डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 28
पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की अट्ठाइसवीं कड़ी – सम्पादक
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मध्य प्रान्त का मामला
(दि टाइम्स ऑफ इंडिया, 19 मार्च 1938)
सेवा में,
सम्पादक,
दि टाइम्स ऑफ इंडिया,
उच्च न्यायालय द्वारा दो जुआरियों को दी गई सजा को निलम्बित करने में बम्बई के गृह मन्त्री की कार्यवाही के साथ ही मध्य प्रान्त के गृह मन्त्री द्वारा की गई कार्यवाही की खबर आती है कि उन्होंने जफर हसन नामक उस व्यक्ति को जुडिशियल कमिश्नर की अदालत द्वारा दी गई सजा को माफ कर दिया है, जिसने 14 वर्ष की लड़की पर बलात्कार के आरोप में तीन साल के कठोर कारावास की सजा का खण्डन किया था। अभियुक्त केवल एक वर्ष ही कारावास में रहा।
मुझे लगता है कि मध्य प्रान्त में काँग्रेस मन्त्री की यह कार्यवाही शर्मनाक है, जिसके लिए मुझे कोई समानान्तर नहीं मिल सकता। क्या हिन्दू जनता इतनी अॅंधी होकर काँग्रेस के इन शर्मनाक कामों का समर्थन कर सकती है? यदि यह मामला उच्च हिन्दुओं से जुड़ा होता, तो शायद मुझे आपको पत्र लिखने के लिए परेशान होना नहीं पड़ता, और यह गम्भीर मामला तब भी नहीं होता, यदि लड़की उच्च हिन्दू होती। किन्तु क्योंकि हिन्दुओं में यह विश्वास पैदा हो गया है कि काँग्रेस के सिवा कोई अन्य पार्टी और महात्मा के सिवा कोई अन्य व्यक्ति उनका उद्धार नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने अपना भाग्य एक ही पार्टी के हाथों में सौंप दिया है, जिस पर वे इस कदर भरोसा करते हैं कि उन्होंने उस पर सन्देह करना ही छोड़ दिया है। वे अपने दुख को अपनी ही गलती समझते हैं। किन्तु लड़की दलित वर्ग की है। वह चम्भार जाति से है। यही मेरी गहरी चिन्ता का कारण है। हमारा अल्पसंख्यक होना ही हमारे भाग्य में है। हम केवल आलोचना कर सकते हैं। हम नियन्त्रण करने की आशा कभी नहीं कर सकते।
यदि मध्य प्रान्त में गृह मन्त्री के इस तरह के कार्य हिन्दू जनता के द्वारा बरदाश्त किए जाते हैं, प्रधानमन्त्री उनका अनुमोदन करते हैं और महात्मा द्वारा उनकी अनदेखी की जाती है, तो दलित वर्गों को निष्पक्ष कार्यवाही और न्याय की आशा कैसे हो सकती है? मुझे विश्वास है कि किसी अन्य देश में ऐसे मन्त्री को बरखास्त कर दिया जायेगा। पर भारत में इसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती। महात्मा और उनके प्रधान मन्त्री अपने मन्त्री के इस गलत कार्य को न्यायसंगत कैसे साबित कर सकते हैं ?
बम्बई बी.आर.आंबेडकर
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सोमवंशीय हितकारक समाज ने डा. बी. आर. आंबेडकर को
मानपत्र और थैली भेंट की
महोदय,
इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के नेता डा. बी. आर. आंबेडकर और डा. पी. जी. सोलंकी को मानपत्र और थैली भेंट करने के लिए सोमवंशीय हितकारक समाज और तडवाड़ी, मझगाँव वासी अछूतों के तत्वावधान में 19 मार्च को तडवाड़ी, मझगाँव में एक सभा का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता ‘विविध वृत्त’ के सम्पादक आर. के. टटनिस ने की। उन्होंने, एम. एन. तलपड़े, एस. टी. गायकवाड़ और डा. बी. आर. आंबेडकर ने मराठी में भाषण दिए। इस सभा में 100 महिलाओं सहित 500 लोगों ने भाग लिया था।
सभा के अध्यक्ष, एम. एन. तलपड़े और एस. टी. गायकवाड़ ने अपने भाषणों के दौरान अछूतों के हित में डा. बी. आर. आंबेडकर और डा. पी. जी. सोलंकी की सेवाओं का उल्लेख किया। उसके बाद अध्यक्ष के द्वारा डा. आंबेडकर और डा. पी. जी. सोलंकी को मान पत्र और थैली भेंट की गई। डा. पी. जी. सोलंकी सभा में उपस्थित नहीं थे, क्योंकि उनके बीमार होने की खबर थी।
मानपत्र के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए डा. बी. आर. आंबेडकर ने कहा कि अछूतों ने किसी भी अन्य व्यक्ति या संगठन की सहायता के बिना ही अपने उत्थान के लिए प्रयास किया था। हालाँकि काँग्रेस पार्टी ने अछूतों की सहायता करने का दावा किया है, पर किया कुछ नहीं। सिर्फ यही नहीं, इस तरह के संगठन, विरोधी भी हैं। यह मध्य प्रान्त में एक अछूत लड़की पर बलात्कार के जघन्य अपराध के लिए दोषी मुसलमान को दी गई सजा को माफ करने से साबित हो जाता है। इसके बाद उन्होंने बम्बई में अछूतों लिए एक हाल (सभागार) की आवश्यकता पर जोर दिया और उसके निर्माण के लिए श्रोताओं से चन्दा देने की अपील की। उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्हें जितने धन की जरूरत है, उसे बिरला या बजाज जैसे लोगों से इकटठा करना आसान है, पर ऐसा करके वह अनावश्यक रूप से उसे उच्च जाति के हाथों में सौंपना नहीं चाहते। इसके बाद उन्होंने घोषणा की कि जो थैली उन्हें भेंट की गई है, वह इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के कोष में जायेगी।
कार्यक्रम रात 10.30 पर आरम्भ हुआ था और शान्तिपूर्वक 12.30 पर समाप्त हुआ।
(हस्ताक्षर)
अधीक्षक, विशेष शाखा,
सी. आई. डी.
22 मार्च।
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डा. आंबेडकर का शीघ्र प्रकाश्य ग्रन्थ
रूढ़िवादी और जागरूक सुधारक के बीच सनसनी पैदा करेगा
(दि बाम्बे क्रानिकल, 29 मार्च 1938)
यह सबको पता है कि डा. आंबेडकर, जो पिछले लगभग 12 सालों के दौरान दलित वर्ग के उत्थान के क्षेत्र में सबसे अधिक सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, हाल के सार्वजनिक मंच पर इतने विशिष्ट नहीं हुए हैं। वास्तव में वे बम्बई विधान सभा के कार्य के लिए भी समय नहीं दे पाए, जिसे वे चाहते थे, और जनता यह जानने के लिए परेशान थी कि वे आखिर कहाँ व्यस्त हैं, क्योंकि उनके जैसे सक्रिय व्यक्ति से अपना समय नष्ट करने की अपेक्षा करना अस्वाभाविक होगा।
अब सत्य यह सामने आया है कि डा. आंबेडकर को एक नामी ब्रिटिश प्रकाशक ने दलित वर्गों के लिए अस्पृश्यता के उद्गम पर विस्तृत शोध करने का काम दिया है। इतिहास-क्रम में उनका यह कार्य विभिन्न चरणों से गुजरा है और उन सभी काल-खण्डों में वह हिन्दू समाज और भारत के सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित करता है।
