नायक पूजा को देशहित की बलि चढ़ाती है पत्रकारिता-डॉ.अंबेडकर

“कभी भारत में पत्रकारिता एक व्यवसाय था। अब वह व्यापार बन गई हैं। वह तो साबुन बनाने जैसा है, उससे अधिक कुछ भी नहीं। उसमें कोई नैतिक दायित्व नहीं। वह स्वयं को जनता का जिम्मेदार सलाहकार नहीं मानती। भारत की पत्रकारिता इस बात को अपना सर्वप्रथम तथा सर्वोपरि कर्तव्य नहीं मानती कि वह तटस्थ भाव से निष्पक्ष समाचार दे ,वह सार्वजनिक नीति के उस निश्चित पक्ष को प्रस्तुत करे जिसे वह समाज के लिए हितकारी समझे, चाहे कितने भी उच्च पद पर हो, उसकी परवाह किए बिना किसी भय के उन सभी को सीधा करे और लताड़े , जिन्होने गलत अथवा उजाड़ पक्ष अनुसरण किया हैं। उसका तो प्रमुख कर्तव्य हो गया हैं कि नायकत्व को स्वीकार करे और उसकी पूजा करे। उसकी छत्रछाया में समाचार-पत्रों का स्थान सनसनी ने, विवेकसम्मत मत का विवेकाहीन भावावेश ने, उत्तरदायी लोगों के मानस के लिए अपील ने, दायित्वहीनों की भावनाओं के लिए अपनापन ने ले लिया। लाॅर्ड सेलिसबरी ने नार्थक्लिप पत्रकारिता के बारे में कहा है कि वह तो कार्यालय-कर्मचारियों के लिए कार्यालय कर्मचारियों का लेखन है। भारतीय पत्रकारिता उससे भी दो कदम आगे हैं। वह तो ऐसा लेखन हैं, जैसे ढिंढोरचियों ने अपने नायकों का ढिंढोरा पीटा हो। नायक पूजा के प्रचार-प्रसार के लिए कभी भी इतनी नासमझी से देशहित की बलि नहीं चढ़ाई गई है। नायकों के प्रति ऐसी अंधभक्ती तो कभी देखने में नहीं आई, जैसे कि आज दिख रहीं है। “

 बाबासाहेब डाॅ.अंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय खंड- 1, पृष्ठ नं.273 

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