कोरोनावायरस: गलत जानकारी बढ़ाती है हताशा

जानलेवा  कोरोना वायरस से पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है, अब तक लाखों इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और हजारों की संख्या में लोग रोज मारे जा रहे हैं. ऐसे में कोरोना को लेकर एक आतंक का माहौल पूरे विश्व में है. जबकी जिस चीन के वुहान शहर से यह वायरस फैला था वहां धीरे-धीरे सब सामान्य हो रहा है और वहां इस रोग पर लगभग काबू पा लिया गया है. इसके पूछे मुख्य कारण है सही जानकारी, सावधानी और जागरूकता. कोरोना के सम्बन्ध में हमारे देश में बहुत भ्रम और गलत जानकारी प्रचारित किया गया है. मीडिया विजिल इन ग़लतफ़हमियों को दूर करने की कोशिश में लोगों तक इस वायरस के बारे में और उससे बचाव के बारे में सही जानकारी देने के मुहीम में लगा हुआ है. इसी कड़ी में पेश है यह लेख. यह लेख आजीविका ब्यूरो और बेसिक हेल्थस र्विसेज से जुड़े लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. पवित्र मोहन के साथ एक वार्तालाप, अशोक झा द्वारा, और अर्पिता अमिन के इनपुट के साथ प्रस्तुत इस लेख को पढ़िए: संपादक


कोविड-19 : कोरोना को जानना है

जानकारी किसी आपदा से बचाव का बहुत बड़ा हथियार होता है। कोरोना वायरस के कोविड-19 से फैलने वाली महामारी से बचाव का भी सबसे बड़ा हथियार इसके बारे में जानकारी ही है। पर सोशल मीडिया के इस ज़माने में लोगों के पास जानकारियों की कमी नहीं बल्कि इसकी भरमार है जिसने लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अब यह फ़र्क़ करना मुश्किल हो गया है कि किस जानकारी पर विश्वास करें और किस पर नहीं। इस वायरस ने जिस तरह का क़हर बरपाया है दुनिया में उसकी वजह से लोगों में इसके बारे में सही जानकारी का होना बहुत ज़रूरी हो गया है। क्योंकि बचाव इलाज से बेहतर होता है।

लोगों के मन में कोरोना वायरस को लेकर जो कई तरह की आशंकाएँ हैं उनमें प्रमुख हैं –

लोक स्वास्थ्यविशेषज्ञ और यूनिसेफ़ से अरसे तक जुड़े रहे डॉ. पवित्र मोहन कोरोना वायरस के संक्रमण फैलाने के बारे में कहते हैं कि इससे संक्रमित एक व्यक्ति अनुमानतः2-3 लोगों को संक्रमित कर सकता है। पर इसकी तुलना में पोलियो से अगर कोई संक्रमित है तो वह क़रीब 7 अन्य लोगों को और खसरा (मीज़ल्स) से संक्रमित व्यक्ति 12-15 अन्य बच्चों में संक्रमण फैला सकता है। सो देखा जाए, तो खसरा 5 से 7 गुना ज़्यादा ख़तरनाक है।

कोरोना को लेकर एक आम चिंता लोगों में यह भी है कि इस बीमारी से बचने के लिए हाथ धोने पर विशेष ज़ोर दिया जाता है और यह भी कहा जाता है कि यह हवा से फैलता है। डॉ. पवित्र मोहन का इस बारे मेंकहना है कि यह सही में हवा से फैलता है। पर संक्रमित व्यक्ति के सांस छोड़ने, खाँसी और छींकने से आसपास की हवा में यह वायरस फैल जाता है। जानकारी यह है कि ये वायरस संक्रमित व्यक्ति से अमूमन एक-दो मीटर की दूरी तक प्रभावी रहता है। ज़ाहिर है कि जब कोई व्यक्ति इस संक्रमित हवा के संपर्क में आता है, उसमें साँस लेता है तो यह वायरस उसके शरीर में पहुँच जाता है और संक्रमण फैला देता है। डॉ.पवित्रमोहन का कहना है कि इसीलिए हवा से संक्रमण का ख़तरा उस समय कम हो जाता है अगर कोई  संक्रमित व्यक्ति से एक मीटर से अधिक दूरी बनाए रखता है। हाथ धोने की जरूरत पर डॉ. पवित्र मोहन बताते हैं कि ऐसा करके हम अपने संक्रमित हाथ से वायरस को अपने शरीर में जाने से रोक देते हैं। संक्रमित हाथ से अपने चेहरे, नाक, मुंह आदि को छूने से संक्रमण का ख़तरा अधिक होता है। उन्होंने यह भी कहा कि SARS महामारी के संक्रमण के दौरान पता चला कि हाथ धोने से संक्रमण का ख़तरा 55% तक कम हो गया।

