चुनाव चर्चा: जेएनयू की ‘फ्री थिंकर’ रहीं रक्षामंत्री एबीवीपी की हार में ‘युद्ध’ देख रही हैं!

 

चंद्र प्रकाश झा 

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली में ‘फ्री थिंकर’ (इस नाम का एक संगठन था) छात्रा रहीं और अभी भारत की रक्षा मंत्री, निर्मला सीथारमण ने एक अजब बयान दिया है। अंग्रेजी दैनिक, इंडियन एक्सप्रेस में 19 सितम्बर को छपी खबर के मुताबिक़ उन्होंने कहा है कि जेएनय की ‘अंदरूनी  ताकतें भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ रहीं हैं।’ उन्होंने यह बयान जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के परिणाम घोषित होने के दो दिन बाद ‘इंडियन वुमेंस प्रेस कॉर्प’ की पत्रकार-सदस्यों के साथ बातचीत में दिया। उन्होंने कहा- ‘मैं कैंपस में पिछले कुछे वर्षों के बहुतेरे घटनाक्रमों से दुखी हूँ। यह बिल्कुल अलग बात है कि कोई ऐसी पार्टी हो, जिसकी विचारधारा से मैं सहमत नहीं हो सकती। लेकिन वह जिन ताकतों के नेतृत्व में आ गईं हैं वे भारत -विरोधी हैं। जब मैं भारत -विरोधी कहती हूँ तो निश्चय ही यह अभिव्यक्त स्थिति है कि वे अपने पैम्फ्लेट्स और ब्रोशर में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं।  जेएनयूएसयू का नेतृत्व और सदस्य ऐसे (भारत -विरोधी) कार्यक्रमों में खुल कर भाग ले रहे हैं। उनका नेतृत्व भारत-विरोधी हाथों में चला गया है। ये वो ताकतें हैं जो भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ रही हैं। ये ताकतें छात्रसंघ के निर्वाचित सदस्यों के साथ देखी जा रही हैं। इससे  मुझे असहज महसूस होता है।’

(चित्र में निर्मला सीथारमण जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के दौरान ‘फ्री थिंकर्स’ का प्रचार करते हुए)

निर्मला जी को हक़ है। भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वाली ताकतों के बारे में बयान देने ही नहीं, उन्हें दण्डित करवाने का भी हक है। पर उनका सांविधानिक कर्तव्य है कि वह जेएनयू की व्यक्तिनिष्ठ नहीं बल्कि वस्तुनिष्ठ परिस्थितियों की समझ और सूचना हासिल करने के बाद ही ऐसा कोई बयान दें। उनका बयान जेएनयूएसयू के हालिया चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन (आरएसएस ) के आनुषंगिक संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की हार के बाद की प्रतिक्रया में आया है। उन्हें जेएनयू में पढ़ाई के बाद की अपनी नई राजनीतिक संगत में जेएनयूएसयू के पूर्णतया लोकतांत्रिक चुनाव परिणाम रास नहीं आये। निर्मला जी का शायद आंशिक स्मृति-लोप हो गया है। तभी उन्हें याद नहीं रहा कि दिल्ली पुलिस, जेएनयूएसयू के वर्ष 2016 के चुनाव में निर्वाचित अध्यक्ष, कन्हैया कुमार और दो अन्य छात्र-नेताओं- उमर ख़ालिद और अनिर्बान भट्टाचार्या को ‘राजद्रोह’ के आरोप में गिरफ़्तार करने के बाद आज तक अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी। वह  रक्षामंत्री बनने के बाद खुद का यह कहा भी शायद भूल गईं कि वह ‘आज जो कुछ हैं, जेएनयू की बदौलत हैं।’

(जेएनयू का पुस्तकालय)

