मैं मदद करूंगा लेकिन अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक नौजवानों से बधाई नहीं लूंगा- रवीश कुमार

 

आख़िर रेल मंत्री पीयूष गोयल को अपने ट्विटर हैंडल पर रेलवे भर्ती की परीक्षाओं की तारीख़ का एलान करना ही पड़ गया। रेलवे की भर्ती परीक्षा देने वाले करोड़ों नौजवान न जाने कब से उनके ट्विटर हैंडल पर गुहार लगा रहे थे मगर मंत्री जी ने संज्ञान तक नहीं लिया। आप ख़ुद उनके ट्विटर हैंडल पर जाकर ढूंढ सकते हैं कि कभी छात्रों को आश्वासन तक दिया है। लोकसभा चुनावों से पहले रेल मंत्री खुद ही भर्तियों का एलान करते थे मगर अब रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के वीडियो बयान पर ट्टीट कर सिर्फ जानकारी दे दी। सरकार रोज़गार देने के लिए प्रतिबद्ध है, चिन्ता करती है ये सब सियासी औपचारिकता भी नहीं थी। ख़ैर..

तालाबंदी के बाद रेलवे ने एलान किया था कि इस साल नई भर्तियां नहीं होंगी। सारे विभागों में पदों की कटौती की जा रही है। उसके बाद भी छात्रों ने परीक्षा की तारीख का वादा ले लिया तो राहत की बात है। 15 दिसंबर की तारीख है यानी ये परीक्षाएं अब 2020 से निकल कर 2021 के साल में चली गई हैं। कब ज्वाइनिंग होगी कोई नहीं जानता क्योंकि रेल मंत्री ने इसी आंदोलन में शामिल सहायक लोको पायलट की ज्वाइनिंग का कोई आश्वासन नहीं दिया है। लोकसभा चुनावों के कारण 2018 में उसका विज्ञापन निकला था। नौजवान पास कर चुके हैं। सारी प्रक्रिया पूरी कर चुके हैं। सिर्फ चिट्ठी देकर उन्हें ट्रेनिंग पर भेजना है ताकि सैलरी मिलनी शुरू हो जाए, इन सब पर कुछ नहीं कहा गया है।

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने जो आंकड़े दिए हैं उनसे काफी जानकारी मिलती है। जिन तीन परीक्षाओं की तारीख की बात कही गई है उसमें 1 लाख 40 हज़ार से अधिक पद हैं। जिसके लिए 2 करोड़ 45 लाख छात्रों ने फार्म भरे थे। बोर्ड के चेयरमैन कोविड का बहाना बता रहे थे। उन्हें याद दिला दूं कि रेलवे की नॉन टेक्निकल पोपुलर कैटेगरी की परीक्षा का फार्म भरने का काम अप्रैल 2019 में पूरा हो चुका था। इस परीक्षा को जून से सितंबर 2019 के बीच होने का प्रस्ताव था। तब कोविड का नामो-निशान नहीं था। फिर वो परीक्षा समय पर क्यों नहीं हुई ? 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले 2018 में जो वेकेंसी आई थी तब भी नौजवानों ने करोड़ों फार्म भरे थे, तब कितनी जल्दी स्क्रूटनी हो रही थी।

आज अगर सहायक लोको पायलट की परीक्षा पास कर घर बैठे बाकी नौजवानों की ज्वाइनिंग की तारीख़ का एलान होता तब मैं कहता कि छात्रों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। मगर आप ग़ौर करें। ज्वाइनिंग की बात पर चुप्पी है। इसलिए यह आंशिक कामयाबी है। दूसरी अन्य परीक्षाओं के शामिल छात्रों के आश्वासन के लिए भी कुछ नहीं मिला। किसी सरकार ने नहीं कहा। बैंकिंग परीक्षा में सीटों की संख्या काफी घट चुकी है। वहां भी  रेलवे और एस एस सी जैसा हाल है। इसलिए तारीख के एलान से यह न समझें कि रेलवे ज्वाइनिंग को लेकर वचनबद्ध और प्रतिबद्ध है।

क्या तारीख़ का एलान इसलिए किया गया कि इस वक्त छात्रों के बीच व्यापक एकता बनी है वो टूट जाए? ऐसा कहने के कुछ आधार हैं। इस आंदोलन की कसौटी एक ही है। ज्वाइनिंग। उसके बाद परीक्षा और रिज़ल्ट के एलान का नंबर आता है। रविवार को आंदोलन शुरू हुआ तब एस एस सी को कहना पड़ा कि सितंबर के अंत तक तीन परीक्षाओं के रिज़ल्ट निकाल दें। उसके बाद दस्तावेज़ जांच और ज्वाइनिंग में भी एक साल निकालने का इरादा है या वो भी इसी साल पूरी करेंगे, इस पर कोई जवाब नहीं आया। कोई मंत्री सामने आए तब तो पता चले कि सरकार इस आंदोलन से हिल गई है। ख़ैर एस एस सी के छात्रों को सितंबर के बाद ही पता चल जाएगा कि उनकी ज्वाइनिंग को लेकर सरकार कितनी ईमानदार है?

