विनीत कुमार
मैं बीआइटी मेसरा, राँची को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ये बिहार-झारखंड का वो संस्थान है जिसमें कई बार कुछ छात्र आईआईटी छोड़कर यहाँ एडमिशन ले लेते हैं. ये बिहार-झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे छात्रों की नज़र में बेहतरीन संस्थानों में से एक माना जाता है. मैं कई बार इसके सांस्कृतिक-अकादमिक कार्यक्रमों में शामिल हो चुका हूँ. यहाँ एकडमिशन लेने के लिए लोग एक-दो साल ड्रॉप तक कर जाते हैं.
फेक न्यूज़ के मामले जब भी सामने आते हैं, मैं मीडिया संस्थान की बनी छवि से इतर उस मीडियाकर्मी की प्रोफ़ाइल से गुजरना ज़रूरी समझता हूँ जिसकी स्टोरी-रिपोर्ट के कारण एफआईआर- पुलिस शिकायत की स्थिति बनती है. मुझे ऐसा करना इसलिए ज़रूरी लगता है कि अकादमिक दुनिया के लोगों के बीच फैक्ट चेकिंग वर्कशॉप नाम से एक नया धंधा चल निकला है.इसके नाम पर संस्थानों में बजट तैयार होने लगे हैं और छात्रों को यह समझाया जाता है कि वो ख़बर की सत्यता की जाँच कैसे करें ? वो ख़ुद भी मासूमियत से यह माहौल बनाने में लगे हैं कि लोग कम जानकारी और अज्ञानता के कारण फेंक न्यूज़ फैलाते या उसके शिकार होते हैं. ये भी सच हो सकता है. देखते-देखते वो स्थिति यहाँ पर आकर टिकती है कि कम पढ़ेलिखे, निचले तबके के लोग फेक न्यूज़ फैलाते हैं और उसके शिकार होते हैं. बाक़ी मुद्दों की तरह वो इसे क्लास की चीज मानने लग जाते हैं.
फेक न्यूज़ के मामले में जबकि मेरी समझ शुरू से इससे अलग रही है. ज़्यादातर मामलों में बेहतरीन संस्थानों से पढ़ाई कर चुके लोग फेंक न्यूज़ फैलाने का काम करते हैं. आपको क्या लगता है कि एप्पको वर्ल्डवाइड जैसी पीटर एजेंसी में बिना पढ़े-लिखे लोग रखे जाते हैं ? राजनीतिक दलों की आईटी सेल में कम पढ़ेलिखे लोग हैं ?
प्रोफ़ाइल जानने से यह होता है कि ये जो भ्रम और बल्कि कहिए कि प्रोपगेंडा तेज़ी से फैलाने का काम हो रहा है कि जानकारी के अभाव में लोग फेंक न्यूज़ फैलाते हैं, कम से कम मेरे पाठक इस बात से अलग हटकर सोच सकें. बेहतरीन संस्थान, चमकीले कोर्स और उच्चतर प्रशिक्षण के बाद भी यदि कोई फेक न्यूज़ फैलाने का काम करता है तो इसका मतलब है कि वो यह सब सुनियोजित ढंग से कर रहा है. वो जानता है कि ऐसा करने के क्या परिणाम हो सकते हैं और ग़लत होने की स्थिति में भी उसे कैसे समर्थन मिलता रहेगा ?
पिछले दिनों बिहार के गोपालगंज कटेया थाना क्षेत्र के अन्तर्गत एक नाबालिग की जिस स्थिति में मौत हुई और उसे लेकर जो माहौल बना, उसकी छानबीन अभी जारी है. लेकिन जब पुलिस सार्वजनिक तौर पर कहते हों कि मीडिया ने साम्प्रदायिक रंग देने का काम किया और उनके ख़िलाफ़ एफ़आइआर दर्ज किया गया, ऐसे में ये कम पढ़े-लिखे और फेक न्यूज वाला फ़ॉर्मूला पीछे छूट जाता है. इससे ठीक उलट लगता है कि जो जितना बेहतर ढंग से पढ़ा-लिखा है, वो फेक न्यूज़ फैलाने का काम उतने ही ताकतवर ढंग से कर रहा है.
ऑप इंडिया पर एफ़आइआर दर्ज करके पुलिस ने सही किया या ग़लत, इस पर फ़िलहाल मैं अंतिम रूप से कुछ भी नहीं कह सकता. ऑप इंडिया की लोगों के बीच जो छवि बन रही है, उसके साथ इस घटना के साथ नत्थी नहीं कर रहा लेकिन यदि आख़िर-आखिर तक बीआईटी मेहरा से कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएट मीडियाकर्मी की यह रिपोर्ट फेक साबित होती है तो एक सवाल हमारे बीच ज़रूर सामने होगा- क्या एक शख्स ने ऐसे संस्थान में एडी-चोटी एक करके इसलिए एडमिशन और पढ़ाई की जिससे कि वो कहीं ज्यादा खतरनाक ढंग से फेक न्यूज का कारोबार कर सके ?
लेखक चर्चित मीडिया शिक्षक और विश्लेषक हैं।