तारिक और खालिद की गिरफ्तारी पर आरडी निमेष आयोग ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में यूपी एसटीएफ द्वारा की गई गिरफ्तारी को संदिग्ध करार देते हुए दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। इसके बाद हिरासत में खालिद की हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी लॉ एण्ड आर्डर बृजलाल जैसे बड़े अधिकारियों समेत आईबी पर हत्या का मुकदमा पंजीकृत हुआ था।
लखनऊ: कभी एक फिल्म आई थी ’एक रुका हुआ फैसला’, लेकिन आज जो मेरे सामने गुज़रा- बहस की तारीख पर आया एक लिखा हुआ एक फैसला।‘’ आतंकवाद के मामलों में बेगुनाहों के हक़ में मुकदमे लड़ने वाले लखनऊ के चर्चित अधिवक्ता मुहम्मद शुएब ने दो दिन पहले अचरज के साथ यह बात कही थी। आज वे संदीप पांडे, अरुंधति धुरु और पूर्व आइजी एसआर दारापुरी के साथ लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे हैं जहां लखनऊ कचहरी बम विस्फोट मामले में बीती 23 अगस्त को अदालत द्वारा दो अभियुक्तों को महज ‘दो मिनट’ में दोषी ठहराए जाने की पूरी कहानी बयां करेंगे।
वे खुद यह कहानी सुनाएं, इससे पहले तफ़सील से पूरे मामले को समझ लेना ज़रूरी है। यह मुकदमा 11 साल तक चला और इसका फैसला दो दिन पहले की तारीख पर महज दो मिनट में दे दिया गया। ऐसा न्यायपालिका के इतिहास में शायद ही कभी हुआ रहा हो।
मोहम्मद शोएब के मुताबिक 16 अगस्त, 2018 को जेल कोर्ट, लखनऊ में तारिक कासमी और मोहम्मद अख्तर का मुकदमा सुनवाई के लिए लगा था। अपनी बहस जारी रखते हुए अभियोजन पक्ष ने लिखित बहस और नजीर पेश करने के लिए समय मांगा था। न्यायालय ने 23 अगस्त, 2018 की तारीख नियत की थी। हर तारीख पर पीठासीन अधिकारी 11 से साढ़े 11 बजे तक अदालत में आ जाती थीं, लेकिन 23 अगस्त को वे लगभग 3 बजकर 35 मिनट पर जेल में स्थित अपने चैंबर में आईं जबकि अभियोजन पक्ष, दोनों अभियुक्त और खुद मो. शोएब पूरे दिन जेल कोर्ट में उनका इंतजार करते रहे। लगभग 4 बजे वे अपने विश्राम कक्ष से बाहर आईं और दो मिनट में फैसला सुनाकर विश्राम कक्ष में वापस चली गईं।
फैसले में अभियुक्तों के विरुद्ध दोष सिद्ध मानते हुए सजा पर बहस के लिए 27 अगस्त की तिथि नियत कर दी गई। पता रहे कि इस मुकदमे में लखनऊ जेल कोर्ट में गुरुवार के अतिरिक्त किसी और दिन की तिथि नहीं लगाई जाती थी। पीठासीन अधिकारी ने यह भी नहीं बताया कि वह बहस जेल कोर्ट में सुनेंगी या जिला न्यायालय परिसर में। हैरानी इस बात की है कि जो जज बहस पूरी होने से पहले मुल्जिमान को दोष सिद्ध मान सकता है वह सजा भी मनमाने तरीके से ही देगा। जो मुकदमा लगभग 11 साल से चल रहा है उस पर दो मिनट में सुनाए गए इस फैसले ने न्याय की धज्जियां उधेड़ दीं।
मो. शोएब कहते हैं कि उनके जैसा न्यायप्रिय व्यक्ति इस नतीजे पर पहुंचा है कि बहस कुछ भी की जाए लेकिन फैसला जज में मन मुताबिक ही आना है। अंधे के आगे रोकर अपनी दीद खोने से कोई फायदा नहीं है।
इस मामले में अप्रैल 2018 में बहस पूरी हो जाने के बाद तत्कालीन न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया गया था। मुकदमे के स्थानांतरण के कारण अभियुक्तगण की ओर से सत्र जज, लखनऊ के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके निर्णय हेतु मुकदमे का स्थानांतरण बहस सुन चुके जज के सामने करने का प्रार्थना पत्र दिया गया था जिस पर सत्र जज ने पूरे एक महीने की तारीख लगा दी और फिर अगली तारीख पर बगैर कुछ सुने दोबारा एक महीने के लिए उसे बढ़ा दिया। इसकी सुनवाई 10 अगस्त, 2018 को होनी थी। इसी दौरान मीडिया में खबरें आईं कि नाभा जेल जैसी कोई बड़ी वारदात ये करना चाहते थे और इसलिए इनकी जेलों का स्थानांतरण किया जाएगा जबकि अभियुक्तगण लगातार जेल में हो रहे उत्पीड़न की शिकायत कर रहे थे।
गौरतलब है कि 23 नवंबर 2007 को लखनऊ कचहरी में हुई वारदात के बाद तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद, सज्जादुर्ररहमान, अख्तर वानी, आफताब आलम अंसारी की गिरफ्तारी हुई थी। इसमें आफताब आलम अंसारी के खिलाफ साक्ष्य न मिलने पर विवेचना अधिकारी ने उन्हें 22 दिन में क्लीनचिट दे दिया था। वहीं सज्जादुर्ररहमान को जेल कोर्ट ने 14 अप्रैल, 2011 को बरी कर दिया था। तारिक और खालिद की गिरफ्तारी पर आरडी निमेष आयोग ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में यूपी एसटीएफ द्वारा की गई गिरफ्तारी को संदिग्ध करार देते हुए दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। इसके बाद हिरासत में खालिद की हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी लॉ एण्ड आर्डर बृजलाल जैसे बड़े अधिकारियों समेत आईबी पर हत्या का मुकदमा पंजीकृत हुआ था।
रिहाई मंच की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित