बाबा साहेब का परिनिर्वाण : बम्बई में उमड़ा दु:ख का ज्वार, शोकाकुल मज़दूरों ने किया काम बंद


संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर का परिनिर्वाण 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ था।  डॉ.आंबेडक ने अछूतों और वंचित समुदायों के लिए जीवन भर जैसा संघर्ष किया था उसका प्रभाव उनकी अंतिम यात्रा में भी दिखा। लाखों लोग अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन करने और श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े। पिछले दिनों मीडिया विजिल में एक महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ “डॉ.आंबेडकर और अछूत आंदोलन” को सिलसिलेवार ढंग से छापा गया था। इसमें डॉ.अंबेडकर और उनके आंदोलन को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती का है जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है डॉ.आंबेडकर की अंतिम यात्रा का विवरण – सम्पादक


दिवंगत डा. बी. आर. आंबेडकर को श्रद्धांजलि

(बम्बई सिटी, विशेष शाखा-1, सी.आई.डी.)

9 दिसम्बर 1956 को श्मशान भूमि, शिवाजी पार्क में दिवंगत डा. आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने का एक कार्यक्रम भदन्त आनंद कोसल्यायन की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. इसमें लगभग दो लाख लोग उपस्थित थे. श्री खोब्रागडे, दादासाहेब गायकवाड़, भोंसले, घनश्याम तलवटकर, चिटनिस, और 13 अन्य लोगों ने इस अवसर पर भाषण दिए थे.

अध्यक्ष ने कहा कि डा. आंबेडकर के परिनिर्वाण से अनुसूचित जाति समुदाय में एक विशाल खालीपन पैदा हो गया है. पर उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते समय डा. आंबेडकर की शिक्षाओं को अपने सामने रखना चाहिए. उसके बाद उन्होंने उन लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी जो 8 दिसम्बर को अनुपस्थित थे. अन्य वक्ताओं ने उचित तरीके से डा. आंबेडकर के जीवन पर प्रकाश डाला. इसके बाद श्मशान भूमि से उनके अस्थि कलशों को जुलूस के साथ डा. आंबेडकर के निवास राजगृह, दादर ले जाया गया. इस यात्रा में लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया था.

शाम की शोक सभा में, जो बम्बई के नागरिकों की ओर से शिवाजी पार्क, दादर में हुई थी, लगभग एक लाख लोग उपस्थित हुए थे, जिसकी अध्यक्षता श्री एम. वी. डोंडे ने की थी और श्री के. एस. ठाकरे, मधुकर महाजन, नौशिर भरुचा, एम. आर. दंडवते, भंडारे, डा. कार्णिक, बी. सी. कांबले, श्री पगाड़े, डा. टी. आर. नरवड़े, श्री रूपवते, एस. जी. पाटकर, खोब्रागडे, एम. हर्रिस, भिड़े, अनंत मंदेकर, पी. के. अत्रे, और अन्य वक्ताओं ने दिवंगत नेता डा. आंबेडकर के जीवन पर प्रकाश डाला. वक्ताओं ने राज्य में शोक न मनाने के लिए सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर भारत के विभाजन के खिलाफ थे और बम्बई को द्विभाषी राज्य बनाना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने जनता से अपील की कि वे उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए संयुक्त महाराष्ट्र के लिए संघर्ष करें. उन्होंने उन परिस्थितियों को भी स्पष्ट किया, जिन्होंने डा. आंबेडकर को हिन्दू समुदाय और कांग्रेस का कटु आलोचक बनाया था. उन्होंने कहा कि जो लोग इस पृष्ठभूमि को समझे बिना ही उनको कटु आलोचक कहते हैं, वे गलती करते हैं.

डा. आंबेडकर की स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि उनके जाने से देश की बहुत बड़ी क्षति हुई है, और वे सब उनके अनुयायियों के वियोग में शरीक हैं. सभी ने एक मिनट का मौन रखकर शोक व्यक्त किया.

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श्रम शाखा एस. बी. (आई), सी.आई.डी.

बम्बई, 8 दिसंबर 1956

डा. आंबेडकर की मृत्यु के उपलक्ष्य में 6 और 7 दिसम्बर 1956 को हड़ताल के सम्बन्ध में श्रमिक स्थिति.

6 दिसम्बर 1956 की स्थिति

दिल्ली में डा. आंबेडकर के निधन का समाचार सुनकर और यह जानकर कि उनका पार्थिक शरीर 6 दिसम्बर को बम्बई आ रहा है, 12 कपड़ा मिलों के मजदूरों ने 3.30 की दूसरी पाली में काम नहीं किया. और वे दिवंगत के निवास पर जाने के लिए बाहर चले गए.

