महाराष्ट्र में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिला दी है। शाम से पहले, जब अचानक पूर्व सीएम देवेंद्र फड़नवीस ने एलान किया कि एकनाथ शिंदे होंगे तो अपनी स्क्रीन्स पर देवेंद्र फड़नवीस का कटआउट लगाकर, उनको सीएम घोषित कर चुका गोदी मीडिया हड़बड़ा गया। हड़बड़ाहट में इसको आखिरी गेंद पर मास्टरस्ट्रोक कहने के अलावा आख़िर एंकर्स के पास चारा भी क्या था। आनन-फ़ानन में स्क्रीन ग्राफिक्स बदली गई, शिंदे की तस्वीर लगाई गई और इसको भाजपा के मास्टरस्ट्रोक के तौर पर प्रचारित किया जाने लगा। देवेंद्र फड़नवीस ने भी इसको अपने बड़प्पन और त्याग में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी और कह भी डाला कि वे सरकार में कोई पद नहीं लेंगे।
भाजपा ने महाराष्ट्र की जनता की भलाई के लिए बड़े मन का परिचय देते हुए एकनाथ शिंदे जी का समर्थन करने का निर्णय किया। श्री देवेन्द्र फडणवीस जी ने भी बड़े मन दिखाते हुए मंत्रिमंडल में शामिल होने का निर्णय किया है, जो महाराष्ट्र की जनता के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है।
— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) June 30, 2022
लेकिन शाम का धुंधलका गहराते-गहराते, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आ गया कि देवेंद्र फड़नवीस को उप मुख्यमंत्री होना चाहिए। ज़ाहिर है कि ये बयान जेपी नड्डा, बिना प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से सलाह किए बिना दे ही नहीं सकते थे। (आप सलाह को आदेश भी पढ़ सकते हैं, हालांकि हम ऐसा कुछ नहीं कह रहे हैं।) इसके बाद देवेंद्र फड़नवीस की स्थिति बस सोची जा सकती है। एक पूर्व मुख्यमंत्री, जो कि दोपहर तक मुख्यमंत्री ही बनने की तैयारी में था – उसे अचानक पहले सीएम की पोस्ट, एक बागी शिवसेना विधायक के हाथ में सौंपना पड़े और फिर उसे उप मुख्यमंत्री बनने को कह दिया जाए।
भाजपा अध्यक्ष श्री @JPNadda जी के कहने पर श्री @Dev_Fadnavis जी ने बड़ा मन दिखाते हुए महाराष्ट्र राज्य और जनता के हित में सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया है।
यह निर्णय महाराष्ट्र के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा व सेवाभाव का परिचायक है। इसके लिए मैं उन्होंने हृदय से बधाई देता हूँ।
— Amit Shah (@AmitShah) June 30, 2022
जेपी नड्डा की ट्वीट तक तो ठीक था, इस मामले में सीधे अमित शाह की ओर से देवेंद्र फड़नवीस को आदेश मिला और उनको झुकना पड़ा।
अंततः शाम 7.30 बजे, जब राजभवन में शपथ शुरू हुई तो एकनाथ शिंदे की शपथ के बाद, उप मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए देवेंद्र फड़नवीस के नाम का एलान हुआ। देवेंद्र फड़नवीस आए और उनके चेहरे पर दिख रहा था कि वे कैसे मन के साथ इस डिमोशन को स्वीकार कर रहे थे। इस तरह औपचारिक रूप से एक महाविकास अगाढ़ी में शिवसेना का एक पूर्व मंत्री अब मुख्यमंत्री है और एनडीए की सरकार में भाजपा का एक पूर्व मुख्यमंत्री, डिप्टी सीएम है। महाराष्ट्र के 20वें सीएम हैं एकनाथ संभाजीराव शिंदे और उप मुख्यमंत्री हैं देवेंद्र गंगाधरराव फड़नवीस।
एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने को लेकर भले ही भाजपा ये प्रचार कर रही हो कि उसने मराठा स्वाभिमान, बाल ठाकरे की विचारधारा, ओबीसी समुदाय के हित को आगे रखा है। लेकिन दरअसल इसको आप शांति से देखें और समझें तो आपको कई और कारण समझ आएंगे। भले ही भाजपा अपने और जनता के दिल को बहलाने के लिए कुछ भी कहे;
- भाजपा, एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायकों के बिना सरकार नहीं बना सकती है। उधर एकनाथ शिंदे अगर सीएम नहीं बनते हैं, तो वे एंटी डिफेक्शन क़ानून के दायरे में आएंगे, जो मामला अभी अदालत में पेंडिंग है। विधायक दल का नेता और सीएम बनने के बाद, वे इस दायरे के बाहर हो जाएंगे।
- एकनाथ शिंदे, ख़ुद के गुट के असली शिवसेना होने का दावा पेश करना चाहते हैं, चुनाव चिह्न भी क़ब्ज़ा करना चाहते हैं। सीएम बन जाने से उनका ये दावा मज़बूत हो जाता है।
