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जनसंचार विभाग के प्रमुख और छात्र कल्याण डीन प्रोफेसर अनिल राय अंकित हैं ABVP विदर्भ प्रान्त के उपाध्यक्ष
वाईस चांसलर गिरीश्वर मिश्र करते हैं परिषद के कार्यक्रमों की अध्यक्षता
आइसा जैसे संगठनों को सभागार मिलना भी हुआ मुहाल
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र अब यूनिवर्सिटी या शिक्षण संस्थान की राह से उतर कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राह पर चल पड़ा है। पिछले लगभग चार सालों से विश्वविद्याय के कुलपति पद पर गिरीश्वर मिश्र आसीन हैं। इसके पहले विश्वविद्यालय के चर्चित कुलपति विभूति नारायण राय रह चुके हैं। उनके जाने के बाद वर्धा यूनिवर्सिटी को जिस तरह से संघ की शाखा के रूप में तब्दील करने की कवायद चालू है वह अप्रत्याशित है।
यूनिवर्सिटी जहाँ धर्मनिरपेक्ष संस्थान और सरकार से अलग रहकर चलने वाली संस्था होती है, वहीं वर्धा यूनिवर्सिटी के कुलपति साहब और तमाम प्रोफेसर एक समुदाय विशेष और पार्टी के विचारों को आगे लेकर संघ की राह पर चल पड़े हैं। आए दिन संघ से जुड़े हुए कार्यक्रम विश्वविद्याय परिसर में कराए जाते रहते हैं जिसमें मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए लोग या पदाधिकारी होते हैं और उस कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के किसी प्रोफेसर द्वारा किया जाता है जबकि उसकी अध्यक्षता कुलपति द्वारा की जाती है। ऐसे प्रोफेसरों में प्रमुखता से एक नाम लिया जाता है जिनका नाम अनिल अंकित राय है जो विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के HOD (HEAD OF DEPARTMENT) होने के साथ-साथ महाराष्ट्र विदर्भ प्रान्त के एबीवीपी उपाध्यक्ष भी हैं।
प्रोफेसर अनिल राय अंकित को बनारस से विभूति नारायण राय लेकर यहाँ आये थे. अनिल राय पहले भी चोरी की लिखी किताब के चक्कर में विवादों में रह चुके हैं और पूर्व व वर्त्तमान छात्रों के बीच वे चोर गुरु के नाम से लोकप्रिय हैं.
इतना ही नहीं, अधिक गुणी व्यक्तित्व होने के कारण अनिल अंकित राय को कुलपति साहब ने DSW (DEAN STUDENT WELFARE) भी बना दिया है। अनिल अंकित राय विश्वविद्यालय के अपने भव्य ऑफिस में हर सप्ताह एबीवीपी की कार्यकारिणी मीटिंग भी करते हुए मिल जाते हैं। क्या विश्वविद्यालय के कुलपति आफिस, प्रशासनिक भवन और प्रोफेसर्स के केबिन में जितना अधिकार विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और अधिकारियों का है उतना ही राष्ट्रीय स्वयं सेवकसंघ का भी है? अगर नहीं तो फिर आज तक लगातार हो रहे असंवैधानिक तरीके से मीटिंग और शिक्षकों की भागीदारी पर कुलपति ने कोई क़ानूनी कार्यवाई क्यों नहीं की? क्या इसका मतलब यह नहीं मान लेना चाहिए कि मिली-जुली सरकार चल रही है?
