भारी पड़ा टिकैत का पलटवार, आंदोलन को मिली नई धार!

पुरुषोत्तम शर्मा

26 जनवरी 2021 को सत्ता, आरएसएस और भाजपा की साजिशों का शिकार देश का शांतिपूर्ण और अनुशासित किसान आंदोलन बन ही गया। जैसे दिल्ली के सीएए विरोधी आंदोलन को तोड़ने और बदनाम करने के लिए केंद्र की सत्ता और भाजपा-आरएसएस ने दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा की साजिश रची, भाजपा नेता कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा को उसका नायक बनाया। उसी तरह इस पांच माह से शांतिपूर्ण और अनुशासित चल रहे किसान आंदोलन को भी बदनाम करने और हिंसक बनाने के लिए साजिश रची गई।

यह साजिश 26 नवम्बर को किसानों के दिल्ली पड़ाव के 13 दिन बाद ही शुरू हो गई थी, जब दिल्ली पुलिस ने पुलिस और आरएएफ के बैरीकेटों के बीच में उस सतनामसिंह पन्नू का मंच व टैंट लगवा दिए, जिसे पंजाब के किसान संगठनों ने अनुशासनहीनता के लिए अपनी जमात से बाहर किया हुआ था। इसके बाद सतनाम सिंह पन्नू के भाजपा नेता दीप सिंधु उसके साथी लक्खा सदाना को जोड़कर 26 जनवरी की किसान ट्रैक्टर परेड में हिंसा करने और उसे बदनाम करने की साजिशों को अंजाम दिया गया।

आला पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस बैरीकेटों के बीच लगवाए गए पन्नू के मंच से रात भर भड़काऊ भाषण और संयुक्त किसान मोर्चा के बताए रास्ते पर न जाकर लाल किला चलने का आह्वान होता रहा। इसके लिए सिंघू, टीकरी और गाजीपुर पर भाजपा आरएसएस द्वारा आंदोलन में घुसाए गए लोगों को संगठित किया गया। पर जिस पुलिस के सामने यह सब हो रहा था, वह किसके निर्देश पर मूक दर्शक बनी रही? सुबह 11 बजे से निकलने वाली ट्रैक्टर परेड को पुलिस द्वारा सिंघू बॉर्डर में किसके निर्देश पर सुबह सात बजे रास्ता दिया गया। सत्ता का संरक्षण पाए इन जत्थों को पुलिस ने संघू और गाजीपुर बार्डरों से सीधे लाल किला और आईटीओ के रास्ते की ओर जानबूझ कर किसके निर्देश पर भेजा?

इन जत्थों के पीछे चल रहे कुछ किसान भी अनजाने में इनके पीछे चले गए। मगर जल्द ही किसान नेतृत्व ने स्थिति को भांप लिया और ट्रैक्टर परेड को उनके तय रूट पर बढ़ा दिया। सिंघू बार्डर से भेजे गए जत्थे को पुलिस ने आसानी से न सिर्फ लाल किले तक जाने दिया, बल्कि वहां निशान साहिब और किसान यूनियन का झंडा भी फहराने दिया गया। यही नहीं पुलिस ने चार घण्टे तक उस झंडे को इस लिए नहीं उतारा, ताकि किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए उसकी लाइव तस्वीरें ज्यादा से ज्यादा वायरल की जा सकें।

मोदी राज में हर लोकतांत्रिक आंदोलन के साथ सत्ता प्रायोजित साजिशों का जो खेल खेला जाता है, अब वो किसान आंदोलन में भी शुरू हो चुका था। गोदी मीडिया, बीजेपी आईटी सेल व सत्ता के पूरे प्रचार तंत्र को वो सामग्री अब कुशलता से पहुंचा दी गई थी, जिसका इंतजार वे पिछले पांच माह के किसान आंदोलन में कर रहे थे। सिखों को किसान आंदोलन से अलगाव में डालने और उनके खिलाफ 84 जैसे माहौल को बनाने में भाजपा-आरएसएस का पूरा तंत्र लग गया था। इस प्रायोजित घटना के साथ सत्ता की साजिशों और भाजपा-आरएसएस के झूठ की फैक्ट्री के उत्पाद बाहर निकलने लगे। झूठ फैलाया जाने लगा कि लाल किले से राष्ट्रीय ध्वज हटाया गया है। झूठ फैलाया गया कि वहां खालिस्तान का झंडा फराया गया है। झूठ फैलाया गया कि किसान नेताओं ने पुलिस के साथ तय रूट को न मान कर रास्ता बदला और हिंसा कराई।

सत्ता प्रायोजित इस पूरे झूठे प्रचार तंत्र ने किसान आंदोलन के उन ऐतिहासिक और भावुक क्षणों को दुनियां के सामने आने से पूरी तरह ओझल कर दिया, जो इस बार की 26 जनवरी की विशेषता थे। लाखों की संख्या में दिल्ली पहुंचे किसानों के ट्रैक्टरों के मार्च को दिल्ली की जनता से मिले अभूतपूर्व प्यार और समर्थन से देश का किसान अभिभूत है। ट्रेक्टर परेड के सभी मार्गों पर भारी संख्या में सड़क के किनारे खड़े होकर दिल्ली वासियों ने किसानों पर फूल बरसाए, उन्हें पानी, फल, मिठाई और बिस्कुट भेंट किये। यह दृश्य यह समझने के लिए काफी था कि वर्तमान किसान आंदोलन को न सिर्फ किसानों का समर्थन प्राप्त है, बल्कि इसे सभी गरीबों व शहरी मध्यवर्ग का भी व्यापक समर्थन प्राप्त है।

