भारत बंद से किसको कितना नुकसान, कितना फ़ायदा? 

भारत में कृषि संकट अचानक नहीं पैदा हुआ है. यह दशकों से कृषि के प्रति सरकारों की उपेक्षा नतीजा है. किसान मुद्दे पर 25 सितम्बर को आयोजित  भारत बंद से किसको कितना नुकसान और कितना  फायदा हुआ इसका तत्काल प्रामाणिक ब्योरा मिलना मुश्किल है. मोदी सरकार ने देश में बेरोजगारी से लेकर किसानो की आत्महत्या तक किसी भी जरुरी मुद्दे पर डेटा देना ही बंद कर दिया है. सम्भव है कि गोदी मीडिया का जब रिया, कंगना, दीपिका,सारा, साना आदि की चटखारे भरी और मनगढंत खबर देकर अपनी टीआरपी बढाने के अहिर्निश काम से तनिक फुरसत मिले तो अर्णव गोस्वामी और अंजना ओम कश्यप जैसे एंकर-एंकरानी शायद ये कहने लगे कि किसानो ने भारत बंद कर देश को हजारो करोड रुपये का चूना लगा दिया

हम सब जानते हैं उन्हे जमीन की नहीं सिर्फ जन्नत की हकीकत मालूम है. इसलिये हम अपने पाठको को जानकारी दे रहे हैं कि इस भारत बंद से 2 हजार करोड रुपये से लेकर 25 हजार करोड रुपये तक का नुकसान होने का फौरी अंदाज लगाया जा सकता है. वर्ष 2012 में मजदूरों द्वारा एक दिन के आयोजित भारत बंद के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने माना था कि इससे कम से कम दो हजार करोड रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ. लेकिन तब इंडिया टुडे समूह की अंग्रेजी पत्रिका बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार एक दिन के भारत बंद से अनुमानित 12500 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था. कुछ और ने 25-30 हजार करोड रुपये के नुकसान के कयास लगाये थे. ध्यान रहे वो भारत बंद किसानो ने नहीं मजदूरो ने आयोजित किया था जिनके आंकडे तैयार कर लिये जाते हैं. पर किसान और गांव-देहात के प्रामाणिक आंकडे इतनी जल्दी नहीं मिल सकते.

बहरहाल हमारी सरकार या गोदी मीडिया नहीं बतायेगी कि किसानों की जान-माल की क्षति से हर साल कितने रुपये का नुकसान होता है और उसके लिये मूल रूप से कौन जिम्मेवार है.हम खुद समझ सकते हैं कि सरकार और गोदी मीडिया, भारत बंद से नुक़सान का ठीकरा भी किसानों के ही सर पर क्यों फोड़ती है.

 

कड़वा सच

भारतीय अर्थव्यवस्था का कड़वा सच है कि ज्यादातर आबादी , जीविका के लिए कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर है.लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि तथा संबंधित गतिविधियों का योगदान लगातार कम होता जा रहा है. उदारीकरण के दौर में खेतिहर आबादी की आमदनी , अन्य पेशेवर तबकों की तुलना में बड़ी धीमी गति से बढ़ रही है. ज्यादातर किसान परिवार, जीविका का कोई अन्य विकल्प मौजूद न होने की खेती में लगे हैं. देश के अधिकतर किसान, सीमांत हैं. उनकी जोत बहुत अधिक नहीं है. सरकारी कर्ज मिलने की मुश्किल के कारण अक्सर उन्हें भारी सूद पर महाजनों से उधार लेना पड़ता है. हर साल लगभग 12 हजार किसान अपनी जान दे देते हैं. भारत के करीब नौ करोड़ खेतिहर परिवारों में से करीब 70 फीसदी परिवार मोटे तौर पर अपनी कमाई से अधिक खर्च  उपज की लागत पर करते हैं. वर्ष 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी की साझा सरकार बन जाने के बाद की स्थिति पर गौर करे तो पिछले सात बरस में कृषि क्षेत्र में बजट आवंटन में बढ़ोतरी तो हुई पर उसका लाभ किसानों के बजाय कृषि उत्पादों के मोदी जी के करीबी गौतम अडानी जैसे कारोबारियों को ही मिल रहा है.

 

बजट 2020 

वर्ष 2020-21 के लिये केंद्र सरकार के बजट के तहत वित्त विधेयक को संसद ने पूरी दुनिया के कोरोना कोविड 19 की चपेट में आ जाने के बाद 24 मार्च को सभी संसदीय दलो के नेताओ की आम सहमति से बिन बहस के ही ध्वनिमत से पारित कर दिया. ऐसा कैसे हो गया कि हर आर्थिक वित्तीय पहलू से बिल्कुल लचर इस विधेयक को सभी दलो ने बिन बहस के पारित कर इस पर भारतीय विधायिका का पूरा ठप्पा लगा दिया. बजट संसद में एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश किया था जिसके कुछ प्रावधान तत्काल प्रभाव से लागू भी हो गये थे. बाकी बजट भी कुछ संशोधनो के साथ वित्त विधेयक पास हो जाने के साथ लागू हो गये. वित्त विधेयक पारित करने के बाद संसद को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. राज्यसभा ने भी इसे आनन फानन में बिन चर्चा के लोकसभा को लौटा दिया. राज्यसभा में वित्त विधेयक पर मतदान का प्रावधान नहीं है. सांसद चाह्ते थे कि कोविड-19 से उत्पन्न स्थिति के कारण संसद का कामकाज वित्त विधेयक पारित होते ही स्थगित कर दिया जाये. वही हुआ भी.  