इस सवाल पर कि क्या कोरोना वायरस दुनिया का अब तक का सर्वाधिक घातक वायरस है?, डॉ.पवित्र का कहना है कि इससे पहले ईबोला वायरस का संक्रमण फैला था और उसकी घातकता 25-90% थी। इसकी तुलना में, कोरोना वायरस मात्र 0.9-3% ही घातक है। यहाँ तक कि SARS और MERS से भी यह कम घातक है।

मास्क लगाना है, नहीं लगाना है, इस मुद्दे को लेकर भी दुनिया भर में कई तरह के विचार तैर रहे हैं। कुछ देश जिनमें ऑस्ट्रिया भी शामिल है, ने मास्क लगाने को अनिवार्य कर दिया है पर कुछ देश इसे सबके लिए ज़रूरी नहीं मान रहे, इस दुविधा पर डॉ. पवित्र मोहन ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों का मास्क से बचाव तभी होता है जब इसके साथ-साथ दूसरे एहतियात भी बरते जाएँ।

कोरोना वायरस से लोगों की मौत की आशंका पर उनकी राय यह है कि इससे संक्रमित लोगों में50% तो सिर्फ़ इस वायरस के वाहक होते हैं और इनमें इस बीमारी का कोई लक्षण ही प्रकट नहीं होते। क़रीब 90% में मामूली खाँसी, जुकाम, बुखार आदि होता है जो अधिकतम लगभग दो सप्ताह तक रहता है। पर इनमें से सिर्फ़ 5 से 10% लोग ही गंभीर रूप से बीमार होते हैं। इस स्थिति में मरीज़ के फेफड़े बीमारी की जद में आ जाते हैं और ऐसे में अस्पताल में भर्ती कराना ज़रूरी हो जाता है। जहाँ तक मृत्यु दर की बात है, तो क़रीब 1 से 3% मरीज़ की इससे मौत हो जाती है। पर इसमें भी उम्र एक बहुत बड़ा फ़ैक्टर है। चीन और यूरोप से मिले शुरुआती आंकड़े की मानें, तो 20 से 40 वर्ष के लोगों के मरने की आशंका 0.05% होती है जिसका अर्थ यह हुआ कि 2,000 में 1 की जान जाएगी। 70 साल से अधिक के जो हैं उनमें 8% या 12 में 1के मर जाने की आशंका होती है। इटली में, मरनेवालों की औसत उम्र 80 रही है। इसकी तुलना में, दूसरे वजहों से होने वाली मौत के आंकड़े को देखें तो भारत में प्रसव के दौरान 800 में से 1 महिला की मौत हो जाती है और अमरीका में दिल की बीमारी से ग्रस्त हर 6 में से 1आदमी मर जाताहै।

इस बीमारी में मास्क और संक्रमण से बचने के लिए पीपीई के अलावा जान बचाने में ज़रूरी जिस एक महत्त्वपूर्ण उपकरण की चर्चा हो रही है, वह है वेंटीलेटर जो मरीज़ को कृत्रिम रूप से साँस लेने में मदद करता है। इसकी कमी इस समय दुनिया के हर देशों में चर्चा का विषय है। डॉ. पवित्र का कहना है कि विश्लेषण से पता चला है कि अस्पताल में भर्ती के लिए जो मरीज़ आते हैं उनमें लगभग 70% लोगों को दूसरी बातों के अलावा सिर्फ़ ऑक्सिजन की ज़रूरत होती है। सिर्फ़ शेष 30% को ही वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है और इसके बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि हर बेहतर सुविधा के बावजूद 50% मरीज़ों नहीं बचाया जा सकता है।

अभी तक भारत में संक्रमण की दर के बारे में जो आंकड़े आए हैं वे दूसरे देशों की तुलना में कम है। पर इसको कैसे देखा जाए, इस सवाल पर डॉ. पवित्र मोहन का कहना है कि अभी हम इस बारे में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कह सकते। दूसरे देशों की अगर तुलना करें, तो भारत में बहुत कम जाँच हुए हैं।  यूके में 1,20,776 लोगों की जाँच हुई है पर 28 मार्च तक भारत में सिर्फ़ 26,798 लोगों की ही जाँच हुई। वैसे एक अनुमान यह लगाया जाता है कि अभी तक के ट्रेंड के अनुसार, भारत में संक्रमण की भयावहता दूसरे देशों की तुलना में कम हो सकती है।


 

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