मेहुल चोकसी मामले में मोदी सरकार की भद्द पिटी, कौन ज़िम्मेदार?

गुजरातियों को बचाने और विरोधियों को फंसाने की कहानियां आज अखबारों में देखिए

क्या मीडिया ने देशद्रोह के आरोप से बचने के लिए खबर को कम महत्व दिया, या सरकार का डर ही कारण है

 

 

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज (मंगलवार, 21 मार्च 2023) पहले पन्ने पर छपी तीन खबरों की बात करता हूं। इनमें पहली खबर का शीर्षक है, उत्पाद शुल्क जांच: ईडी ने कविता से 10 घंटे से ज्यादा पूछताछ की। दूसरी खबर है, गृहमंत्रालय दान के लिए हर्ष (मंदर) के एनजीओ की सीबीआई जांच के पक्ष में। तीसरी खबर का शीर्षक है, फडनविस की पत्नी से वसूली की कोशिश में बुकी गिरफ्तार। (यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में भी पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है।) इन तीन खबरों के अलावा आज एक और खबर है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर नहीं है, उसपर आने से पहले बता दूं कि टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में ही एक और खबर टॉप पर है, राहुल, अदानी मुद्दे पर संसद में गतिरोध जारी। निश्चित रूप से यह भी आज की महत्वपूर्ण खबर है  (भले लीड लायक नहीं हो) और आज मैं लीड जैसी खबर की नहीं,चार एक जैसी खबरों की बात करूंगा। और कहूंगा कि चौथी खबर भी टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी। 

इन चार खबरों में एक, “हर्ष मंदर के एनजीओ पर सीबीआई जांच की सिफारिश” कहती है, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान (विनियमन) कानून का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा स्थापित गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘अमन बिरादरी’ के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच की सिफारिश की है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह न तो भ्रष्टाचार का मामला है और न भारी राशि की हेराफेरी का ना किसी को अमीर बनाने के लिए गैर कानूनी तरीके अपनाने का और न ही किसी आपराधिक कृत्य से पैसे बनाने का। मामला जनसेवा का ही है। विदेशी चंदे के संबंध में सरकार ने नियम बनाए हैं, जिसके उल्लंघन का मामला है। बेशक, उल्लंघन गलत है लेकिन इसके लिए क्या हर्ष मंदर को परेशान किया जाना जायज है? क्या चेतावनी देकर, कथित अवैध धन जब्त करके मामले को खत्म नहीं कर दिया जाना चाहिए और नहीं किया जाए तो क्या यह जरूरी नहीं है कि सभी मामलों में एक जैसी कार्रवाई हो? क्या इससे गंभीर अपराध की कोई जांच लंबित नहीं है? इस खबर के साथ लिखा है, अधिकारियों ने यह जानकारी दी और तमाम मामलों में जानकारी नहीं दी जाती है। अखबार क्या अधिकारियों की दी जानकारी ही छापने के लिए हैं?

एक और महत्वपूर्ण खबर जो पहले पन्ने पर नहीं है, टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने के पीछे छपी है। इसे कितने लोग पढ़ते हैं पता नहीं, मैं तो नहीं पढ़ता। आज हुआ यह कि पहले पन्ने पर क्रिकेट बुकी अनिल जयसिंघानी की गिरफ्तारी की खबर है और इसका विवरण अधपन्ने के पीछे होने की सूचना है। वहीं बाकी खबरें भी मिल गईं। हालांकि, खबरें तो कल की हैं और मुझे मालूम थीं। मैं तो उनकी प्रस्तुति देखने और बताने में के लिए ढूंढ़ता हूं। आज आर्थिक मामलों में भारतीय एजेंसियों की भूमिका, परिणाम या प्रचार और उसपर मीडिया के रवैये की चर्चा सबसे महत्वपूर्ण है। इस क्रम में यह बताना जरूरी है कि चौथा मामला मेहुल चोकसी से संबंधित है। यह भारतीय एजेंसियों की बदनामी या नालायकी से जुड़ा है इसलिए इसे पहले पन्ने पर होना चाहिए था क्योंकि सरकार आजकल विदेश में भारत की बदनामी को लेकर परेशान है और संसद में मुद्दा बनाए हुए है। 

