बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है। मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच होता नजर आ रहा है। आरजेडी के नेतृत्व में बने महागठबंधन में कांग्रेस, भाकपा माले के अलावा सीपीआई और सीपीआई (एम) भी शामिल हैं। महागठबंधन में सीपीआई (एम) को चार सीटें मिली हैं। पार्टी ने अपनी सभी सीटों के प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। समस्तीपुर जिले की विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र से अजय कुमार, सारण की मांझी विधानसभा से सत्येन्द्र यादव, बेगूसराय की मटिहानी से राजेन्द्र प्रसाद सिंह और पूर्वी चम्पारण की पीपरा सीट से राजमंगल प्रसाद उम्मीदवार बनाये गए हैं। इन सभी प्रत्याशियों ने अपने अपने इलाकों पर प्रचार अभियान भी तेज कर दिया है।
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव अवधेश कुमार का कहना है कि देश के संविधान, धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र की रक्षा के लिए हम महागठबंधन में अन्य वामपंथी दलों के साथ शामिल हुए हैं। राजद और महागठबंधन के साथ सीपीएम सहित सभी वामदलों के साथ आने से जनता में भरोसा बढ़ा है कि यही गठबंधन बिहार के चुनाव में भाजपा जदयू गठबंधन को पराजित करेगा।
अवधेश कुमार ने कहा कि बिहार के कई इलाकों में सीपीआई (एम) का प्रभाव हैं, लेकिन इन चारों विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार काफी मजबूत है। हमें पूरी उम्मीद है कि इन चारों सीटों पर जीत दर्ज कर हम महागठबंधन को मजबूत बनाएंगे और एनडीए सरकार को उखाड़ फेंकेंगे।
सीपीएम का कहना है उन्होंने अपने जिन चार उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है वो जनांदोलनों से निकले नेता हैं और अपने अपने इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं।
अजय कुमार
समस्तीपुर ज़िले की विभूतिपुर विधानसभा सीट से अजय कुमार महागठबंधन समर्थित सीपीआई (एम) उम्मीदवार बनाए गए हैं। अजय कुमार सीपीएम बिहार राज्य सचिव मंडल के सदस्य हैं। अजय कुमार पिछले दो विधान सभा चुनाव उजियारपुर विधान सभा से लड़े और दोनों बार उन्हें 19 हज़ार से अधिक वोट मिले थे।
अजय कुमार लगतार आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने समस्तीपुर में रायपुर के महंत द्वारा कब्जा की गई सीलिंग की ज़मीन को लेकर आंदोलन चलाया। हाईकोर्ट में लम्बे समय तक चले केस के बाद इसी साल रायपुर गाँव नें 300 तथा चंदौली गाँव में 350 परिवारों को जमीन का पर्चा मिला है। भूमिहीनों को मिलने वाली इस जीत में अजय कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
पिछले दिनों सरकार द्वारा राज्य भर में जल, जीवन-हरियाली के नाम पर नदी, नाले, पोखर, तालाब आदि के किनारे बसे भूमिहीन लोगों को उजाड़ने के अभियान की शुरुआत की गई। अजय कुमार के नेतृत्व में सीपीआईएम ने इस बेदखली अभियान का विरोध किया। फिलहाल इस बेदखली अभियान को सरकार ने स्थगित कर दिया है।
पिछले दिनों दलसिंह सराय में ग्राहक केंद्र (सीएफटी) में 2 करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया। अजय कुमार के नेतृत्व में पार्टी ने 18 दिनों तक अनशन किया। उसके बाद 1 करोड़ 60 लाख रुपये जनता को वापस किये गये, जो उनके ख़ून-पसीने की कमाई थी।
अजय कुमार जब हाईस्कूल के छात्र थे तभी छात्र संगठन एसएफ़आई से जुड़ गए थे और एसएफ़आई के बिहार राज्य के संयुक्त सचिव और उपाध्यक्ष पदों की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद 1987 में सीपीएम की सदस्यता ग्रहण करने वाले अजय कुमार ने पार्टी के युवा मोर्चा, भारत की जनवादी नौजवान सभा (डीवाईएफआई) के समस्तीपुर ज़िला अध्यक्ष तथा राज्य के संयुक्त सचिव व राज्य उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी निभाई। अजय कुमार को 2002 में पार्टी की समस्तीपुर ज़िला कमिटी के सचिव बनाए गए, जिस पद पर 2015 तक रहे। इस दौरान 2005 में इन्हें राज्य सचिव मंडल सदस्य निर्वाचित किया गया।
छात्र आंदोलन से निकले अजय कुमार के दादा और नाना तो ज़मींदार थे, लेकिन उनके पिता मंझोले क़िस्म के कृषक हैं। इनका पूरा परिवार कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य है। समस्तीपुर के इलाक़े में सामाजिक अपराध और हत्या सहित कई मामले सामने आते रहते हैं। इन समस्याओं से जूझने और जनता के साथ खड़े रहने का नतीजा है कि उन्हें थोड़े-थोड़े समय के लिए तीन बार जेल जाना पड़ा और उनके नाम पर कई सारी एफआईआर दर्ज हैं। फ़िलहाल उनके ऊपर तीन मुक़दमे चल रहे हैं।
सम्पत्ति के नाम पर अजय कुमार के पास 50 हज़ार रुपये और एक मोटरसाइकिल है।
राजेन्द्र प्रसाद सिंह
बेगूसराय ज़िले के मटिहानी विधानसभा सीट से सीपीआई (एम) ने राजेन्द्र प्रसाद सिंह को उम्मीदवार बनाया है। राजेन्द्र प्रसाद सिंह वर्तमान समय में वह अखिल भारतीय किसान सभा की राष्ट्रीय काउंसिल के सदस्य हैं तथा सीपीआई (एम) के राज्य सचिवमंडल के सदस्य हैं। राजेन्द्र प्रसाद सिंह 1995 में बेगूसराय सीट से विधायक बने, उस समय राजद और सीपीआई (एम) का चुनावी तालमेल था। इस बार फिर वह उसी तरह के तालमेल के साथ उम्मीदवार हैं और तब के बेगूसराय का अधिकांश हिस्सा परिसीमन के बाद मटिहानी विधान सभा में शामिल कर दिया गया है।
राजेंद्र प्रसाद सिंह का राजनीतिक जीवन छात्र आंदोलन से शुरू हुआ। 1966 का साल था जब मुज़फ़्फ़रपुर के आरडीएस कॉलेज में ग्यारहवीं के छात्र राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बिहार राज्य छात्र फ़ेडरेशन की सदस्यता ग्रहण की। उस समय तक स्टूडेंड फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) का गठन नहीं हुआ था और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से छात्र संगठन काम कर रहे थे। 1971 में देश भर के छात्र संगठनों ने मिलकर एसएफआई का गठन किया। 1971 में ही राजेन्द्र प्रसाद सिंह एसएफआई की बिहार इकाई के संयुक्त सचिव निर्वाचित हुए।
राजेंद्र प्रसाद सिंह बीए अंतिम वर्ष छात्र थे तभी 1974 का छात्रों का आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन के दौरान उनको गिरफ़्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया। चार महीने बाद जब ये जेल से रिहा हुए, उसी दौरान बीए के अंतिम वर्ष की परीक्षा हो चुकी थी और उनका साल बर्बाद हो चुका था। फिर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह से आंदोलन में लग गए।
छात्र मोर्चे के बाद राजेन्द्र प्रसाद सिंह नौजवान मोर्च पर आए। 1980 में वो डीवाईएफआई के बेगूसराय ज़िले के अध्यक्ष तथा बिहार राज्य के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1982 में राजेंद्र प्रसाद सिंह किसान सभा मोर्चे पर आए, साथ ही सीपीआई (एम) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने। 1991 में सीपीआई (एम) के बेगूसराय ज़िला के सचिव बने और राज्य कमिटी के सदस्य निर्वाचित हुए। उसी साल किसान सभा के बिहार राज्य उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए, जिस पद पर वह अब भी कार्यरत हैं।
