पहना पन्ना: राजद्रोह की याचिका पर 50 हज़ार जुर्माने को दबा गये अख़बार!

मुझे याद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने राजद्रोह का कानून हटाने का वादा किया था और यह कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी था। राहुल गांधी हार गए तो इसका बहुत महत्व नहीं रहा पर आज जवाहर लाल नेहरू को याद करने और राहुल गांधी को भूल जाने की रिपोर्टिंग के अपने मायने हैं जो आप समझ सकते हैं। दिलचस्प यह है कि आज इस मामले की पुष्टि और संदर्भ के लिए मैंने गूगल किया तो पता चला कि इस वादे या प्रस्ताव के लिए भी राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमे हुए थे और खबरें तो खैर थी हीं। मैं नहीं कहूंगा कि ऐसी ही खबरों के कारण राहुल गांधी की पार्टी हार गई या भाजपा जीत गई। मैं मीडिया मैनेजमेंट की ही बात करूंगा।

आज की खबरों में खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 370 हटाने के खिलाफ फारुक अब्दुल्ला के बयान को देशविरोधी और राजद्रोह मानने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा है कि अब्दुल्ला के बयान में ऐसा कुछ नहीं है कि कार्रवाई शुरू की जाए। अदालत में याचिका दायर कर मांग की गई थी कि ऐसी कार्रवाई (धारा 370 हटाने की निन्दा) को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया गया तो दूसरे लोग जैसे, देश विरोधी विचार वाले टुकड़े-टुकड़े गैंग देश विरोधी गतिविधियों को उकसाएंगे और देश की शांति नष्ट हो जाएगी। इसपर अदालत ने कहा, क्या आप जानते हैं कि धारा 370 का मामला अदालत में लंबित है। याचिकाकर्ताओं का इस विषय से कोई संबंध नहीं है। यह प्रचार के लिए मुकदमा करने का मामला है। हमें ऐसी याचिकाएं दायर करने वालों के खिलाफ जुर्माना लगाना चाहिए। और अदालत ने 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। (टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के आधार पर)।

मुझे लगता है कि आज के समय में यह बहुत बड़ी खबर है। कोई फारुक अब्दुल्ला के विरोध का विरोध करे यह तो सही है पर उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राजद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग करे – यह निश्चित रूप से अटपटा है। कहने की जरूरत नहीं है कि याचिका दायर करने वाले सरकार को और अधिकार दिलाना चाहते हैं। सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं भी कर रही हो तो वह इतनी सक्षम तो है ही और होती ही है कि अपने अधिकार जाने, हासिल करे और उनका उपयोग करे। कोई नागरिक किसी दूसरे नागरिक के खिलाफ मुकदमा करे यह तो ठीक हो सकता है पर सरकार को अधिकार दिलाने के लिए …. मुझे बात जमी नहीं।

यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने ठीक किया। वैसे भी फैसले पर टिप्पणी या प्रतिक्रिया करना मेरा काम नहीं है। मैं तो यह बताना चाहता हूं कि मेरे पांच अखबारों में किसी ने भी पहले पन्ने पर यह नहीं बताया है कि ऐसी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने प्रचार याचिका माना और 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। पांच अखबारों में सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे लीड बनाया है और जुर्माने की सूचना साथ के बॉक्स की खास बातों में है। पर उपशीर्षक, फ्लैग या इंट्रो के रूप में बड़े अक्षरों में नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है सरकार का विरोध राजद्रोह नहीं हो सकता है और आजादी मिलने के बाद इसकी जरूरत नहीं समझी गई थी। यह सुविधा बाद में हासिल गई है।

सरकार विरोधी विचारों के लिए नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है – यह पुरानी और जानी हुई बात है। वैसे भी राजद्रोह और देशद्रोह अलग चीजें हैं। आप राजा और सरकार का विरोध करें, देश या सरकार का विरोध देशहित या जनहित हो तो सबको मिलाया नहीं जा सकता है और यह सब पहले भी कहा जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में इसे स्पष्ट कर दिया। अब यह सरकार और नागरिकों के लिए चाहे जितनी बड़ी सूचना हो, नई नहीं है। नई या अनूठी बात जुर्माने की है जो कभी-कभी लगाई जाती हैं। पर अखबारों में इसे प्रमुखता नहीं दी गई है। कायदे से अखबारों को चाहिए था कि याचिका दायर करने वालों के बारे में बताते और यह भी कि सरकार या सत्तारूढ़ दल से उनके कैसे संबंध है, करीबी है या नहीं और यह मुकदमा करना उनके लिए कैसा सामान्य है, पहला है या किसी और कारण से है।

द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर यह सूचना दी है कि खबर अंदर के पन्ने पर भी सिंगल कॉलम में है। जुर्माने की बात शीर्षक में नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को पहले पन्ने पर तीन कॉलम में टॉप पर रखा है लेकिन जुर्माने की सूचना काफी आगे जाकर दी गई है और वही जानेगा जो यहां तक खबर पढ़ेगा। इससे पहले अखबार ने बताया है भारत में राजद्रोह का कानून अंग्रेजों ने 1870 में बनाया था। 1948 में संविधान सभा में चर्चा के बाद इसे संविधान से अलग करने का फैसला हो चुका था और ‘राजद्रोह’ शब्द संविधान से हटा दिया गया था। इसके बाद यह फिर कैसे कब किस रूप में आया इसका भी विवरण है और बताया गया है कि जवाहर लाल नेहरू ने पहला संशोधन लाकर राज्य को अभिव्यक्ति की आजादी पर वाजिब प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया।

