मनदीप पुनिया
साल 2018, तारीख 31 अगस्त। चंड़ीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट सेन्टर पर छात्रों की भीड़ जमा थी। भीड़ की अगली कतार में यूनिवर्सिटी के नए-पुराने छात्र नेता खड़े थे जो इलेक्शन लड़ने वाले कैंडिडेट्स पर चर्चा कर रहे थे। उस कतार में सारे लड़के ही थे, बस एक लड़की को छोड़कर। उस लड़की ने भी प्रेसिडेंट लड़ने के लिए नॉमिनेशन भरा था। इलेक्शन में जीत हासिल करने के सवाल पर सारे लड़के एकमत हो गए और कहने लगे इस यूनिवर्सिटी में कभी लड़की प्रेसिडेंट नहीं बन सकती। इस बार लेफ्ट वाली पार्टी एसएफएस (SFS -स्टूडेंट फ़ॉर सोसाइटी) का कैंडिडेट बड़ी आराम से जीत जाता अगर वे कोई लड़का खड़ा करते। एसएफएस के लोग लड़की को प्रेजिडेंट की टिकट देकर पिछले साल वाली गलती फिर से कर रहे हैं। पिछले साल भी लड़की को अपना प्रेजिडेंट कैंडिडेट बनाया था, इसलिए ही हारे थे। इनको ये क्यों नहीं समझ आता कि इस यूनिवर्सिटी में आज तक कोई लड़की प्रेसिडेंट ना बन सकी है और ना ही आगे बनेगी।
छात्र नेताओं की बातें सुनकर उस लड़की का मन बिल्कुल भी कच्चा नहीं हुआ क्योंकि उसके संगठन एसएफएस ने लड़की को ही प्रेजिडेंट इलेक्शन लड़वाने की ठान ली थी। एसएफएस की प्रेजिडेंट कैंडिडेट- नाम था कनुप्रिया!
इस बार भी पंजाब यूनिवर्सिटी की सभी स्टूडेंट पार्टियों ने अपने पुराने ढर्रे की तर्ज पर पुरुष कैंडिडेट इलेक्शन के मैदान उतार दिए। चाहे वो संघ परिवार की छात्र इकाई ABVP हो, कांग्रेस की NSUI या फिर अकाली दल की SOI हो। सभी पार्टियों के पुरुष कैंडिडेट्स के बीच SFS की अकेली लड़की कनुप्रिया थी। बड़ी जोरों-शोरों से सभी पार्टियों ने वोटरों को लुभाने की कोशिशें शुरू कर दी। ABVP, SOI, NSUI जैसी पार्टियों ने अपने पैसे, बाहुबल और लक्ज़री गाड़ियों के शोऑफ़ का पुराना पैंतरा अपनाया। पंजाब यूनिवर्सिटी में इन पार्टियों के स्टिकर लगाकर बड़ी-बड़ी गाड़ियां घूमने लगीं। इनकी तरफ से स्टूडेंट्स को मूवी, पार्टी, डिनर और ट्रिप घूमने के आफर मिलने लगे। इन सबके बीच SFS की कनुप्रिया अपने साथियों के साथ स्टूडेंट्स में मुद्दों की राजनीति पर वोट देने की अपील कर रही थीं। उन्होंने अपने चुनावी भाषणों में SFS द्वारा फीस बढ़ोतरी के खिलाफ किए प्रदर्शनों से लेकर कैंपस में औरतों की आज़ादी तक हर वो काम गिनाया जिनपर SFS पिछले पांच साल से लगातार लड़ती आई है।
देखते ही देखते कनुप्रिया के पीछे लड़कियों का हुजूम जुड़ता चला गया। इस हुजूम से डरकर पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रशासन ABVP को जितवाने के लिए प्रपंच रचने लगा। कहते हैं कि यूनिवर्सिटी के नए कुलपति का संघ परिवार से ताल्लुक है लिहाजा उनके ऊपर भी ABVP को जितवाने का दबाव काम कर रहा होगा। प्रशासन के सारे प्रपंच हालांकि फेल हो गए।
कट टु 6 सितंबर…
6 सितंबर को पंजाब यूनिवर्सिटी में सुबह 10 बजे वोट डलने शुरू हो गए थे। मतदान साढ़े 11 बजे तक चला और उसके बाद वोट काउंटिंग शुरू हुई। वोट काउंटिंग के पहले दौर से ही कनुप्रिया बढ़त बनाने लगीं, जिसके बाद सेंटर पर शहीद भगत सिंह की फोटो लहराने लगी। ढपली की थाप पर इंक़लाब ज़िंदाबाद और जय भीम लाल सलाम के नारे गूंजने शुरू हो गए। लगभग 8 बजे जीत की ऑफिशियल घोषणा हुई।
पंजाब यूनिवर्सिटी का इतिहास बदल चुका था। यूनिवर्सिटी को अपनी पहली महिला अध्यक्ष मिली। कनुप्रिया ने 2802 वोट हासिल कर ABVP के आशीष राणा (2083) को 719 वोटों के भारी अंतर से हराया। जीत की घोषणा के बाद लड़कियां स्टूडेंट सेन्टर की बिल्डिंग के ऊपरी छोर पर चढ़ गईं और नारे लगाने लगीं। कनुप्रिया के साथ उनके पिछले साल की SFS की कैंडीडेट हसनप्रीत भी थीं, जो कुछ ही वोट से चुनाव हारी थीं।जीत के बाद कनुप्रिया का कहना था, “ये जीत सिर्फ मेरे अकेले की जीत नहीं है, हम सबकी जीत है। इस जीत में हसनप्रीत और अमन कौर का बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि पहले उन्होंने ही पंजाब यूनिवर्सिटी की पुरुषप्रधान, धनबल और बाहुबल वाली राजनीति को चैलेंज किया था। उन्हीं को देखकर हर लड़की में हिम्मत आई है। ये हमारे रिप्रजेंटेशन की लड़ाई के साथ-साथ मुद्दों की लड़ाई भी थी, जिसमें हमने जीत हासिल की है।”
कनुप्रिया इस जीत के साथ ही पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली महिला अध्यक्ष हो गई हैं। इससे पहले सिर्फ लड़के ही अध्यक्ष बनते आए थे। उनकी इस जीत के लिए हसन प्रीत, अमन कौर और नवजोत कौर को भी सलाम करना बनता है जिन्होंने उनसे पहले पुरुषप्रधान छात्र राजनीति से लड़ने की हिम्मत की थी।
जीत के जश्न को थोड़ी दूर खड़े होकर पंजाब के मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर जतिंदर मोहर भी देख रहे थे। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी की राजनीति पर 2013 में सिकंदर फ़िल्म भी बनाई थी जो हूबहू यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति को चित्रित करती है। जीत के बाद उनके मुंह से निकला ही गया, “Well done Comrades!”
पंजाब यूनिवर्सिटी में कनुप्रिया की जीत के साथ उन सब औरतों के संघर्ष की गाथा भी ताजा हुई है, जो इस कैंपस ने नारा लगाया करती थीं:
हक़ किसे ने देने नहीं तेनू थालियां दे विच पा
जे आज़ादी चौहन्दी है तां आप मैदाने आ!
(हक़ किसी ने तुम्हें थालियों में डालकर नहीं देने हैं। अपनी आज़ादी चाहती हो तो खुद मैदान में आकर लड़ो)