा है कि “Lies do not have legs, but they do contain poison, which can be whipped into a frenzy. This is deeply distressing. I will be taking appropriate legal action” । मतलब यह कह रहे हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं लेकिन उनमें ज़हर होता है जिससे दौरे पड़ने लग सकते हैं। उन्माद फैल सकता है। यह बहुत निराशाजनक है। मैं उचित क़ानूनी कार्रवाई करूँगा।
“ कुछ तबक़ों में बिना सबूत के आरोप लगाना वायरल फीवर बन गया है। जो भी मामला हो, मैं वापस आ गया हूँ, मेरे वकील इन बेबुनियाद आरोपों को देखेंगे और क़ानूनी कार्रवाई का रास्ता तय करेंगे। आम चुनावों से कुछ महीने पहले ये तूफ़ान क्यों खड़ा किया गया है? क्या कोई एजेंडा है? ये सब झूठ है। मेरी प्रतिष्ठा और नेकनामी को अपूरणीय क्षति पहुँची है”
“ प्रिया रमानी ने एक साल पहले अभियान शुरू की थी। तब मेरा नाम भी नहीं लिया था क्योंकि उन्हें पता है कि स्टोरी गश्त है। हाल में जब पूछा गया कि नाम क्यों नहीं लिया तो एक ट्वीट में जवाब दिया कि उसने कुछ किया नहीं। “
अगर मैंने कुछ नहीं किया, तब स्टोरी हैं कहाँ? कोई स्टोरी नहीं है। लेकिन इसके आधार पर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगा दी गई। जो कभी नहीं हुआ। इधर उधर की बातें सुनकर कहा गया। “
अकबर पर लगे दिल दहलाने वाले आरोपों की कहानी आप नीचे क्लिक करके पढ़ सकते हैं।