कैसा वक्त आ गया है कि राज्य जिन्हें चरमपंथी और अलगाववादी ताकतों का समर्थक मानता रहा है, उन्हें अब दूसरे पाले से राज्य का एजेंट ठहराया जा रहा है। सांप-छछूंदर वाली इस वैचारिक गति को प्राप्त होने वाले लोगों में ताज़ा नाम है वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का, जो दि वायर नाम की वेबसाइट चलाते हैं और सरकार विरोधी अपनी पोज़ीशन के लिए बरसों से जाने जाते हैं।
सिद्धार्थ के पैरों तले ज़मीन खिसक गई होगी जब श्रीनगर में लहर नाम के एनजीओ द्वारा आयोजित एक सेमीनार में उनके ”उदार मानवतावादी” होने पर और कश्मीर के सवाल को सरकारी चश्मे से देखने पर सवाल उठा दिए गए।
दि कश्मीर कॉनन्ड्रम: स्टेक्स एंड स्टेकहोल्डर्स नाम के इस सेमीनार में वरदराजन ने जो भाषण दिया, उसमें वे फौज को लेकर थोड़ा नरम नज़र आए और उन्होंने कश्मीरियों से आह्वान किया कि वे मौत की तरफ जाने वाली राह को छोड़ें और कोई दूसरा रास्ता खोजें। उनके अभिभाषण पर एक कश्मीरी प्रोफेसर हमीदा नईम भड़क गईं। उन्होंने कहा, ”मुझे निराशा है कि एक उदार मानवातावादी कैसे कश्मीर पर सरकारी विमर्श कर सकता है। उदार मानवतावादियों और छद्म बुद्धिजीवियों की अब ऐसी आदत हो गई है कि वे राजकीय दायरे में विमर्श करते हैं। आखिर वे निष्पक्ष कैसे रह सकते हैं? कश्मीर में सत्य और न्याय की पैरोकारी करने के लिए अब वे अपना नैतिक साहस और स्वतंत्र विचार कहां से लाएंगे?”
उक्त आयोजन में कई पत्रकारों और अन्य लोगों ने हिस्सा लिया था। चर्चा की शुरुआत सिद्धार्थ वरदराजन ने यह कहते हुए की कि ”कश्मीर की समस्या” को संबोधित करने के लिए जिम्मेदार पक्षकारों में एक फौज भी है। इसके जवाब में हमीदा नईम ने उन्हें काटते हुए कहा कि फौज कोई पक्षकार नहीं है बल्कि उसने समय के साथ कश्मीर में अपनी जड़ जमाई है। उनका कहना था कि सच्चाई यह है कि सेना एकीकृत मुख्यालय के माध्यम से कश्मीर पर अब राज कर रही है जिसने यहां लोकतंत्र की उपेक्षा की है।
नईम ने ”पक्षकार” के इस्तेमाल पर भी आपत्ति की। उनका कहना था कि हम कोई बिजनेस का सौदा नहीं कर रहे और इस तरह के शब्द कश्मीर के आख्यान को और कमज़ोर करते हैं।
सिद्धार्थ वरदराजन ने आज़ादीपसंद तबके की आलोचना करते हुए कहा कि ये लोग कल्पनाशील नहीं है। उनका कहना था कि इन लोगों को भारत सरकार के वार्ताकार के साथ बात करनी चाहिए और अपनी मौजूदा रणनीति से बाज़ आना चाहिए जिससे सिर्फ मौतें होती हैं। कश्मीर में कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के समर्थक लोगों में सिद्धार्थ वरदराजन का नाम मज़बूती से आता रहा है, लेकिन पहली बार उन्हें दो कदम पीदे इस मसले पर हटते हुए देखा गया है।
नईम ने कहा, ”हम लोग बातचीत के खिलफ नहीं, लेकिन उसकी कुछ पूर्वशर्तें हैं, जैसे कैदियों की रिहाई।” उनका कहना था कि भारत के उदार मानवातावादियों और छद्म बुद्धिजीवियों की ओर से लगातार भारत व पाकिस्तान को एक पलड़े में तौलने के प्रयास हुए हैं। ”यह वास्तव में इसलिए किया जाता है ताकि भारत की अवस्थिति का लाभ उठाया जा सके।”
यह खबर कश्मीर रीडर नाम की वेबसाइट पर 5 जनवरी को छपी एक विस्तृत खबर से साभार प्रकाशित है।