चंद्र प्रकाश झा
यह समझना भारी भूल होगी कि देश में चुनावों का दौर 17 वीं लोकसभा के निर्धारित चुनाव के साथ ही ख़त्म हो जाएगा। विभिन्न राज्यों की विधानसभा के ही नहीं , लोकसभा की भी कुछेक सीटों पर उपचुनाव लंबित है। ये उपचुनाव अगले आम चुनाव से पहले ही कराये जा सकते हैं। इनमें से , जम्मू कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट अर्से से लंबित है। अन्य रिक्तियां हाल की है। कर्नाटक में लोकसभा की मांड्या सीट हाल में रिक्त हुई है।
अनंतनाग सीट, 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से दिए इस्तीफे के कारण रिक्त है। वह अपने पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन से उत्पन्न परिस्थियों में, उनकी जगह 4 अप्रैल 2016 को उसी साझा सरकार की मुख्यमंत्री बनी थीं। वह देश में असम की सईदा अनवरा तैमूर के बाद दूसरी महिला मुख्यमंत्री हैं। महबूबा मुफ़्ती मौजूदा 16 वीं लोकसभा के लिए 2014 में और उसके पहले 14 वीं लोकसभा के लिए अनंतनाग सीट से ही निर्वाचित हुई थीं। उन्होंने 15 वीं लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। अनंतनाग, जम्मू कश्मीर की छह लोकसभा सीटों में शामिल है। निर्वाचन आयोग ने सुरक्षा कारणों से अनंतनाग में अभी तक उपचुनाव नहीं कराया है। नज़ीर तो यह है कि जिन सीटों पर नए चुनाव छह माह के बाद होने हैं , वहाँ उपचुनाव कराये जाते रहे है। हाल में उत्तर प्रदेश की कैराना समेत जिन चार लोकसभा सीटों पर उपचुनाव कराये गए हैं उनका कार्यकाल मौजूदा लोकसभा के साथ ही अगले बरस मई माह में ही समाप्त होना है। रिक्त सीटों पर उपचुनाव को न कराना, उन निर्वाचन क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व रोकना माना जाता रहा है।
सवाल तो यह भी है कि अनंतनाग में उपचुनाव नहीं कराने के बताये गए सुरक्षा कारणों के आधार क्या हैं ? क्या ये कारण न्यायिक समीक्षा के परे है? कौन उस बारे में अंतिम निर्णय लेगा ? क्या सुरक्षा कारणों से उपचुनाव , और नए चुनाव भी, लम्बे अर्से तक रोके जा सकते हैं ? चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में हम चुनाव कराने या न कराने के संवैधानिक पक्षों का विस्तार से उल्लेख कर चुके हैं। उन्हें दोहराने की तत्काल कोई दरकार नहीं है। उपचुनाव अलग बात है। सुरक्षा कारणों से उन्हें रोकना बिलकुल अलहदा बात है। ताज्जुब की बात है कि इन सुरक्षा कारणों और लोकसभा में अनंतनाग का प्रतिनिधित्व रुक जाने के बारे में सियासी ही नहीं मीडिया हल्कों में भी कोई ख़ास चर्चा नहीं होती।
खैर, हम दुसरे उपचुनावों के बारे में संक्षिप्त चर्चा कर लें तो बेहतर होगा। कर्नाटक के नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायक, सिदू न्यामागौड़ा की मई माह में कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वे 70 वर्ष के थे और हाल में जमखंडी विधानसभा सीट से चुने गए थे। वह 1991 में लोक सभा की बागलकोट सीट से चुने गए थे और पी.वी नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री भी रहे थे। इस सीट पर उपचुनाव देर -सबेर कराना ही होगा। क्योंकि राज्य विधान सभा का मौजूदा कार्यकाल पांच बरस बाद, 2023 तक है।
इस बीच कर्नाटक के ही जयानगर विधान सभा सीट पर नए सिरे से चुनाव कराये गए। वहाँ हाल के विधान सभा चुनाव के दौरान भाजपा विधायक एवं पार्टी प्रत्याशी बीएन विजयकुमार के चार मई को हुए निधन के कारण नए सिरे से चुनाव कराने के आदेश दिए गए थे। इस सीट पर जनता दल-सेकुलर ने अपना प्रत्याशी कांग्रेस के पक्ष में चुनाव मैदान से हटा लिया। ऐसा एक जून की इस घोषणा के तुरंत बाद किया गया कि अगला लोकसभा चुनाव, राज्य में नयी बनी साझा सरकार में शामिल जनता दल-सेकुलर और कांग्रेस साथ मिल कर लड़ेंगे।
जयानगर में कांग्रेस प्रत्याशी स्वाम्या रेड्डी पार्टी के दिग्गज नेता एवं पूर्व गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी की पुत्री है। श्री रेड्डी बेंगुलुरू की इस सीट से चार बार जीते थे और 12 मई के विधान सभा चुनाव में बेंगलूरु की ही एक और सीट से फिर जीत चुके हैं। भाजपा ने अपने दिवंगत विधायक के छोटे भाई बीएन प्रह्लाद को प्रत्याशी बनाया था। वोटिंग 11 जून को हुई। इसकी मतगणना के बाद परिणाम 13 जून को घोषित होगा। पहले यह लगता था कि जयानगर सीट के लिए नए सिरे से चुनाव, कर्नाटक विधान सभा की राजराजेश्वरी नगर के लिए नए सिरे से 28 मई को घोषित चुनाव के साथ ही होगा। मीडिया ने यही खबर दी। लेकिन जिस किसी भी कारण से ऐसा नहीं हुआ उसकी सुध मीडिया ने नहीं ली। सब कहते रहे कि 10 सीटों पर उपचुनाव हो रहे है। 31 मई को नौ विधान सभा सीटों के परिणाम निकले तो मीडिया में जयानगर की 10 वीं सीट जयानगर का परिणाम नहीं था। मीडिया विजिल के इस स्तम्भकार से भी यह चूक हुई। गौतलब है कि राजराजेश्वरी नगर में कांग्रेस के मुनि रत्ना ने भाजपा के मुनि राजू को परास्त किया वहाँ हाल के चुनाव में इस निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के एक कार्यकर्ता के आवास से बड़ी संख्या में वोटर कार्ड आदि की बरामदगी के बाद निर्वाचन आयोग ने नए सिरे से चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
उधर राज्य में लोकसभा की मांड्या सीट , जनता दल -सेकुलर के सीएस पुट्टाराजू के इस्तीफा से रिक्त हुई है जो उन्होंने हाल के विधानसभा चुनाव में निर्वाचित होने के बाद दिया। कर्नाटक में ही लोकसभा की दो अन्य सीटों से इस्तीफे तो भाजपा के दो सांसदों ने भी ‘आधिकारिक’ तौर पर दे दिए थे। लोकसभा सचिवालय ने उन दोनों सीटों की रिक्ति की त्वरित बुलेटिन भी जारी कर दी थी। हम उस लोकसभा बुलेटिन की फोटोकॉपी आज की चुनावी चर्चा में संलग्न कर रहे है। ताकि सनद रहे। ये इस्तीफे विधान सभा चुनाव में निर्वाचित होने के बाद और सदन की सदस्यता की शपथ लेने से पहले भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येड्डी ने शिमोगा तथा श्रीरामिलू ने बेलारी ( सुरक्षित ) लोकसभा सीट से दिए थे। लेकिन बाद में लोकसभा सचिवालय ने उनके इस्तीफे के लिए अपने संज्ञान से पलट कर उन्हें लोकसभा में भाजपा के सदस्य के रूप में ही दर्शा दिया। तत्काल स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों किया गया। श्री येदुरप्पा की जीती शिकारीपुरा विधान सभा सीट और श्रीरामिलू की जीती मोलाकलमुरू विधान सभा सीट पर समझी जा रही रिक्ति की स्थिति में वहाँ उपचुनाव के बारे में निर्वाचन आयोग से तत्काल कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
इस बीच अगले आम चुनाव की तैयारी के लिए केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की मुश्किलें देश भर में बढ़ती नज़र आ रही हैं। आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पहले ही संसद के बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार के विरुद्ध उस अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस देकर एनडीए से बाहर निकल चुकी है जिसपर कोई चर्चा नहीं की गई। अब शिवसेना ने भी दो टूक ऐलान कर दिया है कि वह अगला आम चुनाव अपने दम पर ही लड़ेगी। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधान सभा के भी पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। उनका अगला चुनाव , लोकसभा चुनाव के समय के करीब 2019 में ही निर्धारित है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में कोई एनडीए नहीं है। राज्य में शिवसेना -भाजपा की भगवा युति का प्रारंभ एनडीए के गठन के बहुत पहले हुआ था। वर्ष 2016 के पिछले विधान सभा चुनाव में यह युति टूट गई। दोनों पार्टियों ने चुनाव अपने -अपने दम पर लड़ा था। तब परिणामों की दृष्टि से भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। यह दीगर बात है कि विधान सभा चुनाव के बाद राज्य में गठबंधन सरकार बनाने के लिए शिव सेना ने भाजपा का समर्थन कर दिया।