इस खबर का शीर्षक है, इंटरपोल ने आरसीएन को खारिज किया, भगोड़ा चोकसी यात्रा करने के लिए आजाद। बेशक यह खबर इस पन्ने पर लीड है और पूरी प्रमुखता से छपी है। इसी पन्ने पर दो और खबरें हैं जिनकी चर्चा मैं कर चुका हूं। एक जैसी खबरें एक साथ छापने के नियम के तहत इस पन्ने पर यह भी बताया गया है कि सरकार के अनुसार आठ साल में आयकर की 5931 तलाशी में 8800 करोड़ रुपए की परिसंपत्ति जब्त हुई है। इस खबर की चर्चा कर रहा हूं तो यह भी बता दूं कि मोटा-मोटी 6000 तलाशी और 9000 करोड़ की जब्ती मान लें तो एक तलाशी में औसत जब्ती डेढ़ करोड़ की है। यहां गौरतलब है कि जब्ती नकदी या धन की नहीं, परिसंपत्तियों की है और यह शक के आधार पर होगा। बाद में कम भी हो सकता है। नहीं भी है तो तलाशी के हिसाब से बहुत कम है और तलाशी के नाम पर लोगों को परेशान किए जाने के आरोप को मजबूत करती है। लेकिन अभी मेरा मुद्दा यह नहीं है। इसपर फिर कभी। 

जहां तक टाइम्स ऑफ इंडिया में एक जैसी खबरें एक साथ छापने का मामला है, तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी के कविता से पूछताछ का विस्तार इस पन्ने पर नहीं है, पेज नौ पर है जबकि इस पन्ने पर चार कॉलम में फोटो के साथ छपी एक खबर का शीर्षक है, “चूहा मार दवाइयां पुरी के देवताओं को जगाए रख रही हैं”। ठीक है कि ऐसे मामलों में बहुत सख्ती नहीं बरती जा सकती है और इतनी आजादी न मिले या ली जाए तो अखबार बनाना मुश्किल हो जाएगा। इससे पूरी सहमति के बावजूद मेरा मानना है कि मजबूरी नहीं हो (और कहा नहीं जाये) तो आप वही करते हैं जो करना चाहते हैं। मेहुल चोकसी का मामला आप जानते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में यह पहले पन्ने पर है। लेकिन सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को इतना महत्व क्यों दिया है। बाकी ने क्यों नहीं दिया। कारण सरकार को नाराज नहीं करना भी हो सकता है। मेरा काम सभी पहलुओं की चर्चा करना है ताकि इस संबंध में आप अपनी राय बना (या बदल) सकें। 

इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, “सीबीआई को झटका, इंटरपोल ने चोकसी के खिलाफ नोटिस वापस लिया।” दीप्तिमान तिवारी की बाईलाइन वाली खबर इस प्रकार है, “भगोड़े जौहरी मेहुल चोकसी को वापस लाने के सीबीआई और भारत के प्रयासों को एक बड़ा झटका लगा है। इंटरपोल ने 13,500 करोड़ रुपये के पीएनबी ऋण धोखाधड़ी मामले में मुख्य आरोपी के खिलाफ जारी रेड कॉर्नर नोटिस वापस ले लिया है। खबर के अनुसार, नोटिस अब इंटरपोल की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। भारत में चोकसी के वकील विजय अग्रवाल ने कहा, “कानूनी टीम के प्रयासों और मेरे मुवक्किल के मामले की वास्तविकता के कारण, उसका आरसीएन रद्द कर दिया गया है और अंततः सच्चाई की जीत हुई है।” मामले की जांच कर रही सीबीआई ने इसपर टिप्पणी करने से मना कर दिया। अखबार का काम यही होता है और आज अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने (पहले पन्ने पर) यह काम किया है। 

कुल मिलाकर, आज की खबर यही है कि मेहुल चोकसी के मामले में सीबीआई यानी भारत सरकार के मामले या केस को बड़ा झटका लगा है। लेकिन यह खबर इस तरह से तो नहीं के बराबर है। कम से कम पहले पन्ने पर। और कहने की जरूरत नहीं है कि यह अंदर के पन्ने की खबर नहीं है अगर किसी ने की होती तो पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी। इस तथ्य के साथ लोगों को बदनाम करने या सरकारी प्रचार को फैलाने में अखबार की भूमिका देखिये। इस तथ्य के आलोक में याद कीजिए कि मेहुल चोकसी को वापस लाने के प्रयासों का कितना और किस तरह प्रचार किया गया था। जून 2021 में चोकसी को वापस लाने के लिए जेट भेजे जाने की खबर जेट की फोटो के साथ पूरी प्रमुखता से छपी गई थी और भारतीय अधिकारियों के साथ जेट वापस आ गया तो किसी ने यह नहीं पूछा कि आदेश पूरा हुआ बिना जेट किसने और क्यों भेजा था तथा पूरा मामला असल में क्या था। तब भी सरकार का भरपूर प्रचार किया गया औऱ जो तथ्य सरकार के खिलाफ हो सकते थे वो नहीं के बराबर छपे और अब जब पूरी खबर ही सरकार या उसकी जांच एजेंसियों की नाकामी की है तो वह भी नहीं छपी है। मुझे याद नहीं है कि तब कोई चुनाव था या नहीं। हालांकि ऐसी खबरें चुनाव के समय छपवाने और हेडलाइन मैनेजमेंट का मामला अलग है।     

