भारतीय मूल के अमेरिकिन्स और अमेरिकी सिविल अधिकार संगठनों के गठबंधन – कोएलिशन टू स्टॉप जीनोसाइड इन इंडिया के कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी संख्या में अप्रवासी अमेरिकी भारतीयों ने न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर पर बाबरी मस्जिद ढहाने और उसके स्थान पर राम मंदिर के शिला पूजन का जश्न मनाए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। इस जश्न मनाने के कैंपेन का आयोजन, हिंदू राष्ट्रवादियों के एक संगठन – अमेरिकन इंडियन पब्लिक अफेयर्स कमिटी (AIPAC) की ओर से किया गया था। इस विरोध प्रदर्शन में लोग बड़ी संख्या में हाथों में प्लेकार्ड्स, बैनर, पोस्टर लेकर नारों के साथ टाइम्स स्क्वायर पर इकट्ठा ही नहीं हुए, बल्कि मोबाइल वैन भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही, जिस पर सांप्रदायिकता विरोधी नारे लिखे हुए थे।
इस प्रदर्शन में एकत्रित अमेरिकी भारतीयों के साथ अमेरिकी मूल के लोग भी भारत की केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा विरोधी नारे लगाते हुए, बाबरी गिराने और भारत में बढ़ती सांप्रदायिकता को लेकर चिंतित थे। मीडिया विजिल के खास लाइव में प्रदर्शनकारियों ने साफ कहा कि वे राम, हिंदू धर्म या किसी मंदिर के ख़िलाफ़ नहीं है। लेकिन इन तीनों के ही नाम पर, देश में नफ़रत, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यकों पर हिंसा के ज़रिए भारतीय लोकतंत्र और संविधान को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ इकट्ठा हुए हैं। प्रदर्शनकारियों में सभी धर्मों और अलग-अलग देशों के लोग भी शामिल थे।
इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के महासचिव, जवाद मोहम्मद ने कहा, “इसमें कोई शक़ ही नहीं है कि राम हिंदू धर्म के सम्मानित महापुरुष हैं और उनका सम्मान करना सभी धर्मों के लोगों की बहुलतावाद के सिद्धांत के प्रति निष्ठा का कर्तव्य भी है। लेकिन लोगों के श्रीराम के प्रति सम्मान को जिस तरह से नफ़रत की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया गया है – उस राजनैतिक फसल का फल आज केवल भारत ही नहीं, अमेरिका में भी बढ़ती सांप्रदायिकता के तौर पर दिख रहा है।”
हिंदूज़ फॉर ह्यूमन राइट्स संस्था की अध्यक्ष सुनीता विश्वनाथ ने कहा, “हम ने पढ़ा था कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। लेकिन हमारे पवित्र ग्रंथों में कहीं भी ये नहीं बताया गया कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में कहां हुआ था। सच ये है कि राम मंदिर का मुद्दा, केवल हिंदुत्ववादी ताक़तों का – भारतीय समाज का ध्रुवीकरण करने का अभियान था, जिसका नतीजा अकथनीय मानवीय त्रासदी के तौर पर हुआ – जो आज तक जारी है। यह एक ख़तरनाक विचारधारा है, जिसमें मानव जीवन के लिए कोई सम्मान नहीं है, न ही पूजा स्थलों के लिए कोई सम्मान और ये भारत में किए गए कुकर्मों पर न्यूयॉर्क शहर के बीचों-बीच गर्व का इज़हार कर रही है – जो कि हम अमेरिकियों की विविधता और समावेशी पहचान का प्रतीक है।”
इस विरोध प्रदर्शन में अमेरीकी मूल के और न्यूयॉर्क शहर के कई अहम लोग भी शामिल हुए। न्यूयॉर्क सिटी काउंसिल के सदस्य डेनियल ड्रोम ने कहा, “यह दुःखद है कि भारत और अमेरिका, दोनों ही देशों में धुर-दक्षिणपंथी ताक़तें, मुस्लिमों की छवि खराब करने में लगी हैं। मैं किसी भी व्यक्ति या समुदाय के ऊपर होने वाले हमलों की निंदा करता हूं और मैं अपने ज़िले और भारत के सभी मुस्लिम भाई-बहनों के साथ खड़ा हूं क्योंकि वे अपनी गरिमा और मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। मैं इस सांस्कृतिक आयोजन की आड़ में किए जाने वाले प्रोपेगेंडा अभियान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले सभी हिंदुओं और बाकी अमेरिकियों के प्रति आभार प्रकट करता हूं।”
एक और न्यूयॉर्क सिटी काउंसिल मेंबर ब्रेड लैंडर ने कहा, “इस्लामोफ़ोबिया के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है, चाहें वह हमारे देश में हो या फिर हमारे अपने समुदाय में। मैं एक प्रगतिशील यहूदी के तौर पर न्यूयॉर्क में अपने पड़ोसियों से लेकर भारत में कश्मीर तक मुस्लिमों के साथ खड़ा हूं – जो इस्लामोफ़ोबिया, नफ़रत और हिंसा झेल रहे हैं।”
प्रदर्शन में शामिल आंबेडकर किंग स्टडी सर्किल के एस कार्तिकेयन ने कहा, “राजनैतिक हिंदूवाद धार्मिक मामला नहीं है, ये वर्ग विशेष का विषय है और अंतिम विजय तब तक संभव नहीं है – जब तक किसान, मज़दूर और सामाजिक तौर पर दमित वर्ग में एकता न हो। आज के प्रदर्शन में अलग-अलग तबके, हिंदुत्व के प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ साथ आए हैं।”
कोएलिशन टू स्टॉप जीनोसाइड इन इंडिया में करीब एक दर्जन संगठन साथ आए हैं जिनमें इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, द काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशन्स, इस्लामिक सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका, कोएलिशन अगेन्स्ट फॉसिज़्म इन इंडिया, हिंदूज़ फॉर ह्यूमन राइट्स, बॉस्टन कोएलिशन, ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर माइनॉरिटीज़ इन इंडिया, साउथ एशिया सॉलिडेरिटी इनिशिएटिव और आंबेडकर किंग्स स्टडी सर्किल समेत और समूह शामिल थे।
हमारे अमेरिकी संवाददाता द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर आधारित