मुझे याद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने राजद्रोह का कानून हटाने का वादा किया था और यह कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी था। राहुल गांधी हार गए तो इसका बहुत महत्व नहीं रहा पर आज जवाहर लाल नेहरू को याद करने और राहुल गांधी को भूल जाने की रिपोर्टिंग के अपने मायने हैं जो आप समझ सकते हैं। दिलचस्प यह है कि आज इस मामले की पुष्टि और संदर्भ के लिए मैंने गूगल किया तो पता चला कि इस वादे या प्रस्ताव के लिए भी राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमे हुए थे और खबरें तो खैर थी हीं। मैं नहीं कहूंगा कि ऐसी ही खबरों के कारण राहुल गांधी की पार्टी हार गई या भाजपा जीत गई। मैं मीडिया मैनेजमेंट की ही बात करूंगा।

तब हिन्दुस्तान टाइम्स की ही एक खबर थी, “राहुल गांधी कौन हैं जो राजद्रोह कानून को खत्म करने के वादे से (कांग्रेस को) बचाने की कोशिश कर रहे हैं? अमित (शाह) ने कांग्रेस पर निशाना साधा।” तब अमित शाह ने कहा था कि कांग्रेस के प्रस्ताव आतंकवादियों और अलगाववादियों के चेहरे पर मुस्कान लाएंगे तथा सशस्त्र सेना का मनोबल कम होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार अब उस कानून का दुरुपयोग राजनीतिक विरोध से निपटने में कर रही है और इसमें उसे समर्थक नागरिकों (या समर्थकों) का सहयोग भी मिल रहा है। पर मीडिया का एक वर्ग भी समर्थन करे – यह दिलचस्प है। जुर्माने की खबर और इस खबर को देने में पूर्वग्रह साफ नजर आ रहा है।

आज हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपनी खबर में बताया है कि 2019 में राजद्रोह के मामलों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी और पिछले साल के मुकाबले गिरफ्तारियां 41 प्रतिशत बढ़ गई थीं। गृहमंत्रालय ने 10 फरवरी को राज्यसभा में एक लिखित जवाब में बताया था कि 2019 में 96 लोग इस आरोप में गिरफ्तार किए गए थे, सिर्फ दो को सजा हुई और 29 बरी हो गए। बाकी पर मुकदमा चल रहा है और जांच हो रही है। अखबार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अधिवक्ता आदि से बात करके और भी जानकारियां दी हैं। इंडियन एक्सप्रेस में भी सुप्रीम कोर्ट की यह खबर है और इसमें भी जुर्माने की बात काफी नीचे जाकर कही गई है।

अब आपको आज पहले पन्ने की कुछ खास खबरें बताता हूं और बताउंगा कि इन खबरों के बावजूद इंडियन एक्सप्रेस में आज लगातार पांचवें दिन कोरोना के टीके की खबर लीड है। इसमें बताया गया है कि भारत बायोटेक का कोविड टीका 81 प्रतिशत प्रभावी है। यह कंपनी के बयान पर आधारित खबर है। हिन्दुस्तान टाइम्स और द हिन्दू ने इस खबर के साथ बताया है कि दूसरे टीके कितने प्रभावी हैं और सब 81 प्रतिशत से ज्यादा हैं। द हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे सेकेंड लीड बनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट की खबर लीड है जबकि हिन्दू में शशिकला की खबर लीड है और बताया गया है कि उन्होंने राजनीति छोड़ने का निर्णय किया है।

आज की प्रमुख खबरें

  1. भाजपा जब चाहती है कि वे एडीएमके में हों, शशिकला ने चौंकाया। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, तमिलनाडु चुनाव से पहले शशिकला ने कहा कि वे राजनीति से दूर रहेंगी।
  2. इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर एक तस्वीर के कैप्शन के जरिए बताया है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश बुधवार को गुलाम नबी आजाद के घर दिन के खाने पर गए थे।
  3. फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप और अभिनेत्री तापसी पन्नू पर आयकर छापे की खबर भी अखबारों में प्रमुखता से है।
  4. कर्नाटक में भाजपा सरकार के एक मंत्री की सेक्स सीडी का मामला भी इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर।
  5. वाशिंगटन आधार वाले जाने-माने थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने भारत की आजादी का स्कोर कम कर दिया है और इसके आधार पर इसे आजाद से आंशिक आजाद बना दिया है।

अब आप अपने अखबार में देखिए कौन सी है और कौन नहीं। अभी मुझे यह बताना है कि द टेलीग्राफ ने इस अंतिम खबर को लीड बनाया है और इसे प्रधानसेवक के दावे के रूप में पेश किया है और कहा है कि आलोचकों पर हमला इसका सबूत है।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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