बहरहाल, जेएनयूएसयू के हालिया चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी प्रत्याशी, ललित पांडेय को 972 वोट मिले। वह ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के प्रत्याशी और वामपंथी चुनावी महागठबंधन ‘लेफ्ट युनिटी’ समर्थित, एन.साईं बालाजी से 1179 वोटों के अंतर से हार बैठे। एवीबीपी की हार का अंतर ज्यादा भी हो  सकता था, अगर अध्यक्ष पद के लिए जयंत जिज्ञासु  चुनाव नहीं लड़े होते। जयंत ने ‘लेफ्ट युनिटी’ में शामिल ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसफ) से इस्तीफा देकर, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय जनता दल के छात्र संगठन की तरफ से अपनी चुनावी किस्मत आज़माई। जयंत ने एआईएसएफ से इस्तीफा देने के लिए इसके नेता रहे, जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष और अब  सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद् के निर्वाचित सदस्य, कन्हैया कुमार के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा कर सोशल मीडिया पर खुला खत लिखा। बताया जाता है कि जयंत, सोशल मीडिया पर लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र एवं राज्य में 2016 के चुनाव उपरान्त गठित, नीतीश कुमार सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव के लिए लगे रहते हैं।

(जेएनयू छात्रसंघ के नवनिर्वाचित पदाधिकारी)

जेएनयूएसयू चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर ‘लेफ्ट युनिटी’ प्रत्याशी, सारिका को अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी की गीताश्री को मिले 1013 वोट की तुलना में 2592 वोट मिले। महासचिव पद के लिए ‘लेफ्ट युनिटी’ समर्थित प्रत्याशी, एजाज़ ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी प्रत्याशी, गणेश को 1193  मतों के अंतर से परास्त किया। इस चुनाव में सर्वाधिक 2426 वोट एजाज़ को ही  मिले। संयुक्त सचिव पद पर ‘लेफ्ट युनिटी’ की अमुथा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी के वेंकट चौबे को 757  मतों से परास्त किया। एबीवीपी ने चुनाव परिणाम के शुरुआती रूझान को देख अपनी हार की आशंका से कैंपस में हिंसा का माहौल फैलाने और मतगणना रूकवाने की कोशिश की। इस कारण मतगणना में कुछ देरी हुई। लेकिन जेएनयूएसयू छात्रसंघ के संविधान के तहत छात्रों द्वारा ही चुने जाने वाले चुनाव आयोग ने निर्भय होकर मतगणना भी पूरी की।

 

जेएनयूएसयू संविधान

 

कहते हैं कि इस बार के जेएनयूएसयू चुनाव के बारे में निष्पक्ष खबर और विश्लेषण को पारम्परिक मीडिया ने दबा देने की कोशिश की। ‘मीडिया विजिल’ अलहदा है। उसका ‘चुनाव चर्चा’ स्तम्भ सर्वथा अलग है। इसलिए, हम ‘चुनाव चर्चा’ के इस अंक में बिन लाग-लपेट और द्वेष-भाव के जेएनयूएसयू चुनाव के बारे में सम्पुष्ट चर्चा करेंगे। जेएनयू के छात्र नेता रहे और अभी शिक्षा और जनहित के अन्य  विषयों को लेकर एक गैर-सरकारी संगठन संचालित कर रहे, अनिल चौधरी ने मीडियाविजिल को बताया कि जेएनयू अपने आप में विलक्षण है। जेएनयूएसयू का संविधान दुनिया भर में अप्रतिम है।  यह संविधान जेएनयू छात्रों के ही एक समूह ने रचा था ।

जेएनयूएसयू के संविधान रचियताओं में शामिल एवं लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर रहे डॉ.रमेश दीक्षित के अनुसार जेएनयूएसयू के इस बार के चुनाव में एबीवीपी को करीब 20 प्रतिशत मत मिले। उनका ध्यान शायद इस पर नहीं गया कि ‘लेफ्ट युनिटी’ ने जेएनयू में विपक्ष का स्पेस लगभग खाली कर दिया। इस स्पेस पर कब्जा करने में कांग्रेस समर्थक, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया (एनएसयूआई) और दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रो को अस्मितावादी नज़रिये से संगठित करने में कुछ सालों से सक्रिय, ’बाप्सा’ भी विफल रहा। कहा जाता है कि एबीवीपी को दक्षिणपंथी छात्र संगठनों के वोट ट्रांसफर भी हुए। फिर भी एबीवीपी जेएनयूएसयू के इस चुनाव में ‘लाइफ़ साइंसेज़ स्कूल’ के अपने गढ़ में भी हार गई। यहाँ उसका एक भी पार्षद नहीं जीत सका। पारम्परिक मीडिया ने यह विश्लेषण नहीं दिया कि ‘लाइफ साइंसेज़  स्कूल’ में एवीबीपी की हार क्यों हुई। मीडियाविजिल का विश्लेषण है कि यह ‘लाइफ़ साइंसेज़ स्कूल’ के छात्र-छात्राओं के चुनावी ‘विद्रोह’ से संभव हुआ। इस स्कूल के छात्र-छात्राओं को ‘आरएसएस समर्थक’ माने जाने वाले एक प्रोफ़ेसर द्वारा किया गया यौन-उत्पीड़न नहीं सहा गया। जेएनयू की आंतरिक प्रशासनिक जाँच में ये प्रोफ़ेसर साहिब दोषी पाए गए बताये जाते हैं लेकिन एवीबीपी ने इन प्रोफ़ेसर साहेब का अप्रत्यक्ष रूप से बचाव ही किया।