आम जनता के व्यापक समर्थन पर खड़े इस व्यापक किसान आंदोलन को तोड़ने लिए अब सत्ता ने भय और आतंक का माहौल बनाना शुरू किया। पांच माह से शांतिप्रिय और आनुसासित आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाने लगे। किसानों के पड़ाव वाले बार्डरों पर पुलिस और अर्ध सैनिक बलों को बढ़ाया गया। वहां जाने के रास्ते बंद किये जाने लगे। गोदी मीडिया और आईटी सेल का प्रचारतंत्र लोगों के बीच किसानों को खलनायक व देशद्रोही बताने में जुट गया। जल्दी ही दिल्ली बार्डरों पर बड़ी कार्यवाही की खबरों के साथ किसानों में भय का माहौल बनाया जाने लगा। इस बीच वीएम सिंह और भानु जैसे सरकार की भाषा बोलने व किसान आंदोलन से अलगाव में पड़े नेताओं के किसान आंदोलन छोड़ने की खबरों को ऐसे प्रचारित किया गया जैसे आंदोलन में कोई बड़ा विभाजन हो गया हो।

गाजीपुर बॉर्डर पर 27 जनवरी की रात से बिजली पानी के कनेक्शन को काट दिया गया। 28 जनवरी को सचल शौचालय भी हटा दिए गए। इससे किसानों के एक हिस्से में निराशा आने लगी। इसका सबसे बड़ा असर गाजीपुर बार्डर के पड़ाव पर दिखने लगा था। जिला प्रशासन ने गाजीपुर का धरना स्थल खाली करने का नोटिस दे दिया। वहां भारी पुलिस फोर्स लगाई गई। आरएएफ के साथ यूपी की कुख्यात पीएसी भी लगाई गई। गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन संचालित करने वाली कमेटी ने तय किया कि वे धरना स्थल खाली नहीं करेंगे। सरकार चाहे तो उनकी गिरफ्तारी करे।

दिल्ली में 28 जनवरी की सुबह से ही भाजपा-आरएसएस ने सोशल मीडिया पर एक संदेश प्रसारित किया। जिसमें कहा गया कि दिल्ली की सीमा पर बैठे जिन लोगों को हम अब तक किसान समझ रहे थे, वे देशद्रोही निकले। इस लिए दिल्ली की जनता अब इन देश द्रोहियों से बॉर्डर खाली कराने के लिए बॉर्डर की ओर चले। उत्तर प्रदेश में भाजपा व राज्य सरकार ने अपने संगठन आधार के जरिये जिसमें किसान यूनियन का भी आधार है राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम शुरू किया कि अब बदली परिस्थिति में आंदोलन वापस लिया जाये। दूसरी तरफ भाजपा द्वारा किसानों के विरोध में दिल्ली बार्डरों पर प्रदर्शन शुरू किए गए। 28 की शाम को लाठी डंडों के साथ भाजपा विधायकों के नेतृत्व में आए 300 गुंडे गाजीपुर धरने पर बैठे किसानों को धमकी देने लगे।

भारतीय किसान यूनियन के नेता और संयुक्त किसान मोर्चे के एक प्रमुख नेता राकेश टिकैत ने इसी स्थिति को बदलने के लिए तुरन्त मजबूत स्टैंड लिया और गिरफ्तारी देने से इनकार करते हुए आंदोलन जारी रखने का एलान कर दिया। उन्होंने किसानों से गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने की भावुक अपील भी की। इस अपील का पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में तुरंत ही व्यापक असर गया है। अपील सुनते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा से किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर के लिए प्रस्थान शुरू कर दिया। रात 12 बजे से किसानों के जत्थे बॉर्डर पहुंचने लगे।

राकेश टिकैत सहित सभी किसान नेताओं की गिरफ्तारी और बॉर्डर खाली कराने की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की योजना किसानों के नए आते जत्थों से खटाई में पड़ गई। रात एक बजने तक गाजीपुर बॉर्डर पर शक्ति संतुलन बदलने लगा और अर्ध सैनिक बलों की अतिरिक्त टुकड़ियों को वापस जाना पड़ा। भाजपा जिस दुष्प्रचार, पुलिस दमन और राजनीतिक गुंडागर्दी  का प्रयोग सभी जन आंदोलनों से निपटने में अब तक करती रही है, किसान आंदोलन में गाजीपुर मोर्चे पर उसका यह दांव उसे भारी पड़ने जा रहा है।

बदली स्थिति में किसान आंदोलन को तेज करने के लिए आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में खाप पंचायतों और जाट विरादरियों की बैठकें हो रही हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड से किसानों के जत्थे गाजीपुर बार्डर की तरफ बड़ी संख्या में चल पड़े हैं। पंजाब और हरियाणा से टीकरी और संघू बार्डरों पर भी किसानों के जत्थे आ रहे हैं। हरियाणा में जींद चंडीगढ़ मार्ग को किसानों ने रात से जाम कर दिया है। हरियाणा में जिन टोल नाकों को पुलिस ने दो दिन पहले खाली करा दिया था किसानों ने बड़ी संख्या में पहुंच कर उन्हें फिर कब्जे में ले लिया है।

किसान आंदोलन के दमन के लिए सत्ता की साजिशों पर किसान नेता राकेश टिकैत का पलटवार भारी पड़ा है। राकेश टिकैत की 28 जनवरी को निभाई भूमिका ने वर्तमान किसान आंदोलन को नई ऊर्जा व नई धार दे दी है।


पुरुषोत्तम शर्मा, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव हैं।

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