वित्त विधेयक में कराधान में संशोधन के प्रस्तावों को मंज़ूरी मिल गई, जिसमें अन्य बातों के अलावा पूँजीपतियो के निगमित कर में 15% की छूट दे दी गई. विधेयक में आयकर अधिनियम में 41 संशोधन किये गए जिनमें बेनामी परिसंपत्ति कारोबार प्रतिबंध अधिनियम (1988) में संशोधन भी है. 16वीं लोकसभा में 2018 में भी वित्त विधेयक ‘गिलोटीन’ के जरिये बिना किसी चर्चा के पास कर दिया गया था. 

नये बजट में अत्यंत विवादित नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के लिए 13 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया पर कोरोना से मुकाबला करने के लिये देश भर की मेडिकल सेवाओं के वास्ते 15 हजार करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया जो इस आपदा से निपटने केरल सरकार के बजटीय प्रावधान से भी कम था. 

सरकार ने वित्त विधेयक के जरिये चालबाजी से लगभग चुपके से पेट्रोलडीजल पर 18 रुपया प्रति लीटर तक टैक्स और बढ़ाने की मंजूरी ले ली. पहले पेट्रोल पर अधिकतम 8 रु प्रति लीटर और डीजल पर 4 रु का अतिरिक्त उत्पाद कर लग सकता था, जिसे क्रमश 18 रू और 12 रु कर दिया गया. रोड एवम इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस अधिकतम 8 रु प्रति लीटर लगाया जाता था जिसे बढ़ा कर 18 रु कर दिया गया. नये संसद भवन और प्रधानमंत्री की कोठी (सेंट्रल विस्टा) के नवनिर्माण के लिए 20 हजार करोड़ रु का प्रावधान कर दिया गया. 

 

फूड सबसिडी 

आर्थिक विषयो के जानकार मुकेश असीम के अनुसार बजट में बताई संख्याओं का रत्ती भर भरोसा नही है.सब निराधार, झूठ, फ्रॉड हैं. पिछले साल भी ऐसा कुछ हद तक हो चुका था. इस बार पूरी तरह हुआ. उदाहरण के लिये बजट में फुड सबसिडी 1.84 लाख करोड़ रुपये घोषित थी. फुड सबसिडी असल में 1.08 लाख करोड़ रुपये ही रही.जबकि केंद्र सरकार के फुड कोर्पोरेशन ओफ इंडिया (एफसीआई) पर दो लाख करोड़ रुपये का बैंक कर्ज है. 


किसान मानधन
 

इसके नाम पर 75 हजार करोड़ रुपये किसानों के खाते में जाने का अनुमान था.पर गया 30 हजार करोड़ रुपया से भी कम.फिर भी मानधन के लिये 75 हजार करोड़ रुपया का प्रावधान कर दिया गया.


फर्जी आय- फर्जी खर्च 

आय फर्जी है तो खर्च के लिए आबंटन भी फर्जी हैं. फुड  सबसिडी उसका उदाहरण है. इतने फर्जी आँकड़ों के बावजूद भी कुल खर्च 0.43% घटा. फर्जी बढी आय के बावजूद भी शिक्षा , स्वास्थ्य, महिला बाल कल्याण, दलित आदिवासी विकास आदि पर खर्च बढाने की जो खबर गोदी मीडिया ने प्रचारित की वह आँकड़ों की हेराफेरी है.आम जनता के लिए जो थोड़ा खर्च होता रहा उसमें भारी कटौती कर दी गई.बजट में खर्च घट गया फिर भी घाटा बढ गया.

 



सीपी नाम से चर्चित लेखक चंद्र प्रकाश झा, यूनाईटेड न्यूज औफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से रिटायर होने के बाद तीन बरस से अपने गांव में खेतीबाडी करने और स्कूल चलाने के साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन भी कर रहे हैं. उन्होने भारत की आज़ादी, चुनाव ,  अर्थनीति, यूएनआई का इतिहास आदि विषय पर ई-किताबे लिखी हैं. वह मीडिया विजिल के अलहदा स्तम्भ चुनाव चर्चा के स्तम्भकार हैं. सीपी क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा मीडिया पुरस्कार की संस्थापक कम्पनी पीपुल्स मिशन के अवैतनिक प्रबंध निदेशक भी हैं, जिसकी कोरोना- कोविड 19 पर अंग्रेजी–हिंदी में पांच किताबो का सेट शीघ्र प्रकाश्य है. मीडिया विजिल के लिये आज शुरु उनकी यह कमेंट्री आये दिन विभिन्न मुद्दो की उन बातो पर केंद्रित होगी जो गोदी मीडिया नहीं बताती है. उनका चुनाव चर्चा कोलम भी अलग से बरकरार रहेगा-सम्पादक  

 



 

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