प्रोफ़ेसर दीक्षित के मुताबिक़ जेएनयूएसयू संविधान रचने  में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के दो बार महासचिव रहे, प्रकाश कारात ने भी कुछ हाथ बँटाया था। कारात एक बार जेएनयूएसयू अध्यक्ष रहे। वह दूसरी बार, समाजवादी गुट के आनंद कुमार से हार गए जो  ‘आम आदमी पार्टी’ (आप ) के पूर्व सिद्धांतकार रहे हैं। वह अब आप पार्टी में नहीं हैं और अभी  जेएनयू  में अध्यापनरत हैं। किन्ही कारणों से जब आनंद कुमार ने जेएनयूएसयू अध्यक्ष पद से अवकाश ग्रहण किया तो उनकी जगह स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज की पार्षद, वंदना मिश्र को अध्यक्ष का पदभार सौंपा गया। वह प्रोफ़ेसर दीक्षित की जीवनसाथी हैं। वह पत्रकार रहीं हैं और अभी मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियम ऑफ़ सिविल  लिबर्टीज’ की उत्तर प्रदेश की पदाधिकारी भी हैं। प्रोफ़ेसर दीक्षित , अभी पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की उत्तर प्रदेश इकाई की बागडोर  संभाले हुए हैं। वन्दना मिश्र, गणितज्ञ-दार्शनिक और पत्रकार दिवंगत अखिलेश मिश्र की सुपुत्री हैं। दिवंगत मिश्र, संत सदृश थे और उन्होंने वर्धा आश्रम में विनोबा भावे के सानिध्य में अध्ययन -अध्यापन भी किया था।

 

 (जेएनयू से निकले तीन जौहरी- पुरुषोत्तम अग्रवाल, अली जावेदा और अनिल चौधरी)

 

डी.पी.टी

वंदना मिश्र के बाद 1974 में देवी प्रसाद त्रिपाठी उर्फ डी.पी.टी, जेएनयूएसयू अध्यक्ष चुने गए। मूलतः इलाहाबादी डीपीटी, विलक्षण वक्ता माने जाते हैं। वह हाल तक एनसीपी की ओर से राज्यसभा  सदस्य रहे। वह अभी इसी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। प्रसिद्ध लेखक, डेविड सेलबोर्न ने इंदिरा गांधी के शासनकाल में लागू आंतरिक आपातकाल के बारे में अपनी चर्चित अंग्रेजी पुस्तक, ‘ऐन आई टू इंडिया’ में कई पन्ने  डीपीटी पर लिखे हैं। डी.पी.टी इमरजेंसी में कई  महीने जेल में रहे। बताया जाता है कि जेल में ही डीपीटी की आँखें ज़्य़ादा खराब हुईं। मूलतः उत्तराखंडी और राजनीतिक रूप से इलाहाबादी रहे, हेमवती नंदन बहुगुणा (अब दिवंगत)  ने उनकी आँखों का इलाज करवाया। निर्मला सीथारमण को डी.पी.टी ज़रूर याद होंगे।

