तीस्ता सीतलवाड को ज़मानत क्यों जरूरी थी, तीस्ता को जानिये, मामले को समझिये तब राय बनाइये

कानून मेरा विषय नहीं है। ना पढ़ाई का ना दिलचस्पी का। लेकिन मीडिया से जुड़ा रहा हूं और राजनीति में दिलचस्पी है तो कानून से संबंधित कुछ खास मामले नजर में आ ही जाते हैं। कुछ बड़े और गंभीर मामलों में न्याय होता लग नहीं रहा है। अगर मीडिया की खबरों के आधार पर यह अंदाजा लग जाए कि फैसला क्या आएगा या फैसला गलत है तो लगता है कि फैसला गड़बड़ हो सकता है। क्योंकि मीडिया में वही छपता है जो लीक किया या कराया जाता है और इसकी बुनियादी जरूरत आम आदमी की राय को संभालना है। अभी मेरा मुद्दा तीस्ता सीतलवाड को रात नौ बजे विशेष सुनवाई कर जमानत मिलना है। जाहिर है, इसपर टीका टिप्पणी हो रही है और यह सब वैसा ही है जैसा इन दिनों चल रहा है। 

इनमें कुछ टिप्पणियों ने मुझे पूरे मामले को समझने के लिए प्रेरित किया पहली टिप्पणी उत्तम सेनगुप्ता @chatukhor की दिखी थी (अनुवाद मेरा / गूगल का) जो भी अदालत तीस्ता सीतलवाड को जेल भेज सकती है, उनमें अनपढ़ और असंवेदनशील जज शामिल हैं जो कम पढ़ते हैं, कानून को और कम समझते हैं और न्यायपालिका के लिए शर्मनाक हैं। @TeestaSetalvad के लिए सम्मान जो विशिष्ट राजनीतिक वर्ग द्वारा सताए जाने वालों में एक हैं। 

दूसरी टिप्पणी पामेला फ़िलिपोज़ @pamelaphilipose की है – तीस्ता सीतलवाड की जमानत याचिका खारिज करने का गुजरात हाई कोर्ट का आदेश और सॉलिसिटर जनरल द्वारा उसका बचाव बताता है कि अदालत और सरकारी वकील व्यवस्था को कितना नाजुक मानते हैं। एक महिला वैश्विक “बदनामी” ला सकती है; एक महिला बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा करेगी और एक महिला से इतना डर क्यों?

गौतम भाटिया @gautambhatia88 ने एक ट्वीट के जवाब में लिखा है, (ट्वीट करने वाला) आपको नहीं बताएगा कि: सीतलवाड को नौ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली थी। (वे गुजरात हाईकोर्ट नियमित जमानत के लिए गई थीं। गुजरात हाईकोर्ट ने नियमित जमानत से इनकार किया ही उन्हें सरेंडर यानी समर्पण करने के लिए कहा)। इसे देखते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियमित जमानत से इनकार करना और “तुरंत” आत्मसमर्पण करने का आदेश देना अत्यधिक अनियमित था। इसलिए, तत्काल सुनवाई हुई। तीन जजों की पीठ की आवश्यकता हुई क्योंकि दो जजों की पीठ की राय अलग थी। 

संजय घोष @advsanjoy ने लिखा है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तीस्ता की परेशानी सबसे पहले श्री शाह के विचित्र आदेश के कारण हुई थी। इसलिए आप शर्त लगा सकते हैं कि न्याय सुनिश्चित करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी थी और अच्छी बात है कि उसने ऐसा किया। इसलिए कृपया (तीस्ता के प्रति) विशेष व्यवहार और आधी रात को न्याय के बारे में बात मत कीजिये। 

सौरव दास @OfficialSauravD एक संवैधानिक अदालत को देर भी स्वतंत्रता के लिए खड़ा देखकर खुशी हुई। गुजरात हाई कोर्ट के एक जज के आदेश से शनिवार को सीजेआई समेत सुप्रीम कोर्ट के छह जजों को परेशानी हुई। अगर मामला @TeestaSetalvad जी की हस्ती के कद का नहीं होता तो ऐसा करना बहुत कठिन होता। अन्याय के ख़िलाफ़ फ़िलहाल कुछ राहत। 

रवि हेमाद्री @HemadriRavi – क्या गुजरात में पूरी न्यायिक व्यवस्था समझौता कर चुकी है? कोई भी विपक्षी नेता या मानवाधिकार कार्यकर्ता उस राज्य की अदालतों में न्याय पाने की उम्मीद नहीं कर सकता? ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात की न्यायिक प्रणाली का जो बुरा हाल है उसका केंद्र उच्च न्यायालय बन गया है।

