कोरोना वायरस या कोविड-19 अब आधिकारिक रूप से एक वैश्विक आपदा घोषित हो चुका है। इसने एसएआरएस से कई गुना अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। आज की तारीख तक कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या इटली की संख्या को पार करते हुए सबसे अधिक हो गई है। अमेरिका में सार्वजनिक जगहों को बंद किया जा रहा है लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के विरोधाभासी बयानों से अभी तक यह स्थिति साफ नहीं हो पाई है कि अमेरिका व्यापक स्तर पर इस आपदा से निपटने के लिए क्या नीति अपना रहा है।
विशेषज्ञों ने चेताया है कि कई लोग जो इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं वो लोग अभी भी अपने रोजमर्रा के कामों पर जा रहे हैं क्योंकि या तो उनका काम उनको पेड सिक लीव नहीं देता है या फिर अमेरिका की प्राइवेट स्वास्थ्य व्यवस्था एक बड़ी आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं से बाहर कर देती है।
ऐसे में लोगों को पता नहीं है क्या करना है और किसकी सुनना है। ट्रंप अपने ही स्वास्थ्य विभाग के सुझावों को नकारते हुए अर्थव्यवस्था को चलाते रहने की बात कर रहे हैं और किसी जादुई घटना का इंतजार कर रहे हैं कि यह वायरस अपने आप ही समाप्त हो जाएगा। चीन और इटली के अनुभवों को नकारते हुए अमेरिका अब ऐसी स्थिति में पहुंचता जा रहा है कि वह इस तेजी से बढ़ने वाली महामारी से होने वाले नुकसान को कम से कम करने का मौका हाथ से निकलता जा रहा है।
आपदा की ऐसी परिस्थितियां सरकारों और दुनिया के अमीर वर्ग के लिए एक सुनहरा मौका होती हैं जब वे अपने उन राजनीतिक एजेंडे को लागू करने में लग जाती हैं जिनको सामान्य समय में लागू करते वक्त विरोध का सामना करना पड़ता। आपदा के समय यह घटनाक्रम कोई पहला मौका नहीं है। एक्टिविस्ट और लेखक नाओमी क्लेन ने इसे शॉक डॉक्ट्रिन का नाम दिया है और इसी नाम से 2007 में प्रकाशित दि शॉक डॉक्ट्रिन किताब में इसका विस्तार से जिक्र किया है।
इतिहास झटकों या शॉक्स का एक कालक्रम है। यह झटके कभी युद्ध, कभी प्राकृतिक आपदा और आर्थिक मंदी के रूप में आते हैं। इन झटकों के उपाय के तौर पर जो किया जाता है उसे “डिजास्टर कैपिटलिस्म” कहते हैं जो मौजूदा असमानता और शोषण का विस्तार करते हुए मुक्त-बाजार के “समाधान” होते हैं।
क्लेन बताती हैं कि “वे ऐसा इसलिए नहीं कर रहे हैं कि उनको लगता है कि यह महामारी के दौरान संकट से निपटने का सबसे कारगर तरीका है बल्कि सामाजिक सुरक्षा में कटौती करने के उनके जो विचार हैं उनको लागू करने के लिए वे इसे एक अवसर के रूप में देख रहे हैं।”
16 मार्च को वाइस यूएस को दिए इस इंटरव्यू में क्लेन बताती हैं कि कैसे कोरोना वायरस उन घटनाक्रमों को रास्ता दे रहा है जिसका जिक्र उन्होंने अपनी एक दशक पुरानी किताब दि शॉक डॉक्ट्रिन में किया था।
क्वारेंटीन में बैठे-बैठे नाओमी क्लेन की मशहूर किताब “दि शॉक डॉक्ट्रिन” ज़रूर पढ़िए। किताब की पीडीएफ कॉपी यहां क्लिक कर के डाउनलोड करें। साथ ही 2009 में इस पर बनी डॉक्युमेंट्री यहां क्लिक कर के देखें।
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सबसे पहले तो यह बताइए कि डिजास्टर कैपिटलिज्म क्या होता है और इसका “शॉक डॉक्ट्रिन” से क्या संबंध है?