2021 जून में जब भारतीय अधिकारी चोकसी को लाने जेट लेकर गए थे तब उसने अपने अपहरण का आरोप लगाया था। उसने दावा किया कि ये भारतीय एजेंट थे जो उन्हें डोमिनिका – जहां वह रह रहा था, से कैरिबियाई राष्ट्र एंटीगुआ और बारबुडा से ले गए। पर अब साफ है कि भारतीय एजेसियों की वह कोशिश जायज हो या नाजायज नाकाम रही और आगे भी सफलता मिलने की उम्मीद कम है। ऐसी एजेंसी इससे भी कमजोर नजर आने वाले मामलों में जब कार्रवाई करती है तो अखबारों में कितना प्रचार होता है वह देखने लायक है। और अब लगभग सन्नाटा है। उधर इंटरपोल ने कहा है कि भारत लौटने पर मेहुल चोकसी को शायद फेयर ट्रायल न मिले। जानकारों का कहना है कि चोकसी को जबरन भारत लाने की पिछली कोशिश का ही यह परिणाम हुआ है। आप उस कोशिश को जायज मानिये या नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख का क्या हुआ और इसके लिए कौन जिम्मेदार और क्या उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। मीडिया अगर इस मुद्दे को उठाता तो सरकार कार्रवाई के मजबूर होती पर मीडिया अपना काम ढंग से नहीं कर रहा है और इसीलिए मेरा मानना है कि अभी की स्थिति में कोई देशद्रोही है तो वह मीडिया और उसके लोग हैं। 

मेहुल चोकसी के मामले में इंटरपोल की कार्रवाई भारत सरकार या उसकी एजेंसी की नाकामी तो है ही लेकिन इन दिनों जिस तरह गुजराती अपराधियों को बचाया और संरक्षण दिया जा रहा है उसमें शक है कि ऐसा जान बूझकर किया गया हो क्योंकि सरकार की कामयाबी को तो मीडिया खूब प्रचारित करता है। निष्पक्षता और संतुलन का तकाजा है कि नाकामी को भी उतना ही महत्व दिया जाए। पर कम से कम इस मामले में तो ऐसा नहीं हुआ है और यह स्पष्ट है। आप चाहें तो अगले एक-दो दिन टेलीविजन पर होने वाली चर्चा और बहस के विषय भी देख लीजिए तब अपनी राय बनाइएगा। आप जानते हैं कि विजय माल्या के साथ नीरव मोदी को भी विदेश से वापस लाने की कोशिशों का प्रचार किया जाता रहा है पर अभी तक कोई भी भगोड़ा वापस नहीं लाया जा सका है और जो लाया गया है वह दूसरे समूह का अपराधी है। 

आज तक की एक खबर के अनुसार, अपहरण के जिस दावे की वजह से मेहुल को ये राहत मिली है, उसे समझना भी जरूरी है। दो साल पहले 23 मई को चोकसी अपने एंटीगुआ वाले घर से गायब हो गया था (आरोपों के बावजूद वह भारत छोड़कर एंटीगुआ जा सका और वहां रह रहा था)। शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया था कि चोकसी खुद डोमिनिका भाग गया। बाद में उसने कहा कि रॉ ने उसे किडनैप किया था और उसे भारत लाने की कोशिश की जा रही थी। मुझे लगता है कि यह सब प्रचार के लिए किया गया था और प्रचार हुआ भी। असली मकसद उसे फायदा पहुंचाना हो तो वह अब हो गया। लेकिन मामले की जांच नहीं होगी विवरण नहीं दिया जाएगा तो इसकी पुष्टि कैसे होगी। इस मामले की बात करें तो जनवरी 2018 की शुरुआत में पंजाब नेशनल बैंक में करीब 13 हजार करोड़ रुपये के  घोटाले का पता चला था। इस मामले में 30 जनवरी को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन उससे पहले ही इस घोटाले के दो मुख्य आरोपी – नीरव मोदी और मेहुल चोकसी भारत छोड़कर भाग गए थे। तब से ही दोनों आरोपियों के प्रत्यर्पण की कोशिश की जा रही है। अखबारों में प्रचार छपता रहता है। नीरव मोदी ब्रिटेन में है और मेहुल एंटीगुआ में रह रहा है। 

