पहला पन्ना: दिल्ली में ऑक्सीजन संकट बरक़रार पर ख़बरें ग़ायब!

आज हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक है, “आपूर्ति, डिलीवरी बढ़ने से दिल्ली में ऑक्सीजन का संकट अगले हफ्ते स्थिर होना शुरू हो सकता है।”  इस खबर के अनुसार दिल्ली के अस्पतालों से जान बचाने की अपीलें पिछले दो दिन में कम हो गई हैं। इनमें से ज्यादातर अब इतना स्टॉक रख पा रहे हैं ताकि समय पर भरपाई होती रहे। लेकिन अभी भी गंभीर संकट जारी है और बेड्स होने के बावजूद वे क्रिटिकल इमरजेंसी सपोर्ट मुहैया कराने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि मरीजों के बड़े समूह के लिए ऑक्सीजन की कमी है। 

इसी खबर में आगे कहा गया है, और ज्यादा क्रायोजेनिक टैंकर मंगाए जाने तथा ऑक्सीजन बनाने वाले प्लांट बनने से एक हफ्ते के दौरान स्थिति स्थिर होने की संभावना है। एक अधिकारी ने कहा, …. अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति स्टॉक खत्म होने से कुछ घंटे पहले ही हो रही है …. अभी भी कुछ छोटे अस्पताल सिलेंडर भरने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इसलिए अस्पताल में दाखिल मरीजों को भले ऑक्सीजन मिल रही हो, नए मरीजों की समस्याएं वैसी ही हैं। खबर के अनुसार, दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा कि सभी नए दाखिले फिलहाल रोक दिए गए हैं। 

इससे आप स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। यह संकट शुरू होने के  लगभग एक हफ्ते के बाद की स्थिति है। खबरें आप जानते हैं कि कितनी छपी और क्या छपीं। जो नहीं छपी उनकी बात ही नहीं है। दूसरी ओर सरकारी और सरकारी पार्टी का प्रचार जारी रहा। ये खरीदा, ये मंगाया, इसका ऑर्डर दिया, ये विमान से आया वो एक्सप्रेस मालगाड़ी से आया उसे वायुसेना के मालवाहक से मंगवाया। इसके लिए पैसे दिए उसके लिए ऑर्डर दिए आदि-आदि। क्रायोजेनिक टैंकर आयात करने से लेकर ऑक्सीजन प्लांट लगाने और लगाने के पैसे देने की खबरें फैलाई जाती रहीं। हिन्दुस्तान टाइम्स में भी इस खबर के साथ आज ऐसी एक खबर है। 

प्रचार और सत्ता की भूख ने आरएसएस जैसे संगठन के एक बुजुर्ग जांबाज को यह कहकर हीरो बना दिया कि उसने अस्पताल में जगह छोड़ दी ताकि एक युवा की जान बचाई जा सके। हर कोई जानता है कि अस्पताल की जगह निजी संपत्ति नहीं होती है कि किसी के नाम कर दी जाए। फिर भी यह दावा किया गया। हालांकि, सोशल मीडिया पर आज उस खबर के फर्जी होने की चर्चा है और इधर प्रचारकों ने इसे टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर छपवा लिया है। राम जाने सच क्या है। अब कोई केंद्रीय मंत्री इसका सच तो बताने से रहा। 

दूसरी ओर, सरकार और सत्तारूढ़ दल के समर्थकों में एक का सवाल है, बड़े संकट के समय सरकारी इंतजाम कम पड़ जाने की आड़ में क्या देश को बदनाम किया जाएगा। इस तरह, सरकारी सुविधाओं में कमी को देश की बदनामी मानकर छिपाए रहो। 20,000 करोड़ की सेंट्रल विस्टा परियोजना पर अड़े रहो उसका उपयोग प्रचार और ‘सब कुछ सामान्य’ बताने के लिए करते रहो। एक साल में महामारी से मरने वाले दो लाख हो गए इस तथ्य को दबा दो। और गलत खबर देने वालों की संपत्ति जब्त करने की धमकी दो। सरकार किसी और की हो तो पलट जाओ या पलटे हुए थे ही। अपने समय में व्यवस्था को दोषी ठहराओं दूसरी पार्टी सत्ता में हो तो मुखिया से सीधे सवाल पूछो। 

कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया व्यवस्था का हिस्सा है और उसका काम है सरकार की कमियों, खामियों और नाकामियों को उजागर करना। मीडिया कमी बताने का अपना काम करे समय पर कमी दूर हो और व्यवस्था चलती रहे। लेकिन समर्थकों और प्रचारकों की मानें तो सत्तारूढ़ दल की रणनीति यही है कि संकट बनाकर हल करो, प्रचार पाओ, वोट लो। अब टीका लगवाने के इच्छुक लोगों की संख्या बताने वाले अखबार अस्पताल में जगह नहीं मिलने वालों की संख्या नहीं बता रहे हैं। आज पांच में से चार अखबारों की लीड है कि 18 साल से ऊपर के एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने टीके के लिए पंजीकरण कराया। 

हालांकि, भिन्न अखबारों में यह संख्या अलग है। इसके साथ ही खबर है कि टीके की कीमत 100 रुपए कम हो गई या राज्य सरकारों को 300 रुपए में उपलब्ध कराई जाएगी। केंद्र सरकार ने यही टीका 150 रुपए में खरीदा है और लगाने का खर्च सहित 250 रुपए में लोगों ने लगवाए हैं। अब वही टीका बनाने वाली कंपनी 300 रुपए में बेच रही है और लगवाने का खर्च क्या होगा यह जाने बगैर लोगों ने पंजीकरण करवाए हैं तो यह टीके की जरूरत बताता है। वैसे ही जैसे ऑक्सीजन या अस्पतालों में जगह की है। लेकिन अखबार उसपर खबर नहीं कर रहे। टीका लगवाना चाहने वाले जरूरतमंदों की संख्या बता रहे हैं पर उनकी संख्या नहीं बता रहे जो अंतिम क्रिया के लिए लाइन में लगे हैं या ऑक्सीजन के लिए परेशान घूम रहे हैं।  

यही नहीं, देसी टीका कंपनी अगर 150 रुपए के टीके को 300 रुपए में ही बेचने पर आमादा है तो यह मुनाफाखोरी की इंतहा है। सरकार और अखबारों को भी चाहिए कि विदेशी टीकों की कीमत और उनकी उपलब्धता की स्थिति पता लगाए और उनके बारे में बताये ताकि जरूरतमंद लोग कम या वाजिब पैसे में टीका लगवा सकें। या भारतीय कीमत को लेकर निश्चित हो सकें। आप को पता होगा कि इस महामारी को रोकने का सबसे कारगर उपाय टीकाकरण ही है। दूसरी ओर सरकार जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण करवाने (बेशक यह सरकारी पैसे और व्यवस्था में होना चाहिए) की बजाय अब ऑक्सीजन प्लांट लगाने, कनसन्ट्रैटर या ऑक्सीजन के टैंकर मंगाने जैसे प्रचार कर रही है जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। जब टीकों के लिए हाहाकार मचेगा तो टीकों पर फैसला करेगी। 

 

समय रहते सरकार पर देश की जरूरतें पूरी करने के लिए दबाव बनाना अखबारों का काम है पर अखबार सिर्फ प्रचार वाली खबरें छापते हैं। विदेशी टीकों के बारे में अखबारों ने अभी तक कोई काम की जानकारी नहीं दी है। देश को दो देसी टीका निर्माताओं के भरोसे रखने और उन्हें मोल-भाव करने का मौका सरकार ने ही दिया है जबकि स्थिति उल्टी होनी चाहिए थी। वरना जो कीमत एक बार तय हो गई उसे इतनी जल्दी बदलने या बढ़ाने का क्या कारण हो सकता है। वैसे भी मांग ज्यादा होने से कीमत कम होती है यहां बढ़ रही है। इसपर अलग से काफी कुछ लिखने की जरूरत है पर वह सब नजर नहीं आ रहा है। कीमत तय किए बगैर या बहुत ज्यादा तय करके पंजीकरण शुरू करना असल में निजी निर्माता को तैयार बाजार देना है। पर अखबारों को उससे क्या?   

अब आज की ऐसी खबरें जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं या प्रमुखता से नहीं हैं  

  1. चुनाव आयोग ने बंगाल चुनाव के अंतिम दिन मतगणना से कुछ पहले एलान किया है कि उम्मीदवारों, एजेंट के लिए (कोरोना) नकारात्मक टेस्ट या टीकाकरण जरूरी है। कहने की जरूरत नहीं है कि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल चुनाव को इस बार नोटबंदी से भी बड़ा नौटंकी बना दिया है। 
  2. दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन की आपूर्ति पर केंद्र सरकार की खबर ली और कहा कि फील्ड अस्पताल बनाने के लिए सशस्त्र सेना की मदद ली जाए। आपको याद होगा कि अदालत जब दिल्ली सरकार की खिंचाई करती है तो खबरें कितनी प्रमुखता से छपती हैं और अभी केंद्र सरकार की निन्दा की तो यह खबर ढूंढ़िए, आपके अखबार में है? 
  3. मेरठ में सात मरीजों की मौत, अस्पताल ने ऑक्सीजन की कमी का आरोप लगाया। द हिन्दू अखबार ने लिखा है कि यह दावा कोई कमी नहीं है के उत्तर प्रदेश सरकार के दावे के उलट है। 27 अप्रैल को हिन्दू में ऑक्सीजन की कमी के कारण हिसार के अस्पताल में पांच लोगों के मरने की खबर छपी थी। 28 अप्रैल को हिन्दू में ही, दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मरीज के रिश्तेदारों के हंगामे की खबर में बताया गया था कि मरीज को दाखिल नहीं किया जा सका इससे रिश्तेदार नाराज थे। हालांकि, मरीज को ऑक्सीजन दिया गया था। 
  4. कुम्भ के आयोजन ने उत्तराखंड को हंसी का पात्र बना दिया: हाईकोर्ट।

इन सभी अखबारों और खबरों से अलग द टेलीग्राफ ने अपने पहले पन्ने पर लीड की जगह श्रुति शाहा की तस्वीर छापी है और लिखा है कि वे नई दिल्ली में अपनी मां के लिए ऑक्सीजन भरवाने के लिए तीन दिन से अपनी बारी के इंतजार में थीं और बुधवार को वहीं उन्हें पता चला कि मां नहीं रहीं। यह रायटर की फोटो है। इसका शीर्षक द टेलीग्राफ ने लगाया है, “मोदी जी, इसे अपनी विस्ता परियोजना के बारे में बताइए”। इसके अलावा, द टेलीग्राफ ने अपनी एक खबर से बताया है कि कोरोना वायरस के रूपांतर का पता लगाने से संबंधित सरकार का निर्णय चौंकाने वाला है। एक खबर बताती है कि फ्रांस के अखबार ने नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ खबर छापी है। मेरा मानना है कि परिजनों को खोकर भी अगर वास्तविक स्थिति को छिपाया जाएगा तो विदेशी अखबारों में खबरें छपेंगी ही। और उसे कोई रोक नहीं पाएगा। इस तरह, देश में खबरें नहीं छापने और छपने देने वाले देश को दुनिया भर में बदनाम कर रहे हैं। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

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