क्या यह विपक्ष की जीत है? मूल रूप से आंदोलन छात्रों का अपना था मगर विपक्ष ने भी अपना समर्थन दिया। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव ने लगातार यह मुद्दा उठाया। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन भी किया और लाठियां भी खाईं। राजनीतिक टिप्पणीकार मेरी इस बात को खास तौर से नोट करें कि छात्रों ने विपक्ष के आंदोलन से सचेत दूरी बनाए रखी। प्रधानमंत्री के यू ट्यूब वीडियो को डिसलाइक करने लगे लेकिन उसी रफ्तार में राहुल या प्रियंका के उन्हीं के मुद्दे पर किए गए ट्वीट की लाइक की संख्या बढ़ाने से बचते रहे।

इस ट्रेंड को नोट किया जाना चाहिए। विपक्ष से दूरी और सरकार से नज़दीकी से छात्रों को क्या मिला इसका हिसाब वही बेहतर करेंगे लेकिन लोकतंत्र का तराजू इस तरह से बैलेंस नहीं होता है। दूसरी तरफ कांग्रेस शासित सरकारों को सरकारी भर्तियों के मामले में कुछ अलग और क्रांतिकारी करने की ज़रूरत है ताकि छात्रों में विश्वसनीयता बने। एक ही छात्र जो राज्य में पीड़ित है वही केंद्र से भी पीड़ित है।

मैंने नौकरी सीरीज़ के दौरान प्राइम टाइम में कई बार कहा है और फेसबुक पर लिखा है कि जब तक आप अपनी अपनी परीक्षाओं की लड़ाई लड़ेंगे तब तक कुछ नहीं होगा। सबको अपनी और दूसरे की परीक्षा के लिए लड़ना होगा। बिहार के नौजवान को दिल्ली के लिए और मध्य प्रदेश के नौजवान को राजस्थान के लिए लड़ना होगा। ठीक है कि एकता का एक नज़ारा मिला लेकिन क्या यह एकता दूसरी परीक्षाओं के सताए नौजवानों के लिए टिकी रहेगी या फिर से अपना-अपना हो गया जो सरकार चाहती है कि ऐसा ही हो जाए।

अगर केंद्र और राज्य सरकारें बीस परीक्षाओं पर चुप रहें और तीन की तारीख़ का एलान कर दें तो क्या रवीश कुमार उस आंदोलन को सफल कहेंगे, ज़ाहिर है नहीं कहेंगे। बहुत से बहुत आंशिक सफल कहेंगे। जैसे कोई हड़ताल पूर्ण रूप से नहीं, आंशिक रूप से सफल होती है। क्या इस आंदोलन से कुछ भी हासिल नहीं हुआ, इसके कुछ जवाब हैं। छात्रों ने बिना मीडिया के सरकार को बता दिया कि बेरोज़गारी को हिन्दू-मुस्लिम डिबेट और गोदी मीडिया के प्रोपेगैंडा से आप नहीं ढंक सकते। उनके हाथ में अब वही थाली है जो प्रोपेगैंडा के नाम पर बजवाई गई थी। इस चेतना का आना भी एक नई आहट है।

कई छात्र मुझे बधाई संदेश भेज रहे हैं। मैं उनका आदर करता हूं। मैं जानता हूं कि वे मुझे प्यार करते हैं। मैं उनकी बधाई अस्वीकार करने की इजाज़त चाहूंगा। तथ्यहीन प्रोपेगैंडा की चपेट में नौजवानों के जिस व्यापक समूह में मुझे गंदी गालियां दी जाती हों उस समूह से मैं दूर रहना चाहूंगा। उनकी सेवा करूंगा लेकिन उनसे बधाई नहीं लूंगा। यही मेरी सज़ा है।

मेरा मकसद साफ है। पहले भी कहा है। किसी नेता में कहने की हिम्मत नहीं होगी। मैं सांप्रदायिक और अलोकतांत्रिक नौजवानों का हीरो नहीं बनना चाहता। उनकी ताली से गाली भली। जब तक आप नौजवान इस सुंदर मुल्क के लोकतंत्र को बेहतर नहीं करेंगे, अपने लिए, सबके लिए, जिसमें मां बहन की गाली का संस्कार न हो, किसी के बोलने पर मारने पीटने का संस्कार न हो तब मुझे आपसे बधाई नहीं चाहिए। अब आप कहेंगे कि तो परीक्षा की तारीख हासिल कर हम कुछ भी न करें। मेरा जवाब है, आज आप सभी एक एक जलेबी खा सकते हैं। मगर मिल कर खाइयेगा, दूसरों को खिलाइयेगा। आपका जीवन अच्छा हो।

नोट- गाली देने वाले देते रहें, न देते तो अच्छा होता लेकिन देख लीजिए आपके लिए कौन खड़ा है। और हां नौकरी सीरीज़ को मैं विराम दे रहा हूं। मुझे मैसेज न करें। आपस में एकता बनाएं। शालीन बने रहें। अभद्र भाषा का इस्तेमाल न करें और लड़ें। आपको लड़ना आ गया है। आप एक दिन जीत जाएंगे।


रवीश कुमार

जाने-माने टीवी पत्रकार हैं। संप्रति एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।

 


 

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