जेएनयूएसयू ने एक बयान में निर्मला जी के आरोप पर गहरी निराशा व्यक्त की है। ‘फ्री थिंकर’ के सदस्य रहे चंद्रशेखर टिबरेवाल जैसे कुछ पूर्व छात्र नेताओं ने भी रक्षा मंत्री के बयान पर घोर आपत्ति व्यक्त की है। यह बयान, जेएनयू के छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ व्यवस्थित रूप से मिथ्या आरोप मढ़ने की जारी प्रक्रिया का हिस्सा है। इस प्रक्रिया में बिहार के मोतिहारी में संजय कुमार और देश में अन्यत्र भी हिसंक हमले किये गए। चाहे भीमा कोरेगांव हो अथवा पथलगढ़ी आंदोलन, छात्रों के प्रतिरोध को दबाने और बदनाम करने के लिए मौजूदा निज़ाम ने लगातार उन्हें राष्ट-विरोधी निरूपित किया है।  जेएनयूएसयू के बयान में कहा गया है कि जेएनयू की छात्रा रहीं और वरिष्ठ मंत्री के रूप में निर्मला सीथारमण का बयान भर्त्सना योग्य है। उन्हें अपना गैर-जिम्मेदाराना और आधारहीन बयान तत्काल वापस लेकर घृणा का माहौल फैलाने के लिए जेएनयू के छात्र समुदाय से सार्वजनिक माफ़ी माँगनी चाहिए।

(जेएनयू एलुम्न मीट के दौरान सोहेल हाशमी, रमेश दीक्षित और डी.पी.टी)

जेएनयू का सवाल कन्हैया से, कन्हैया का सवाल रोहित वेमुला से, रोहित का सवाल अख़लाक़ से, बीफ का सवाल भारत के संविधान से, संविधान का सवाल नोटबंदी से, हमारे-आपके सारे सवाल जुड़े हैं।  लेकिन जवाब कोई नहीं मिलता निज़ाम से। हम निर्मला जी को याद दिलाना चाहेंगे कि सूफी संगीत गायक-वादक मदन गोपाल सिंह उनके समकालीन जेएनयू छात्र रहे हैं। उनका अंतर-धार्मिक ब्याह जेएनयू में ही रूसी भाषा पढ़ीं रश्मि दोरायस्वामी से हुआ। वह जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन की निर्वाचित अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। मदन गोपाल सिंह ने अपने संगीत ग्रुप, “चार यार” के साथियों के साथ मिल वर्ष 2016 में एक गीत रचा।  वो गीत तब रचा गया जब हिन्दुस्तान की ‘हुक्मरानी’ के हुकुम पर जेएनयूएसयू के तत्कालीन अध्यक्ष, कन्हैया कुमार और दो अन्य छात्र नेताओं दिल्ली को पुलिस ने ‘सेडिशन’ के आरोप में गिरफ़्तार किया और प्रतिरोध-स्वरुप जेएनयू के छात्र-छात्राओं ने कैंपस के गंगा ढाबा से संसद तक मार्च निकाला। वो गीत है-

 

जुगणी जेऐनयू विच

 

जुगनी जा चढ़ी अस्मान

ओथों वेखे कुल जहान

मुंडे कुड़ियाँ हस्सदे गौण

धार अज़ादी भरण उडाण

 

भैण मेरिए नी जुगनी कहिंदी ए

ओ जा जे ऐन यू विच बहिंदी ए

 

मेर्या ओ जुगणी गौंदी ए

ते नाम कन्हैया लैंदी ए।

जुगणी जाने सारे राज़

जुगणी मंदी ना पवे।

 

जुगनी गावे गीत आज़ाद

ओहनु पै गए शिक़रे बाज़.

 

जुगनी गावे गीत आज़ाद

ओहनु पै गए शिक़रे बाज़

जुगनी फेर न आवे बाज़

वीर मेरे-आ ओ जुगनी

सुफ़ने दी

वीर मेरे-आ ओ जुगनी

कविता दी

जुगनी जा चढ़ी अस्मान

ओथों वेखे कुल जहान

मुंडे कुड़ियाँ हस्सदे गौण

धार अज़ादी भरण उडाण

 

भैणमेरिए नी जुगनी कहिंदी ए

ओ जा जे ऐन यू विच बहिंदी ए..

(गिद्धदृष्टि में जेएनयू)

 



( मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)



 

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