चुनाव चर्चा: लेफ्ट को कमज़ोर करने वाली ममता लहर के भगवा आहट में बदलने के मायने-1

देश के कथित मुख्यधारा मीडिया में अचानक बंगाल छाने लगा है। रोज़ कोई न कोई केंद्रीय मंत्री या बीजेपी का बड़ा नेता बंगाल फतेह करने के अंदाज़ में पश्चिम बंगाल पहुँचता है और फिर ऐसा कुछ ज़रूर होता है जिससे पश्चिम बंगाल की क़ानून व्यवस्था निशाने पर आ जाती है। ख़ुद राज्यपाल जगदीप धनकड़ की भाषा किसी विपक्षी दल के नेता का अहसास करा रही है। ऐसा लगता है कि बस चुनाव हो और बीजेपी का मुख्यमंत्री बनना तय है।

यह सब उस पश्चिम बंगाल का हाल है जहाँ कुछ साल पहले तक विधानसभा में उसके इक्के-दुक्के विधायक ही पहुँच पाते थे। लेकिन जिस लाल का रंग बंगाल ममता बनर्जी ने कहीं ज्यादा वाम होकर बदला था,  उसी राज्य में उनके राज ने दक्षिण के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिया।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आल इंडिया तृणमूल काँग्रेस (टीएमसी) ने राज्य विधान सभा के 2016 में हुए पिछले चुनाव में कुल 295 सीट में से 211 सीटें जीती थी। टीएमसी ने उसके पहले 2011 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। टीएमसी को कांग्रेस से गठबंधन करने का ये फायदा हुआ कि उसको विधान सभा में अपने बूते बहुमत हासिल हो गया।

फलस्वरूप टीएमसी ने राज्य की सत्ता पर कम्यूनिस्ट पार्टी इंडिया, मार्क्सिस्ट ( सीपीएम ) की अगुवाई में 24 बरस से काबिज से वाम मोर्चा को बेदखल कर दिया। कम्युनिस्टों का ‘लाल-राज’ खतम हो जाने पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समेत बहुतों को खुशी हुई। 

 

हिलेरी क्लिंटन

तब अमेरिका के राष्ट्र्पति बराक ओबामा प्रशासन की स्टेट सेक्रेट्री (विदेश मंत्री ) हिलेरी क्लिंटन भी अपनी खुशी छिपा नहीं पायी थीं। हिलेरी ने व्यक्तिगत रूप से ममता जी को बधाई दी थी। वह उस चुनाव के ऐन पहले की अपनी भारत यात्रा में कोलकाता भी गई थीं। 

भारत के अंदरूनी लोकतांत्रिक चुनाव में अमेरिका के किसी भी सियासी नेता की व्यक्तिगत दिलचस्पी को लेकर कम्युनिस्टों को छोड कर कांग्रेस समेत किसी भी भारतीय राजनीतिक दल की भृकुटि नहीं तनी थी। यह एक बारीक तथ्य है, जिसे याद रखा जाना चाहिये।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोक सभा चुनाव में कश्मीर के पुलवामा कांड  से उभरे ‘राष्ट्रवाद’ की लहर पर सवार 2014 के लोक सभा चुनाव से भी ज्यादा प्रबल जीत दर्ज कर सदन में पहली बार अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल किया था, लेकिन यह लहर बंगाल में नहीं चल पायी थी।  

भाजपा के तब के अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की 42 में से 22 लोक सभा सीटों पर पार्टी की जीत का लक्ष्य निर्धारित किया था. लेकिन तब इस राज्य से भाजपा के दो ही लोक सभा सदस्य निर्वाचित हो सके थे. जाहिर है बंगाल ने भाजपा के भगवा ब्रांड के राष्ट्र्वाद की लहर रोक दी थी.

 

 वोट शेयर

राज्य में भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2014 के लोक सभा चुनाव में हुआ था. तब उसका वोट शेयर करीब 16 प्रतिशत रहा था। गौरतलब है कि कांग्रेस ने उस चुनाव में सीट तो भाजपा से दो ज्यादा कुल चार जीती थी पर उसका वोट शेयर भाजपा से कम करीब 10 प्रतिशत ही था। 2014 के उस लोक सभा चुनाव में टीएमसी ने 34 सीटें जीती थी। उसका वोट शेयर करीब 39 प्रतिशत था. 

वामपंथी मोर्चा ने तब दो ही सीट जीती थीं पर उसका वोट शेयर कांग्रेस और भाजपा से भी बहुत ज्यादा करीब 29 प्रतिशत था। 

 

कुछ संदर्भ 

पश्चिम बंगाल में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर विधान सभा चुनाव में भी भाजपा का साथ दिया था। उसका  बिनय तमांग गुट मार्च 2018 में भाजपा की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) से अलग हो गया लेकिन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का बिमल गुरुंग गुट भाजपा के ही साथ बना रहा।

यह उसी साथ का नतीजा था कि केंद्रीय विदेश और वित्त मंत्री रहे  भाजपा के शीर्ष नेता जसवंत सिंह ( अब दिवंगत ) गोरखा बहुल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र- दार्जलिंग से जीतने में कामयाब रहे थे।

तो क्या अगले विधानसभा चुनाव की राह बीजेपी के लिए वाक़ई आसान हो चली है जैसा कि कथित मुख्यधारा मीडिया आभास दे रहा है, या पुनर्जागरण की धरती में अभी भी सकारात्मक बदलाव के कुछ बीज अकुला रहे हैं। देखेंगे अगली किस्त में..

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। 

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