- एकनाथ शिंदे, अगर अपने गुट के लिए चुनाव आयोग से असली शिवसेना होने का औपचारिक दर्जा पा जाते हैं, तो भाजपा के लिए जनता के उस गुस्से से बचना आसान होगा, जहां उसको लेकर, शिवसैनिकों में रोष है।
- भाजपा ये साबित करना चाहती है कि उसने बाल ठाकरे की विरासत का अपमान नहीं किया है और संदेश देना चाहती है कि उसने एक शिवसैनिक को ही सीएम बनाया है। उद्धव ठाकरे ने ये ही बात अपने संदेश में कही थी कि एक शिवसैनिक को ही सीएम बनाया जाए।
- एकनाथ शिंदे, संभवतः अंतिम समय में सीएम पद से कम किसी भी पद के लिए समझौते को तैयार नहीं थे। उनका कुछ मंत्रालयों को लेकर भी मतभेद था और इसके बाद उनके लिए ये जनता की नज़रों में अच्छा नहीं होता कि वे बिना अपनी पसंद के मंत्रालयों के उप-मुख्यमंत्री बनें। अब वे सीएम हैं और अपनी पसंद का मंत्रालय, भाजपा के लिए छोड़ सकते हैं।
- एकनाथ शिंदे के साथ, शिवसेना छोड़कर आए बाग़ी विधायकों के लिए भी ये अहम था क्योंकि एकनाथ शिंदे के सीएम बनने की स्थिति में वे निश्चिंत हो सकते हैं कि उनको इस बग़ावत की भारी कीमत नहीं चुकानी होगी, वे किनारे नहीं लगाए जाएंगे और उनकी राजनीतिक ज़मीन सुरक्षित है।
- एक सवाल, जो अब लगातार पूछा जाए कि अगर भाजपा वाकई किसी शिवसैनिक को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी तो फिर 2019 में ही ये किया जा सकता था। आख़िर शिवसेना तब भी तो ये ही मांग कर रही थी। अगर उस समय ये हुआ होता, तो शिवसेना के साथ कभी गठबंधन टूटता ही नहीं।
Congratulations to Shri @Dev_Fadnavis Ji on taking oath as Maharashtra Deputy CM. He is an inspiration for every BJP Karyakarta. His experience and expertise will be an asset for the Government. I am certain he will further strengthen Maharashtra’s growth trajectory.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 30, 2022
लेकिन सवाल ये है कि देवेंद्र फड़नवीस के साथ क्या हुआ। आख़िर उनके चेहरे के भाव शपथ लेते समय क्या कह रहे हैं, ये समझना भी ज़रूरी है। हुआ ये है कि,
- देवेंद्र फड़नवीस किसी भी हाल में सीएम पद से कम पर समझौता नहीं करना चाहते थे।
- देवेंद्र फड़नवीस, नहीं चाहते थे कि एकनाथ शिंदे की मांग के मुताबिक वो सारे मंत्रालय उनके सौंप दिए जाएं, जो वे चाहते थे। जिनमें से एक अहम था अरबन डेवलेपमेंट का मंत्रालय।
- न केवल एकनाथ शिंदे, अपनी पसंद के मंत्रालय डिप्टी सीएम के तौर पर चाहते थे, अगर वे सीएम नहीं बनते तो एंटी डिफेक्शन लॉ के मामले में उनकी सदस्यता पर ख़तरा बना रहता।
- उद्धव ठाकरे की सरकार भले ही न बची हो, उनका नैरेटिव जनता के बीच काम कर रहा था और ये भाजपा के लिए आने वाले चुनावों में नुकसानदेह होता। इसलिए भी शिवसैनिक का सीएम बन जाना ही फिलहाल नैरेटिव का जवाब था।
- अंत में भाजपा के पास सिर्फ ये ही विकल्प था कि एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया जाए। ऐसे में फड़नवीस नहीं चाहते थे कि वे सरकार में कोई भी पद लें। आख़िर कौन पूर्व सीएम, एक बागी विधायक के नेतृत्व में डिप्टी सीएम बनना चाहेगा।
- लेकिन भाजपा नहीं चाहती थी कि शिंदे की सरकार में फड़नवीस न रहें क्योंकि उनको अपनी ओर से सरकार पर नियंत्रण भी चाहिए था। ऐसे में अमित शाह ने फ़ैसला किया और फड़नवीस को झुकना पड़ा।
इसको गोदी मीडिया अभी भी चाणक्य नीति, मास्टर स्ट्रोक कहता रहेगा लेकिन क्या ये वाकई है? क्योंकि भाजपा बैकफुट पर भी रहना चाह रही है और शॉट फ्रंटफुट का भी लगाना चाह रही है। भाजपा सांसत में है, ये तो दिख ही रहा है। हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा आलाकमान देवेंद्र फड़नवीस से खुश नहीं था और लंबे समय से उनको ठिकाने लगाने का मिशन पूरा हो गया है। ज़ाहिर है कि किसका कौन सा मिशन पूरा हुआ, उसकी ये बस झांकी है क्योंकि मंत्रिमंडल का एलान, मंत्रालयों का बंटवारा और शक्ति परीक्षण के बाद सरकार चलाना अभी भी बाकी है।
मुंबई से मीडिया विजिल के एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर मयंक की विशेष ग्राउंड रिपोर्ट