इस ग्रन्थ में सात अध्याय हैं और इसका आरम्भ दुर्व्यवहार के उन आत्मकथात्मक अनुभवों से होता है, जिन्हें आज के अछूत रोज भोग रहे हैं। अगले अध्याय में अस्पृश्यता के सम्पूर्ण सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक आधार की व्याख्या करते हुए इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है कि अछूतों के प्रति इस तरह का दुर्व्यवहार क्यों किया जाता है? तीसरा अध्याय बताता है कि किस तरह सभी युगों में शासक वर्ग ने राज्य-शक्ति, धार्मिक आदेशों और आर्थिक परतन्त्रता आदि के माध्यम से अछूतों को नीच बनाए रखने के षड़यन्त्र किए। एक पूरा अध्याय इस बुराई (अस्पृश्यता) को मिटाने के लिए कुछ भी ठोस कार्य करने में ब्रिटिश सरकार की असफलता को समर्पित है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे पिछले 200 सालों से प्रशासन ‘आदेश सब पर, प्रगति कुछ नहीं’ पर आधारित रहा है। एक अन्य पूरा अध्याय ईसाई मिशनरियों के बारे में है, जो उनकी गतिविधियों का बेहतरीन सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हुए उनके प्रभाव की सफलता, उनकी कमियों तथा विफलताओं को बताता है।
‘सामाजिक सुधारक: प्राचीन और आधुनिक’ शीर्षक के अन्तर्गत लेखक सदियों से समाज-सुधारकों की चल रही गतिविधियों का सर्वेक्षण करता है और बताता है कि हिन्दू समाज ने किस तरीके से उनके प्रयासों पर प्रतिक्रिया की थी। यह अध्याय समाज-सुधारक की ऐतिहासिक भूमिका को बहुत ही सही ढंग से प्रस्तुत करता है और सबसे विचारोत्तेजक विश्लेषण महात्मा गाँधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू की गतिविधियों का करता है।
600 से भी ज्यादा पृष्ठों के इस ग्रन्थ का प्रकाशन, जो पूरी तरह से एक निरपेक्ष अध्ययन पर आधारित है, और जिसमें ऐसी सूचनाओं की खदान मौजूद है, जो उत्पीड़न की कहानियों का खुलासा करती है, और व्यवस्थित तरीके से किए गए उस षड़यन्त्र का भण्ड़ाफोड़ करती है, जिसमें कला, साहित्य, दर्शन, वास्तव में पूरे सांस्कृतिक तन्त्र को शासक वर्ग को बनाए रखने के लिए प्रयोग किया गया था, भारतीय राजनीति और रूढ़िवादी हिन्दुओं में सबसे ज्यादा सनसनी पैदा करेगा। यह आत्ममुग्ध हिन्दुओं की आँखें खोलने वाला होगा और ज्यादा क्रान्तिकारी सुधारों के लिए प्रेरित करेगा।।
(हस्ताक्षर)
अधीक्षक,एस. बी., सी. आई. डी.
29 मार्च
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निर्वासन बिल में डा. आंबेडकर का संशोधन
(दि बाम्बे क्रानिकल, 27 अप्रैल 1938)
सरकार द्वारा ‘आपातकालीन स्थिति’ की घोषणा की जानी है, जो दो माह बाद समाप्त हो जायेगी।
नीचे उस संशोधन का पूरा पाठ है, जो डा. बी. आर. आंबेडकर ने बम्बई पुलिस अधिनियम 1902 में संशोधन बिल के लिए प्रस्ताव पेश किया है-
बिल के अनुच्छेद 2 के लिए, निम्नलिखित को प्रतिस्थापित करे- ‘बम्बई शहर पुलिस अधिनियम, 1902के खण्ड 27 के बाद यह नया खण्ड जोड़ा जायेगा:
27क (1) प्रान्तीय सरकार, यदि सहमत हुई कि शहर में समुदायों के बीच या शहर के किसी भाग में शान्ति भंग हुई है, या भंग होने वाली है, तो वह प्रान्तीय गजट में आपातकाल लगने की घोषण कर सकता है, (जो उसके बाद आपातकाल की घोषणा के रूप में उल्लिखित होगी)।
(2) आपातकाल की घोषणा-
(क) किसी भी समय बाद की घोषणा के द्वारा समाप्त की जा सकती है, और
(ख) दो महीने तक रहेगी, उसके बाद समाप्त हो जायेगी, जब तक कि उस अवधि के खत्म होने से पहले उसे फिर न बढ़ा दिया गया हो।
(3) प्रान्तीय सरकार द्वारा उपखण्ड (1) के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा जारी करने के बाद, पुलिस आयुक्त को जब भी ऐसा लगता है कि बम्बई शहर में किसी व्यक्ति की उपस्थति, गतिविधियाँ, अथवा कृत्य खतरा या खतरे का कारण बन रहा है, या बनने की सम्भावना है, या कोई ड्रम या कुछ और बजाता है, और उस व्यक्ति के द्वारा समुदायों के बीच शान्ति भंग करने का उचित सन्देह मौजूद है, तो इस तरह के व्यक्ति को सीधे सही करने और किसी मार्ग या मार्गों से, स्थान या स्थानों पर शान्ति के उपद्रव को रोकने के लिए समय के भीतरजो आवश्यक प्रतीत होगा, पुलिस आयुक्त के रूप में निर्धारित करेगा।