डिजास्टर कैपिटलिज्म के बारे में मेरी व्याख्या वास्तव में सीधी सी है कि किस प्रकार निजी उद्योग किसी बड़े पैमाने की आपदा से सीधे तौर पर मुनाफा कमाने के लिए उठ कर खड़े हो जाते हैं। आपदा और युद्ध के समय मुनाफाखोरी कोई नयी अवधारणा नहीं है, लेकिन बुश सरकार के दौरान 9/11 के बाद यह एक नये स्तर पर पहुंच गया जब प्रशासन ने कभी न खत्म होने वाले सुरक्षा संकट की घोषणा कर दी और साथ ही साथ इसका निजीकरण किया और इसका ठेका भी दिया जिसमें घरेलू स्तर पर निजीकृत सुरक्षा राज्य के साथ-साथ इराक़ और अफगानिस्तान पर [निजीकृत] हमला और कब्ज़ा शामिल था।
“शॉक डॉक्ट्रिन” या शॉक सिद्धांत बड़े पैमाने की आपदा का इस्तेमाल करते हुए उन नीतियों को आगे बढ़ाने की राजनीतिक रणनीति है जो व्यवस्थित ढंग से असमानता की खाई को गहरा करती है, अमीरों को और अमीर बनाती है और बाकी लोगों को काट कर अलग कर देती है। आपदा के समय लोग रोजमर्रा की आपात स्थितियों, चाहे वह जो भी हो से बचने पर ध्यान केन्द्रित करने और सत्ता में बैठे लोगों पर अधिक विश्वास जताने की प्रवृत्ति रखते हैं। ऐसे समय में नीतियों पर से हमारा ध्यान थोड़ा भटक जाता है।
वह राजनीतिक रणनीति कहां से आती है? अमेरिकी राजनीति में इसके इतिहास का पता आप कैसे लगाती हैं?
शॉक डॉक्ट्रिन की रणनीति फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट के अंतर्गत लाये गये “न्यू डील” की प्रतिक्रिया थी। अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन का मानना था कि अमेरिका में न्यू डील के तहत सब कुछ गलत हो गया: 1930 की महामंदी और डस्ट बाउल (अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में हुए सूखे और धूल के बवंडर) की प्रतिक्रिया के रूप में एक अतिसक्रिय सरकार का उभार हुआ, जिसने सरकारी रोजगार सृजित कर के और प्रत्यक्ष राहत मुहैया कर के आर्थिक संकट को सीधे हल करना अपना मिशन बना लिया।
यदि आप मुक्त-बाजार के एक कट्टर समर्थक अर्थशास्त्री हैं तो आप यह समझते हैं कि जब बाजार विफल होता है तो बाजार बड़े उद्योगों को फायदा पहुंचाने वाली नियंत्रण-मुक्त करने वाली नीतियों के बजाय प्रगतिशील परिवर्तनों की तरफ अधिक बढ़ता है। इसलिए शॉक डॉक्ट्रिन को इस रूप में विकसित किया गया कि संकट के समय उस परिस्थिति को रोका जा सके जिसमें प्रगतिशील नीतियां उभर सकें। राजनीतिक और आर्थिक रूप से शासन करने वाला वर्ग संकट की इन परिस्थियों को एक ऐसे मौके के रूप में देखता है कि वह अपने पसंद की जनविरोधी नीतियों को कैसे लागू करवाये, जिससे देश और पूरे विश्व में धन और संपदा उसके पास इकट्ठी होती रहे।
अभी वर्तमान में कई संकट हमारे सामने हैं: एक महामारी और उससे निपटने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी, इसके अलावा लगातार गिरता हुआ स्टॉक मार्केट। यह सारे तत्व मिल कर आपके द्वारा बताए गए शॉक डॉक्ट्रिन के खाके में कैसे फिट बैठते हैं?
वास्तव में यह वायरस ही शॉक है और अभी तक इसका उपाय इस तरह किया गया है जिससे भ्रान्ति बढ़ रही है और संरक्षण कम हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि यह कोई कन्स्पिरेसी या साजिश है, बल्कि जिस तरह से अमेरिकी सरकार और ट्रम्प ने इस संकट को पूरी तरह से गलत बताया है और अब तक इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में नहीं बल्कि धारणा के संकट के रूप में माना है, यह उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए एक संभावित समस्या है।
यह सबसे ख़राब स्थिति है, विशेष तौर पर इस तथ्य को साथ जोड़ कर देखें कि अमेरिका के पास एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना नहीं है और कामगारों को न के बराबर सुरक्षा प्राप्त होती है। इन सबके मेल ने सबसे बड़ा शॉक या झटका दिया है। अब इसका उपयोग उन उद्योगों को बेलआउट करने (बचाने) में किया जाएगा जो जलवायु संकट जैसी सबसे भयानक आपदाओं को पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं, जिनमें एयरलाइन इंडस्ट्री, गैस और तेल इंडस्ट्री और क्रूज इंडस्ट्री शामिल हैं।
क्या आपने ऐसा होते हुए पहले भी कभी देखा है?