1978 में महज़ 28 साल की उम्र में मुखिया बनने वाले राजेन्द्र प्रसाद सिंह अपनी सक्रियता के कारण अगले ही साल बेगूसराय के प्रमुख निर्वाचित हुए, जिस पर पर वह 1995 तक बने रहे। 1995 में विधायक बनने से के बाद उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया।
बेगुसराय में सीपीएम का संघर्ष ज़मीन के मुद्दे से जुड़ा रहा है। 1991 में उनके पार्टी ज़िला सचिव बनने के बाद बेगूसराय में 42 जगहों पर ज़मीन आंदोलन चला, जिसमें भूदान वाली ज़मीन पर भूमिहीनों को बसाने का काम पार्टी ने किया। लगभग 70 साल की उम्र में आज भी पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप लोगों की ज़मीनी समस्याओं के लिए संघर्ष करते हैं।
डॉ सत्येंद्र यादव
छपरा ज़िले की माँझी विधान सभा सीट से डॉ सत्येंद्र यादव सीपीआई (एम) उम्मीदवार हैं। 2015 के विधान सभा चुनाव में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करते हुए इन्होंने लगभग 18 हज़ार वोट हासिल किये थे और नज़दीकी मुक़ाबले में तीसरे स्थान पर रहे। तब सीपीआई (एम) ने अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा था। पिछले पाँच सालों के दौरान इलाके लगातार संघर्ष की वजह से वो काफी लोकप्रिय हैं।
वामपंथी आंदोलन और ख़ासकर सीपीआई (एम) के नज़रिये से देखा जाए तो माँझी में पारंपरिक रूप से वामपंथ का कोई ख़ास जनाधार नहीं रहा है। 2010 में सत्येंद्र यादव पहली बार सीपीआई (एम) के उम्मीदवार के तौर पर माँझी से चुनाव लड़े।
सत्येंद्र यादव अपने शुरुआती छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति के संपर्क में आए। 1991 में सीपीआई (एम) के छात्र संगठन एसएफ़आई के सदस्य बने। 1992 में ये एसएफ़आई के सारण ज़िला सचिव बने। 1999 में ये एसएफ़आई के राज्य अध्यक्ष बने, तब बिहार और झारखंड एक ही राज्य था। ये इस पद पर 2005 तक रहे।
एसएफ़आई प्रदेश अध्यक्ष के रूप में इनके नेतृत्व में 2002 में भागलपुर में छात्रों पर हुई पुलिस फ़ायरिंग के विरोध में पटना सहित पूरे बिहार में राज्य सरकार के ख़िलाफ़ छात्रों का विरोध हुआ, भारी विरोध के बाद सरकार को छात्रों की माँगे माननी पड़ी। इसी तरह से 2003 में पटना विश्वविद्यालय में इस बात को लेकर सफल आंदोलन हुआ कि बिहार बोर्ड से इंटर पास करने वाले छात्रों को पटना विश्वविद्यालय के प्रवेश में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए, जो प्रावधान अब तक लागू है।
2002 में राजेंद्र कॉलेज से बीए करने वाले डॉ. सत्येंद्र यादव प्रतिभाशाली छात्र रहे हैं। 2005 में एमए (राजनीति विज्ञान) में उन्होंने पूरे जय प्रकाश विश्वविद्यालय में टॉप किया। इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में ही पीएचडी किया और डाक्ट्रेट की अपाधि हासिल की। सत्येंद्र यादव ने पटना के बीएन कॉलेज और परसा के पीएन कॉलेज में कुछ सालों तक अध्यापन का काम भी किया। उसके बाद वो सीपीआई (एम) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए।
निम्न मध्यवर्गीय परिवार से सम्बंध रखने वाले सत्येंद्र यादव का परिवार पशुपालन के पेशे से जुड़ा रहा है। छात्र और युवा मोर्चे से होते हुए फ़िलहाल किसान मोर्चे पर कार्यरत हैं और किसान सभा के जिला सचिव हैं। लोगों के हक़- हुक़ूक़ के लिए लड़ते हुए इन्हें कई तरह के हमलों का भी सामना करना पड़ा है। सामंती शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष का ही परिणाम है कि सत्येंद्र यादव को हत्या के झूठे आरोप में फँसा दिया गया और इसके लिए उनको 6 महीने जेल में गुज़ारने पड़े। बीते एक साल में सीएए, एनआरसी से जुड़े मामलों तथा अन्य मामलों को लेकर उनके ऊपर 8 एफ़आईआर हुई हैं।
राममंगल प्रसाद
पूर्वी चंपारण ज़िले के पिपरा सीट से निम्न मध्यवर्गीय किसान परिवार में जन्मे राजमंगल प्रसाद महागठबंधन समर्थित सीपीआई (एम) के उम्मीदवार बनाए गए हैं। राजमंगल प्रसाद पिपरा से ही पिछले दो विधान सभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। दोनों चुनावों में लगभग 9 हज़ार वोट मिले। तब सीपीआई (एम) अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में थी।
पेशे से किसान राजमंगल प्रसाद ने किसान सभा के जरिए 1990 में अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। 1990 में ही ये किसान सभा की पंचायत समिति के अध्यक्ष बने। उसके बाद किसान सभा की मेहसी-चकिया अंचल कमिटी के अध्यक्ष भी रहे। राजमंगल प्रसाद के इलाक़े में उनके आने के साथ ही सीपीआई (एम) के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई और उन्हें पहली ऑर्गेनाइजिंग कमिटी का संयोजक बनाया गया। सीपीआई (एम) के मेहसी-चकिया लोकल कमिटी के गठन के साथ ही ये उसके सचिव बनाए गए।
1995 में उन्हें किसान सभा के जिला सचिव के पद पर निर्वाचित किया गया। इसके बाद ये सीपीआई (एम) के पूर्वी चंपारण जिला कमिटी के सदस्य बने,फिर राज्य कमिटी के सदस्य भी बनाए गए। वर्तमान में राजमंगल प्रसाद किसान सभा के ज़िला अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं और किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रह रहे हैं।
मैट्रिक तक की पढ़ाई करने वाले राजमंगल प्रसाद कई जन आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में चकिया चीनी मिल को फिर से चालू करने के लिए लगातार आंदोलन चला। चकिया को अनुमंडल बनाने, मेहसी को नगर पंचायत बनाने तथा सेमरा घाट पर पुल बनाने के लिए आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व भी राजमंगल प्रसाद ने किया। इसी का परिणाम है कि आज चकिया अनुमंडल है और मेहसी नगर पंचायत, साथ ही सेमरा नदी पर पुल भी बना।
अपनी आजीविका के लिए खेती और पशुपालन करने वाले राजमंगल प्रसाद ने किसानों के अधिकारों की लिए लगातार संघर्ष करते रहे हैं। बाढ़, सुखाड़, ओला वृष्टि जैसी आपदाओं से होने वाली फसल बर्बादी की क्षति पूर्ति और मुआवज़े की कई सफल लड़ाइयों का ही परिणाम है कि ज़िले के तेतरिया प्रखंड में पार्टी का विस्तार हुआ है।
राजमंगल प्रसाद दो भाई हैं। चार बीघा पुश्तैनी ज़मीन जो उनके हिस्से आयी है, उसी पर ये और इनके बेटे खेती करके अपना परिवार चलाते हैं। राजमंगल प्रसाद के दिनचर्या का हिस्सा खेती और जनता को समर्पित है। सुबह-सुबह ही लोग उनके पास अपनी समस्याएँ लेकर आ जाते हैं। अपनी खेती के बीच में से समय निकालकर ये उनके साथ सरकारी दफ्तर जाते हैं और राशन, पेंशन आदि जैसे जरूरी सवालों पर उनकी मदद करते हैं, उनके लिए आवाज़ उठाते हैं। राजमंगल प्रसाद की नेतृत्व- क्षमता और मृदु स्वभाव का नतीजा है कि उनके क्षेत्र में पार्टी को जिला परिषद चुनाव और कई पंचायतों में भी सफलता मिली है।
राजमंगल प्रसाद एक दिलचस्प बात बताते हैं। वर्तमान सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी का बीबीसी पर इंटरव्यू आता था जिसे सीमा चिश्ती करती थीं, उस इंटरव्यू को सुनकर उन्हें पार्टी के काम और उसकी राजनीति की और अच्छी समझ बनी।
सम्पत्ति के नाम पर राजमंगल प्रसाद के पास सिर्फ़ चार बीघा ज़मीन है और वह भी पुश्तैनी है।