इसमें निर्मेश मेहता जैसों का मानना है कि मामला किसी और का होता तो गुजरात उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने एक अलग फैसला दिया होता…। इससे जाहिर है, फैसला व्यक्ति के आधार पर हुआ था, मामले या अपराध के आधार पर नहीं। ऐसे में मैंने फैसले को पढ़ा। उसके अनुसार, हम मामले के गुण-दोष पर जाने के इच्छुक नहीं हैं। इस स्तर पर, हम केवल आदेश के उस हिस्से से चिंतित हैं जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा एक महीने की अवधि के लिए आदेश पर रोक लगाने के अनुरोध को खारिज कर दिया गया था।  सामान्य परिस्थितियों में, हम ऐसे अनुरोध पर विचार नहीं करेंगे। हालाँकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 25.06.2022 को याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने और याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किए जाने के बाद, इस न्यायालय ने अंतरिम जमानत देने के आवेदन पर विचार करते हुए दिनांक 02.09.2022 के आदेश के तहत कुछ शर्तों पर जमानत दे दी थी। इस न्यायालय के लिए महत्वपूर्ण कारकों में से एक यह था कि याचिकाकर्ता एक महिला है और इसलिए सीआरपीसी की धारा 437 के तहत विशेष सुरक्षा की हकदार। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, हम पाते हैं कि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, विद्वान एकल न्यायाधीश को कम से कम कुछ सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए थी ताकि याचिकाकर्ता के पास इस न्यायालय के समक्ष विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने के लिए पर्याप्त समय हो। मामले के उस दृष्टिकोण से, योग्यता पर विचार किए बिना, यह देखते हुए कि विद्वान एकल न्यायाधीश कुछ सुरक्षा देने का भी सही काम नहीं किया है, हम उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश पर एक अवधि के लिए रोक लगाते हैं। आज से सप्ताह। इस बीच, रजिस्ट्रार (न्यायिक) भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश से आदेश प्राप्त करेंगे और विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने के लिए मामले को उचित पीठ के समक्ष रखेंगे। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यदि पक्ष चाहें तो कोई भी याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र होंगे, और संबंधित दस्तावेज़ को रिकॉर्ड पर भी रखेंगे।

जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट ने कोई विशेष व्यवस्था नहीं की है बल्कि यह सुनिश्चित किया है कि महिला के मामले में, जमानत के मामले में संबंधित नियमों का पालन हो और जल्दबाजी में कोई न्याय से वंचित न रहे। गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के समर्थन में और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जो सब कहा गया है वह सब ज्यादातर मामलों में प्रासंगिक नहीं है। वैसे भी अगर किसी फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है तो अपील करने के समय अदालत को ही देना होगा वरना अपील के अधिकार का मतलब ही नहीं रह जाएगा। संसद या विधानसभा की सदस्यता के मामले में भी ऐसा नियम है। राहुल गांधी को अपील के लिए समय दिया गया उन्हें जेल नहीं हुई है और बंगला खाली करना पड़ा। लेकिन बंगला खाली करना और जेल भेजने में अंतर है। 

जो भी हो, इस मामले को समझने के लिए तीस्ता सीतलवाड को जानना जरूरी है। तीस्ता सीतलवाड़ गुजरात दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये बनी ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ नामक गैर सरकारी संगठन की सचिव हैं। उनकी संस्था ने कोर्ट में याचिका दायर कर नरेंद्र मोदी और अन्य 62 लोगों के खिलाफ दंगों में सहभागिता का आरोप लगाया था और आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की थी। तीस्ता सीतलवाड़ के पिता अतुल सीतलवाड़ वकालत के पेशे में थे दादा एमसी सीतलवाड़ देश के पहले अटॉर्नी जनरल थे। तीस्ता ने पत्रकारिता भी की है और उनके पति जावेद आनंद का नाता भी मीडिया से रहा है।

गुजरात दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसोइटी के 69 लोग मारे गए थे। इनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी थे। तीस्ता सीतलवाड़ ने गुजरात दंगों से जुड़ा केस लड़ने वाली याचिकाकर्ता जाकिया जाफरी का समर्थन किया था। जाकिया जाफरी गुजरात की गुलबर्ग सोसायटी में दंगों में मारे कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं। उन्होंने गुजरात दंगों पर आधारित एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को अदालत में चुनौती दी थी और उसे सार्वजनिक करने की मांग की थी। जाकिया ने पहले गुजरात कोर्ट का रुख किया था फिर सुप्रीम कोर्ट गई थीं। एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य 63 अधिकारियों को क्लीन चिट दी गई थी।

तीस्ता सीतलवाड़ को 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से नवाजा था। 2002 में कांग्रेस ने उन्हें राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार दिया था। इसके अलावा, उन्हें 2000 में प्रिंस क्लॉस अवार्ड, 2003 में नूर्नबर्ग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार पुरस्कार, 2006 में नानी ए पालकीवाला पुरस्कार और 2009 में कुवैत में भारतीय मुस्लिम संघों के समूह द्वारा उत्कृष्टता पुरस्कार मिल चुके हैं। तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद का कहना है कि उनके खिलाफ कार्रवाई द्वेषपूर्ण और प्रायोजित है। 

गुलबर्ग सोसायटी विवाद मामले में तीस्ता ने कहा था कि 24 हजार पन्नों के सबूत देने के बावजूद उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गई। उन्होंने गुजरात सरकार पर उन्हें कानूनी पचड़ों में फंसाए रखने का आरोप लगाया था।  गुजरात दंगों पर एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने के एक दिन बाद गुजरात एटीएस की टीम मुंबई में तीस्ता सीतलवाड़ के घर पहुंचती है। 25 जून 2002 को उन्हें हिरासत में लेने के बाद पहले सांता क्रूज पुलिस स्टेशन लाया जाता है फिर पूछताछ के लिए अहमदाबाद ले जाया जाता है और तब से लेकर 02 सितंबर 2022 तक तीस्ता जेल में रहीं और पुलिस ने चार्जशीट तक फाइल नहीं की। इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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