इसी तरह 9 कपड़ा मिलों के मजदूरों ने तीसरी पाली में काम नहीं किया.

इसी तरह अन्य फेक्टरियाँ भी दूसरी पाली में प्रभावित हुई थीं.

7 दिसम्बर 1956 की स्थिति

कपड़ा मिलें            (अ) पहली पाली 60 मिलें        पूरी तरह बंद           30

आंशिक               4

सामान्य               15

साप्ताहिक अवकाश      11

(ब) दूसरी पाली 58 मिलें        पूरी तरह बंद           3

आंशिक               11

सामान्य               8

साप्ताहिक अवकाश      11

(स) तीसरी पाली 42 मिलें       पूरी तरह बंद           26

आंशिक               —

सामान्य               8

साप्ताहिक अवकाश      8

रेलवे वर्कशाप— केवल सेन्ट्रल रेलवे वर्कशाप, माटुंगा और परेल, वाड़ी बंदर और जनरल स्टोर, करी रोड प्रभावित हुए. बाद में मालूम हुआ कि महा प्रबन्धक ने मजदूरों के लिए अवैतनिक अवकाश घोषित कर दिया है.

सिल्क मिलें और फेक्टरियाँ— कुछ सिल्क मिलें और फेक्टरियाँ, जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण मिलें शामिल हैं, प्रभावित हुई हैं—  (1) प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स, कुर्ला, (2) सिन्डिया वर्कशॉप, मजगांव, (3) हिन्द साइकिल, वोरली, (4) एस्ट्राला बैटरीज, धारावी, (5) कैलिको प्रोसेसिंग, लाल बाग़, (6) अल्कोक अशडाउन, मजगांव, (7) ऑर्डनेन्स डिपो, सेवरी, (8) बी.ई.एस.टी. वर्कशॉप, दादर, (9) आई.एन. डाकयार्ड, फोर्ट, (10) आई.जी. मिंट, मिंट रोड, और (11) म्युनिसिपल वर्कशॉप, फोरस रोड. इनमें से कुछ आंशिक रूप से चल रही थीं.

पत्थरबाजी की छिटपुट घटनाएँ— अम्बिका सिल्क मिल्स, फोनिक्स मिल्स (तुलसी पाइप रोड पर दोनों), स्टैण्डर्ड मिल, न्यू प्रभादेवी रोड और वेस्टर्न इंडिया टेनरीज, धारावी से पत्थर फेंके जाने की खबरें प्राप्त हुई थीं.

बड़ी संख्या में जल निकासी और संरक्षण विभाग में काम करने वाले नगरपालिका कर्मचारी आज काम पर नहीं आए थे.

बी.पी.टी. डॉक्स— बी.पी.टी. डॉकस से लगभग 2000 जहाज कर्मचारियों और कुलियों ने लगभग 1.30 बजे काम छोड़ दिया.

8 दिसम्बर                                                            (ह.) पी. आई. श्रम शाखा,


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श्रम शाखा की दैनिक रिपोर्ट का सार-संक्षेप

10 दिसम्बर 1956

नई हड़ताल—

1-      प्रकाश कॉटन मिल्स लिमिटेड, हनुमान लेन, फेर्गुसन रोड, में 1,072 बुनकरों में से अनुसुचित जातियों के 489 बुनकरों ने 3.30 पर दूसरी पाली में काम नहीं किया. प्रबंधन ने बुनाई विभाग को बंद करने के लिए 854 बुनकरों में 327 बुनकरों को तीसरी शिफ्ट में छुट्टी पर भेजकर बुनाई विभाग बंद कर दिया. आज मिल में सामान्य रूप से काम हुआ. तीसरे पहर में हड़ताल फिर से शुरू होने की संभावना है.

2-      वेस्टर्न इंडिया इंजीनियरिंग कम्पनी, सिग्नल हिल अवेन्यू, सेवरी में 60 लोगों में से 43 लोग सुबह 8 बजे काम छोड़कर चले गए थे. आज सुबह वे फिर से सामान्य रूप से काम करेंगे.

3-      रिचर्डसन एंड क्रुददास लिमिटेड, विक्टोरिया गार्डन्स रोड में 1,162 कर्मचारियों में से 374 कर्मचारी दिन की पाली में 8 बजे और 196 कर्मचारियों में से 52 कर्मचारी रात की पाली में सायं 5 बजे काम पर नही आए थे.  पर आज दिन की पाली में सामान्य रूप से काम चल रहा है और रात की पाली में भी काम चलने की संभावना है.

