सुप्रीम कोर्ट: चार्जशीट दाख़िल करते समय गिरफ़्तारी हमेशा ज़रूरी नहीं!

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि चार्जशीट दाखिल करते समय हर एक आरोपी को गिरफ्तार करना आवश्यक नही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 170 चार्जशीट दाखिल करते समय प्रत्येक आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए प्रभारी अधिकारी पर दायित्व नहीं डालती है।

अदालत ने कहा कि चार्जशीट को रिकॉर्ड में लेने के लिए एक पूर्व-आवश्यक औपचारिकता के रूप में कुछ निचली अदालतें (trial court) आरोपियों की गिरफ्तारी पर जोर देती है। उनकी यह प्रथा गलत है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 170 के इरादे के विपरीत है।

दरअसल, अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का मानना है कि जब तक व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाता, तब तक सीआरपीसी की धारा 170 के तहत चार्जशीट को रिकॉर्ड में नहीं लिया जाएगा।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, “दिल्ली उच्च न्यायालय इस दृष्टिकोण को अपनाने वाला अकेला नहीं है, अन्य उच्च न्यायालयों ने भी स्पष्ट रूप से इस प्रस्ताव का पालन किया है और दिल्ली उच्च न्यायालय के कुछ फैसलों ने माना है कि निचली अदालत यह कहते हुए चार्जशीट को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकती हैं कि आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है और उन्हें अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया है।”

चार्जशीट दाखिल करते समय सिर्फ कोर्ट में आरोपी की पेशी..

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि सीआरपीएफ की धारा 170 में आने वाला शब्द “हिरासत” है यह शब्द पुलिस या न्यायिक हिरासत पर जिक्र नहीं करता है। “हिरासत” से तात्पर्य है केवल चार्जशीट दाखिल करते समय जांच अधिकारी द्वारा अदालत के समक्ष आरोपी की पेशी करना।

गिरफ्तारी से, व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को नुकसान हो सकता: SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर गिरफ्तारी को नियमित किया जाता है, तो इससे किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को अतुलनीय नुकसान हो सकता है। पीठ ने कहा, गिरफ्तारी करने की शक्ति के अस्तित्व और इसके प्रयोग के औचित्य के बीच एक अंतर किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चार्जशीट दाखिल करते समय आरोपी को हिरासत में लेना अनिवार्य नहीं है।

कोर्ट ने बताया गिरफ्तार का अवसर कब उत्पन्न होता है..

पीठ ने कहा, जांच के दौरान किसी आरोपी को गिरफ्तार करने का अवसर तब उत्पन्न होता है, जब हिरासत में जांच आवश्यक हो जाती है या जहां गवाहों को प्रभावित किए जाने की संभावना है या आरोपी फरार हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था। निचली अदालत ने चार्जशीट को रिकॉर्ड में लेने से पहले आरोपी को हिरासत में लेने को कहा था। जिसके बाद आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी ज्ञापन जारी किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसी गिरफ्तारी ज्ञापन को चुनौती देने वाली सिद्धार्थ की अपील पर यह आदेश पारित किया, की चार्जशीट दाखिल करते समय हर एक आरोपी को गिरफ्तार करना आवश्यक नही है।

पीठ ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता(आरोपी सिद्धार्थ) जांच में शामिल हुआ था, जांच पूरी हो चुकी है और एफआईआर दर्ज होने के सात साल बाद उसे जांच में शामिल किया गया है। बात दें की कोर्ट ने पाया कि आरोपी के वकील द्वारा कहा गया है कि समन जारी होने पर वह अदालत के समक्ष पेश हो जाएगा। अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा ऐसी स्थितियों में गिरफ्तार करने का कोई मतलब नहीं बनता। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल आरोपी की अपील को स्वीकारा कर लिया।

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