सांगठनिक फेरबदल में सिब्बल-आज़ाद-थरूर को ले गई चिट्ठी, इससे तो राहुल गांधी ही बने रहते अध्यक्ष!

शुक्रवार की रात, अप्रत्याशित रूप से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से भारी सांगठनिक फेरबदल की ख़बर आई। हालांकि इस फेरबदल में जो हुआ, उसका अंदेशा 2 हफ्ते पहले ही हो गया था – जब राहुल गांधी के साथ, कई वरिष्ठ नेताओं का विवाद सार्वजनिक हो गया था। लेकिन कांग्रेस कमेटी द्वारा शुक्रवार की रात जारी प्रेस रिलीज़ में साफ हो गया कि राहुल गांधी भले ही पार्टी के अध्य़क्ष न हों – उनकी मर्ज़ी ही संगठन में सबसे ऊपर रहने वाली है। इस फेरबदल में राहुल गांधी से मतभेद या विवाद में शामिल सभी वरिष्ठ नेताओं को या तो कांग्रेस वर्किंग कमेटी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, या फिर उनको पदावनत कर के, कमज़ोर कर दिया गया है। राहुल गांधी के करीबी और पसंदीदा नेताओं को पदोन्नति मिली है या फिर उनकी वर्किंग कमेटी में वापसी हुई है।

कांग्रेस द्वारा शुक्रवार की रात जारी आधिकारिक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का पुनर्संगठन किया है। इस फेरबदल में जहां कपिल सिब्बल और शशि थरूर का नाम ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी और किसी भी राज्य के प्रभारी महासचिव के तौर पर गायब है। यानी कि उनकी फिलहाल कांग्रेस के केंद्रीय संगठन से पूरी तरह छुट्टी कर दी गई है।

वहीं ग़ुलाम नबी आज़ाद, कांग्रेस वर्किंग कमेटी में तो बने हुए हैं लेकिन उनको महासचिवों की सूची से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। उनके अलावा मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी, मलिकार्जुन खरगे भी अब महासचिव नहीं हैं।

इसी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक बार फिर राहुल गांधी के समर्थक-करीबी नेताओं का दबदबा स्थापित हो गया है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के परमानेंट इनवाइटीज़ में दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश के अलावा अधीर रंजन चौधरी, पवन बंसल भी हैं। राहुल गांधी के प्रिय रणदीप सिंह सुरजेवाला अब न केवल कांग्रेस वर्किंग कमेटी का हिस्सा हैं – वे कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देने वाली उच्च स्तरीय 6 सदस्यीय विशेष समिति के सदस्य और कर्नाटक के प्रभारी भी बना दिए गए हैं। इस तरह देखें तो इस फेरबदल में सबसे ज़्यादा सुरजेवाला के कद में ही बढ़ोत्तरी हुई है।

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, राजस्थान में जब सुरजेवाला को वहां की स्थिति संभालने के लिए भेजा गया था – तभी से माना जा रहा था कि उनका कद अब पार्टी में कई वरिष्ठ और बुज़ुर्ग नेताओं से बड़ा होने वाला है। ॉ

हालांकि इसके बाद एक अहम सवाल है, जिसे हर हाल में पूछा ही जाना चाहिए और वो ये है कि अगर कांग्रेस में सांगठनिक स्तर पर अहम फैसले-फेरबदल राहुल गांधी की मर्ज़ी या उनकी पसंद से ही होने हैं। तो फिर उनके अध्यक्ष पद पर न रहने की ज़िद का क्या मतलब रह जाता है। क्योंकि वो अध्यक्ष रहें या न रहें, पार्टी में फिलहाल उनके करीबी या उनकी मर्ज़ी के नेता ही ताक़त में दिखने वाले हैं। इसके साथ ही, इस बात को भी ज़रूर देखना होगा कि कांग्रेस में इस फेरबदल के बाद – बुज़ुर्ग नेताओं को किनारे करने की जो कवायद शुरू हो गई दिखती है, वो कितने लंबे समय तक ऐसे ही चलने वाली है। कांग्रेस युवा और बुज़ुर्ग नेताओं के संतुलन पर काम करेगी या फिर अनुभव पर उम्र को तरजीह देगी।

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