पुलिस निरीक्षक, मुख्य शाखा, एस.बी. (1), सी.आई.डी., बम्बई को सूचनार्थ और इस आग्रह के साथ अग्रसारित कि वह अपनी रिपोर्ट की एक प्रति श्रम आयुक्त, बम्बई को भेजने की कृपा करेंगे.

(ह.)

पुलिस निरीक्षक

श्रम शाखा, एस.बी.(1), सी.आई.डी.

बम्बई.

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बम्बई, 10 दिसम्बर 1956

 

दिनांक और समय                    9 दिसम्बर, सायं 5.45 से रात्रि 10.15 तक

स्थान                              शिवाजी पार्क, दादर.

तत्वावधान                          बम्बई के नागरिक

विषय                              डा. बी. आर. आंबेडकर की स्मृति

अध्यक्षता                           श्री एम. वी. दांडे

वक्ता                              श्री के. एस. ठाकरे

श्री मधुकर महाजन

श्री नौशेर भरुचा

श्री बी. सी. काम्बले

डा. हेमंत कार्णिक

श्री पगारे

डा. टी. आर. नारवाने

श्री रूपवते

श्री एस. जी. लाटकर

श्री खोब्रागडे, बार-एट-लॉ

श्री मोहिद्दीन हार्रिस

श्री ए. के. भिड़े

श्री आर. डी. भंडारे

श्री एम. आर. दंडवते

श्री आनन्द कोसल्यायन

श्री अनंत मंदेकर

श्री दादासाहेब गायकवाड़

श्री पी. के. अत्रे

श्रोता गण                           एक लाख

टिप्पणी—

अध्यक्ष ने कहा कि उनके (डा. अम्बेडकर के) पास लोगों के मन की स्थिति का एक विचार था. अतीत में बहुत सी सभाएं शिवाजी पार्क में हुई हैं, परन्तु आज की यह सभा अतीत की सभाओं से भिन्न है. आज वे एक महा मानव को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्र हुए हैं. उन्होंने कहा कि हालाँकि यह सभा बम्बई के नागरिकों ने आयोजित की है, पर सच यह है कि पद-दलित लोगों के प्रतिनिधि न केवल भारत के अनेक भागों से, बल्कि विश्व के अनेक भागों से भी डा. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस सभा में उपस्थित हुए हैं. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर समुद्र और हिमालय से भी महान थे. पर उनके जीवनकाल के दौरान लोगों ने जो व्यवहार उनके साथ किया था, उससे उनका दिल गुस्से से भरा हुआ था। डा. आंबेडकर अन्याय के विरुद्ध लड़े थे. उनकी उपस्थिति उन दुश्मनों के बीच एक आतंक थी, जो सच के बारे में बोलते तो थे, पर उनकी करनी सत्य और न्याय से कोसों दूर थी. आज वे दुनिया में महीन हैं. यह देश की बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि डा. आंबेडकर की भाषा बहुत कठोर थी, परन्तु कोई भी यह जानना नहीं चाहता की ऐसा क्यों था? ऐसा इसलिए था, क्योंकि अपने बचपन से ही उन्होंने न केवल हिंदुओं से बल्कि अन्य समुदायों के सदस्यों से भी दुर्व्यवहार झेला था. उन्होंने आगे कहा कि यह कहना गलत है कि वे ब्राह्मणों से घृणा करते थे. उनके बहुत से ब्राह्मण मित्र थे, और उनके एक ब्राह्मण अध्यापक ने ही उनको पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया था. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने अपने ब्राह्मण अध्यापक के उस पत्र को अंत तक सुरक्षित रखा था, जो उसने उन्हें तब लिखा था, जब वे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गए थे. उन्होंने कहा कि एक आरोप डा. आंबेडकर के विरुद्ध यह लगाया जाता है कि उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया. ऐसे लोगों से वह पूछना चाहते हैं कि उन्होंने देश के लिए क्या नहीं किया? उन्होंने संविधान का निर्माण किया और यह वही थे, जिन्होंने राष्ट्र ध्वज के लिए अशोक चक्र दिया था. उन्होंने देश को अपनी महान सेवाएँ प्रदान की थीं, परन्तु देश के लोग उनके और उनके अनुयायियों के साथ अच्छा व्यवहार करने में असफल रहे. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने लोगों में जागरूकता पैदा की थी और उन्हें पक्का विश्वास है कि भले ही आज डा. आंबेडकर संसार से चले गए हैं, पर उनके अनुयायी उनके द्वारा दिए गए उज्ज्वल संदेश को आगे बढ़ाने के लिए सदैव तत्पर रहेंगे.

श्री के. एस. ठाकरे ने डा. आंबेडकर को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 65 वर्षों में बहुत से महान नेताओं की अंतिम यात्राएँ देखी हैं, परन्तु उन्होंने अपने जीवनकाल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों द्वारा भाग लेने वाला कोई अंतिम संस्कार जुलूस नहीं देखा। उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर द्विभाषी राज्य के सख्त खिलाफ थे. यह उन्हीं की इच्छा थी कि बम्बई, बेलगाँव, करवर के साथ संयुक्त महाराष्ट्र का निर्माण हो. उन्होंने कहा कि संयुक्त महाराष्ट्र प्राप्त करने का काम अभी तक अधूरा है और डा. अम्बेडकर की इस इच्छा को पूरी करने की ज़िम्मेदारी उनके अनुयाइयों की है. उन्होंने श्रोताओं से कहा कि वे उनकी इच्छा पूरी होने तक आराम न करें.

श्री मधुकर महाजन ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डा. आंबेडकर के निधन ने एक महान अवुभवी नेता का संरक्षण खो दिया है, परन्तु उनकी शिक्षाएं देश में लोकतंत्र को सुरक्षित और मजबूत करने में महान सहायता करेंगी. वह आश्वासन देते हैं कि भारतीय जनसंघ डा. आंबेडकर के अनुयायियों की मुक्ति के लिए सदैव तत्पर रहेगा.

श्री नौशेर भरुचा ने डा. आंबेडकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डा. आंबेडकर विद्वान् व्यक्ति थे, जो आजीवन पददलित लोगों के कल्याण के लिए लड़े. हमने एक बड़े नेता को खो दिया है. उन्होंने सुझाव दिया कि डा. आंबेडकर की अनुपस्थिति में पददलित जनता के हितों के संरक्षण के लिए सभी राजनीतिक दलों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया जाना चाहिए.

श्री बी. सी. कांबले ने कहा कि डा. आंबेडकर के अनुयायी आज इसलिए रो रहे हैं, क्योंकि वे सोच रहे हैं कि उन्होंने अपने हिमायती को खो दिया है और वे नहीं जानते कि उनके न रहने पर अब उनके भविष्य में क्या होगा, क्योंकि उनकी जगह लेने वाला दूसरा कोई नेता नहीं है. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने अपने सम्पूर्ण जीवन में देश में असमानता मिटाने और नए समाज के निर्माण के लिए काम किया, तथा उस इरादे से उन्होंने देश को संसदीय लोकतंत्र दिया। उनका मत था कि उन्होंने इस दिशा में काम किया कि लोग संसदीय तरीके से देश में एक नया समाज बनाने के लिए सक्षम हों. उन्होंने आगे कहा कि यह कहा जाता है कि डा. आंबेडकर की जुबान कठोर थी. ऐसे लोगों को वह बताना चाहते हैं कि अगर अन्यायपूर्ण कारणों को हटा दिया गया था, तो कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए डा. आंबेडकर के लिए कोई अवसर नहीं होता.

डा. हेमंत कार्णिक ने, अपने भाषण के दौरान, कहा कि सरकार ने छोटे राज्यों के शासकों के निधन पर भी अपने कार्यालय बंद कर दिए थे, पर यह महान दुःख का विषय है कि भारत सरकार ने डा. आंबेडकर के निधन पर राज्य शोक घोषित नहीं किया, जो भारत के मंत्रिमंडल में थे और भारत के संविधान के निर्माता थे. उन्होंने आगे कहा कि डा. आंबेडकर ने बहुत सी संस्थाएं आरम्भ की थीं, पर अब उन संस्थानों को जारी रखने का महान काम उन कंधों पर आ गया है, जिन्हें वे पीछे छोड़ गए हैं.

डा. टी. आर. नरवाने ने डा. आंबेडकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डा. आंबेडकर दासता के विद्रोही थे, और नए समाज को स्थापित करने का काम कर रहे थे, जो अधूरा रहा गया और अब इसे पूरा करने का दायित्व उन लोगों का है, जिन्हें वे पीछे छोड़ गए हैं.

श्री एस. जी. पाटकर ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से डा. आंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए डा. आंबेडकर के अनुयाइयों को आश्वस्त किया कि कम्युनिस्ट पार्टी देश में समानता पर आधारित समाज की स्थापना के लिए हर प्रकार का सहयोग करेगी.

श्री दादासाहेब गायकवाड़ ने कहा कि डा. अम्बेडकर के लिए विद्रोही के बजाय क्रांतिकारी कहा जाए तो बेहतर होगा. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म तब अपनाया था, जब उन्होंने देखा लिया था कि उन्हें सवर्ण हिन्दुओं से मानवीय व्यवहार नहीं मिल सकता. उन्होंने कहा कि उन्होंने 1935 में ही हिन्दू धर्म छोड़ने का निश्चय कर लिया था, और उन्होंने सवर्ण हिन्दुओं को अछूतों के साथ अपने व्यवहार में सुधार लाने के लिए पर्याप्त समय दिया था, किन्तु जब डा. आंबेडकर ने देखा कि सवर्ण हिन्दू सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं, तो उन्होंने अपने अनुयाइयों को बौद्ध धर्म अपनाने का सुझाव दिया. उन्होंने आगे कहा कि डा. आंबेडकर ने विधान सभाओं और संसद में दलित वर्गों की आवाज़ उठाने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश शासकों से पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की थी, परन्तु महात्मा गाँधी ने उसका यह कहकर विरोध किया था कि कांग्रेस ही हरिजनों का प्रतिनिधत्व करने वाली पार्टी है. उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता संग्राम के समय में डा. आंबेडकर ने कांग्रेस से पूछा था कि आजादी की उपलब्धि के बाद हरिजन को क्या लाभ मिलेगा, तो कांग्रेस कोई भी आश्वासन देने में नाकाम रही थी. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस कह रही थी कि अस्पृश्यता देश से खत्म हो गई है, पर वे उन्हें बताना चाहते  थे कि स्वतंत्रता मिलने के बाद, पहले की तुलना में अस्पृश्यता बड़े पैमाने पर देखी गई है और वे इसके सबूत देने की स्थिति में थे. उन्होंने आगे कहा कि दलित वर्गों को आज भी गांवों और तालुकों में पुलिस तथा सरकारी अधिकारीयों से अच्छा व्यवहार नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि अगर यही व्यवहार सवर्ण हिन्दुओं के साथ किया जाए, तो वे दुर्व्यवहार करने वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाएंगे. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने अपने लोगों को संवैधानिक तरीके से चलने की सलाह दी थी, न कि अन्याय को दूर करने के लिए किसी तरह के हिंसक कार्य का सहारा न लेने की. उन्होंने अंत में कहा कि डा. आंबेडकर की शिक्षाएं दलितों की मुक्ति के लिए भविष्य में सहायता करेंगी.

इसके बाद अध्यक्ष ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें डा. आंबेडकर की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा गया कि डा. आंबेडकर एक महान विद्वान और देशभक्त थे, जिनके प्रयाण से देश की महान क्षति हुई है और घोषणा की कि वे डा. अम्बेडकर के अनुयायियों के शोक में बराबर के शरीक हैं.

श्री पी. के. अत्रे ने, अपने भाषण के दौरान, प्रस्ताव को एक तरफ रखते हुए, कहा कि डा. आंबेडकर एक दूरदर्शी मानव थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक में देश के विभाजन के परिणामों को पहले ही लिख दिया था. उन्होंने कहा कि उस पुस्तक में डा. आंबेडकर ने लिखा था कि पाकिस्तान टूटेगा और पुन: अखंड भारत का निर्माण होगा. उन्होंने कहा कि वे संयुक्त महाराष्ट्र के समर्थक थे और द्विभाषी राज्य का विरोध करते थे. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने 7 करोड़ अछूतों को उनके न्यायोचित अधिकारों से वंचित करके महात्मा गाँधी के जीवन की रक्षा की थी. उन्होंने कहा कि डा. आंबेडकर ने देश की नैतिक शक्ति को मजबूत करने के लिए बौद्ध धर्म ग्रहण किया था. उन्होंने कहा कि उन्होंने चौपाटी रेत पर डा. आंबेडकर के पार्थिक शरीर का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी थी, परन्तु श्री यशवंतराव चव्हाण ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. उन्होंने कहा कि वे उस स्थान पर डा. आंबेडकर की विशाल प्रतिमा बनाना चाहते हैं जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया था, ताकि श्री तिलक और डा. आंबेडकर दोनों ओर से बम्बई शहर की रक्षा कर सकें और तब कोई भी मुंबई शहर को महाराष्ट्र अस्वीकार करने की हिम्मत नहीं करेगा.

अन्य वक्ताओं ने अपने भाषणों में डा. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की.

मिनट में सभी लोगों ने खड़े होकर प्रस्ताव किया.

जनसभा शांतिपूर्वक रात्रि 10. 15 पर समाप्त हो गई.

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(ह.)

रिपोर्ट कर्ता

10 दिसम्बर

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कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।



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