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देश में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर किसी भी बयान को लाल कपड़ा समझकर सांड़ की तरह भड़कने वालों के लिए नई सूचना मुंबई से है। वह भी किसी नेता या देशद्रोही बुद्धीजीव की ओर से नहीं, हाईकोर्ट के जज की ओर से। तर्कवादी सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे हत्याकांड की सुनवाई करते हुए जस्टिस धर्माधिकारी और जस्टिस भारती डोगरे ने 19 अप्रैल को कहा कि देश में कोई भी लिबरल व्यक्ति या संस्थान सुरक्षित नहीं रह गया है।
हत्यारों को पकड़ने में सरकार की असफलता पर बेहद नाराज़गी जताते हुए जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा “इस तरह के हमले होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसे हमलों से कोई भी संस्था आगे नहीं बढ़ती, यहाँ तक कि न्यायपालिका भी।”
उन्होंने चिंता जताई कि भारत की छवि बलात्कार और अपराध वाले देश की बनती जा रही है। बेहद नाराज़गी भरे स्वर में जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा कि “आज देश का कोई व्यक्ति जैसे ही विदेश जाता है, उसे वहाँ सैकड़ों सवालों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि क्या भारत में उदारवादी, धर्मनिरपक्ष और प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति सुरक्षित नहीं हैं? इससे ऐसा लगता है कि जैसे अपराध और बलात्कार देश की छवि दर्शा रहे हैं। यदि ऐसी स्थिति रही तो दूसरे देश के लोग हमसे बात करना भी नहीं पसंद करेंगे।…ऐसी स्थिति बन गई है कि अंतरराष्ट्रीय संगठन और लोग हमारे साथ शैक्षणिक, सांस्कृतिक स्तर पर कतराते हैं। क्या हम एक कोकोन (सुरक्षा कवच) में रहना चाहते हैं?”
अगस्त 2013 में दाभोलकर की हत्या की गई थी,जबकि गोविंद पानसरे की हत्या 20 फरवरी 2015 को हुई थी। इसी वर्ष 30 अगस्त को प्रसिद्ध तर्कवादी बुद्धिजीवी एम.एस.कुलबर्गी की भी हत्या हुई थी। ये तीन क़त्ल देश के बौद्धिक जगत पर ख़ूनी हमले के प्रतीक बन चुके हैं। इन हत्याओं में सनातन संस्था का नाम आ चुका है।
बाम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल भी दाभोलकर और पानसरे की हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि दोनों को योजना बनाकर मारा गया था। जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा था कि रिपोर्ट देखकर लगता है कि कोई न कोई संगठन हत्यारों की मदद कर रहा था। हत्या करने वालों को आर्थिक मदद भी दी जा रही थी। उन्होंने एजेंसियों को सख़्त हिदायत दी थी कि दोषियो को हर हाल में पकडा जाना चाहिए।