भारत की छवि ख़ुद भारत सरकार ख़राब कर रही है, दिशा की गिरफ़्तारी यही कहती है!

दिशा गिरफ्तार हुई है। दिशाएँ नहीं। दिशाओं को जीतने के लिए ED और पुलिस के घोड़े खोल कर सरकार ख़ुद ही जगहँसाई करवा रही है। भले सरकार को इन आलोचनाओं से फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन आप दुनिया के अख़बारों को उठा कर देखिए। भारत के बारे में लिखते वक़्त तानाशाही और निरंकुशता के विशेषणों का इस्तमाल किया जाने लगा है। यह सब किसी साज़िश का हिस्सा नहीं है बल्कि सरकार की करनी के कारण है। दुनिया भर में दूतावासों के बाहर प्रदर्शन होते हैं। भारत में भी दूतावासों के बाहर होते हैं। दूतावासों के बाहर प्रदर्शन करने की योजना भारत की छवि ख़राब करने की योजना नहीं है। आतंकी साज़िश नहीं है। इससे तो छवि बेहतर होती होगी कि भारत के लोग कहीं भी रहते हैं अपने देश की नीतियों को लेकर जागरूक रहते हैं। लोकतंत्र में लोक की सक्रियता ज़रूरी होती है। उसके कारण लोकतंत्र की छवि निखरती है न कि सरकार के कारण। यह सरकार हर बात को इस तरह से पेश करने में लगी है कि भारत की छवि ख़राब की जा रही है। जबकि भारत की छवि ख़ुद भारत सरकार ख़राब कर रही है।

इतनी मज़बूत सरकार के रहते आतंक इतना फैल चुका है तो फिर वह सरकार मज़बूत कैसे हो गई। हो यह रहा है कि सरकार हर आलोचक को आतंक से जोड़ते जोड़ते यहाँ तक आ गई है उसे हैलोसिनेशन होने लगा है। उसे हर तरफ़ आतंकी दिखने लगे हैं।

नवंबर महीने से किसान आंदोलन को आतंक से जोड़ा जा रहा है। इस मज़बूत सरकार की हालत यह है कि ग्रैता थनबर्ग के ट्विट करने के बाद पता चला कि ये कोई आतंकी साज़िश है। पुलिस ने ख़ुद कहा है कि चार फ़रवरी के ट्विट से पता चला। दरअसल आप देख सकते हैं कि किसान आंदोलन में आतंकी साज़िश ढूँढ लाने के लिए सरकार काफ़ी मेहनत कर रही है। गोदी मीडिया और ख़ुद के बनाए नैरेटिव को बचाने के लिए उसकी मजबूरी समझी जा सकती है। बंगलुरू से 22 साल की दिशा को पकड़ लाई है। टूल किट टूल किट कहा जा रहा है। ऐसे प्रचारित किया जा रहा है जैसे उसमें बम बनाने के तरीक़े बताए गए हों।

उस टूल किट में अंबानी और अड़ानी के दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन करने की बात लिखी है। क्या यह आतंकी साज़िश है? मुंबई में अंबानी के दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन हो चुके हैं। महाराष्ट्र के किसानों ने किया है। इससे किसी का क्या बिगड़ गया। आस्ट्रेलिया के अख़बारों में तो आए दिन अड़ानी के बारे में छपता रहता है। वहाँ लोग प्रदर्शन करते रहते हैं। आप इंटरनेट पर सर्च कर लीजिए। अगर सरकार को इन दो उद्योगपतियों की आलोचना से इतनी तकलीफ़ है तब फिर कुछ किया नहीं जा सकता। फिर इतना सब करने की ज़रूरत क्यों है कि आप घरों से 20-22 साल की लड़कियों और लड़कों को निकाल कर लाएँ, आतंक की धारा लगाएँ। अगर सरकार को समझ नहीं आ रहा है तो मैं सरकार को एक तरीक़ा बता सकता हूँ।

इसके लिए प्रधानमंत्री को सुबह सुबह टीवी पर आना होगा। देश से कहना होगा भाइयों बहनों आप सभी कुछ देर के लिए आँखें बंद करें। देश चुपचाप आँखें बंद कर लेगा। कुछ समय बाद प्रधानमंत्री कहें कि अब आप सभी आँखें लें। देश आँखें खोल देगा। फिर प्रधानमंत्री पूछे कि देश बताए कि क्या दिख रहा है तो देश पूछेगा कि बताइये क्या दिख रहा है। प्रधानमंत्री तब कहें कि सारा देश अंबानी और अड़ानी का दिख रहा है। देश पूछेगा कैसे? प्रधानमंत्री कह देंगे कि मैंने दे दिया। तब देश कहेगा कि हाँ हाँ, सारा देश अंबानी अड़ानी का दिख रहा है। प्रधानमंत्री फिर कहें कि भाइयों और बहनों, अब देश ताली बजाएगा। तब देश ताली बजाने लगेगा और कहेगा कि मोदी जी जो कर रहे हैं सोच समझकर ही कर रहे हैं। देश के लिए कर रहे हैं।

बस काम हो जाएगा। इतनी मेहनत की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। पुलिस के बड़े अफ़सर भी रात को अच्छी नींद सो सकेंगे कि उन्हें अपने बच्चों की उम्र के नौजवानों को फँसाना नहीं पड़ रहा है। उसका अपराध बोध नहीं पालना पड़ रहा है। उन्हें भी अच्छा नहीं लगता होगा कि किसी बच्चे को फँसाने के लिए ज़बरन उसके लिखे हुए भी आतंकवाद ढूँढा जाए। क्या पता अब उन्हें अच्छा लगने लगा हो।

आप सभी नौजवानों को यह भारत मुबारक। मैं कहता था कि भारत के नौजवानों से कोई उम्मीद नहीं करता। मैं उन्हें 100 में सिर्फ़ तीन नंबर देता हूँ। आप हर बार साबित कर देते हैं कि मैं सही था। ये तीन नंबर भी दिशा के कारण मिले हैं। जयहिंद !


रवीश कुमार, जाने-माने टीवी पत्रकार हैं। संप्रति एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।

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