(4) यदि उपखण्ड (3) के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति स्वयं को निर्दिष्ट तरीके से आचरण करने विफल रहता है या स्वयं को बम्बई शहर के बाहर हटने से इनकार करता है, या निर्दिष्ट समय के बाहर उस शहर में प्रवेश करता है, तो पुलिस आयुक्त के लिए उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने या पुलिस हिरासत में उस स्थान से, जिसका उससे हर तरह से सीधा सम्बन्ध हो, बम्बई शहर से बाहर निकालने का वाजिब कारण हो सकता है।
(5) उपखण्ड (3) के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध आदेश पारित करने से पूर्व पुलिस आयुक्त या उसके द्वारा अधिकृत कोई अन्य पुलिस अधिकारी, जो अधीक्षक श्रेणी से नीचे का न हो, सामान्य रूप से उस व्यक्ति को उन आरोपों के बारे में, जो उस पर लगाए गए हैं, सूचित करेगा और उसे उन आरोपों का जवाब देने के लिए उचित अवसर देगा। पुलिस आयुक्त या अधिकृत अधिकारी यदि कोई गवाह है, तो उन गवाहों की जाँच करेगा, और उनसे लिखित वक्तव्य लेकर उसे रिकार्ड के लिए फाइल में रखेगा।
(6) उपखण्ड (3) के अन्तर्गत पुलिस आयुक्त के पारित आदेश से पीड़ित कोई भी व्यक्ति पारित आदेश की तिथि से तीस दिनों के भीतर प्रान्तीय सरकार में अपनी अपील कर सकता है।
(7) उपखण्ड (3) के अन्तर्गत पारित पुलिस आयुक्त के आदेश अथवा उपखण्ड (6) के अन्तर्गत प्रान्तीय सरकार के आदेश को इस आधार पर कि पुलिस आयुक्त या उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी ने उपखण्ड (5) के अन्तर्गत निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है, किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जायेगी।
(8) इस खण्ड में निहित कुछ भी नहीं होने के कारण पुलिस आयुक्त से उस व्यक्ति को उजागर करने की माँग की जायेगी, जिसके विरुद्ध उपखण्ड (3) के अन्तर्गत आदेश पारित किया गया है या अदालत को उस व्यक्ति की सूचना या किसी ऐसे तथ्य के स्रोत को बताना होगा, जो उसके विचार में किसी व्यक्ति की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
(9) उपखण्ड (3) के अन्तर्गत पुलिस आयुक्त द्वारा पारित आदेश अथवा उपखण्ड (6) के तहत पारित प्रान्तीय सरकार का आदेश आपातकाल की घोषणा के बाद उसके लागू होने पर कोई असर नहीं डालेगा।
पिछली कड़ियाँ —
27. ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर
26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर
25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर
24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’
23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर
22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !
21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर
20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !
19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर
18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर
17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर
16. अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर
15. न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !
14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर
13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर
12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क
11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर
10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!
9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!
8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!
7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?
6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर
5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर
4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !
3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !
2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी