दलित उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश ने राष्ट्रीय औसत को पीछे छोड़ा, NCRB की रिपोर्ट

Representative Image from Gujarat, PTI

बीते वर्ष राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया- 2018’ लगभग एक वर्ष के विलम्ब से जारी की गयी है, जिसमें अन्य अपराधों के साथ-साथ अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अपराध एवं उत्पीड़न के आंकड़े भी जारी किये गए हैं. इन आंकड़ों में जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश में इन वर्गों के विरुद्ध अपराध/उत्पीड़न के मामलों में पहले की भांति निरंतर बढ़ोतरी (2016 में 10,426, 2017 में 11,444 तथा 2018 में 11,924) दिखाई दे रही है, वहीं दूसरी तरफ दलितों पर अपराध की दर (अपराध प्रति एक लाख जनसंख्या) राष्ट्रीय दर से कहीं अधिक पायी गयी है.

यह राष्ट्रीय दर 21.3% से कहीं अधिक 28.8% है. 2018 में उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध देश में घटित कुल अपराध का 27.9 प्रतिशत है. यह दर राष्ट्रीय आबादी में दलितों के 21.1% से भी अधिक है. इसके विपरीत योगी सरकार प्रदेश में अपराध कम होने का दावा करती है जबकि दलितों के विरुद्ध अपराध की दर इसको झुठलाती दिखायी देती है.

Crime in India 2018 - Volume 1

उपरोक्त स्थिति वर्ष 2018 में दलितों के विरुद्ध घटित अपराधवार निम्न विवेचन से अधिक स्पष्ट हो जाती है:-

1. एससी/एसटी एक्ट आइपीसी सहित अपराध – उत्तर प्रदेश की यह दर 22.6% है जबकि राष्ट्रीय दर केवल 19.0% है. उत्तर प्रदेश में घटित अपराध 9434, राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 40077 का 23.5% है, जोकि राष्ट्रीय दर से काफी अधिक है.

2. हत्या – उत्तर प्रदेश की यह दर 0.6% है जबकि राष्ट्रीय अपराध दर 0.4% है. राष्ट्रीय स्तर पर 821 मामलों में से 239 अकेले उत्तर प्रदेश में हुए जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध का 29.11% है. यह चिंताजनक स्थिति है.

3. गंभीर चोट – उत्तर प्रदेश की यह दर राष्ट्रीय दर 0.6 की अपेक्षा 0.7 है. उत्तर प्रदेश में घटित अपराध 285 राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 1283 का 22.05 प्रतिशत है जोकि चिंता का विषय है.

4. दलित महिलाओं का व्यवहरण- इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.5 है जबकि उत्तर प्रदेश के लिए यह 1.3 है जोकि बहुत अधिक है. उत्तर प्रदेश घटित अपराध 557 राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 944 का 59% है जो दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश में दलित महिलाएं कितनी असुरक्षित हैं.

5. लज्जा भंग के इरादे से दलित महिलाओं तथा बच्चियों पर हमला – उत्तर प्रदेश की यह दर 1.7 है, जबकि राष्ट्रीय दर 1.5 है. उत्तर प्रदेश में घटित अपराध 711 राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 3133 का 22.69 % है, जोकि दलित महिलाओं की असुरक्षा का प्रतीक है.

6. वयस्क दलित महिलाओं पर लज्जा भंग के इरादे से हमला – उत्तर प्रदेश की यह दर 1.6 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 1.4 है. राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध 2759 के विपरीत अकेले उत्तर प्रदेश में 643 मामले हुए जोकि इसका 23.30% है. यह आंकड़ा भी उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं की असुरक्षा का द्योतक है.

7. अवयस्क दलित महिलाओं का अपहरण – उत्तर प्रदेश की यह दर 1.3 है जबकि राष्ट्रीय दर केवल 0.5 है. यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार के कुल 944 अपराधों में अकेले उत्तर प्रदेश में 557 अपराध घटित हुए जो कुल अपराध का 59% है जोकि उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं की असुरक्षा को दर्शाता है.

8. दलित महिलाओं का अपहरण – उत्तर प्रदेश की यह दर 0.4 है जबकि राष्ट्रीय दर केवल 0.1 है. उत्तर प्रदेश में घटित अपराध 158, राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 303 का 52.14% है जोकि चिंता का विषय है.

9. हत्या के इरादे से दलित महिलाओं का व्यपहरण – इस शीर्षक के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल 13 अपराधों में से 12 अकेले उत्तर प्रदेश में ही घटित हुए जोकि शोचनीय है.

10. विवाह के लिए मजबूर करने के इरादे से दलित महिलाओं का व्यपहरण – उत्तर प्रदेश की यह दर 0.9 है जबकि राष्ट्रीय दर केवल 0.2 है. यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल घटित 494 अपराधों में से अकेले उत्तर प्रदेश में 381 अपराध हुए जो दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश में दलित महिलाएं कितनी असुरक्षित हैं.

11. व्यस्क दलित महिलाओं के साथ बलात्कार – उत्तर प्रदेश की यह दर 1.1 है जबकि राष्ट्रीय दर 1.0 है. उत्तर प्रदेश में घटित 438 अपराध राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध 2086 का 21% है. वैसे उत्तर प्रदेश में सामान्य जाति की महिलाओं के विरुद्ध भी बलात्कार का अपराध काफी बढ़ा है.

12. बलात्कार का प्रयास – इस शार्षक के अंतर्गत पूरे देश में हुए 132 अपराधों में से 48 केवल उत्तर प्रदेश में ही घटित हुए जो कुल अपराध का 36% है. यह भी दलित महिलाओं की असुरक्षा का ही प्रतीक है.

13. दलितों के विरुद्ध दंगा – उत्तर प्रदेश की यह दर 1.2 है जबकि राष्ट्रीय दर केवल 0.7 है. उत्तर प्रदेश में ऐसे घटित कुल अपराध 509 राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध 1569 का 32% है. यह भी दलितों की असुरक्षा का ही द्योतक है.

14. दलितों के विरुद्ध अपराधिक अभिरोध – उत्तर प्रदेश की यह दर 2.5 है जबकि इसकी अपेक्षा राष्ट्रीय दर केवल 1.6 है. यह विचारणीय है कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल घटित अपराध 3223 में से अकेले उत्तर प्रदेश में 1037 अपराध थे जोकि कुल अपराध का 32% है. यह दलितों की असुरक्षित स्थिति का प्रतीक है.

15. अन्य आइपीसी के अपराध – उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध आईपीसी के अन्य अपराध की दर 9.6 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर केवल 5.3 है. यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध 10,835 में से अकेले उत्तर प्रदेश में 3986 अपराध घटित हुए जोकि कुल अपराध का 37% है. यह भी उत्तर प्रदेश में दलितों की दयनीय स्थिति का ही प्रतीक है.

16. एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत उत्पीड़न का अपराध – उत्तर प्रदेश में इन अपराधों की दर 5.7 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर केवल 2.1 है. यह शोचनीय है कि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराधों 4322 में से अकेले उत्तर प्रदेश में 2399 अपराध घटित हुए जोकि कुल अपराध का 56% है अर्थात देश के कुल अपराध के आधे से अधिक.

17. इरादतन अपमान तथा अपमान के इरादे से अवरोध – उत्तर प्रदेश में यह दर 2.8 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर केवल 1.1 है. यह उल्लेखनीय है कि उत्तर में घटित 1184 अपराध राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध 2291 का 52% है जोकि चिंता का विषय है.

18. एससी/एसटी एक्ट (आइपीसी सहित अथवा उसके बिना उत्पीड़न का अपराध –उत्तर प्रदेश में इस शीर्षक के अंतर्गत घटित अपराध की दर 28.3 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर केवल 21.1 है. इस प्रकार उत्तर प्रदेश में घटित अपराध 11833 राष्ट्रीय स्तर पर घटित अपराध 44399 का 27% है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न के अपराध की दर काफी ऊँची है.

19. दलितों के विरुद्ध अपराध में न्यायालय में सजा होने की दर – वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध में न्यायालय में सजा होने की दर 55% थी जोकि यद्यपि अन्य राज्यों की अपेक्षा ऊँची है पर फिर भी काफी कम है. इस प्रकार उत्तर प्रदेश में दलितों के 45% मामले अदालत में छूट जा रहे हैं जोकि चिंता का विषय है.

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में दलितों के विरुद्ध घटित अपराध जैसे हत्या, अत्याचार, गंभीर चोट, दंगा आदि के अपराध राष्ट्रीय अपराध की दर से काफी अधिक घटित हुए हैं. दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे लज्जा भंग, शील भंग, बलातकार तथा अपहरण आदि राष्ट्रीय स्तर पर इस वर्ग के विरुद्ध घटित अपराध से कहीं अधिक हैं. उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध में न्यायालय में सजा होने की दर भी काफी कम है. अतः यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का अपराध कम होने का दावा ख़ास करके दलितों के सन्दर्भ में काफी खोखला है और दलित/दलित महिलाएं बिलकुल सुरक्षित नहीं हैं.

दरअसल उत्तर प्रदेश में जब से योगी सरकार बनी है तबसे सरकार द्वारा संरक्षण मिलने के कारण अपराधियों और सामंती ताकतों का मनोबल बेहद बढ़ा हुआ है. इस सरकार में पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या करने वालों और बलात्कार के आरोपी चिन्मयानन्द जैसे लोगों की जेल से रिहाई पर स्वागत किया जाता है. हत्यारोपी भाजपा विधायक की गिरफ्तारी भारी जनदबाव के बाद ही होती है. दिनदहाड़े लखनऊ राजधानी में डकैती होती है. कुल मिला कर सरकार का इकबाल ख़त्म हो गया प्रतीत होता है. कहीं भी कानून का राज नहीं दीखता. सरकार खुद आम नागरिकों के खिलाफ युद्ध में उतरी हुई है.

दलितों पर अत्याचार बढ़ने का एक कारण यह भी है कि दलितों की रहनुमाई करने का दावा वाली मायावती सीबीआई के डर से और अपनी भ्रष्ट राजनीति के कारण न सिर्फ इस सरकार के हमलों के खिलाफ चुप है बल्कि उसने तो अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी तरह के धरना, प्रदर्शन या आन्दोलन करने से रोक रखा है जैसा कि गत वर्ष सोनभद्र में सामंतों द्वारा 11 आदिवासियों की हत्या वाली घटना के समय सामने आया है. इसीलिए दलितों समेत आम नागरिकों की ज़िन्दगी, सम्मान और सुरक्षा के लिए हमने “लोकतंत्र बचाओ अभियान” चलाया है ताकि इस सरकार और इसके संरक्षण में पल रही सामंती ताकतों के हर हमले का प्रतिवाद हो सके और सुरक्षित उत्तर प्रदेश का निर्माण हो. वर्तमान परिस्थितियों में बाबासाहेब का “शिक्षित करो, संघर्ष करो और संगठित करो” का नारा और भी प्रासंगिक हो जाता है.


एसआर दारापुरी पूर्व IPS और लोकतंत्र बचाओ अभियान के अध्यक्ष हैं

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