दि शॉक डॉक्ट्रिन किताब में मैंने इसका जिक्र किया है कि कैसे कैटरीना तूफान के बाद ऐसा किया गया। हेरिटेज फाउंडेशन जैसे वाशिंगटन थिंक टैंक कैटरीना तूफान से हुई तबाही के लिए ‘मुक्त-बाजार समर्थित’ उपायों की एक सूची ले कर आये। हमें मान लेना चाहिए कि अब भी ऐसी ही बैठकों का दौर चलेगा। कैटरीना के समय जो व्यक्ति उस समूह की अध्यक्षता कर रहा था वो माइक पेंस था। आपने देखा होगा कि 2008 की मंदी में बैंकों के असल बेलआउट के समय यही खेल खेला गया, जहां देशों ने इन बैकों को ब्लैंक चेक थमाये जिनकी राशि जुड़ कर खरबों डॉलर हो गयी लेकिन इसका भुगतान इकोनॉमिक ऑस्टेरिटी (आर्थिक शुचिता) के रूप में हुआ जो बाद में नागरिकों के सामाजिक सुरक्षा की सेवाओं में कटौती के तौर पर सामने आया। तो यह अभी क्या हो रहा है, सिर्फ उसके बारे में नहीं है बल्कि आगे क्या होगा उस बारे में हैं जब इस आपदा में खर्च हुई राशि की वसूली की जाएगी।
कोरोना वायरस की जो प्रतिक्रिया हम अभी देख रहे हैं, उस सन्दर्भ में क्या जनता कुछ कर सकती है जिससे डिजास्टर कैपिटलिज्म से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके? कैटरीना तूफान या पिछली वैश्विक आर्थिक मंदी के समय हमारी जो स्थिति थी उसको देखते हुए क्या हम अभी उससे बेहतर स्थिति में हैं या बदतर स्थिति में हैं?
जब कोई आपदा हमारी परीक्षा लेती है तब या तो हम हार कर गिर जाते हैं या फिर हम कहीं छिपी हुई शक्तियों और करुणा के साथ विशाल बन कर उठ खड़े होते हैं जिसके बारे में हमें खुद पता नहीं होता है कि हम ऐसा करने में सक्षम भी थे। और यह ऐसी ही एक परीक्षा होगी। 2008 से इतर इस बार मुझे कुछ उम्मीद है और उसका कारण यह है कि इस बार हमारे सामने एक वास्तविक राजनीतिक विकल्प मौजूद है जो हमारी समस्याओं के मूल कारणों तक जाकर संकट से निपटने के लिए एक अलग प्रकार के उपाय की बात कर रहा है और एक बड़ा राजनीतिक आन्दोलन है जो इसका समर्थन करता है।
ग्रीन न्यू डील के आसपास जो सारा काम किया गया, वह ऐसे ही किसी क्षण की तैयारी के तहत था। अब हम अपना साहस नहीं खो सकते हैं; अब हमें यूनिवर्सल हेल्थ केयर, युनिवर्सल चाइल्ड केयर और पेड सिक लीव के लिए पहले से कहीं ज्यादा कठिन लड़ाई लड़नी है और ये सारे मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं।
अगर हमारी सरकारें और दुनिया का अमीर तबका इस संकट से अपना फायदा उठाने जा रहा है, तो लोग एक-दूसरे की देखभाल करने के लिए क्या कर सकते हैं?
“मैं सबसे बढ़िया बीमा लेकर अपना खयाल खुद रख सकता हूं, और अगर तुम्हारे पास अच्छा बीमा नहीं है तो इसमें तुम्हारी गलती है, यह मेरी समस्या नहीं है”: जो जीता वही सिकंदर या वीरभोग्या वसुंधरा वाली आर्थिक समझदारी हमारे दिमाग के साथ यही करती है। इस संकट ने यह साबित कर दिया है कि हमारे बीच परस्पर जो परदा था, वह बेहद झीना था। हम अब जाकर देख पा रहे हैं कि हम एक दूसरे से परस्पर कहीं ज्यादा जुड़े हुए हैं, उससे भी ज्याद जितना कि यह क्रूर अर्थव्यवस्था हमों बताती है।
हम ऐसा सोच सकते हैं कि हमारे पास अच्छी स्वास्थ्य सुविधा है तो हम सुरक्षित हैं लेकिन जो व्यक्ति हमारा खाना बना रहा है, या खाना देने आ रहा है, या डब्बा पैक कर रहा है उसके पास स्वास्थ्य सुविधा नहीं है और वह वायरस का परीक्षण कराने में भी सक्षम नहीं है। वह काम छोड़ कर अपने घर पर भी नहीं रह सकता क्योंकि उसके पास पेड सिक लीव भी नहीं है। हम तब तक सुरक्षित नहीं रह सकते हैं जब तक कि हम सभी एक-दूसरे की देखभाल न करें। हम सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं।
सामजिक संरचना के विभिन्न तरीके हमारे अपने विभिन्न व्यवहारों को सामने लाते हैं। यदि आप एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं जिसमें आपको पता है कि यह सभी लोगों की देखभाल नहीं कर रही है और संसाधनों का समान वितरण नहीं हो रहा है तो आपका जमाखोरी करने वाला व्यवहार सामने आएगा। इसलिए इस बात को ध्यान में रखें, अपने और अपने परिवार के देखभाल के लिए जमाखोरी करने के बजाय यह सोचें कि कैसे आप अपने पड़ोसियों से इसे साझा करने का एक केंद्र बन सकते हैं और कैसे समाज के सबसे कमजोर लोगों की मदद कर सकते हैं।
प्रस्तुतिः अंकुर जायसवाल