आज जिस गुजराती बुकी को गिरफ्तार किया गया है उसके बारे में बताया गया था कि वह आठ साल से फरार चल रहा था। उसकी बेटी अनिच्छा डिजाइनर है और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणविस की पत्नी का आरोप है कि उसने उनसे नजदीकी बनाई और फिर बुकी के जरिए पैसे कमाने की पेशकश की और पिता पर चल रहे मुकदमे से बचाने के लिए रिश्वत देने की पेशकश भी की। पूरी कहानी इंडियन एक्सप्रेस में छपी थी और तब मैंने लिखा था कि इस एफआईआर पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि तथ्यों से लग रहा था डिजाइनर ने उप मुख्यमंत्री की पत्नी को कपड़े और गहने दिए थे जो उन्हें वापस नहीं किए गए और संभावना थी कि वह उनसे इन्हें वापस मांग रही थी और बचने या टालने के लिए अनिच्छा को ब्लॉक भी कर दिया गया था। फिर भी नहीं मानी तो एफआईआर हुई और कार्रवाई नहीं हुई तो कई दिनों बाद खबर छपी। तब जाकर पहले बेटी को और अब पिता को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन मुझे अखबारों की कहानी पर यकीन नहीं है और किसी ने दूसरा पक्ष छापा नहीं है। 

इसी तरह कश्मीर में पकड़े गए गुजराती ठग का मामला है। मीडिया इस मामले में भी आवश्यक जांच नहीं कर रहा है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उसकी पत्नी तथा गृहमंत्री अमितशाह के साथ ठग किरण पटेल की फोटो आ चुकी है। इसका भी ना खंडन हुआ है और ना पुष्टि हुई है। इस मामले में तथ्य यह भी है कि किरण पटेल के साथ दो अन्य लोग पकड़े गए थे जिन्हें छोड़ दिया गया। आज द टेलीग्राफ ने खबर छापी है कि इन दो में एक उस व्यक्ति का बेटा है जो प्रधानमंत्री के करीबी हैं। श्रीनगर डेटलाइन से मुजफ्फर रैना की खबर इस प्रकार है, पता चला है कि नरेंद्र मोदी सहित गुजरात के सभी मुख्यमंत्रियों के लिए 2000 से जनसंपर्क अधिकारी होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति का बेटा कथित ठग के साथ था, जिसने खुद को पीएमओ अधिकारी के रूप में पेश किया और अपनी यात्राओं के दौरान सरकारी खर्चे पर विशेषाधिकारों का दुरुपयोग किया। पीएमओ में अतिरिक्त निदेशक (रणनीति और अभियान) होने का दावा करने वाला संदिग्ध शख्स किरण पटेल हिरासत में है, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस ने रहस्यमय तरीके से उसके दो सहयोगियों, गुजरात के अमित पंड्या और जय सीतापारा को केंद्र शासित प्रदेश छोड़ने की अनुमति दे दी।

किरण के वकील रेहान गौहर ने कहा कि तीन मार्च को श्रीनगर के एक पांच सितारा होटल में छापेमारी के दौरान पुलिस ने तीनों को उठाया था। लेकिन पिछले शुक्रवार तक इसे छुपा कर रखा गया था। अमित और जय को पुलिस ने पूछताछ के लिए वापस बुलाया है। अमित एक पत्रकार से नेता बने हितेश पांड्या के बेटे हैं, जिन्होंने कहा कि वह गुजरात के पांच मुख्यमंत्रियों के पीआरओ थे। हितेश के सोशल मीडिया बायो में कहा गया है कि वह गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल के पीआरओ और सरकार के मीडिया सलाहकार हैं। हितेश के नाम वाले एक असत्यापित ट्विटर अकाउंट पर हेडर इमेज में उन्हें मोदी जैसे दिखने वाले व्यक्ति के साथ दिखाया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि किरण पटेल का मामला जितना गंभीर है उस मामले में ये सब शुरुआती छानबीन ही हैं पर मीडिया वाले आमतौर पर यह सब नहीं कर रहे हैं 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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