शिवसेना राज्य की नई देवेंद्र फड़णवीस सरकार में शामिल भी हो गई। वह मोदी सरकार में भी शामिल है। हाल के लोकसभा उपचुनाव में भी पालघर सीट पर शिवसेना और भाजपा की भिड़ंत हो गई थी। लेकिन चुनावी जीत भाजपा की ही हुई थी। बहरहाल शिवसेना के भाजपा -विरोधी महागठबंधन में शामिल होने की संभावना फिलहाल तो नज़र नहीं आती है।
बिहार में भी मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दल – यूनाइटेड ने अगले आम चुनाव के लिए अपने पैंतरे दिखाने शुरू कर दिए हैं। उसने कहा है कि वह राज्य में 25 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, इससे कम पर समझौता नहीं होगा। यह बयान पार्टी नेता श्याम रजक ने दिया है। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें है। इन्हीं सीटों में से भाजपा को अपने लिए और एनडीए के घटक दलों के बीच आपसी बँटवारा करना है। भाजपा ने लोकसभा के 2014 के चुनाव में बिहार में 22 सीटें जीतीं थीं। एनडीए में शामिल भाजपा के सहयोगी दलों में से केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की ‘ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ‘ ने 3 सीटें जीती थी। दोनों दल मोदी सरकार में शामिल है। लेकिन जनता दल-यूनाइटेड मोदी सरकार में शामिल नहीं है। उसने राज्य विधान सभा का 2015 में हुआ पिछ्ला चुनाव मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा के खिलाफ लड़ा था। लेकिन 2017 में राजद और कांग्रेस की जगह भाजपा को साथ लेकर साझा सरकार बना ली। विधानसभा में अभी भी राजद ही सबसे बड़ा दल है। लोकसभा के 2014 के चुनाव में जनता दल -यूनाइटेड , एनडीए में शामिल नहीं था और तब उसने सिर्फ दो सीटें जीती थी। तब उसने प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को एनडीए का दावेदार घोषित करने के विरोध में एनडीए से किनाराकसी कर ली थी।
बिहार में अगले आम चुनाव के लिए भाजपा -विरोधी गठबंधन में जनता दल यूनाइटेड को भी शामिल करने की संभावना के बारे में अटकलें लगाई जाती रहीं हैं। लेकिन राजद की बागडोर संभाले हुए पूर्व उपमुख्य मंत्री तेजस्वी यादव ने इन अटकलों को खारिज कर दिया है। तेजस्वी , लालू प्रसाद यादव के
छोटे पुत्र है। वह महागठबंधन में संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियों को भी शामिल करने के लिए बातचीत जारी रखे हुए है। अटकलें तो यह भी है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया कुमार की इस गठबंधन के तहत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में बेगूसराय सीट से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। कन्हैया ने हाल में भाकपा की पार्टी कांग्रेस में उसकी राष्ट्रीय परिषद् के लिए निर्वाचित होने के बाद कहा था कि उनके चुनाव लड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
बेगूसराय कन्हैया का गृह जिला है और इस क्षेत्र में अर्से से कम्युनिस्टों का असर रहा है। लेकिन बिहार में महागठबंधन की तस्वीर साफ होने में अभी और वक़्त लगेगा। देखना है कि इस महागठबंधन में कांग्रेस से लेकर सभी संसदीय कम्युनिस्ट पार्टिया कैसे समायेगी।
छपते छपते :
कर्नाटक की जयानगर विधान सभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ने पांच हज़ार मतों के अंतर से अपनी जीत दर्ज कर दी। आज (13 जून) को मतगणना के बाद अधिकृत परिणाम घोषित कर दिया गया। किसी भी विधायी सदन में पिता -पुत्री दोनों के एक साथ सदस्य होने का यह अभूतपूर्व अवसर तो नहीं, लेकिन लेकिन दुर्लभ मौक़ा जरूर है।
( मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)