यह सब इतिहास ऐसे ही अचानक नहीं लिखा जाने लगा है। घटना कुछ यूँ है-
वर्धा यूनिवर्सिटी में कुल चार छोटे-बड़े छात्र संगठन हैं जिसमें विवाद AISA (ALL INDIA STUDENT ASSOCIATION) के कार्यक्रम को लेकर खड़ा हुआ है। आइसा के पदाधिकारी अपने कार्यक्रम “वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का बदलता परिदृश्य” ग़ालिब सभागार में कराने की अनुमति लेने के लिए एक सप्ताह पहले कुलसचिव के पास गए। कुलसचिव ने कहा कि अगर आपको गालिब सभागार लेना है तो कुलपति के पास जाना होगा। जब छात्र और आइसा पदाधिकारी कुलपति महोदय के पास गए तो कुलपति महोदय ने तमाम तरह के अजीब और छिछले सवाल करते हुए जैसे- ‘किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को बुलाना था’ आदि। इसके बाद आवेदन में उन्होंने डीन से परमिशन लेने की बात जोड़ते हुए आवेदन डीन को फारवर्ड कर दिया।
डीन अनिल अंकित राय द्वारा कार्यक्रम के बारे में पूछने पर छात्रों ने बताया कि JNU अध्यक्ष गीता कुमारी वक्ता के रूप में आ रही हैं। इस पर राय साहब ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “JNU में तो आतंकवादी पढ़ते हैं, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी आतंकवाद का गढ़ है”। आइसा के पदाधिकारियो में से एक पलाश किशन ने कहा ‘सर सबसे अधिक पढ़े लिखे छात्र वहीँ से निकलते हैं’ तो राय साहब ने कहा कि “बहुत पढ़े-लिखे लोग आतंकवादी होते हैं”। इसके बाद राय साहब ने कहा कि कार्यक्रम की अनुमति देने के लिए कुलपति साहब से बात करके बताएँगे।
राय साहब का ऐसा बोलना कहाँ तक न्यायसंगत है कहाँ तक नहीं, इस पर बात करने से पहले हमें ये देख लेना चाहिए ऐसा वे क्यों कह रहे हैं? ऐसा वे इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वर्धा यूनिवर्सिटी के डीन राय साहब विदर्भ प्रांत के एबीवीपी उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ विश्वविद्यायल के एबीवीपी संगठन के सर्वेसर्वा और मार्गदर्शक भी हैं। राय साहब का ऐसा कहना किसी को नया, बहुत अलग और बहुत असंवैधानिक नहीं लगना चाहिए क्योंकि भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इनकी छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, 9 फरवरी के JNU प्रकरण के बाद संविधान और न्यायालय की धज्जियां उड़ाते हुए खुल्लम-खुल्ल्ला JNU को आतंकियों के गढ़ के रूप में प्रचारित कर रही हैं।
5 से 6 दिन छात्रों को ऑफिस-ऑफिस का खेल खिलाने के बाद कार्यक्रम के एक दिन पहले कुलपति द्वारा आइसा के पदाधिकारियों को बुलाकर कोई भी सभागार देने से इनकार कर दिया गया। इस सम्बन्ध में छात्र दुबारा कुलपति के पास जाते हैं, तो कुलपति महोदय ने कहा “यदि हम अपनी responsibility (जिम्मेदारी) पर कार्यक्रम के लिए सभागार दे देते हैं तो डीन (DSW) नाराज हो जाएंगे” तो इसका मतलब यह हुआ कि वर्धा यूनिवर्सिटी के कुलपति गिरीश्वर मिश्र एबीवीपी के उपाध्यक्ष और विश्वविद्यालय के डीन प्रो. अनिल अंकित राय से डरते हैं?
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क्या वर्धा यूनिवर्सिटी के कुलपति गिरीश्वर मिश्र जी विश्वविद्यालय के डीन अनिल अंकित राय द्वरा JNU के छात्रों को आतंकी कहने की बात से इत्तेफाक रखते हैं? क्या कुलपति महोदय इस बात से भी इत्तेफाक रखते हैं कि विश्वविद्यालय का कोई व्यक्ति प्रोफेसर रहते हुए किसी और संगठन का पदाधिकारी भी रहे? क्या कुलपति महोदय इस बात से भी सहमत हैं कि यूनिवर्सिटी के ऑफिस का इस्तेमाल किसी संगठन की मीटिंग के लिये किया जाए?
अगर नहीं तो क्या कुलपति महोदय डीन अनिल अंकित राय पर क़ानूनी कार्यवाही कर प्रोफेसर के पद से बर्खास्त करेंगे?
छात्रों की मांग है- यदि कुलपति गिरीश्वर मिश्र इस मामले पर चुप्पी साधे रहते हैं और विश्वविद्यालय परिसर में किसी विशेष समुदाय और धर्म के विचार को बढ़ावा देते रहते हैं तो MHRD (MINISTRY OF HUMAN RESOURCE DEVELOPMENT) को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और उचित कार्यवाही करते हुए प्रो. अनिल अंकित राय को जल्द से जल्द DSW पद से बर्खास्त करना चाहिए।
छात्रों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति