तो दोस्तों, सुना कि परिधान मंतरी ने लालकिले से पिचासी मिनट बेरोकटोक बोला, और बिना टेलीप्राॅम्पटर के बोला। लीजिए दोस्त लोग आलोचना करने से बाज नहीं आ रहे, और दूसरी तरफ परिधान मंतरी उपलब्धि पे उपलब्धि हासिल करते जा रहे हैं। अब लीजिए, आप को याद होगा कि एक बार टेलीप्राॅम्पटर के बंद हो जाने पर परिधान मंतरी थोड़ा आंय-बांय-शांय बोले थे, और जनता ने उस वीडियो को वायरल कर दिया था। अब उस वीडियो का जवाब परिधान मंत्री ने पिचासी मिनट, याद रखिएगा एक घंटे में साठ मिनट होते हैं, यानी करीबन डेढ़ घंटा परिधान मंतरी लाल किले पर चढ़ कर बोले हैं। उससे भी बड़ी उपलब्धि मेरे ख्याल में ये होनी चाहिए कि इस पूरे बोलबचन में परिधान मंतरी ने कोई बात नहीं की, बस बोले….जी भर के बोले….।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर सबसे अच्छा ये लगा कि परिधान मंतरी ने जो बिना टेलीप्राॅम्पटर के इतनी देर लगातार बोल लिया, इसे भक्त लोग ले उड़े और फैला दिया। आई टी की जुबान में वायरल कर दिया। एक दो ट्वीट तो मैने भी देखे, जबकि मैं टिव्टर पर भी नहीं हूं। बस #indianpmspeechwithoutteleprompter, #modiwithoutteleprompter, #modi85minnonstop जैसे हैशटैग नहीं चले, जिसका हमें दुख है। इन भक्तों के गर्व का कारण बाकी पूरे देश की जनता के गर्व का कारण होना चाहिए था। 137 करोड़ के देश में एक व्यक्ति पिचासी मिनट तक लालकिले पर खड़ा होकर बोल दिया, ये क्या कोई कम बात है। नेहरू ने भी कभी लालकिले पर खड़े होकर पिचासी मिनट नहीं बोला होगा, और ये इस देश में 2014 के बाद ”पहली बार” होने वाले कामों की सूची में, उपलब्धियों की सूची में एक और अदद जुड़ने जैसा है। बल्कि मेरा तो ये कहना है कि बिना टेलीप्राॅम्पटर के पिचासी मिनट बोलने वाले परिधान मंतरी के नाम पर जश्न मनाया जाना चाहिए, इसके लिए एक अलग उत्सव या महोत्सव या ऐसा ही कुछ होना चाहिए। गरीबों में कंबल और मिठाई बांटी जानी चाहिए, यू पी में घी के दिए जलाए जाने चाहिए ”यू पी इसके लिए मशहूर हो चुका है” और भी बाकी वो सब काम किए जाने चाहिए जो ऐसे अवसर के लिए अनुकूल और उपयुक्त होते हैं। आखिर एक परिधान मंतरी, लाल किले की दीवार पर खड़ा होकर, बिना टेलीप्राॅम्पटर के, पिचासी मिनट लगातार बोला है। कोई खेल थोड़े ही है।
आज़ादी के 75वें बरस पर देश का परिधान मंतरी कुछ बोल रहा हो तो सुनना चाहिए, हमने नहीं सुना, हम नालायक हैं। आज पढ़ा कि परिधान मंतरी ने कहा कि इस नारी शक्ति इस देश के विकास की कुंजी है, और देश के एक दूसरे हिस्से में, नारी शक्ति के बलात्कार के ग्यारह अपराधियों को जेल में अच्छे आचरण व अन्य वजहों से छोड़ दिया गया। हो गई नारी शक्ति…..हो गया विकास। जेल से छूटे इन लोगों पर आरोप था, जिसकी ये सजा काट रहे थे कि उन्होने एक गर्भवती महिला का सामूहिक बलात्कार किया, और उसकी एक छोटी बेटी की हत्या कर दी। हम जेल में अच्छे आचरण के लिए इन्हे और गुजरात सरकार को बधाई देते हैं, हमें उम्मीद है कि जेल में बंद अन्य लोगों के अच्छे आचरण पर भी सरकार ध्यान देगी और उन्हें भी जल्दी ही रिहा करने का जुगाड़ लगाया जाएगा।
पर बात परिधान मंतरी के पिचासी मिनट बोलने की हो रही है। मित्रों का कहना है कि परिधान मंतरी ने इन पूरे पिचासी मिनटों का उपयोग, बोलने में ही किया, और उन्होने कुछ कहा नहीं। हमारे परिधान मंतरी इस खेल में माहिर हैं। वो बोलते बहुत हैं, कहते कुछ नहीं हैं। हालांकि इसमें परेशानी भी है, जब – जब उन्होने कुछ कहना चाहा, दुनिया भर में उपहास के पात्र बन गए। इसलिए उन्होने ये शैली अपना ली है, अब वो बोलते हैं, कहते कुछ नहीं हैं। बोलने और कहने का ये सूक्ष्मतर अंतर वो लोग बहुत अच्छे से समझ सकते हैं, जो नित सुबह या शाम को बाबा जी का परवचन सुनने जाते हैं। तो क्या हम ये मान लें कि इस बार आजादी के उत्सव में लाल किले से परिधान मंतरी ने परवचन सुनाया? ये सवाल है जनाब, क्योंकि मैं ने तो सुना नहीं। लेकिन अखबार में पढ़ा….”माफ कीजिए हंसी आ गई थी…” कि परिधान मंतरी ने लाल किले की प्राचीर से कहा कि उन्हें बड़ा दुख होता है कि आजकल लोग रोज़मर्रा की भाषा और व्यवहार में शालीन नहीं रह गए हैं। परिधान मंतरी ने सही कहा, और अगर वो ये भी जोड़ देते कि, भई राजनैतिक सभाओं में ”दीदी ओ दीदी” जैसा नारा नहीं लगाना चाहिए, किसी संसद सदस्य की तुलना शूर्पणखा से नहीं करनी चाहिए, किसी को पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड नहीं बोलना चाहिए…. तो तस्वीर थोड़ी ज्यादा स्पष्ट हो जाती।
खैर जनाब, पिछले हफ्ते डिलाइट सिनेमा के पीछे कल्लू निहारी वाले की दुकान पर निहारी बंधवाते ग़ालिब मिले थे, अरे वही चचा ग़ालिब….उनसे जिक्र किया हमने, आजादी के अमृत महोत्सव का, तो उन्होने एक उम्दा शेर कहा, आपकी नज़र है….
काबे क्यों जाना चाहते हो भैय्या
शर्म के लिए यहीं क्या जगह कम है
ग़ालिब का शेर है, वही शेर जो उन्होंने अपनी मौत के बात लिखा था….